उत्तराखंड के रुद्रपुर में एक साल से अधिक के संघर्ष के बाद भगवती प्रोडक्ट्स लिमिटेड के श्रमिको की जीत मिली है। औद्योगिक न्यायाधिकरण (Industrial tribunal) ने सारे पक्षों को सुनने के बाद 16 मार्च को यह फैसला दिया है कि भगवती प्रोडक्ट्स लिमिटेड द्वारा 303 श्रमिकों की 27, दिसंबर, 2018 से की गई छंटनी गैरकानूनी है और इसलिए समस्त श्रमिकों की कार्यबहाली सहित इस दौरान का पूरा वेतन दिया जाए।
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह आदेश समस्त 303 श्रमिकों के ऊपर लागू होता है। जिन 144 श्रमिकों को हिसाब लिया जाना प्रबंधन ने बताया था, उन्हें भी सबके समान लाभ मिलेगा।
भगवती प्रोडक्ट्स लिमिटेड के श्रमिक संगठन ने कहा कि आंदोलन के बीच से कुछ साथियों ने हमारा साथ छोड़ दिया था। उसके जो भी कारण रहे हों लेकिन हमारी लड़ाई उन्हें अलग करके नहीं थी, सबके लिए थी। इसलिए जीत सबकी है। उन्होंने इस जीत को सिडकुल के सभी संघर्षशील संगठन, यूनियन, महासंघ व मोर्चा व अन्य लोगों के लगातार सहयोग व समर्थन और सभी मज़दूरों की मजबूत एकता और लगातार संघर्ष का परिणाम बताया है।
पूरा मामला है क्या था?
आपको बता दें कि ये कर्मचारी 27 दिंसबर 2018 से यानी 15 महीने से प्रदर्शन कर रहे थे। कर्मचारियों के मुताबिक 2018 के दिसंबर में क्रिसमस के मौके पर उन्हें दो-तीन दिन की छुट्टी दी गई थी, जिसके बाद मज़दूर अपने काम पर आये तो उन्हें गेट पर एक नोटिस लगा मिला, जिसमें 300 से अधिक कर्मचरियों का नाम लिखा था। बताया गया कि इनकी सेवाएं अब समाप्त कर दी गईं।
अचानक बिना कोई नोटिस के ऐसा फैसला कैसे लिया जा सकता था? इससे सभी कर्मचारी हैरान थे, मैनजमेंट के इस फैसले से काफी गुस्से में भी थे। उन्होंने मैनेजमेंट से इस गैर क़ानूनी छंटनी पर सवाल किया तो कहा गया की फैक्ट्री में अब इतने लोगों का काम नहीं है इसलिए इनको हटाया जा रहा है, जबकि वहाँ काम करने वाले मज़दूरों का कहना है जब वो वहाँ काम कर रहे थे तब भी मज़दूरों से उनकी क्षमता से अधिक काम लिया जाता था। अचानक यह कहना काम नहीं है समझ से परे है।
तब से ही भगवती प्रोडक्ट्स (माइक्रोमैक्स) के मजदूर छंटनी के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे। कंपनी गेट पर रात-दिन का धरना जारी था। इस दौरान मैनेजमैंट ने तमाम तरह की दिक्कतें पैदा की और कई धाराओं में मजदूरों पर केस दर्ज कराया। लेकिन ये मज़दूर नहीं हटे अपना संघर्ष जारी रखा। ज़मीनी लड़ाई के साथ हाईकोर्ट से लेकर औद्योगिक न्यायाधिकरण तक कानूनी लड़ाई भी लड़ते रहे।

कंपनी सरकारी लाभ के बाद भगाना चाहती थी!
कंपनी ने यह दावा किया था कि उत्पादन के कमी के कारण लोगों को निकाला गया था लेकिन बड़ा सवाल था कि सच में उत्पादन में कमी के कारण मज़दूरों की छंटनी हुई? तो इसका जबाव नहीं में मिला, जिसे कोर्ट ने भी माना।
भगवती श्रमिक संगठन के नेता ने इसे सिरे से खरिज करते हैं कि उत्पादन में कमी आई, इसलिए मज़दूरों को निकला गया। उन्होंने बताया कि अगर उत्पादन कम हुआ होता तो भगवती प्रबंधन के दूसरे प्लांट चाहे वो हैदरबाद हो या हरियाणा का भिवानी प्लांट सभी जगह काम चलता रहा, यही नहीं वहां नई भर्ती भी की गई। अगर लोगों की जरूरत नहीं तो नई भर्ती क्यों? यानी कम्पनी के उत्पादन में कमी नहीं आयी।
आगे उन्होंने कहा कि कम्पनी केवल सब्सिडी और टैक्स की रियायतों का लाभ उठाकर कंपनी बंद कर दूसरे राज्य में पलायन कर रही है। दूसरा प्रबंधन नियमित कर्मचारियों को हटाकर केंद्र सरकार द्वार लागू किये गए सस्ते श्रम की नीति अपना रही है। जिसके तहत नियमित मज़दूरों को हटाकर संविदा और नीम कानून के तहत सस्ते श्रमिक रखे जा रहे हैं।
आपको बता दे उत्तरखंड और कई पहाड़ी राज्यों में सरकारों ने नए उद्योगों को स्थपित करने के लिए टैक्स में छूट और अन्य सब्सिडी दी थी जिसकी अवधि अब खत्म हो रही है। इसके बाद ये कम्पनियां दूसरे राज्य में पलायन कर रही हैं।
उच्च न्यायालय ने 90 दिन में निपटारे का दिया था आदेश
भगवती श्रमिक संगठन ने कहा कि सरकार और उसका पूरा अमला मालिकों के पक्ष में खड़ा था , इस संकट के समय मज़दूरों ने उच्च न्यायालय नैनीताल गए की शरण ली थी। उच्च न्यायलय ने प्रमुख सचिव श्रम को विवाद का निपटार करने को कहा था लेकिन उन्होंने एकतरफा मालिकों के हक में फैसला दिया। जिसके बाद मज़दूर दोबारा न्यायलय की शरण में गए। इसके बाद मज़दूरों की मांग पर नैनीताल उच्च न्यायालय ने औद्योगिक न्यायाधिकरण को 90 दिन के भीतर मामले के निपटारे का आदेश दिया था। जिसके बाद लगातार और जल्दी जल्दी सुनवाई हुई और यह आदेश पारित हुआ।
भगवती श्रमिक संगठन के महासचिव दीपक ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि अभी हमने एक बड़ा मोर्चा जीता है। अब हमें अपनी पूरी जंग को जीत में तब्दील करना है। अपने पूरे वेतन के साथ कंपनी में अपनी कार्यबहाली करानी है।