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स्वास्थ्य
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कोविड-19 : एक क़दम पीछे, एक क़दम आगे
स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा नई कंटेनमेंट योजना में क्रमिक (ग्रेडेड) और क्षेत्रीय लॉकडाउन शामिल है। ऐसा पहले ही किया जाना चाहिए था।
सुबोध वर्मा
07 Apr 2020
कोविड-19

अमेरिकी कॉमेडियन मार्क्स भाइयों में से एक भाई ने एक बार कहा था: “ये मेरे सिद्धांत हैं। यदि आप इन्हें पसंद नहीं करते हैं, तो मेरे पास दूसरे हैं।" शायद भारत सरकार को यह तरीका पसंद आ रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा पेश किए गए एक दस्तावेज के अनुसार, कोरोनो वायरस या कोविड-19 महामारी के ख़िलाफ़ लड़ाई में पहले तो इसे नजरअंदाज कर दिया गया था और फिर लॉकडाउन कर दिया गया और अब क्रमिक प्रतिक्रिया (ग्रेडेड रेस्पॉन्स) के लिए योजना बनाई गई है। इसे कोविड -19 महाप्रकोप के लिए कंटेनमेंट प्लान कहा गया है।

इस योजना का मतलब है कि भविष्य में, देशव्यापी लॉकडाउन को अलग-अलग स्तर के लॉकडाउन के द्वारा केवल उन जगहों पर बदल दिया जाएगा जहां बड़ी संख्या में मामले सामने आए हैं और मामले नियंत्रण से बाहर हो रहे हैं। ये पूरे राज्य या ज़िला क्लस्टर या अन्य प्रशासनिक इकाई हो सकते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 211 जिलों को इसके अधीन लाया जा सकता है।

हम सभी जानते हैं कि 24 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अचानक देशव्यापी पाबंदी की घोषणा छिद्रों से भरी बाल्टी जैसी निकली। भारत में 30 जनवरी को पहला कोविड-19 मामला सामने आने के 53 दिनों को बाद और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा इसे महामारी घोषित किए जाने के लगभग 13 दिनों के बाद इसे लागू किया गया था।

ज़िंदगी की मजबूरियों- भूख, आश्रय, सुरक्षा, प्रियजनों - ने लाखों लोगों को दूर के गांवों में पलायन करने को मजबूर किया। ग्रामीण क्षेत्रों में या शहरी झुग्गियों में जिंदगी को नियंत्रित किया गया था लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग असंभव था। इस बीच, लोगों को अपने "संकल्प और संयम" को मजबूत करने के लिए कहा गया था और अंत में ताली बजाने या दीया जलाकर अपनी एकजुटता की ताकत दिखाने को कहा गया।

शंख बजाने, दीया और पटाखा जलाने से बेख़बर, वायरस कई तरीकों से फैलता रहा क्योंकि मनुष्य कई रास्तों आते जाते हैं और बातचीत करते हैं। और इस महामारी से निपटने का वैश्विक अनुभव था कि किस तरह काम करना है और किस चीज से दूर रहना है। 6 अप्रैल की सुबह तक भारत में संक्रमण के 4,027 मामले सामने आए हैं और 109 लोगों की मौत हो गई है। स्पष्ट रूप से, कुछ बदलने की जरूरत है क्योंकि वायरस निस्संदेह अपनी जमीन तलाश रहा था, लॉकडाउन किया जाए या नहीं। इसलिए, नई रणनीति की आवश्यकता हुई।

नया 'कंटेनमेंट प्लान'

ये दस्तावेज़ शुरू में ही स्पष्ट कर देता है कि यह कंटेनमेंट (काबू) के लिए है मिटिगेशन (राहत) के लिए नहीं, जो ऐसा लगता है कि विशेषज्ञों और नौकरशाहों के एक अन्य समूह द्वारा तैयार किया जा रहा है। यह महामारी के लिए नौकरशाही दृष्टिकोण का खुलासा करता है - जैसे कि यह कानून-व्यवस्था की समस्या है। तो आपको कर्मचारियों, फौजी शक्ति, लॉजिस्टिक सपोर्ट, मैप आदि की जरूरत है।

यह सब ठीक है, लेकिन क्या इसे तथाकथित 'राहत' के साथ एकीकृत नहीं किया जाना है, जिसका मतलब है कि एक बार यह बीमारी फैलने के बाद इसे रोकने के लिए हेल्थकेयर की आवश्यकता होती है और इस स्तर पर आपात स्थिति को रोकने के लिए सभी लॉजिस्टिक की आवश्कता होती है?

लेकिन इस घातक दृष्टिकोण के बारे में विचार नहीं करते हैं। कंटेनमेंट रणनीति का प्रस्ताव क्या है?

आइए इस योजना में अंतिम वाक्य के साथ शुरू करते हैं: यह अनमोल है:

हालांकि, यदि कंटेनमेंट प्लान इस महामारी को नहीं रोक पा रहा है और बड़ी संख्या में मामले सामने आने लगते हैं तो कंटेनमेंट प्लान को छोड़ने के लिए राज्य प्रशासन द्वारा निर्णय लेने की आवश्यकता पड़ेगी और राहत गतिविधियों को शुरू करने की आवश्यकता होगी।

न केवल ऐसा लगता है कि लेखकों और उनके वरिष्ठों को इस योजना पर कम विश्वास है, बल्कि वे इस भ्रम से भी पीड़ित हैं कि कंटेनमेंट के समाप्त होने के बाद ही राहत शुरू होता है! यह भारत का स्वास्थ्य मंत्रालय जीवित स्मृति में सबसे बड़ी और घातक महामारी से निपटने की रणनीति के बारे में चर्चा कर रहा है। यह भी ध्यान दें कि योजना विफल होने के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय किस तरह से राज्य सरकारों के पाले में गेंद फेकता है।

इसे एक पल के लिए अलग रख कर आइए देखें कि ये योजना क्या है।

संक्षेप में, यह कहता है कि कोविड-19 हर जगह नहीं बल्कि क्लस्टरों और हॉटस्पॉटों में फैलने वाली है। इसलिए ऐसे क्षेत्रों की पहचान करने और इससे निपटने की जरूरत है। यदि किसी क्षेत्र में बड़ी संख्या में मामले हैं तो इसे क्वारंटीन कर दिया जाएगा। सबसे जरुरी आवश्यकताओं को छोड़कर कुछ भी अंदर नहीं जाएगा या बाहर नहीं आएगा। इसके चारों ओर एक बफर ज़ोन होगा जहां कुछ छूट दी जाएगी।

यदि किसी क्षेत्र में कई मामले हैं, लेकिन इतनी बड़ी संख्या नहीं है जिसे क्वारंटीन करने की आवश्यकता है तो ऐसे क्षेत्रों को आइसोलेट कर दिया जाएगा। यह क्वारंटीन की तुलना में कुछ कम सख्त है लेकिन आने जाने पर बड़े पैमाने पर प्रतिबंध शामिल होंगे। संपर्क में लोगों का पता लगाना, निगरानी करना, जांच करना, संदिग्ध व्यक्तियों का आइसोलेशन आदि ऐसे क्षेत्रों में भी होंगे।

ये योजना सभी आवश्यक आदेश संरचना, कानूनी मदद और ऐसे अन्य मुद्दों का विवरण पेश करता है जो भविष्य में काम करने के लिए आवश्यक है। स्वास्थ्य मंत्रालय यह सब क्यों कर रहा है जो यह किसी भी व्यक्ति के अनुमान है लेकिन फिर तो यह मोदी सरकार के काम करने का तरीका है।

गंभीर दोष

इस योजना के बारे में चौंकाने वाली बात यह है कि देशव्यापी लॉकडाउन का पालन क्यों करना पड़ता है? मार्च के पहले या दूसरे सप्ताह में एक क्रमिक प्रतिक्रिया अपने आप में आदर्श होती। लेकिन केंद्र सरकार उस समय कुछ भी नहीं कर रही थी। फिर इसने लॉकडाउन का ऐलान कर दिया जो सामान्य धारणा में ओवरकिल की तरह लगा जैसे कि छिद्र वाली बाल्टी का इस्तेमाल हो रहा है। और अब यह एक क्रमिक प्रतिक्रिया के लिए पीछे की ओर जाना चाहता है।

लॉकडाउन स्पष्ट रूप से विफल हो गया है और लगता है सरकार को यह मालूम हो गया है। यही कारण है कि यह अब चीन की रणनीति को अपनाने जा रही है जहां कोई देशव्यापी लॉकडाउन नहीं हुई। केवल हुबेई प्रांत जो इस महामारी का केंद्र था 50 दिनों तक बंद कर दिया गया था और इसी तरह कुछ प्रमुख शहर और कुछ अन्य हॉटस्पॉट वाले क्षेत्र बंद थे। अन्य स्थानों पर विभिन्न स्तरों पर प्रतिबंध लगाए गए थे।

दूसरा दोष यह है कि यह केवल एक नौकरशाही गतिविधि है जो सामान्य तौर पर प्रशासन पर जोर देता है। सभी बॉक्स को निशान लगा दिया जाता है: सप्लाई चैन को खुला रखने की आवश्यकता होती है, डॉक्टरों और नर्सों को पीपीई (पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट) की जरुरत, कुछ छूट के अलावा घरों के बाहर निकलने पर रोक है। निश्चित रूप से यह सब क्वारंटीन क्षेत्रों के लिए है। और हालांकि इसी तरह के, कम कठोर, परिदृश्य आइसोलेटेड क्षेत्रों के लिए है।

लेकिन लॉकडाउन न किए गए क्षेत्रों से क्वारंटीन क्षेत्रों तक सप्लाई चैन को कैसे व्यवस्थित किया जाएगा? जिन लोगों के पास भोजन या पैसे नहीं है वे कैसे क्वारंटीन क्षेत्रों में जिंदा रहेंगे? जिन लोगों को कोविड का संक्रमण नहीं उनके सेहत संबंधी ज़रूरतों का क्या होगा? बढ़ते मरीजों की जरुरतों को पूरा करने के लिए क्या तैयारी होगी?

इन सभी को फिर से नजरअंदाज कर दिया गया है जैसे ये मौजूदा लॉकडाउन में थे। सीमित क्षेत्रों के लिए, क्वारंटीन को ज़्यादा सख्ती से लागू किया जा सकता है क्योंकि यह देश भर की तुलना में कम संख्या में हैं। लेकिन इसका मतलब यह भी है कि संक्रमित होने के बावजूद लोगों के जीवित रहने की क्षमता कम है। चीन ने सभी जरूरतमंद लोगों को बुनियादी आय सहायता दी है और उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए सभी लोगों को तैयार किया कि न केवल नियमों का पालन कराई जाती है बल्कि लोगों की भी देखभाल की जाती है। इस योजना में ऐसा कुछ भी नहीं है।

और आखिर में, देश के बाकी हिस्सों का क्या जहां लॉकडाउन नहीं है? क्या वे मान लेते हैं कि सब कुछ सामान्य हो गया है? चूंकि कोई जांच नहीं किया गया है, इसलिए बीमारी दबी हुई हो सकती है और जल्दी ही सामने आ सकती है।

हालांकि इस नई योजना को घोषणा करने से पहले मंत्रिमंडल और पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) द्वारा मंजूरी मिलने की आवश्यकता है, लेकिन अगर इसे लागू किया जाता है तो भारत में कोरोनवायरस के खिलाफ लड़ाई पर संकट का बादल छाया रहेगा।

 

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