NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
सीपीसी ने चीन को विश्व-शक्ति की श्रेणी में ला दिया है
इसने एक साथ दो लक्ष्य हासिल किए– गरीबी से छुटकारा तथा “चीनी-चारित्रिक विशेषताओं से समाविष्ट समाजवाद” के विकास के जरिए विदेशी शक्तियों के सामने खड़े होने का साहस दिखाने का। चीन ने अनुभव किया कि विचारधारा नहीं, विकास एक कठोर सत्य है। 
एम. के. भद्रकुमार
03 Jul 2021
सीपीसी ने चीन को विश्व-शक्ति की श्रेणी में ला दिया है
1936 में, चीन की कम्युनिस्ट राजधानी यानान में चाऊ एन लाइ (बाएं) और माओत्से तुंग (बाएं से दूसरे)। फोटो-एडगर स्नो। 

यह मौसम चीन में कम्युनिस्ट आंदोलन के उद्भव-विकास पर लिखी गई एडगर स्नो की एक उत्कृष्ट कृति ‘रेड स्टार ओवर चाइना’ को फिर से पढ़ने का है। कॉलेज के छात्रों के लिए स्नो की पुस्तक क्रांतिकारी उत्साह के पहले प्रवाह में पढ़ा ले जाने वाली कृति थी। इसके साथ, जॉन रीड की किताब ‘टेन डेज दैट शुक दि वर्ल्ड’ को भी पढ़ा जाना चाहिए, जो बोल्शेविक क्रांति का एक दिलचस्प चश्मदीद ब्योरा है। 

इसके बाद आई, अमेरिकी इतिहासकार फ्रांस क्रेन ब्रिंटन की किताब The Anatomy of Revolution  (1939) ‘जिसने विश्व की चार सबसे बड़ी राजनीतिक क्रांतियों-1640 के दशक में हुई ब्रिटिश क्रांति, अमेरिकी क्रांति, फ्रांसीसी क्रांति और रूसी क्रांति (1917) के बीच समानताओं के बिंदुओं को रेखांकित किया था। ब्रिंटन ने निष्कर्ष के रूप में दिखाया है कि किस तरह क्रांतियों ने पुरानी व्यवस्था से नए दौर की उदारवादी सत्ता तक, फिर कट्टरवादी शासन से लेकर थर्मीडोरियन प्रतिक्रिया तक अपना एक जीवन चक्र पूरा किया है। 

ब्रिंटन ने क्रांतिकारी आंदोलनों की गत्यात्मकता को प्रगति के तापमान से जोड़ा है। ब्रिंटन की किताब चीनी क्रांति के पूरे एक दशक पहले प्रकाशित हो गई थी। हालांकि थर्मीडोरियन प्रतिक्रिया के प्रारंभ होने के बाद से यांग्त्ज़ी नदी में बहुत सारा पानी बह चुका है। चीन में क्रांति के बाद रह गईं अनिश्चित अवधारणाओं को लेकर अब भी उत्साह जो आलम है, वह अपने मिजाज में नाटकीय और उपदेशात्मक दोनों हैं और जो जोशीले वाद-विवाद-संवादों को प्रेरित करते हैं। 

इसमें कोई शक नहीं कि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी), जिसकी स्थापना की शताब्दी पहली जुलाई को पूरी हुई है, उसके लिए इस महोत्सव का मोद मनाने के बहुत सारे सही कारण हैं। चीनी क्रांति (1949) के बाद सीपीसी को यह महसूस होने में लगभग तीन दशक लग गए कि विचारधारा नहीं, विकास एक कठोर सत्य है। 

देंग जियाओपिंग के शब्दों में, “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि काली बिल्ली है या उजली, जब तक कि वह चूहे पकड़ती रहती है।” इस सारगर्भित शब्दों का संकेत यह था कि चीन अपना रास्ता बदल रहा है और वह मौलिक रूप से नए विकास-पथ पर अग्रसर हो रहा है, जो उस समय देश की वास्तविक परिस्थितियों की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए अपेक्षित था। 1978 में देंग के सुधार और खुलेपन ने चीन को वैचारिक तनाव से मुक्त कर दिया था।

1976 में जब माओ का निधन हो गया, उस समय चीन की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) दर बांग्लादेश की तुलना में जरा ही कम-बेश थी। आज, संयुक्त राज्य अमेरिका अपने को बहुत क्षुब्ध महसूस करता है कि चीन विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पहले से ही बना बैठा है और वह इस दशक के अंत तक उसकी जगह ले लेगा।

विश्व बैंक का अनुमान है कि सीपीसी ने 1978 के बाद के चार दशकों में अपने 800 मिलियन लोगों को गरीबी की जलालत से बाहर लाने में कामयाबी हासिल की है, जो मानव जाति के इतिहास में एक शानदार करिश्मा है। 2012 में सीपीसी केंद्रीय कमेटी के नए महासचिव के रूप में शी जिनपिंग ने घोषणा की कि 100 मिलियन लोग जो अब भी गरीबी के दुष्चक्र में अटके पड़े हैं, उन्हें 2020 तक बाहर लाया जाएगा। उन्होंने पिछले साल 2020 दिसम्बर में अपने संकल्प को पूरा होने की घोषणा करते हुए बताया कि चीन गरीबी से मुक्त देश हो गया है। 

सीपीसी ने गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम 2013 से 2020 का नेतृत्व करने के लिए पहली पार्टी के रूप में सेक्रेटरियों और रेजिडेंट कार्यकारी सदस्यों की एक टीम का चयन किया। फिर उन्हें वास्तविक रूप से गरीब गांवों एवं उनमें रहने वाले गरीब परिवारों की थाह लेने के लिए देश के गांवों एवं दूरदराज के इलाकों में रवाना कर दिया। फिर टीम के सौंपे गए ब्योरों के आधार पर उन लोगों की जीवनदशा तथा आजीविका में सुधार की गरज से लक्षित परियोजनाओं का पूरे राष्ट्र के स्तर पर क्रियान्वयन किया गया।

निश्चित रूप से यह अनूठी पार्टी-राज्य व्यवस्था है, जो चीन के युगांतरकारी अभ्युदय की व्याख्या करती है। चीन में सीपीसी एक सर्वशक्तिमान व्यवस्था है। वह अब इसके समाज, राष्ट्र और इसकी राजनीति के पर्याय हो गई है। संक्षेप में कहा जाए तो चीन का राष्ट्रीय विकास सीपीसी द्वारा दीर्घावधि के तय लक्ष्यों की तरफ जबर्दस्त तरीके से अग्रसर होता है।

चीन की पार्टी व्यवस्था शिक्षित और उन सक्षम कार्यकर्ताओं पर आधारित है, जो विविध प्रदेशों में जमीनी स्तर पर काम के दौरान हासिल उन अनुभवों के साथ शीर्ष पर पहुंचे हैं, जो उनके राष्ट्रीय दृष्टिकोण को एक सांचे में ढ़ाला है, जो शीर्ष नेतृत्व का एक कॉलेजिएट बनाता है और बड़े राष्ट्रीय मसलों पर एक विचार बनाने में मदद करता है।

सच में, यह प्रक्रिया एकजुटता को मजबूत करती है और पार्टी में निरंतरता बनाए रखती है,जिससे कि नेतृत्व और जिम्मेदारियां एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित होती जाती है। बेइदैहे (Beidahe) के समुद्र तटवर्ती रिसोर्ट में आयोजित वार्षिक समारोह उसकी इसी निरंतरता एवं व्यवस्थित तरीके से सत्ता में परिवर्तन को प्रमाणित करते हैं-यह प्रक्रिया कुछ ऐसी है, जिसकी दुनिया में कोई भी कम्युनिस्ट पार्टी बराबरी नहीं कर सकती। 

चीन के लिए सीपीसी की शताब्दी वर्षगांठ का उत्सव उसकी ऐतिहासिक सफलता का प्रतीक है, जो बहुत सारे अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों के पूर्वानुमानों से कहीं अधिक है। संक्षेप में, सीपीसी ने अपने निर्धारित दोनों युग्म सामूहिक लक्ष्यों-गरीबी से छुटकारा और विदशी ताकतों की घुड़कियों के खिलाफ तन कर खड़े होने-को हासिल कर लिया है।  

सीपीसी मार्क्सवाद-लेनिनवाद की विचारधाराओं के प्रति अपनी हठधर्मिता को छोड़ कर और निरंतर प्रयोगात्मक प्रक्रिया, नवाचारों को अपना कर एवं अपनी गलतियों को दुरुस्त कर और उन पर काबू पाते हुए “चीन के चारित्रिक गुणों से समाविष्ट समाजवाद” का विकास करने के जरिए ही लक्ष्यों को हासिल कर सकती थी। इसमें कोई शक नहीं कि, सीपीसी ने सोवियत संघ के विघटन से सही सबक लिया है। 

सीपीसी ने यह अनुभव किया कि उसकी राजनीतिक विरासत अंततोगत्वा एक सुदृढ़ अर्थव्यवस्था के निर्माण में तथा स्थिरता एवं पूर्वानुमेयता के माहौल में लोगों के जीवन स्तर में लगातार उत्थान करने में ही सन्निहित है। आज का चीन अपने देशवासियों को और बेहतर कल की उम्मीदों से लबरेज कर देता है। 

सीपीसी को इतिहास में किसी भी सरल श्रेणी में नहीं रखा जा सकता और न ही उसकी किसी भी राजनीतिक पार्टी से तुलना ही की जा सकती है। इसकी व्यापक सदस्य संख्या (90 मिलियन) के अलावा, पार्टी अपने योगदानों में भी विलक्षण है। एक सर्वोच्च राजनीति शक्ति होने के अतिरिक्त, यह चीन के संवैधानिक ढांचे और राज्य के स्वरूप को परिभाषित करती है। पश्चिमी जगत में जहां एक राजनीतिक पार्टी थोड़े समय के लिए राजनीतिक सत्ता-संतुलन को बनाए रख सकती है, इसकी तुलना में, सीपीसी चीनी जनता की पीढ़ी दर पीढ़ी अगुवाई करने का अभियान चलाती है। जाहिर है कि पार्टी स्पष्टत: ही पश्चिमी देशों के राजनीतिक ज्ञान एवं अनुभवों द्वारा प्रदत्त संज्ञेनात्मक ढांचे से बहुत आगे निकल गई है।

पीपुल्स डेली (People’s Daily), ने 2 जुलाई 2021 के अपने एक उत्तेजक संपादकीय में लिखा है, “आधुनिक समय के सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षणों में, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवाद-लेनिनवाद के प्रति उन्मुख हुई थी। चीनी की वास्तविक स्थितियों की थियरी को ग्रहण करते हुए, चीनी कम्युनिस्टों ने राष्ट्र द्वारा हजारों साल में गढ़ी गई सभ्यता को मार्क्सवाद के सत्य से और मजबूत किया। चीनी सभ्यता अपनी अद्भुत आध्यात्मिक शक्ति से एक बार फिर दमक उठी। आज सौ साल बाद, मार्क्सवाद ने चीन को गहरे स्तर पर बदल दिया है, वहीं चीन ने भी मार्क्सवाद को काफी हद तक समृद्ध किया है। सीपीसी ने मन की स्वाधीनता एवं सत्य के आग्रह की एकता, और परम्परा एवं नवाचार के समेकन की एकजुटता बनाए रखी है। साथ ही, उसने मार्क्सवाद के लिए निरंतर एक नए क्षितिज खोले हैं।” 

हालांकि, चीन निर्देशात्मक नहीं है। सीपीसी का मार्ग चीन की हजारों साल पुरानी संस्थापित सभ्यता द्वारा परिभाषित है, जो एकीकृत राजनीतिक प्रणाली के खास मायने सामूहिक चेतना में गहराई तक धंसा हुआ है, यह विध्वंसकारी प्रतिद्वंद्विता तथा क्षेत्रीय विभाजन को रोकता है, और चीनी समाज की राष्ट्रीय सुरक्षा को बरकरार रखता है। सीपीसी चीनी समाज के जिस व्यापक समावेशन का प्रतिनिधित्व करती है, उसका दुनिया में कोई सानी नहीं है। 

इसलिए यह एक भ्रांतिपूर्ण विचार है कि चीन को पश्चिमी राजनीतिक अनुभवों के जरिए बलात रूपांतरित किया जा सकता है। जहां तक चीन के अपने विकास पथ की खोज की वैधता का मतलब है, पश्चिम इससे अस्वीकार की मुद्रा में है। पेइचिंग बाकी दुनिया के लिए सीपीसी के एक मॉडल के रूप में प्रतिनिधित्व नहीं करता है। इसके विपरीत, सीपीसी का विकास चीनी जमीनी पर हुआ है और पार्टी ने आधुनिकीकरण के अपने अनुभवों एवं चीन के अपने सभ्यतागत-स्रोतों से प्रेरणा ली है। 

तो, हिंद-प्रशांत में ‘खुजलाहट’ किस बात की है? सीधे कहें तो, यह अमेरिका के जुनूनी असाधारणवाद से आंशिक रूप से पैदा हुई एक तीखी प्रतिद्वंद्विता का प्रकटीकरण है, पर यह व्यापक रूप से ईर्ष्या की बढ़ती भावना एवं तनाव की वजह से है कि एक दूसरा देश तेजी से उसके करीब आता जा रहा है, जो अमेरिका के वैश्विक प्रभुत्व के लिए कयामत ला दे सकता है।  

तमाम अक्खड़पन के बावजूद, गौर करने वाली बात यह है कि अमेरिका के लिए चीन की गत्यात्मकता, नवाचार के प्रति उसके बेसब्र आग्रहों एवं बेहद द्रुत गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था से होड़ लेना मुश्किल है, जो खरीद शक्ति समता के मामले में पहले से दुनिया के सबसे ऊंचे मचान पर बैठा हुआ है।  

हार्वर्ड कैनेडी स्कूल के प्रो. स्टीफन वॉट ने कल शुक्रवार को ट्वीट किया था, “अमेरिकी विदेश नीति के बहुत सारे विशेषज्ञ चीन के अभ्युदय को लेकर खासे चिंतित हैं। मैं भी चिंतित हूं। लेकिन इनमें से कितने विशेषज्ञों ने इस तथ्य पर गौर किया है कि चीन ने बहुत सारे मोर्चों पर खुद को युद्ध से बचाया है, जबकि वह लगातार अपनी संपदा, शक्ति और प्रभाव अर्जित करता रहा है?”

कहने का सार यह कि, अमेरिका खुद की बुलाई दुर्दशा का ही सामना कर रहा है। फिजूल की जंगों एवं फौजी दखलों ने ट्रिलियन डॉलर्स के संसाधनों को यों ही बरबाद कर दिया है, जिनका उपयोग देश के जीर्ण-शीर्ण आर्थिक बुनियादी ढ़ांचे के रख-रखाव एवं उनके पुनर्नवीकरण में किया जा सकता था, और संचित सामाजिक अंतर्विरोधों जैसे; समाज में गहराई तक जड़ जमाए नस्लभेद, हिंसा से लेकर संपत्ति की असमानता एवं आर्थिक विषमताओं का निवारण किया जा सकता था। इनके अलावा, निष्क्रिय पड़ी राजनीतिक प्रणाली सहित निराशाजनक रूप से पुराने निर्वाचन कानूनों को बदला जा सकता था, जो लोगों के सशक्तिकरण के काम में अड़ंगा डालता है। 

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीजिंग में संबोधन से, यह बात तो बिलकुल साफ हो गई है कि चीन अब अमेरिका की धौंस में न आने के लिए पूरी तरह संकल्पित है। जैसा कि उन्होंने कहा है कि चीनी राष्ट्र के गुणसत्र में आक्रामता या आधिपत्य दिखाने के गुण नहीं हैं, लेकिन वह किसी विदेशी बदमाशियों, दमन के प्रयास या उसे अपने अधीन करने की कोशिशों की इजाजत नहीं देगा। संक्षेप में, सीपीसी की स्थापना साम्यवाद के अग्रदूतों द्वारा विकसित की गई है, जिससे चीन की ताकत को विश्व की राजनीति में गंभीरता से लिया जाएगा।

सौजन्य: इंडियन पंचलाइन 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

CPC Transforms China as World Class Power

CPC
China
Mao
Xi Jingping
US
Communism
Marxism

Related Stories

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन में हो रहा क्रांतिकारी बदलाव

90 दिनों के युद्ध के बाद का क्या हैं यूक्रेन के हालात

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आईपीईएफ़ पर दूसरे देशों को साथ लाना कठिन कार्य होगा

यूक्रेन युद्ध से पैदा हुई खाद्य असुरक्षा से बढ़ रही वार्ता की ज़रूरत

यूक्रेन में संघर्ष के चलते यूरोप में राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव 

क्या दुनिया डॉलर की ग़ुलाम है?

छात्रों के ऋण को रद्द करना नस्लीय न्याय की दरकार है

सऊदी अरब के साथ अमेरिका की ज़ोर-ज़बरदस्ती की कूटनीति

रूस की नए बाज़ारों की तलाश, भारत और चीन को दे सकती  है सबसे अधिक लाभ

बर्तोल्त ब्रेख्त की कविता 'लेनिन ज़िंदाबाद'


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License