NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
CSC-SPV द्वारा हज़ारों करोड़ रुपये के सरकारी ठेके हासिल करने के पीछे का आख़िर राज़ क्या है?
संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करते हुए, मोदी सरकार ने किसी भी प्रतिस्पर्धी बोलियों को आमंत्रित किये बिना या इन परियोजनाओं को निष्पादित करने के लिए इसकी तकनीकी क्षमताओं का मूल्यांकन किये बिना एक अर्ध-सरकारी कंपनी को हज़ारों करोड़ रुपये के ठेके दिये।
रवि नायर
15 Jun 2020
CSC
Image courtesy: Facebook

सीएससी ई-गवर्नेंस सर्विसेज इंडिया लिमिटेड (सीएससी एसपीवी) एक अर्ध-सरकारी कंपनी है, जिसने इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के सूत्रों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में इस सरकार से नामांकन के आधार पर हज़ारों करोड़ रुपये का आधिकारिक कारोबार हासिल किया है। लगता है कि इनमें से कुछ परियोजनायें इस कंपनी की क्षेत्र-विशेषज्ञता या परियोजनाओं को निष्पादित करने की उसकी क्षमता पर पूरी तरह से विचार-विमर्श किये बिना ही दे दी गयी है।

कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) योजना, 2006 से राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना के तहत लागू की जा रही थी। सीएससी स्पेशल पर्पस व्हीकल या एसपीवी की स्थापना 2009 में चल रही योजना की सहायता के लिए की गयी थी। हालांकि, 2015 के बाद से CSC SPV स्थानांतरित और रूपांतरित हो गया है और इस आधिकारिक ठेके से बहुत आगे निकल गया है। इसे केंद्र सरकार द्वारा नामांकन के आधार पर हज़ारों करोड़ रुपये के कई ठेके आवंटित किये गये हैं, जिसमें भारत ब्रॉडबैंड लिमिटेड के फ़ाइबर ऑप्टिक नेटवर्क का एक वार्षिक रखरखाव के ठेके के साथ-साथ देश में एक लाख डिजिटल गांवों की स्थापना का आधिकारिक ऑर्डर भी शामिल है।

जैसा कि कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के रिकॉर्ड से पता चलता है कि CSC ई-गवर्नेंस सर्विसेज इंडिया लिमिटेड एक ग़ैर-सरकारी कंपनी है। मिसाल के तौर पर 2015-16 में कंपनी की वार्षिक रिपोर्ट से पता चलता है कि 53.05% हिस्सेदारी के साथ बैंक और वित्तीय संस्थान इसके बड़े हिस्सेदार थे।

हालांकि, सरकार के पास 51% वोटिंग अधिकार है, जिसे ब्रिटेन जैसे कुछ दूसरे देशों में 'गोल्डन शेयर' भी कहा जाता है, लेकिन भारत में इसकी क़ानूनी वैधता संदिग्ध है।

1_13.png

सरकारी कंपनियों की वार्षिक रिपोर्ट संसद की विशेष समितियों या ख़ुद संसद के सामने रखी जाती है।

CSC SPV के मामले में, लेखा परीक्षकों की नियुक्ति कंपनी के निदेशक मंडल द्वारा की गयी है। कंपनी ने 2016-17 के बाद अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की है। सच्चाई तो यही है कि इसने 2018-19 के लिए कंपनी रजिस्ट्रार या आरओसी को भी वित्तीय रिपोर्ट नहीं प्रस्तुत की है।

ठेका

दूरसंचार विभाग (DoT) और सीएससी एसपीवी के तहत केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड (BBNL) और यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फ़ंड (USOF) के बीच 2019 में किये गये एक अनुबंध समझौते में इस कंपनी का उल्लेख " पंजीकृत सार्वजनिक कंपनी " के तौर पर किया गया है 

कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत, सरकार के पास एक ही हिस्सा होने के कारण और बतौर अध्यक्ष इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सचिव, इसे 51% मतदान का अधिकार दिया गया....।

2_10.png

जैसा कि पहले ही उल्लेख किया जा चुका है कि  CSC-SPV को CSC योजना की निगरानी एजेंसी के तौर पर शामिल किया गया था।

सीएससी योजना के सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल में तीन स्तरीय संरचना की परिकल्पना की गयी है,जिसमें स्थानीय सीएससी संचालक (CSCs) शामिल हैं, जिन्हें ग्राम स्तरीय उद्यमी (VLE), सेवा केंद्र एजेंसी (SCA) कहा जाता है, जो चुनिंदा भौगोलिक क्षेत्रों में 500-1,000 सीएससी और किसी राज्य के भीतर इसके कार्यान्वयन के प्रबंधन के लिए राज्य सरकार द्वारा ज़िम्मेदार राज्य नामित एजेंसी (SDA) की पहचान, नियुक्ति, निगरानी और प्रबंधन के लिए ज़िम्मेदार है।

वित्त वर्ष 2013 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक़, उस वर्ष मार्च तक देश में कुल 99,537 सीएससी शुरू किये गये थे। सरकार का मक़सद पूरे भारत में 2.5 लाख सीएससी स्थापित करना था।

ऐसी कई SCA निजी इकाइयां थीं, जिन्हें 2008 के बाद से राज्यों के भीतर एक क्षेत्र-वार बोली प्रणाली के ज़रिये चार वर्षों की प्रारंभिक अनुबंध अवधि के लिए चुना गया था, जो पारस्परिक रूप से सहमत शर्तों पर विस्तार योग्य है। एक SCA को शहरी, ग्रामीण और कठिन क्षेत्रों जैसे मिश्रित क्षेत्रों के लिए बोली लगानी थी।

सरकार को पता था कि बड़ी संख्या में सरकारी सेवाओं (G2C) को ऑनलाइन करने में अधिक समय लगेगा। इस अनुबंध के मुताबिक़, अगर सरकार निर्धारित समय के भीतर G2C सेवाओं को रोल आउट करने में नाकाम रहने पर SCAs को सरकार द्वारा आर्थिक रूप से तब तक मदद करनी थी, जब तक कि यह प्रणाली बिना किसी परेशानी के संचालित होने के लिए ख़ुद पर निर्भर नहीं हो जाती।

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के दस्तावेज़ से पता चलता है कि अगस्त 2012 में सरकार ने CSCs को मिलने वाली वित्तीय सहायता वापस ले ली थी और सरकारी सहायता मुहैया कराये बिना SCA के अनुबंधों को चार और वर्षों के लिए बढ़ाने का फ़ैसला कर लिया गया था।

बदलती भूमिका

नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के एक साल बाद, 2015 में CSC 2.0 परियोजना शुरू की गयी थी। यह फ़ैसला लिया गया कि संपूर्ण व्यवसाय सीएससी-एसपीवी के ज़रिये ही संचालित किया जायेगा।

तब से SCA की भूमिका कम हो गयी है और CSC-SPV की भूमिका एक निगरानी एजेंसी से बदलकर व्यवसाय चलाने वाली की हो गयी है। सूत्रों का कहना है कि कथित तौर पर किसी भी प्रतिस्पर्धी बोली के बिना या यहां तक कि उन व्यवसायों के लिए लागू होने वाली इसकी तकनीकी क्षमता का मूल्यांकन किये बिना सरकार ने इस इकाई को नामांकन के आधार पर सैकड़ों करोड़ रुपये का कारोबार मुहैया कराना शुरू कर दिया।

मसलन, जुलाई 2019 में, बीबीएनएल ने भारतनेट प्रोग्राम के लिए दूर संचार विभाग (DoT) के तहत USOF द्वारा वित्त पोषित नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क (NOFN) के साथ एक अन्य सार्वजनिक उपक्रम, भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के अपने वार्षिक रखरखाव अनुबंध (AMC) को रद्द कर दिया और किसी निविदा को आमंत्रित किए बिना CSC-SPV के साथ एक नये अनुबंध पर हस्ताक्षर कर दिये।

पांच साल की अवधि के लिए हस्ताक्षरित यह नया अनुबंध 1,903.5 करोड़ रुपये का है। दिलचस्प बात यह है कि बीएसएनएल ने एक लाख ग्राम पंचायतों को फ़ाइबर ऑप्टिक केबल के ज़रिए इंटरनेट से जोड़ने के लिए भारतनेट परियोजना के पहले चरण में प्रमुख भूमिका निभायी थी।

3_21.JPG

ईटी टेलीकॉम द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक़, सीएससी-एसपीवी, बीबीएनएल और डीओटी के साथ त्रिपक्षीय अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के एक साल से भी कम समय में बीबीएनएल ने सीएससी-एसपीवी की तकनीकी विशेषज्ञता और पात्रता पर सवाल उठाये थे और वह एएमसी से  ठेका वापस लेना चाहता था।

न्यूज़क्लिक द्वारा विश्लेषित इस अनुबंध के दस्तावेज़ के मुताबिक़, निष्पादन एजेंसी को भारत में निर्मित इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों को प्राथमिकता देनी चाहिए। लेकिन, ईटी टेलीकॉम ने मंत्रालय के अधिकारियों के हवाले से कहा कि घरेलू रूप से विकसित और निर्मित गीगाबाइट पैसिव ऑप्टिकल नेटवर्क (GPON) तकनीक का इस्तेमाल करने के बजाय, जो दूरसंचार प्रौद्योगिकी केंद्र (TEC) द्वारा आयोजित सामान्य आवश्यकता (GR) परीक्षण के बाद सरकार की तकनीकी समिति द्वारा अनुमोदित है, CSC चीन निर्मित उस ईथरनेट ऑप्टिकल नेटवर्क (EPON) का इस्तेमाल कर रहा है, जो GPON की तुलना में बहुत सस्ता और "ख़राब गुणवत्ता वाला" है।

इस मंत्रालय के अधिकारियों ने यह आरोप भी लगाया है कि कंपनी पैसे बचाने के लिए 24-जोड़ी के बजाय कम गुणवत्ता वाले उत्पादों और चार-जोड़ी फ़ाइबर का इस्तेमाल कर रही थी।

2 मई, 2020 के यूएसओएफ के प्रशासक को एक पत्र में बीबीएनएल अध्यक्ष ने शिकायत की है कि सीएससी-एसपीवी ने वीएलई द्वारा नियंत्रित स्थानीय सीएससी को परियोजनाओं से संबंधित उपकरणों को बदलकर अनुबंध मानदंडों का उल्लंघन किया है। आख़िरकार, हर एक इंटरनेट सेवा प्रदाता (ISP) और दूरसंचार सेवा प्रदाता (TSP) की पहुंच नेटवर्क तक समान होनी चाहिए। लेकिन, बीबीएनएल के अध्यक्ष के अनुसार, इसे स्थानीय सीएससी में स्थानांतरित करने से इस पहुंच में बाधा पैदा होगी।

इस अनुबंध में ऐसे क्लॉज़ भी हैं, जो सीएससी एसपीवी को अनुचित फ़ायदा पहुंचाते हैं। मिसाल के तौर पर, एक बार नेटवर्क पूरा होने के बाद, कंपनी को पहले छह महीनों के लिए उपयोगकर्ता शुल्क में 50% की छूट मिलेगी और उस अवधि के दौरान, दूरसंचार विभाग(DoT), CSC-SPV सहित सभी सेवा प्रदाताओं के लिए टैरिफ़ को अंतिम रूप देगा। सूत्रों का कहना है, इससे प्रतिस्पर्धा ख़त्म हो जायेगी,क्योंकि दूसरे टीपीएस और आईएसपी इस शुरुआती मूल्य लाभ के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए संघर्ष करेंगे।

4_17.JPG

उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद इस निजी कंपनी को नामांकन के आधार पर मिलने वाला यह एकमात्र सरकारी अनुबंध नहीं है।

इसके अलावा भी दरियादिली ?

किसी निविदा को आमंत्रित किये बिना CSC SPV को केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल अभियान (PMGDISHA) की प्रबंधन और कार्यान्वयन एजेंसी भी बनाया गया था।  इस योजना का मक़सद ग्रामीण क्षेत्रों में हर एक बीपीएल (ग़रीबी रेखा से नीचे गुज़र-बसर करने वाले) परिवार में एक व्यक्ति को डिजिटल साक्षर बनाना है। सीएससी-एसपीवी, स्थानीय सीएससी को प्रति व्यक्ति प्रशिक्षण के लिए 300 रुपये का भुगतान करती है। 

2017 में जब इस योजना की घोषणा की गयी थी, तब प्रस्तावित बजट परिव्यय 2,351.38 करोड़ का था। फ़ाइनेंशियल एक्सप्रेस में प्रकाशित एक लेख में इस बात का ज़िक़्र किया गया है कि यह राशि केवल 2.39 करोड़ पंजीकृत नागरिकों को प्रशिक्षित करने के लिए ही पर्याप्त है और सरकार को छह करोड़ व्यक्तियों के प्रशिक्षण के अपने निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने के लिए इस आवंटन को बढ़ाने की ज़रूरत है। योजना के लिए यह पूरी रक़म सीएससी एसपीवी के ज़रिये भेजी जाती है।

बात यहीं ख़त्म नहीं होती। हफ़पोस्ट इंडिया द्वारा प्रकाशित एक लेख से इस बात का पता चलता है कि बिना दिशानिर्देशों के काम करते हुए वीएलई किस तरह पैसे बनाने के लिए इस योजना का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे सरकारी ख़ज़ाने को भारी मात्रा में नुकसान पहुंच रहा है।

इस योजना के दिशा निर्देशों के मुताबिक़ इस योजना में किसी भी नीति-स्तर के हस्तक्षेप के बारे में फ़ैसला लेने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY)  के सचिव की अध्यक्षता में एक अधिकार प्राप्त समिति का गठन किया गया है। यह प्रावधान ख़ुद ही हितों के टकराव को पैदा करता है, क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के सचिव CSC-SPV के अध्यक्ष भी हैं।

इस संस्था को किसी भी निविदा को आमंत्रित किये बिना दी जाने वाली एक और परियोजना, साइबर ग्राम योजना है,जो सरकार द्वारा वित्त पोषित।

अल्पसंख्यक समुदायों के स्कूली बच्चों को सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) सिखाने के इरादे से अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय (MMA) ने बहु-क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम (MsDP) के तहत अल्पसंख्यक-केंद्रित स्कूलों और मदरसों में साइबर ग्राम योजना शुरू की हुई है। अब तक यह योजना देश भर के 196 ज़िलों के 710 ब्लॉकों में चल रही है। इस वर्ष जनवरी में MMA द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में सिर्फ़ पश्चिम बंगाल, राजस्थान और त्रिपुरा में इस कार्यक्रम के लिए 1,04,916 छात्रों को पंजीकृत दिखाया गया है।

इस मामले में भी CSC-SPV कार्यान्वयन एजेंसी है। प्रत्येक छात्र पर ख़र्च होने वाली अनुमानित राशि 1,555 है रुपये हैं, जिसे केंद्र और राज्य सरकारें 75:25 के अनुपात में साझा करती हैं। इन 1,555 रुपये में से 130 रुपये CSC-SPV का परियोजना प्रबंधन शुल्क है और SCA को प्रशिक्षण शुल्क के रूप में 150 रुपये मिलते हैं।

5_14.JPG

अब तक, सीएससी-एसपीवी के तहत कोई एससीए नहीं हैं और कंपनी ख़ुद ही सीएससी का प्रबंधन कर रही है। नतीजतन, CSC-SPV 1,555 रुपये का 18% कमा रही है, जो कि 280 रुपये होता है।

योजना के दिशानिर्देश के मुताबिक़ पूरा धन (केंद्र और राज्य दोनों का हिस्सा) राज्य सरकारों द्वारा सीएससी-एसपीवी को दो समान किस्तों में वितरित किया जाना चाहिए, जो अन्य सभी हितधारकों को जारी किया जायेगा।

6_7.JPG

डिजिटल विलेज कार्यक्रम और डेटा एक्सेस

मोदी सरकार ने 10,000 करोड़ रुपये के अनुमानित बजट के साथ डिजिटल विलेज कार्यक्रम शुरू किया था और इसके लिए CSC-SPV को फिर से बिना किसी निविदा आमंत्रण के कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में चुन लिया गया।

इस परियोजना के लिए सीएससी एसपीवी और पंचायती राज मंत्रालय(MoPR) के बीच हस्ताक्षर किये गये ज्ञापन के मुताबिक़, राज्य सरकारों को पूरी परियोजना लागत को वहन करना होगा।

डिजिटल विलेज परियोजना के तहत निजी वीएलई को ग्राम पंचायत (GP) भवन में स्थानांतरित किया जायेगा और ग्राम पंचायत को उनके संचालन को लेकर पूरी आज़ादी देनी होगी। इन ग्राम पंचायतों को इन निजी उद्यमियों को संपूर्ण डेटा तक पूर्ण पहुंच प्रदान करनी होगी।

इस एमओयू के मुताबिक़, ये ग्राम स्तरीय उद्यमी (VLEs) सरकार सम्बन्धित सभी सेवाओं के लिए बुनियादी मंच होंगे। इसका मतलब यह है कि ये निजी उद्यमी जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करेंगे, वरिष्ठ नागरिकों के लिए एकीकृत कार्यक्रम, राष्ट्रीय वयोश्री योजना, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना जैसे सरकारी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का संचालन करेंगे, और ये उन अन्य योजनाओं का हिसाब-किताब रखेंगे, जो केवल सीएससी के ज़रिये उपलब्ध होंगे। नागरिकों के लिए चलने वाली ऐसी कई सरकारी सेवायें पहले निशुल्क थीं, जो सम्बन्धित विभागों द्वारा संचालित होती थीं,लेकिन अब उन्हीं सेवाओं के लिए भुगतान करना होता है।

झारखंड में इंडिया फ़ोरम द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि बैंकिंग सेवायें, जो सीएससी के हिस्सा हैं और निशुल्क हैं, लेकिन इस समय ट्रांजेक्शन पर औसतन 3.5% का शुल्क ले रही हैं। प्रमाण पत्र जारी करने के लिए निर्धारित दर 30 रुपये है; लेकिन वीएलई कथित तौर पर नागरिकों से औसतन 75 रुपये वसूल रहे हैं। आरोप है कि ज़्यादातर वीएलई के लिए केंद्र चलाना एक दूसरा व्यवसाय बन गया है।

एक अन्य उदाहरण में, सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने जनवरी 2019 में सीएससी के ज़रिये जनगणना, सर्वेक्षण और सूचना प्रसार के संचालन के लिए इस इकाई के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये थे। तीन साल के लिए वैध इस एमओयू पर भी बिना किसी निविदा आमंत्रित किये हस्ताक्षर कर दिये गये थे। इस समझौता ज्ञापन के तहत, सीएससी एसपीवी ने पहले ही आर्थिक सर्वेक्षण कर लिया है।

CSC SPV की पहुंच व्यक्तिगत जानकारी और बैंक खाता विवरण सहित नागरिकों के बहुत सारे डेटा तक है। भारतीय निर्वाचन आयोग ने CSC के माध्यम से मतदाता पहचान पत्र (EPIC) की छपाई के लिए CSC SPV के साथ भागीदारी की है।

कई राज्यों के इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन मैनेजमेंट सिस्टम को इस कंपनी के डिजिटल सेवा पोर्टल के साथ एकीकृत किया गया है। इन राज्यों में 2016-17 के दौरान सीएससी नेटवर्क के ज़रिये 56.18 लाख ईपीआईसी मुद्रित और वितरित किये गये। और इनमें से कई राज्यों में होने वाले 2019 के आम चुनाव से ठीक पहले विपक्षी दलों और कार्यकर्ताओं द्वारा मतदाता सूची से मतदाता के नामों के ग़ायब होने के आरोप लगाये गये थे।

2018 में भ्रष्टाचार की शिकायतों और नामांकन के उल्लंघन का हवाला देते हुए भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) ने CSC को आगे आधार सेवायें प्रदान करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। तब तक, CSC ने 26.80 करोड़ आधार कार्ड जारी कर दिये थे। दिसंबर 2019 में सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री,रविशंकर प्रसाद के हस्तक्षेप के बाद सीएससी को फिर से अनुबंध वापस मिल गया।

डेटा लीक

इज़रायल की साइबर सुरक्षा कंपनी, वीपीएनमेंटर(vpnMentor) ने 3 जून, 2020 को एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें आरोप लगाया गया कि CSC-SPV द्वारा संचालित CSC BHIM वेबसाइट, जिसका उपयोग भुगतान ऐप-BHIM को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है, इसने 70 लाख से अधिक भारतीयों के बेहद संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा को जोखिम में डालते हुए बड़े पैमाने पर डेटा उल्लंघन का नुकसान कर दिया है। लीक किये गये डेटा में नाम, जन्म तिथि, उम्र, लिंग, घर का पता, धर्म, जाति, बायोमेट्रिक विवरण, प्रोफ़ाइल और आईडी फ़ोटो, बायोमेट्रिक्स फ़ोटो, फिंगरप्रिंट और सरकारी कार्यक्रमों और सामाजिक सुरक्षा सेवाओं के लिए आईडी नंबर की प्रतियों के साथ-साथ इन दस्तावेज़ों के स्कैन कॉपी भी शामिल हैं।

वीपीएनमेंटर (vpnMentor) के मुताबिक़, यूज़र डेटा का इस तरह सरेआम हो जाना किसी हैकर का किसी बैंक के संपूर्ण डेटा इन्फ्रास्ट्रक्चर तक पहुंच बनाने की तरह है, जिसमें उपयोगकर्ता के खाता से सम्बन्धित जानकारियां शामिल होती हैं। वीपीएनमेंटर (vpnMentor) का कहना है कि उसने CSC-SPV से संपर्क किया और कंपनी को इस डेटा उल्लंघन के बारे में सूचित किया,लेकिन कंपनी ने इसे ठीक नहीं किया। कई बार याद दिलाने के बाद, कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम या CERT ने एक महीने बाद इसे ठीक किया।

वीपीएनमेंटर(vpnMentor) के शोधकर्ताओं ने लिखा है, " अगर उन्होंने इसे बचाने के लिए कुछ बुनियादी सुरक्षा उपाय किये होते, तो CSC BHIM वेबसाइट के डेवलपर्स उपयोगकर्ता डेटा को उजागर करने से आसानी से बच सकते थे"।

भारत में CSC-SPV और नेशनल पेमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया ने इस दावे का खंडन किया और कहा कि कोई डेटा उल्लंघन नहीं हुआ था। लेकिन, इस इज़रायली कंपनी ने कुछ लीक हुए दस्तावेज़ों की फ़ोटोकॉपी उनके सामने रखे थे।

2006 से  सीएससी एसपीवी को ज़िम्मेदारियां सौंपे जाने तक राष्ट्रीय स्तर की सेवा एजेंसी या एनएलएसए का हिस्सा रहे एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, “उस कंपनी की विशेषज्ञता आख़िर क्या है कि उसे भारतनेट एएमसी जैसी तकनीकी और इंजीनियरिंग परियोजनाओं को लागू करने को लेकर सीएससी की निगरानी के लिए स्थापित किया गया है ?” उस अधिकारी के मुताबिक़, सीएससी के ज़रिये सूचना एवं प्रद्यौगिकी मंत्री को भारत के हर कोने में सीधे पहुंच बनाने का अवसर दिखायी देता है, जिससे मोदी सरकार द्वारा किये गये विकास कार्यों के बारे में अपने विचारों को फैलाने में सत्तारूढ़ दल (भारतीय जनता पार्टी) को फ़ायदा होगा। वे कहते हैं, “सरकार ने इस अवसर को दोनों हाथों से पकड़ लिया है। लेकिन हज़ारों करोड़ रुपये के यह सरकारी कार्य इस कंपनी को नामांकन के आधार पर क्यों दिये गये, यह एक रहस्य है।”  

बहुत सारे सवाल

केंद्रीय सतर्कता आयोग सरकारी ख़रीद की परिभाषा और नियम के बारे में बताता है: “सरकारी ख़रीद को केंद्र और राज्यों के सभी सरकारी मंत्रालयों, विभागों, एजेंसियों, वैधानिक निगमों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, नगर निगमों और अन्य स्थानीय निकायों और यहां तक कि एकाधिकार के आधार पर सार्वजनिक सेवायें प्रदान करने वाले निजी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा वस्तुओं, कार्यों और सेवाओं की ख़रीद के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।” आयोग आगे बताता है: "सार्वजनिक ख़रीद केवल दो प्रमुख शब्दों, यानी पारदर्शिता और निष्पक्षता द्वारा व्यक्तिगत ख़रीद का महज विस्तार भर है।"

नगर निगम, मेरठ बनाम ए1 फ़हीम मीट एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है, “ इस बारे में यह क़ानून भली-भांति निर्धारित है कि राज्य, उसके निगमों, साधनों और एजेंसियों द्वारा अनुबंध आम तौर पर सार्वजनिक नीलामी / सार्वजनिक निविदा के माध्यम से पात्रता वाले व्यक्तियों से निविदायें और सार्वजनिक-नीलामी की अधिसूचना के ज़रिये प्राप्त किये जाने चाहिए या आमंत्रित निविदाओं को तारीख़, समय और नीलामी की जगह, नीलामी की विषय-वस्तु, तकनीकी विनिर्देश, अनुमानित लागत, बयाना धन जमा, आदि जैसे तमाम सम्बन्धित विवरणों के साथ उस क्षेत्र में व्यापक प्रसार वाले जाने-माने दैनिक समाचार पत्रों में विज्ञापित किया जाना चाहिए। सार्वजनिक नीलामी / सार्वजनिक निविदा के ज़रिये सरकारी अनुबंधों के फ़ैसले के पीछे का मक़सद सार्वजनिक ख़रीद में पारदर्शिता सुनिश्चित करना, सरकारी ख़रीद में अर्थव्यवस्था और दक्षता को अधिकतम करना, निविदा में शामिल होने वाले सभी निविदाकारों के साथ उचित और न्यायसंगत बरताव करना, निविदा भरने वालों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना, सम्बन्धित अधिकारियों द्वारा अनियमितताओं, हस्तक्षेप और भ्रष्ट तौर-तरीक़ों को ख़त्म करना है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत ज़रूरी है।”

अब तक यह बताने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में ऐसा कुछ भी नहीं है,जिससे पता चलता हो कि CSC-SPV ने इस सरकारी काम को हासिल करने के लिए किसी भी निविदा में भाग लिया था। मंत्रालय के कुछ अधिकारियों का यह आरोप भी है कि सीएससी एसपीवी ने आज तक किसी भी निविदा में भाग ही नहीं लिया है।

8 जून को सूचना एवं प्रौद्यौगिकी (IT) मंत्री, रविशंकर प्रसाद और आईटी सचिव, अजय प्रकाश साहनी को भेजे गये एक विस्तृत प्रश्नावली का जवाब इस आलेख के प्रकाशित होने तक नहीं मिला है। उनकी प्रतिक्रिया मिलने के बाद इस लेख के साथ नयी जानकारी साझा की जायेगी।

रवि नायर एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। उनसे ट्विटर @t_d_h_nair पर संपर्क किया जा सकता है।

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

What’s the Mystery Behind CSC SPV Bagging Govt Contracts Worth Thousands of Crores?

CSC e-Governance Services India Limited
CSC SPV
Modi government
Ministry of Electronics and Information Technology
Digital Village Project
data breach

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

आख़िर फ़ायदे में चल रही कंपनियां भी क्यों बेचना चाहती है सरकार?

तिरछी नज़र: ये कहां आ गए हम! यूं ही सिर फिराते फिराते

'KG से लेकर PG तक फ़्री पढ़ाई' : विद्यार्थियों और शिक्षा से जुड़े कार्यकर्ताओं की सभा में उठी मांग

मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?

कोविड मौतों पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर मोदी सरकार का रवैया चिंताजनक

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

ज्ञानवापी विवाद, मोदी सरकार के 8 साल और कांग्रेस का दामन छोड़ते नेता


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License