NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
स्वास्थ्य
भारत
ग्रामीण भारत में कोरोना-26 : झारखंड के आदिवासी किसान सब्ज़ी की कम क़ीमतों की वजह से हैं परेशान
एक जानकारी के मुताबिक़, वे सब्ज़ियों की कम क़ीमतों को स्वीकार करने के लिए इसलिए मजबूर हैं, क्योंकि अगर ये सब्ज़ियां नहीं बिकती हैं, तो उनके पास अपनी इन फसलों को कीटों और बीमारियों से बचाने का कोई और रास्ता नहीं होगा।
वैशाली बंसल
28 Apr 2020
ग्रामीण भारत

ग्रामीण भारत के जन-जीवन पर COVID-19 से जुड़ी नीतियों के पड़ने वाले असर को दिखाती श्रृंखला की यह 26वीं रिपोर्ट है। सोसाइटी फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा तैयार की गयी इस श्रृंखला में उन अनेक जानकारों की रिपोर्ट शामिल है, जो भारत के अलग-अलग हिस्सों में स्थित गांव का अध्ययन कर रहे हैं। ये रिपोर्ट उनके अध्ययन किये जाने वाले गांवों में प्रमुख सूचना देने वालों के साथ टेलीफ़ोन पर हुई बातचीत के आधार पर तैयार की गयी हैं। यह रिपोर्ट में झारखंड के रांची ज़िले में स्थित उस आदिवासी गांव,हेहल पर COVID-19 महामारी के पड़ने वाले असर के बारे में बताती है, जहां बिक्री की क़ीमतों में भारी गिरावट और आगामी धान की खेती के लिए नक़दी की कमी ने आदिवासी किसानों के संकट को बढ़ा दिया है। इसके अलावा, पिछले मौसम में धान की फ़सल की पैदावार के कम होने की वजह से ज़्यादातर घरों में खाद्यान्न का संकट खड़ा हो गया है।

हेहल गांव झारखंड के रांची ज़िले में स्थित एक आदिवासी बहुल गांव है। सोसाइटी फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक रिसर्च (SSER) द्वारा आयोजित लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों पर केंद्रित इस गांव के 2015 के जनगणना सर्वेक्षण के मुताबिक गांव में लगभग 97% परिवार ओरांव जाति के थे। लोहरा और मुंडा जैसे अन्य अनुसूचित जनजाति भी इस गांव में रहते थे। गांव के ज़्यादातर लोग मुख्य रूप से अपनी छोटी-सी जोत पर खेतीबाड़ी में लगे हुए थे। इसके अलावा, चूंकि हेहल रांची शहर के छोर पर स्थित है, इसलिए कई श्रमिक, निर्माण कार्य जैसी ग़ैर-कृषि गतिविधियों के अनौपचारिक क्षेत्र में हाथ से काम करने वाले श्रमिकों के रूप में काम करने के लिए रांची चले आते हैं। कुछ घर ऐसे भी थे, जिनके लिए सरकारी नौकरी में मिलने वाली तनख्वाह या ऐसी नौकरियों से मिलने वाली पेंशन,आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत थे। इस तरह के घरों की आर्थिक स्थिति गांव के दूसरे घरों की तुलना में बेहतर थी। हेहल के आस-पास कोई जंगल नहीं है। हालांकि, घर के आस-पास के इलाक़े और खेतों के पेड़ जलावन की लकड़ियों, खाने वाली पत्तियों और फलों का एक महत्वपूर्ण स्रोत थे।

कृषि क्षेत्र पर प्रभाव

हेहल की कृषि मुख्य रूप से असिंचित है और यह वर्षा पर आधारित है। धान और रागी सबसे अहम फ़सलें हैं; वे जून और नवंबर के बीच उगाये जाते हैं। कुछ क्षेत्रों में उथले खुले कुएं हैं। लेकिन, इन कुओं की सिंचाई की क्षमता कम होती है, और इनका इस्तेमाल मुख्य रूप से किसानों द्वारा सेम, टमाटर, शिमला मिर्च, कद्दू, तुरई, जैसी सब्ज़ियां और इसी तरह की रबी के मौसम वाली फ़सलें उगाने के लिए किया जाता है। किसानों द्वारा ये सब्ज़ियां आंशिक रूप से घरेलू खपत के लिए और आंशिक रूप से स्थानीय मंडियों में बेचने के लिए उगायी जाती हैं। मगर, 24 मार्च को तालाबंदी शुरू होने के बाद से इनमें से कोई भी मंडी चालू नहीं है। यही वजह है कि किसान अपनी उपज नहीं बेच पा रहे हैं और उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।

बातचीत में भाग लेने वालों ने बताया कि चूंकि मंडियां नहीं खुल रही हैं, इसलिए रांची शहर से चार या पांच थोक व्यापारी गांव में किसानों से सब्ज़ियां ख़रीदने के लिए हर दिन सुबह लगभग 5.00 बजे आते हैं। वे गांव के बाहर ही रहते हैं, और पुलिसकर्मी उन्हें वहां केवल एक घंटे रहने की इजाज़त देते हैं,फिर उन्हें सुबह 7 बजे तक शहर में वापस लौट आना होता है। बातचीत में शामिल एक छोटे स्तर का किसान,जो शिमला मिर्च और फलियां उगाते हैं, उन्होंने बताया कि इन व्यापारियों को बेचने के लिए किसानों की भीड़ लगी होती है, ऐसा इसलिए है,क्योंकि इस समय वही एकमात्र विकल्प है। इन व्यापारियों द्वारा जो क़ीमतें दी जाती हैं,वे उन क़ीमतों की तुलना में काफी कम हैं, जो किसानों को मंडियों में बेचने से मिल सकते थे: आलू की क़ीमत 25 रुपये प्रति किलोग्राम से घटकर 5 रुपये प्रति किलोग्राम हो गयी है, सेम की क़ीमत 30 रुपये से घटकर 6 रुपये प्रति किलोग्राम, शिमला मिर्च 50 रुपये से घटकर 20 रुपये प्रति किलोग्राम और टमाटर की क़ीमत 25 रुपये से घटकर 7 रुपये प्रति किलोग्राम रह गयी है। एक जानकारी देने वाले के मुताबिक़,वे सब्ज़ियों की कम क़ीमतों को स्वीकार करने के लिए इसलिए मजबूर हैं, क्योंकि अगर ये सब्ज़ियां नहीं बिकती हैं,तो उनके पास अपनी इन फ़सलों को कीटों और बीमारियों से बचाने का कोई और रास्ता नहीं है

अगले मौसम में धान की खेती को लेकर भी किसान बेहद चिंतित हैं। जिस किसान से हमारी बातचीत हो रही थी,उनका अनुमान था कि अगले महीने धान की बुआई की तैयारी के लिए उन्हें कम से कम 8,000 से 10,000 रुपये नक़दी की ज़रूरत होगी। उन्होंने बताया कि धान के बीज की क़ीमत 350 रुपये प्रति किलोग्राम है, ट्रैक्टर से खेत की जुताई के एक घंटे की लागत 1,200 रुपये है, और खाद और उर्वरकों की ख़रीद और इस्तेमाल पर अलग से ख़र्च होगा। धान की खेती ग्रामीणों की खाद्य सुरक्षा के लिए बेहद अहम है, क्योंकि इसकी खेती मुख्य रूप से घरेलू उपभोग के लिए की जाती है।

ग़ैर-कृषि क्षेत्र के श्रमिकों पर प्रभाव

इस लॉकडाउन में निर्माण और लदान / उतरान जैसे ग़ैर-कृषि कार्यों में लगे दिहाड़ी मज़दूर सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं। इनमें से ज़्यादतर मज़दूर अब एक महीने के लिए काम से बाहर हो चुके हैं, जिससे उन्हें हर रोज़ लगभग 250 रुपये का नुकसान हो रहा है। गांव में कभी-कभार काम पाने वाले एक मज़दूर ने बताया, "हम जो कुछ काम करते हैं, उसके लिए भी हमें समय पर मज़दूरी नहीं मिल पाती है, इस बार तो हम कोई काम ही नहीं कर पाये, ऐसे में हमें क्या मिलेगा ?  किसी को नहीं पता कि हम अपने बच्चों को कैसे पालेंगे।”

हमारे सवालों का जवाब देने वालों मे से दो लोग,जिनमें से एक ड्राइवर और एक घरेलू महिला मज़दूर है,ये दोनों मासिक वेतन पर काम किया करते थे। ड्राइवर ने बताया कि उन्हें काम पर रखने वाले ने लॉकडाउन के दरम्यान उन्हें अपने परिवार के भरण-पोषण में मदद करने के लिए 2,000 रुपये देने पर किसी तरह राज़ी हुआ है। महिला घरेलू मज़दूर ने बताया कि उन्हें काम पर रखने वाले ने उनका फ़ोन उठाना ही बंद कर दिया है और महिला मज़दूर को अब लगता है कि उनकी नौकरी शायद चली गयी है। वह एक सिंगल मदर हैं और उनके तीन स्कूल जाने वाले बच्चे हैं।

रांची के एक आई.टी.आई संस्थान में पढ़ाने वाले ने बताया कि वह सरकार के प्रशासनिक कार्यों में मदद करते हुए लॉकडाउन के दौरान भी काम कर रहे हैं। उन्होंने COVID-19 महामारी के साथ काम करने  को लेकर विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लिया है और हर दिन शहर में आ सके,इसके लिए उन्हें एक पास दिया गया है। उन्होंने बताया कि उन्हें उम्मीद है कि समय पर उनका वेतन उनके खाते में में डाल दिया जायेगा, और इस अवधि के दौरान उन्हें पैसों की समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा।

COVID-19 संकट के दौरान सामाजिक सुरक्षा योजनाएं

अपर्याप्त वर्षा की वजह से पिछले साल धान की पैदावार काफी कम हुई थी। नतीजतन, ज़्यादतर घरों में पहले से ही खाद्यान्न की कमी है। ऐसे समय में, सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत बांटे जा रहे राशन गांव के लोगों के लिए राहत का स्रोत रहा है। बातचीत में शामिल लोगों ने बताया कि गांव के सभी राशन कार्ड धारकों को अप्रैल के पहले हफ़्ते में दो महीने के लिए अनाज पाने की पात्रता मिली थी। हालांकि, इस समय तक ज़्यादतर परिवारों को मिट्टी का तेल नहीं मिला है। इसके अलावा, जिन परिवारों के पास राशन कार्ड नहीं था, या जिनके सदस्य के नाम राशन कार्ड की सूची में नहीं थे, उन्हें कोई अनाज नहीं मिला है।

एक पूर्व सैनिक की विधवा ने बताया कि उन्हें इस बात की राहत है कि उन्हें 7,000 रुपये की मासिक पेंशन मिलती है, जिस पर लॉकडाउन के दौरान उन्हें अपना जीवन बसर करना पड़ रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें दिल की बीमारी है,लेकिन उनके पास दवायें नहीं हैं। गांव में ऐसा कोई डॉक्टर भी नहीं है, जिसके पास जाकर वह अपना इलाज जारी रख सकें।

संकट के समय लोगों को राहत प्रदान करने में सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। हालांकि COVID-19 के प्रसार पर अंकुश लगाने के लिए लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग को लागू किया जाना बेहद अहम है, लेकिन, मज़बूत सरकारी मदद के अभाव में इस गांव जैसे इलाक़ों के लोगों को बेहद ग़रीबी और भुखमरी के ख़तरे के हवाले कर दिया जाता है।

[यह रिपोर्ट 20 से 22 अप्रैल के बीच हेहल गांव के नौ लोगों के साथ टेलीफोन पर की गयी बातचीत पर आधारित है: बातचीत में शामिल लोगों में तीन पुरुष किसान हैं, जो ज़मीन की छोटी जोत पर खेती करते हैं; एक शख़्स रांची शहर में ड्राइवर के तौर पर काम करता है; एक पूर्व सैनिक की विधवा है; एक महिला गांव के पास एक मकान मालिक के घर में घरेलू काम करती है; एक शख़्स रांची के एक आईटीआई संस्थान में पढ़ाता है और दो लोग ग़ैर-कृषि गतिविधियों में कभी-कभार मिलने वाले काम करने वाले ऐसे मज़दूर हैं, जो ज़्यादातर गांव के बाहर काम करते हैं।]

लेखिका सेंटर फ़ॉर इकोनॉमिक स्टडीज़ एंड प्लानिंग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में एक रिसर्च स्कॉलर हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है।

COVID-19 in Rural India-XXVI: Sharp Fall in Vegetable Selling Prices Leave Jharkhand’s Tribal Farmers Reeling

Rural india
COVID 19
Lockdown
Jharkhand
Tribal Farmers
Ranchi
Paddy Cultivation
Daily Wage Workers
PDS
Lack of Foodgrains

Related Stories

झारखंड: केंद्र सरकार की मज़दूर-विरोधी नीतियों और निजीकरण के ख़िलाफ़ मज़दूर-कर्मचारी सड़कों पर उतरे!

झारखंड: नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज विरोधी जन सत्याग्रह जारी, संकल्प दिवस में शामिल हुए राकेश टिकैत

महामारी के मद्देनजर कामगार वर्ग की ज़रूरतों के अनुरूप शहरों की योजना में बदलाव की आवश्यकता  

यूपी चुनाव : गांवों के प्रवासी मज़दूरों की आत्महत्या की कहानी

यूपी: महामारी ने बुनकरों किया तबाह, छिने रोज़गार, सरकार से नहीं मिली कोई मदद! 

यूपी चुनावों को लेकर चूड़ी बनाने वालों में क्यों नहीं है उत्साह!

ख़बर भी-नज़र भी: किसानों ने कहा- गो बैक मोदी!

झारखंड: केंद्रीय उद्योग मंत्री ने एचईसी को बचाने की जवाबदेही से किया इंकार, मज़दूरों ने किया आरपार लड़ाई का ऐलान

कृषि क़ानूनों को निरस्त करने के बाद भाजपा-आरएसएस क्या सीख ले सकते हैं

पराली और प्रदूषण: किसानों के सिर ठीकरा फोड़ने की साज़िश


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License