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कोविड-19: लौट आए लॉकडाउन, क्या हुआ हमारी ‘V-आकार’ वाली रिकवरी का
चूंकि कोविड-19 ज़्यादा भयावहता के साथ वापस लौट आया है, इसलिए लॉकडाउन फिर से लगाये जा रहे हैं। अर्थव्यवस्था की पटरी पर आने की जो सुस्त रफ़्तार दिखायी पड़ रही है, उससे स्थिति एक बार फिर देश की स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे के पूरी तरह ध्वस्त होने के साथ-साथ एक भयावह आर्थिक संकट में भी बदल सकती है।
शिंजानी जैन
21 Apr 2021
कोविड-19: लौट आए लॉकडाउन, क्या हुआ हमारी ‘V-आकार’ वाली रिकवरी का

19 अप्रैल, सोमवार को भारत में 24 घंटे में कोविड-19 के 2.59 लाख नये मामले सामने आये और इससे 1, 721 लोगों की मौतें हुईं। महाराष्ट्र, दिल्ली और गुजरात सहित कई राज्य ऑक्सीजन, अस्पताल के बेड और टीकाकरण की आपूर्ति कम होने के बढ़ते मामले से जूझ रहे हैं। पिछले साल के मुक़ाबले कम सख़्त होने के बावजूद लॉकडाउन लगाये जा रहे हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था सुस्त और अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग स्तर पर पटरी पर आ रही थी, लेकिन एक बार फिर इस पर चोट हो रही है।

बार्कलेज इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, प्रमुख आर्थिक केंद्रों में स्थानीय लॉकडाउन होने से भारतीय अर्थव्यवस्था को हर हफ़्ते औसतन 1.25 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है। मई के आख़िर तक यह नुकसान तक़रीबन 10.5 बिलियन डॉलर का हो सकता है। वॉल स्ट्रीट ब्रोकरेज, बैंक ऑफ़ अमेरिका (BofA) सिक्योरिटीज़ की एक रिपोर्ट में इस बात क अनुमान लगाया गया है कि भारत की जीडीपी 2020-21 के मार्च की तिमाही में पहले की अनुमानित 3% की बढ़ोतरी हासिल कर पाने की संभावना नहीं है।

जनवरी 2021 के इकोनॉमिक सर्वे में अर्थव्यवस्था के लिए ‘V-आकार’(अर्थव्यवस्था का मंदी में गोता लगाने के बाद एक बार फिर पटरी पर लौटने का संकेत) की रिकवरी और 2021-22 में 11% की वास्तविक जीडीपी वृद्धि का अनुमान लगाया गया था। वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर 23.9% का संकुचन आया था, जिसके बाद दूसरी तिमाही में 7.5% की गिरावट आयी थी। इस सर्वेक्षण ने यह भी कहा गया है कि एक वार्षिक संकुचन के बावजूद भारत की नीतियों से देश के आर्थिक विकास पर पड़ने वाले महामारी के असर को कम करने में मदद मिली थी।

लेकिन, विश्लेषकों ने भारतीय अर्थव्यवस्था की इस V-आकार की रिकवरी के दावों से अपनी असहमति जतायी है। चूंकि स्थिति तेज़ी से बदतर होती जा रही है, ऐसे में इस बात का जायजा लेना मुनासिब होगा कि पिछले एक साल में देश की आर्थिक स्थिति कैसी रही है।

हालांकि, आधिकारिक आंकड़े बताते रहे हैं कि अप्रैल और जून के बीच की अवधि के दौरान आर्थिक संकुचन 23.9% का रहा है, लेकिन प्रमुख अर्थशास्त्री-अरुण कुमार का अनुमान है कि इस अवधि में जीडीपी में वास्तविक गिरावट 47% की रही है। इसके पीछा का उनका तर्क यह कि ये अनुमान अर्थव्यवस्था के उस असंगठित क्षेत्र को लेकर हैं, जिसे वार्षिक जीडीपी डेटा में शामिल नहीं किया गया है। इस असंगठित क्षेत्र में भारत का 90% से ज़्यादा कार्यबल लगा हुआ है। कुमार का तो यह भी अनुमान था कि सितंबर 2020 में महामारी ने 80 करोड़ भारतीयों या 60% लोगों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित गरीबी रेखा से नीचे ला दिया था।

कुमार का जनवरी 2020 में वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए विकास दर का अनुमान -29% का था। इसी तरह, वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के अनुमान अर्थव्यवस्था में क्रमशः 7.5% और 7.7% तक की गिरावट के थे। अपने दूसरे बेहतर अनुमानों में आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने कहा कि 2020-21 में अर्थव्यवस्था में 7.96% की जीडीपी गिरावट के नुकसान की संभावना है। वहीं एनएसओ ने अपने उन्नत अनुमान में कहा कि 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद में 8% की गिरावट आयी।

2021-22 के बजट में इस वित्तीय वर्ष में जीडीपी में 14.4% की मामूली वृद्धि हुई। हालांकि, दूसरी लहर को ध्यान में रखते हुए एमपीसी ने 2021-22 के लिए अपने अनुमान को संशोधित करते हुए पहले तिमाही के लिए 10.5%- 26.2%, दूसरी तिमाही के लिए 8.3%, तीसरी तिमाही के लिए 2, 5.4% और चौथी तिमाही के लिए 6.2% बताया। भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान इसकी रफ़्तार और घातकता को ध्यान में रखते हुए यह देखा जाना अभी बाक़ी है कि यह अनुमानित बढ़ोत्तरी किस हद तक हासिल होती है।

V-आकार की रिकवरी के अनुमान को लेकर यह तर्क दिया गया है कि यह विकास दिखायी पड़ेगा। भारतीय अर्थव्यवस्था अनिवार्य रूप से उस दबाव से उबरने लगेगी, जिसका सामना उसने वित्त वर्ष 2020-21 की पहली छमाही में किया था। क्रिसिल के अनुमान के मुताबिक़, 2020-22 के अंत में जाकर ही जीडीपी मार्च 2020 के स्तर से तक़रीबन 2% ज़्यादा हो पायेगी। यह भी अनुमान लगाया गया है कि पूर्ण-सकल घरेलू उत्पाद महामारी के पहले वाले अपने स्तर से 10% कम होगा।

असल में V-आकार की इस रिकवरी के दावों के विरोध में सेंट्रल बैंक के पूर्व गवर्नर दुव्वुरी सुब्बाराव ने तर्क दिया है कि महामारी की वजह से बढ़ती ग़ैरबराबरी के चलते खपत और विकास की संभावनाओं को चोट पहुंचना तय है, जिससे K-आकार की रिकवरी हो सकती है। बढ़ती ग़ैर-बराबरी खपत और मांग, दोनों पर पानी फेर देती है, और इसके चलते दीर्घकालिक विकास की संभावनाओं पर चोट पहुंचती है। K-आकार की रिकवरी, वी-आकार की रिकवरी के मुक़ाबले असमान बढ़ोत्तरी का प्रतिनिधित्व करती है, जो विकास की त्वरित रिकवरी को सुस्त कर देती है।

हालांकि, कोविड-19 की स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है, ऐसे में विकास और रिकवरी को लेकर किये जाने वाले तमाम पूर्वानुमान ग़लत साबित हो सकते हैं।

जैसा कि सुब्बाराव ने रेखांकित किया है कि पिछले साल आय और धन की बढ़ती ग़ैर-बराबरी आर्थिक सुधार के लिए चिंता का कारण रही हैं। एक तरफ़, जहां देश के ग़रीबों को आय और आजीविका के लिहाज़ से भारी नुकसान उठाना पड़ा है, वहीं भारत के बड़े निगमों और सबसे अमीर भारतीय की क़िस्मत की चमक बढ़ती ही जा रही है। सिर्फ़ तीन सबसे अमीर भारतीयों की संपत्ति में पिछले एक साल में 7.4 ट्रिलियन रुपये से ज़्यादा की बढ़ोत्तरी हुई है, जबकि लाखों लोगों को आय और आजीविका का बड़ा नुकसान हुआ है। आबादी की बड़ी संख्या में लोगों के बड़े पैमाने पर ग़रीब होते जाने से अर्थव्यवस्था में खपत और मांग में गिरावट आयी है।

मार्च 2020 में जब पहली बार लॉकडाउन का ऐलान किया गया था, तब से कई प्रमुख अर्थशास्त्रियों का यह तर्क रहा है कि आर्थिक विकास को बनाये रखने के लिए ज़रूरी मांग को बढ़ाने की ख़ातिर सरकार की तरफ़ से ख़र्च को बढ़ाया जाना चाहिए। वे लंबे समय तक चलने वाले और लोगों के सामने संकट पैदा करने वाले लॉकडाउन के चलते लोगों को तत्काल राहत मुहैया कराने के लिए केंद्र सरकार से नक़दी हस्तांतरण और खाद्य पर ख़र्च बढ़ाने का आग्रह करते रहे थे। तर्क दिया गया था कि इन उपायों को लागू करने के लिहाज़ से ज़रूरी पैसों को पाने के लिए आसमान छूती संपत्ति और भारत के परम अमीरों की आय पर कर का लगाया जाना आवश्यक है।

संकट में अपनी आबादी की सहायता और आर्थिक विकास में मदद करने को लेकर ज़्यादा ख़र्च करने के विरोध में हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की तरफ़ से जारी किये गये आंकड़ों से पता चलता है कि भारत ने इन प्रयासों में अपने सकल घरेलू उत्पाद का महज़ 3.1% ही ख़र्च किया है। कोविड-19 से पैदा होने वाली स्थिति का मुक़ाबला करने के लिए अमेरिका और यूके ने अपने सकल घरेलू उत्पाद की अच्छी-ख़ासी राशि क्रमश: 16.7% और 16.3% ख़र्च किया है। यहां तक कि चीन, दक्षिण अफ़्रीका और ब्राजील जैसे विकासशील देशों ने भी महामारी के दौरान अपने जीडीपी का काफ़ी बड़ा हिस्सा, यानी क्रमश: 4.7%, 5.5% और 8.3% ख़र्च किये हैं।

प्रत्यक्ष व्यय के ज़रिये इस संकट को हल करने के बजाय, भारत का रुख़ लगातार कर को स्थगित किये जाने ज़रिये निजी क्षेत्र की तरफ़ से किये जा रहे निवेश को प्रोत्साहित करने का रहा है। हालांकि, जीडीपी और अन्य विकास मापदंडों के आंकड़ों से पता चलता है कि यह रुख़ न तो आर्थिक सुधार को बढ़ाने के लिहाज़ से सही साबित हो पाया है, न ही इससे उन ग़रीबों को मदद ही पहुंच पायी है, जो पिछले लॉकडाउन के समय दो जून की रोटी के लिए संघर्ष कर रहे थे।

हालांकि अर्थशास्त्रियों के एक ख़ास तबके का मानना रहा है कि भारतीय समाज के भीतर बेहद समृद्ध लोगों की तरफ़ से होने वाली निजी खपत से बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था में रिकवरी हो पायेगी, लेकिन खपत के रुझान बताते हैं कि सरकारी और निजी, दोनों ही उपभोग व्यय में तीसरी तिमाही में भी गिरावट दर्ज की गयी। दूसरी तिमाही में 11.3% के मुक़ाबले तीसरी तिमाही में यह निजी खपत 2.3% थी। दूसरी तिमाही में 24% की गिरावट के मुक़ाबले तीसरी तिमाही में सरकार की कुल खपत 1.1% रही थी।

बेरोज़गारी और गिरते औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े अभी भारतीय अर्थव्यवस्था की जीर्ण स्थिति को दर्शाते हैं। महामारी से पहले भी अर्थव्यवस्था संकट में थी और 2020 में जनवरी-मार्च तिमाही में बेरोज़गारी का स्तर 9.1% पर था (आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण डेटा के मुताबिक़)। इसके अलावे, मार्च 2020 में प्रधान मंत्री मोदी की तरफ़ से अचानक लगाये गये लॉकडाउन के चलते बड़े पैमाने पर लोगों की रोज़ी-रोटी छिन गयी थी।

जैसा कि सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) की रिपोर्ट में दिखाया गया है कि अप्रैल 2020 के अंत तक बेरोज़गारी दर 23.52% तक पहुंच गयी थी। इसके बाद मई और जून 2020 में यह बेरोज़गारी दर 21.73% और 10.18% की हो गयी। 2020 की दूसरी छमाही के दौरान यह बेरोज़गारी दर 6.5% से ऊपर रही, जो दिसंबर 2020 में 9% के उच्च स्तर पर पहुंच गयी। लॉकडाउन की नयी लहर के साथ बेरोज़गारी दर फिर से बढ़ने लगी है। सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) ने 18 अप्रैल, 2021 को समाप्त हो रहे सप्ताह तक बेरोज़गारी दर को 7.4% दर्ज किया है।

एनएसओ की तरफ़ से जारी आंकड़ों के मुताबिक़ फ़रवरी 2021 में विनिर्माण और खनन क्षेत्रों के ख़राब प्रदर्शन के चलते दूसरे महीने भी औद्योगिक उत्पादन में 3.6% की गिरावट आयी। जहां विनिर्माण क्षेत्र (औद्योगिक उत्पादन सूचकांक का 77.63%) में 3.7% की गिरावट आयी, वहीं फ़रवरी 2021 में खनन क्षेत्र के उत्पादन में 5.5% की गिरावट आयी। मार्च 2020 में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक(IIP) में 18.7% की गिरावट आयी थी और अगस्त 2020 तक यह नकारात्मक स्थिति में ही रहा। तब से औद्योगिक उत्पादन में उतार-चढ़ाव जारी है।

ऊपर दिये गये आंकड़ों से साफ़ है कि भारत की वास्तविक अर्थव्यवस्था से जुड़े ठोस आंकड़ों से जो संकेत मिल रहे हैं, वे मंदी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था की 'रिकवरी के संकेत' और 'V-आकार' की रिकवरी की उम्मीदों और खुशियों के शायद ही अनुरूप हैं। जैसे-जैसे कोविड-19 तेज़ी के साथ वापस लौटता जा रहा है, लॉकडाउन भी अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग सख़्ती के साथ फिर से लगाये जा रहे हैं। अर्थव्यवस्था की पटरी पर आने की जो सुस्त रफ़्तार दिखायी पड़ रही है, उससे स्थिति एक बार फिर देश की स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे के पूरी तरह ध्वस्त होने के साथ-साथ एक भयावह आर्थिक संकट में भी बदल सकती है।

(टिप्पणीकार एक लेखक और न्यूज़क्लिक के साथ जुड़े एक रिसर्च एसोसिएट हैं। इनके विचार निजी हैं।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

COVID-19: Lockdowns Are Back - What About Our ‘V-shaped’ Recovery?

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