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कोविड-19
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कोविड-19: अमानवीय अनदेखी के शिकार मरीज़, बेपरवाही के शिकार सरकारी अस्पताल
अस्पतालों में भर्ती होने के बाद रोगियों के लापता होने के बहुत सारे मामले आते हैं, फिर कुछ ही दिनों के बाद उन रोगियों के मृत पाये जाने का पता चलता है। उनके परिवार ख़ौफ़नाक़ क़िस्से बताते हैं।
तारिक अनवर
11 May 2021
कोविड-19: अमानवीय अनदेखी के शिकार मरीज़, बेपरवाही के शिकार सरकारी अस्पताल

नई दिल्ली: डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी पूरी कोशिश कर रहे हैं कि वे क्रूर कोविड-19 की इस दूसरी लहर पर क़ाबू पा सकें। हालांकि, सरकार स्वास्थ्य कर्मचारियों को कोविड "योद्धाओं" के तौर पर सम्मानित करती है, लेकिन सरकार की तरफ़ से संचालित अस्पतालों के भीतर रोगी और उनके परिवार कथित तौर पर अमानवीय अनदेखी और उदासीनता के शिकार हैं। ये परिवार अपने उन मरीज़ों के इस तरह के अस्पतालों में भर्ती होने की ख़ौफ़नाक़ कहानियां बताते हैं,जिनके लापता होने और कुछ ही दिनों बाद उनके मृत पाये जाने का पता चलता है।

दिल्ली के झिलमिल इलाक़े की 53 साल की एक महिला उस गुरु तेग़ बहादुर (GTB) अस्पताल में भर्ती होने के कुछ ही घंटे बाद लापता हो गयीं, जो इस शहर की कोविड सुविधाओं से संपन्न प्रमुख अस्पतालों में से एक है।

तेज़ बुखार और बेचैनी की शिकायत के बाद सुमन वर्मा का आरटी-पीसीआर परीक्षण करवाया गया और परीक्षण में वह पोज़िटिव पायी गयीं। उन्हें 15 अप्रैल को दिल्ली सरकार की तरफ़ से संचालित अस्पताल ले जाया गया और आपातकालीन वार्ड में दाखिल करवा दिया गया।

उनके पति, कमल वर्मा ने न्यूज़क्लिक से कहा, “वह भूखी थीं। मुझे बताया गया कि अस्पताल में मरीज़ को खाना दिया जायेगा। लेकिन, उस दिन शाम 5 बजे तक उन्हें खाने के लिए कुछ भी नहीं दिया गया। जब मुझे इसके बारे में पता चला, तो मैं खाने और पानी के साथ अस्पताल चला गया, लेकिन कमरे में दाखिल होने की इजाज़त नहीं मिली। यहां तक कि मैं उनके लिए जो खाना ले गया था, वह भी उनतक नहीं पहुंचाया गया।”

सुमन को अगली शाम तक कथित तौर पर आपातकालीन कक्ष से एक वार्ड में स्थानांतरित नहीं किया गया था। जब उनके परिजन 17 अप्रैल को उसके स्वास्थ्य के बारे में पूछताछ करने के लिए अस्पताल पहुंचे, तो वे यह जानकर चौंक गये कि वह तो ग़ायब थीं।

उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा,“मैंने उन्हें वहां नहीं पाया और अस्पताल के रिकॉर्ड में भी नहीं पाया; डॉक्टरों ने मुझे मरीज़ों की उस नवीनतम सूची के आने का इंतज़ार करने के लिए कहा,जिसे सुबह 9 बजे आना था। जब वह सूची आ गयी, तो मैंने पाया कि उस सूची में उनका नाम ही नहीं था। मुझे एक बार फिर दोपहर 2 बजे दूसरी सूची के आने का इंतज़ार करने के लिए कहा गया,लेकिन उनका नाम उस दूसरी सूची में भी नहीं था।"

कमल ने कहा कि उन्होंने अस्पताल के सभी वरिष्ठ अधिकारियों से फ़ोन पर बात की, लेकिन वह सुमन वर्मा के कहीं होने की कोई भी जानकारी हासिल करने में नाकाम रहे।

40 घंटे बाद वह मृत पायी गयीं। भीतर तक टूट चुके नाराज़ पति ने आरोप लगाते हुए कहा,"उनके साथ जो कुछ हुआ, वह अब भी एक रहस्य है। वे उन्हें 40 घंटे तक नहीं ढूंढ पाये और अचानक मुझे उनके शव को ले जाने के लिए कहा गया। यह महज़ लापरवाही नहीं, बल्कि हत्या का मामला है।”

दुखद है कि यह ऐसी घटना नहीं है,जो पहली बार हुई हो।

सांस लेने में दिक़्क़त और सीने में जलन की शिकायत के बाद पिछले साल 16 नवंबर को वरुण ओझा ने अपने ससुर,सुरेश कुमार राय को इसी अस्पताल में भर्ती कराया था। इस अस्पताल के कर्मचारियों ने उनके परीक्षणों और उपचार प्रक्रियाओं के बारे में नवीनतम जानकारी देने के लिए अटेंडेंट से संपर्क नंबर ले लिया।

मरीज़ के परिवार को 17 नवंबर की सुबह क़रीब 12:50 बजे अस्पताल से फ़ोन आया, उनके वज़न और लम्बाई के बारे में पूछा गया, क्योंकि उन्हें गहन चिकित्सा इकाई (ICU) में स्थानांतरित किया जाना था।

उसी शाम परिजनों को सूचित किया गया कि उनके 72 वर्षीय मरीज़,जो बिना सहारे के चल नहीं पा रहे थे, पिछली रात अस्पताल से ग़ायब हो गये हैं।

ओझा ने बड़ी ही व्यग्रता से उनकी हर कहीं तलाश की,लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ। अस्पताल की छठी मंज़िल के वार्ड नंबर 26 के सीसीटीवी फ़ुटेज में उन्हें अंदर ले जाते हुए दिखाया गया था,लेकिन उनके बाहर निकलने का कोई नामो-निशान तक नहीं था।

अस्पताल के कर्मचारियों ने कथित तौर पर बताया कि वह 16 और 17 नवंबर की रात शौचालय गये थे, लेकिन लौटे नहीं। उनका दावा है कि उन्होंने 36 घंटे से ज़्यादा समय तक उनकी तलाश की, लेकिन उन्हें ढूंढ़ पाने में नाकाम रहे।

18 नवंबर की शाम अस्पताल के डिप्टी मेडिकल सुपरीटेंडेंट ने ओझा को फ़ोन करके बताया कि मरीज़ का शव पांचवीं मंज़िल पर स्थित ऑपरेशन थियेटर के पास मिला है।

अभिनेता और यू-ट्यूबर, राहुल वोहरा ने 9 मई को कोविड-19 से जुड़ी जटिल स्थितियों के चलते दम तोड़ दिया। उन्हें 8 मई की शाम द्वारका के एक निजी अस्पताल-आयुष्मान अस्पताल स्थानांतरित करने से पहले ताहिरपुर के राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को एक फ़ेसबुक पोस्ट में टैग किया था, जिसमें उन दोनों से मरीज़ों का इलाज सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया था।

उन्होंने अपने विवरण को साझा करते हुए लिखा था,“मुझे भी अच्छा ट्रीटमेंट मिल जाता, तो मैं भी बच जाता....अब हिम्मत हार चुका हूं।” 

19 अप्रैल और 6 मई के बीच कोविड-19 के तक़रीबन 23 रोगी बिना किसी को बताये उत्तरी दिल्ली नगर निगम की तरफ़ से संचालित हिंदू राव अस्पताल से चले गये।

इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए महापौर जय प्रकाश ने एक अजीब-ओ-ग़रीब बयान दिया,“वे किसी को बिना बताये चले गये, इसका मतलब यही है कि उन्हें कहीं और बेहतर सुविधायें मिल गयी होंगी। ऐसा तो दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में हो रहा है।”

हालांकि आधिकारिक तौर पर पिछले 24 घंटों में कोविड-19 मामलों की रोज़-ब-रोज़ की संख्या-13,336,पोज़िटिव होने की दर (21.67%) दर्ज की गयी है और मौतों की संख्या में भारी गिरावट आयी है, लेकिन अस्पतालों की स्थिति गंभीर बनी हुई है। मरीज़ों को अब भी ऑक्सीज़न युक्त बेड नहीं मिल पा रहे हैं, विभिन्न अस्पतालों के आपातकालीन वार्डों के बाहर अव्यवस्था है,डॉक्टर और नर्स भी संकट में पड़े लोगों की देखरेख नहीं कर पा रहे हैं; लोग अब भी बिना किसी चिकित्सकीय सहायता के मर रहे हैं।

मरीजों की परेशानी किसी तरह सुविधा संपन्न बेड पा जाने के बाद भी ख़त्म नहीं हो रही है। ऊपर से उन्हें अस्पताल की बेपरवाही से जूझना पड़ता है।

प्रीति,जिनके पति को लोक नायक अस्पताल में भर्ती कराया गया था, बताती हैं, “अस्पताल हमें इस तरह दूर हटा देते हैं,जैसे कि हम कोई अछूत या जानवर हों। वे मरीज़ों की ठीक से देखभाल नहीं करते हैं। यहां आने वाले लोग अगर भाग्यशाली होंते हैं, तभी वे बच पाते हैं। अन्यथा मौत तो उनकी नियति बन गयी है।”

राजधानी के पांच अस्पतालों से लौटाये जाने के बाद वह आख़िरकार अपने पति को अस्पताल में भर्ती कराने में कामयाब रहीं।

स्वास्थ्यकर्मियों से बात करने पर उनके मानसिक तनाव का पता चलता है

जीटीबी अस्पताल, लोक नायक अस्पताल और राजीव गांधी अस्पताल के अधिकारियों ने अपनी ओर से की जा रही लापरवाही या मरीज़ों के साथ किये जा रहे बुरे व्यवहार को लेकर किसी भी तरह के आरोपों पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, लेकिन इन प्रमुख अस्पतालों के कोविड अनुभागों में प्रतिनियुक्त डॉक्टरों और नर्सों ने कहा कि ऐसा इसलिए हो रहा है,क्योंकि उन पर "मानसिक तनाव और दबाव" है।

लोक नायक अस्पताल के कोविड वार्ड में तैनात एक डॉक्टर ने अपना नाम नहीं छापे जाने का अनुरोध करते हुए कहा,“(कोविड मामले में) अभूतपूर्व उछाल के चलते हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गयी है; यह ध्वस्त होने के कगार पर है। हम लम्बी-लम्बी शिफ़्ट में काम कर रहे हैं। हम भी तो इंसान हैं। हम चौबीसो घंटे एक ऐसे हताशा भरे माहौल में काम कर रहे हैं,जहां हम रोते हुए और भागते हुए परिजनों को अपने मरीज़ों के ज़िंदगी की भीख मांगते हुए देखते हैं। जीवन और मृत्यु हमारे हाथ में नहीं है। यह ऊपर वाले को तय करना है,लेकिन लोग हमसे बहुत उम्मीद लगाये रखते हैं। अब डॉक्टर और नर्स भी हताश हो गये हैं। हमें पता है कि हम अपने मरीज़ों की देखभाल बहुत बेहतर तरीक़े से कर सकते हैं, लेकिन नये-नये रोगियों के सैलाब उमड़ने से हमारे पास समय नहीं है। हार्ट रेट दिखाने वाले मॉनिटर पर बीप-बीप करती आवाज़ मेरी नींद के दौरान भी गूंजती रहती है। संसाधनों की कमी के चलते हर रोज़ लोगों की देखभाल करना मुश्किल होता जा रहा है। यह वास्तव में स्वास्थ्यकर्मियों पर एक बढ़ता मानसिक दबाव है।”

कई नर्सिंग स्टाफ़ ने बताया कि वे सोशल मीडिया पर भी नहीं जा सकते, क्योंकि अस्पताल प्रशासन ने अब सरकार से ऐसे पोस्टों पर ध्यान देने को कहा है। दिल्ली सरकार ने अपने एक आदेश में सभी अस्पतालों से कहा है कि वे अपने नियंत्रण में काम कर रहे मेडिकल स्टाफ़ को सोशल मीडिया पर अपनी समस्याओं को लेकर बात करने से परहेज़ करने की सलाह दें।

दिल्ली की स्वास्थ्य सचिव,पद्मिनी सिंगला ने दिल्ली सरकार के तहत आने वाले सभी अस्पतालों के चिकित्सा अधीक्षकों, चिकित्सा निदेशकों और निदेशकों से ख़बर देने वाले विभिन्न मंचों और सोशल मीडिया की निगरानी करने और वहां घटनाओं के उनके संस्करण वाले संदेश के जो मक़सद सामने आ रहे हैं,उन पर जवाब देने के लिए कहा है।

सरकार के इस आदेश के तुरंत बाद जीटीबी अस्पताल के चिकित्सा निदेशक,सुनील कुमार ने कोविड-19 के मरीज़ों की देखभाल में तैनात सभी कर्मचारियों के लिए एक आदेश जारी किया,जिसमें अस्पताल को लेकर सार्वजनिक मंच पर किसी तरह की बातचीत करने से बचने के लिए कहा गया।

उन्होंने कर्मचारियों को निर्देश दिया कि वे अपने नियंत्रण अधिकारी से बात किये बिना मीडिया या व्हाट्सएप, फ़ेसबुक और ट्विटर पर बात न करें। उन्होंने कहा कि इस आदेश का उल्लंघन केंद्रीय सिविल सेवा आचरण नियम, 1965 का अतिक्रमण होगा,और समाचार मीडिया या सोशल मीडिया के ज़रिये शिकायतों को उजागर करना इन नियमों के ख़िलाफ़ है।

उन्होंने कहा,"कोविड-19 ड्यूटी पर तैनात कर्मचारियों को यह भी याद दिलाने की ज़रुरत है कि वे एक राष्ट्रीय फ़र्ज़ निभा रहे हैं और कुछ परेशानियों का होना अपरिहार्य है, इन्हें विभिन्न सोशल मीडिया में उजागर नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि सरकार के लिए यह बहुत ही शर्मनाक हो सकता है।"

चिकित्सा कर्मचारियों ने कहा कि सरकार उन्हें चुप कराना चाहती है। जीटीबी अस्पताल के एक वरिष्ठ नर्सिंग स्टाफ़ ने कहा,“मीडिया का ध्यान आने के बाद ही हमारी समस्याओं का समाधान किया गया। सार्वजनिक मंच पर नहीं बोलने देने का आदेश का मक़सद हमारी आवाज़ को ख़ामोश करना है।”

उन्होंने कहा,“हम बहुत ही बेचारगी के हालत में काम करते हैं। नर्सों को कहा गया है कि वे रात में जिस हॉस्टल में रह रही थीं, उसे ख़ाली कर दें, क्योंकि वहां सिर्फ़ डॉक्टरों को ही ठहराया जाना है। हमें जो गेस्ट हाउस आवंटित किया गया है, वह सेहत के लिहाज़ से ठीक नहीं है। जब भी हम मीडिया में गये या सोशल प्लेटफ़ॉर्म पर इन मुद्दों को उठाया, हमारी आवाज़ सुनी गयी।इसलिए,इसे अब अपराध क़रार दिया गया है।”

राजीव गांधी अस्पताल की एक डॉक्टर ने बताया कि हम डॉक्टर के हालात भी अपने रोगियों से अलग नहीं हैं। वह कहती हैं, "अगर हम बीमार पड़ जाते हैं, तो हमें भी बेड नहीं मिलेगा। दिल्ली सरकार के तहत आने वाले सभी बड़े अस्पतालों में वीवीआईपी के लिए बेड आरक्षित हैं,जिन्हें किसी भी हाल में हासिल नहीं किया जा सकता है। यदि ज़रूरी हो, तो भी हमें वहां दाखिल नहीं किया जा सकता। वायरस के इस घातक स्ट्रेन से हम भी डरते हैं, क्योंकि हम इसके संपर्क में हैं। अगर किसी की उचित स्वास्थ्य सेवा की गारंटी नहीं दी जाती है,तो कोई भी जोखिम क्यों उठायेगा।”  

वह बताती हैं, “इन दिनों सभी मेडिकल स्टाफ़ अपनी अतिरिक्त प्रयास के साथ काम कर रहे हैं,उन पर हद से ज़्यादा दबाव है। मरीज़ों के इलाज और देखभाल तक और एडमिशन करने से इन्कार से लेकर बुरी ख़बर देने के तक, हम लगातार अपने एक पैर पर खड़े रहते हैं। लगातार आठ-आठ घंटे तक पीपीई पहनना कोई आसान काम नहीं है। कई बार तो हम डिहाइड्रेशन का शिकार तक हो जाते हैं, क्योंकि हमें बहुत पसीना आता है।” उन्होंने आगे कहा," हम पीड़ित परिवारों की तरफ़ से की गयी हिंसा के ख़तरे का भी सामना करते हैं।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

COVID-19: Patients Subjected to Inhumane Neglect, Apathy Inside State-run Facilities

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