NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
लॉकडाउन में मोदी सरकार द्वारा हड़बड़ाहट में उठाए गए क़दम
केंद्र सरकार, लॉकडाउन के दौरान लोगों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के साथ सुचारू अर्थव्यवस्था की दो विरोधाभासी धारणाओं में समन्वय बनाने में नाकाम रही है।
नीलांजन मुखोपाध्याय
29 May 2020
Modi

जब सरकार ने 17 जनवरी को पहली बार कोरोना वायरस पर सार्वजानिक प्रतिक्रिया दी थी, तबसे अब तक साढ़े चार महीने का वक़्त गुजर चुका है। उस वक़्त कोरोना संक्रमण के फैलाव को महामारी घोषित किया जाना बाकी था।

उस तारीख को स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने पहली बार सरकार की तैयारी की समीक्षा की थी। साथ में भारत ने चीन से आने वाले नागरिकों की स्क्रीनिंग चालू कर, चीन आने और जाने वालों के लिए जरूरी निर्देश जारी कर दिए थे।उस वक़्त दुनिया में कोरोना वायरस के 41 मामले थे और चीन के वुहान में एक व्यक्ति की मौत भी हो चुकी थी।

भारत सरकार के पहले स्टेटमेंट के कुछ दिन बाद ही चीन ने वुहान और हुबेई राज्य के दूसरे शहरों में लॉकडाउन कर दिया। आने वाले विकट संकट के लिए इतना इशारा काफ़ी था, पर भारत की प्रतिक्रिया मध्य केंद्रित सत्ता की तरह ही रही। 28 जनवरी से स्वास्थ्य मंत्रालय के अलावा कैबिनेट सेक्रेटेरिएट  ने भी स्थिति पर नज़र रखना शुरू कर दिया।

जब पहली बार जनता को इस कार्यक्रम में शामिल किया गया तो वो किसी संकट से निपटने के लिए नहीं था। बल्कि उन्हें एयर इंडिया के दो विमानों से लौटे 647 भारतीयों के लिए जश्न मनाने को कहा गया। इन विमानों में 647 भारतीय छात्र और 7 मालदीव के छात्र लौटे थे। एयर इंडिया के 70 कर्मचारियों को प्रधानमंत्री द्वारा प्रबल प्रतिबद्धता दर्शाने के लिए हस्ताक्षरित प्रमाण पत्र दिए गए। यह उस "आभार दर्शाने की अभिव्यक्ति" के उस कार्यक्रम की भूमिका बनाई जा रही थी, जिसके तहत बाद में प्रधानमंत्री ने लोगों से सार्वजानिक तौर पर थाली, घंटी बजाने और दिया जलाने की अपील की।

जब केंद्र सरकार ने कोरोना पर जितना ध्यान दिया जाना था, उतना देना शुरू किया था, उसके बहुत पहले साफ हो चुका था कि सरकार को अपनी पहुंच में दो तरफ ध्यान  रखना होगा। फौरी तौर पर आपको एक संकट का सामना करना था और एक दूसरी चुनौती थी, यह उतना प्रबल नहीं था, लेकिन यह लंबे वक़्त के लिए चलना था।

लेकिन वक़्त गुजरता गया। केंद्र सरकार ने बहुत देर से वायरस कि गंभीरता के बारे में माना। लेकिन यहां सरकार ने गुज़रे वक़्त की भरपाई के लिए खुद को एक ही तरफ केंद्रित कर लिया। मार्च के मध्य में सरकार ने इशारों में माना कि कोरोना वायरस चीन और यूरोप के कहर बरपा रहा था, तब उसने यह समझकर गलती कर दी कि यह वायरस भारत को छोड़ देगा। 

मोदी द्वारा 19 मार्च को जनता कर्फ्यू लगाने से अगले दो महीने के वक़्त में सरकार ने बदलती स्थितियों के लिए योजना नहीं बनाई। स्वास्थ्य आपदा के पैमाने के बारे में सरकार को कोई अंदाजा ही नहीं था। ना ही इससे लोगों के जीवन में आने वाली आर्थिक संकट का कोई भान था, जो भारतीय व्यापार की कमर पूरी तरह तोड़ कर रख देगा। ऐसा इसलिए था, क्योंकि सरकार दो तरफ ध्यान केंद्रित करने में नाकामयाब रहा। सिर्फ़ सोशल डिस्टेंसिंग पर अपना ध्यान केंद्रित रखा, जो अपने व्यवहार में ही काफ़ी भयावह रही।

24 मार्च को जैसे ही मोदी ने राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की, तब साफ था कि सरकार सिर्फ़ फौरी वक़्त पर, उसी दिन की समस्या पर ध्यान केंद्रित कर रही है। सरकार ने आने वाले कल पर कोई ध्यान ही नहीं दिया, या इस बारे में उसकी नज़र काफ़ी धुंधली रही। चूंकि सरकार ने बदलती और नव निर्मित होती स्थितियों के लिए कोई योजना ही नहीं बनाई थी, तो लोगों की सुरक्षा और उनके भले के लिए जरूरी दो विरोधाभासी कार्यक्रमों में संतुलन नहीं बनाया जा सका। दोनों आपस में एक दूसरे से उलट थे, पर लोगों को सुरक्षित रखने और देश को आर्थिक आपात में जाने से बचाने के लिए जरूरी थीं।

पहली जरूरत के तहत लोगों मै शारीरिक दूरी बनाई जानी थी, लोगों का संपर्क कम किया जाना था, साथ में स्वास्थ्य ढांचे और सुविधाओं में भी तेजी लानी थी।

दूसरी जरूरत के तहत अर्थव्यवस्था कि सुचारू रखना था।ताकि लॉकडाउन में लोगों के लिए बुनियादी जरूरतों को पूरा किया जा सके।  फौरी तौर पर सिर्फ़ लोगों की जान ही खतरे में नहीं थी। लेकिन इस बात पर कोई ध्यान ही नहीं दिया गया कि इस लॉकडाउन से एक लंबे वक़्त का सामाजिक संकट भी खड़ा हो जाएगा। यह लॉकडाउन में गतिविधियां रुक जाने से पैदा हुए उद्यमों के खात्मे से उपजेगा। 

सरकार ने इन विरोधाभासी गतिविधियों में आपसी समन्वय के लिए कोई जागरूकता नहीं दिखाई। बदलती स्थितियों के लिए कोई योजना ना बनाने के बाद विरोधाभासी गतिविधियों में सरकार का प्रबंधन बेहद खराब रहा। कुल मिलाकर स्थिति एक पक्ष चुनने वाली ही बना दी गईं। मतलब या तो महामारी को समुदाय में प्रवेश करने से रोकने के लिए लॉकडाउन लगाया जाए या फिर अर्थव्यवस्था को चलने देने के लिए किसी तरह के प्रतिबंध ना लगाए जाएं।

लॉकडाउन में प्रवेश और इससे निकलने की कोशिशों से एक ऐसी सत्ता के बारे में पता चलता है जिसने 24 मार्च को उठाए अपने कदमों और उनके परिणाम के बारे में गंभीरता से नहीं सोचा। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब मोदी ने बिना अच्छी तरह सोचे काम कर दिया। ऐसा ही नवम्बर, 2016 में की गई नोटबंदी के बाद हुआ था। परिणामस्वरूप उस वक़्त कई बार गोलपोस्ट बदला गया। कभी कहा गया कि अर्थव्यवस्था से काले धन को निकालने, तो कभी कहा गया कि भुगतान और खर्च में डिजिटल हिस्सेदारी को बढ़ाने के लिए नोटबंदी की गई।

मार्च में स्वास्थ्य को "सुरक्षित" करने के पक्ष में फैसला लेने के बजाए लॉकडाउन जैसा बेहद कड़ा कदम उठाया गया। इससे लाखों लोगों की परेशानी बढ़ गई। नाटकीय ढंग से यह लोग अपनी नौकरियों से हाथ धो बैठे। इनमें से कई को अपनी आखिरी तनख्वाह तक नहीं मिल पाई। केंद्र ने अर्थव्यवस्था को सुचारू रखने की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। सरकार को स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था दोनों पर ध्यान देना था। महामारी को नियंत्रित करते हुए अर्थव्यवस्था को चलाने की कोशिश करना था।

भारत फिलहाल आभासी अनलॉकिंग के दौर से गुजर रहा है। यह कुछ ठोस और तार्किक वजहों से हो रहा है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है की केंद्र ने इसके लिए राज्यों को भी अपने साथ कर लिया है। ताकि लॉकडाउन से निकलने के बाद जब स्थितियां ज्यादा खराब हों तो दोष को किसी और के मत्थे जड़ा जा सके। लेकिन मौजूदा अनलॉकिंग भी बहुत उलजुलूल तरीके से हो रही है। 

अगर दुकानों और प्रतिष्ठानों को एक दिन छोड़कर एक दिन खोला जा रहा है, तो ऐसा जरूरत से ज्यादा भीड़ को रोकने के लिए किया जा रहा है। लेकिन इसका मतलब क्या निकल रहा है, क्योंकि जितने लोगों को एक कम वक़्त में जितना सामान खरीदना है, उतना तो वो खरीद ही रहे हैं। ठीक इसी तरह एयरपोर्ट के हालात हैं। वहां लाउंज में तो शारीरिक दूरी बनाई जाती है, जहां एक सीट छोड़कर बैठने का प्रावधान है। लेकिन विमान के अंदर सभी सीटों पर यात्री बैठे होते हैं। ऐसे कई कुतार्किक फैसलों और नियमों की लिस्ट बनाई जा सकती है।

महामारी के बारे में भयावह स्तर तक दर फैलाने के बाद अब सरकार की हिम्मत नहीं हो रही है कि वो कह सके कि अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए उसने अपना पिछला मिशन ठंडे बस्ते में डाल दिया है। अब भी सरकार अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य को एकसाथ लेकर चलने के बजाए एक ही पक्ष को लेकर चल रहीं है। चिंता इस बात की है कि इन दोनों विरोधाभासी प्रक्रियाओं को ठीक से प्रबंधित ना करने के चलते सरकार दोनों में से किसी में भी सफल नहीं हो पाएगी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत में कोरोना की बढ़ती दर से ऐसा झलकने भी लगा है। वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था गड्डे में गिरती जा रही है।

इसी प्रकाश में हमें सरकार द्वारा लोगों से आत्मनिर्भर बनने की अपील को देखना होगा। ऐसा लगता है कि सोशल मीडिया पर इसके बारे में चल रहे लतीफे जल्द बंद हो जाएंगे और यह एक भयावह सच्चाई में बदल जाएगा। 2017 में डांडिया नृतकों ने "विकास गांडो थाया चे" या "विकास पागल हो गया है" पर खूब नृत्य किया था। ऐसा ही कुछ आत्मनिर्भरता के साथ हो सकता है, जिसे विकास का छोटा भाई बताया जा रहा है।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

अंग्रेज़ी में लिखा लेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Slipshod Handling of Lockdown: Panic Response of Modi Regime

COVID 19 Lockdown
Lockdown Impact on Economy
Modi government
Economy under Modi Government
Prime Minister’s Office
COVID 19 in India
Lockdown Extension
Lockdown Exit

Related Stories

कोविड मौतों पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर मोदी सरकार का रवैया चिंताजनक

दवाई की क़ीमतों में 5 से लेकर 5 हज़ार रुपये से ज़्यादा का इज़ाफ़ा

महामारी भारत में अपर्याप्त स्वास्थ्य बीमा कवरेज को उजागर करती है

स्वास्थ्य बजट: कोरोना के भयानक दौर को क्या भूल गई सरकार?

बजट 2022-23: कैसा होना चाहिए महामारी के दौर में स्वास्थ्य बजट

कोविड पर नियंत्रण के हालिया कदम कितने वैज्ञानिक हैं?

जन्मोत्सव, अन्नोत्सव और टीकोत्सव की आड़ में जनता से खिलवाड़!

टीका रंगभेद के बाद अब टीका नवउपनिवेशवाद?

राज्य लोगों को स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए संविधान से बाध्य है

अस्तव्यस्त कोरोना टीकाकरण : हाशिए पर इंसानी ज़िंदगी


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License