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संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट: लॉकडाउन से कार्बन उत्सर्जन को कम करने में कोई ख़ास मदद नहीं मिली
इस रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन के कारण ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के मामले में 2019 के अप्रैल माह की तुलना में 17% की कमी देखने को मिली थी। लेकिन जैसे-जैसे दुनिया काम पर वापस लौटने लगी, उत्सर्जन में भी बढ़ोत्तरी दर्ज होने लगी और जून में यह पिछले साल की तुलना में 5% बढ़ चुकी थी।
संदीपन तालुकदार
12 Sep 2020
लॉकडाउन से कार्बन उत्सर्जन को कम करने में कोई ख़ास मदद नहीं मिली
फोटो साभार: पिकिस्ट

कोरोनावायरस महामारी के कारण दुनिया भर में लॉकडाउन लगाने और अर्थव्यवस्थाओं के धीमे पड़ते जाने से परोक्ष तौर पर कार्बन उत्सर्जन में कमी के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में भी सकरात्मक बदलाव की अपेक्षा की जा रही थी। लेकिन शायद चीजें उतनी सपाट नहीं होती हैं, जैसा कि कुछ आशावादियों ने इस सम्बंध में उम्मीद पाल रखी थी। संयुक्त राष्ट्र की नवीनतम रिपोर्ट में जिसे यूनाइटेड इन साइंस रिपोर्ट नाम दिया गया है, ने इस बात का खुलासा किया है कि विश्व स्तर पर कोविड-19 के कारण जलवायु परिवर्तन में शायद ही कोई फर्क पड़ा हो।

यह बात सही है कि लॉकडाउन के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में भारी कमी देखने को मिली थी। लेकिन इसकी वजह से वायुमंडल में गैसों के संकेन्द्रण में हो रही निरंतर वृद्धि नहीं रुक पाई थी। अध्ययन में पाया गया है कि 2016-2020 की अवधि के सबसे ज्यादा गर्म पांच सालों के तौर पर बने रहने की संभावना है। बदले में जलवायु परिवर्तन के अपरिवर्तनीय प्रभाव लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं।

यूनाइटेड इन साइंस रिपोर्ट ने अपने भीतर अनेकों अंतरराष्ट्रीय संगठनों के विशेषज्ञों को शामिल कर रखा है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र और विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) तक शामिल हैं। रिपोर्ट में पाया गया है कि लॉकडाउन के कारण अप्रैल के महीने में 2019 की तुलना में ग्रीनहाउस गैसों के दैनिक उत्सर्जन के स्तर में 17% तक की कमी आ चुकी थी। लेकिन जैसे-जैसे दुनिया काम पर वापस लौटने लगी, जून तक उत्सर्जन में एक बार फिर से बढ़ोत्तरी होती चली गई और पिछले वर्ष की तुलना में यह 5% बढ़ा हुआ था।

इस अध्ययन में दुनिया भर के कुछ महत्वपूर्ण निगरानी स्टेशनों के पर्यवेक्षणों को शामिल किया गया है। हवाई स्थित मौना लोआ वेधशाला में जब हवा के नमूनों में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा आँकी गई तो जुलाई 2019 के 411 पीपीएम (पार्ट्स प्रति मिलियन) की तुलना में इस साल जुलाई में यह 414 पीपीएम पाई गई। इसी तरह तस्मानिया स्थित केप ग्रिम मॉनिटरिंग स्टेशन पर इस साल जुलाई में सघनता 407 से बढ़कर 410 पीपीएम तक हो चुकी थी।

हालांकि गर्म गैसों के संकेन्द्रण की पूर्ण वैश्विक तस्वीर इस वर्ष के उत्तरार्ध से पहले मिल पाने की संभावना नहीं है। लेकिन इसके बावजूद फिलहाल जो आंकड़े उपलब्ध हैं उनसे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह किस दिशा में बढ़ रहा है। निश्चित तौर पर यह दिशा उर्ध्वगामी है, और वातावरण में गर्म गैसों के संकेद्रण में वृद्धि अवश्यंभावी है।

डब्ल्यूएमओ के महासचिव प्रो. पेट्टेरी तालस ने इस मुद्दे की गंभीरता पर अपनी टिप्पणी में कहा था “ग्रीनहाउस गैस के संकेन्द्रण के कारण - जोकि पिछले तीस लाख वर्षों के दौरान पहले से ही अपने उच्चतम स्तर पर है, और इसमें बढ़ोत्तरी लगातार जारी है। इसी दौरान साइबेरिया के बड़े भूभाग में 2020 की पहली छमाही के दौरान लंबे समय तक जबर्दस्त गर्म हवाओं के थपेड़े देखने को मिले हैं, जिसके बिना किसी मानवजनित जलवायु परिवर्तन के घटित होने की संभावना न के बराबर है। और अब यह सूचना मिल रही है कि 2016-2020 के ये पाँच वर्ष अब तक के रिकॉर्ड में सबसे गर्म पाए गए हैं। यह रिपोर्ट दर्शाती है कि 2020 में जहाँ हमारे जीवन के कई पहलू बुरी तरह से बाधित हुए, लेकिन जलवायु परिवर्तन का दौर अबाध गति से आगे बढ़ रहा है।”

इस अध्ययन ने उत्सर्जन में कटौती करने के लिए वाकई में क्या किये जाने की आवश्यकता है, और इसे कम करने के लिए असल में क्या प्रयास किये जा रहे हैं के बीच में बढती दूरी पर महत्वपूर्ण चिंता जाहिर की है। यदि हम पेरिस समझौते के लक्ष्य को हासिल करने के प्रति प्रतिबद्ध हैं तो ग्रीनहाउस गैस के उत्पादन में तुरंत कटौती किये जाने की तत्काल जरूरत है, ताकि पूर्व-औद्योगिक अवधि के बाद से अब तक की तापमान वृद्धि को अधिकतम 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोका जा सके।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र के जल स्तर में पहले से ही अविश्वसनीय गति से बढ़ने की पृवत्ति बनी हुई है। 2016 और 2020 के दौरान यह वृद्धि दर प्रति वर्ष के हिसाब से 4.8 मिमी पाई गई है, जबकि 2011-2015 की अवधि में इसकी दर 4.1 मिमी थी। आर्कटिक बर्फ के स्तर में भी गिरावट अब खतरनाक बिंदु पर पहुंच चुकी है, जिसमें हर दस वर्षों में 13% की गिरावट आ रही है।

जबकि उत्सर्जन पर निगरानी रखने से इस बात का पता चल जाता है कि हकीकत में सतह पर क्या चल रहा है, और उसके बारे में कुछ किया जा सकता है। लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के संदर्भ में सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि गर्म गैसों का संकेन्द्रण असल में वातावरण में होता है। इनमे से कुछ गैसें, जैसे कि कार्बन डाइऑक्साइड सैकड़ों वर्षों तक वातावरण में बनी रह सकती हैं। संयुक्त राष्ट्र की नवीनतम रिपोर्ट स्पष्ट तौर पर गर्म गैसों के खतरनाक स्तर पर संकेन्द्रण के बढ़ते जाने की ओर इंगित करती है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

COVID-19 Lockdown Didn’t Help Much in Reducing Carbon Emission: UN Report

United in Science Report
World Meteorological Organisation
COVID19 Lockdowns and Climate Change
Lockdown Impact on Carbon Emission
COVID 19 Lockdown
climate change
PARIS AGREEMENT
global warming

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