हर जानकार यही कह रहा है कि चुनाव ख़त्म होगा तो वोट की चिंता ख़त्म होगी। वोट की चिंता ख़त्म होगी तो कीमतें अपने आप बढ़ जाएंगी। आम आदमी पर महंगाई कहर बनकर टूटने लगेगी। देखते जाइए आगे-आगे होता है क्या।
रूस दुनिया का सबसे बड़ा दूसरा तेल निर्यातक और तीसरा तेल उत्पादक देश है। रूस से हर रोज तकरीबन 50 लाख बैरल तेल का निर्यात होता है। इसमें से 48% खरीद यूरोप की होती है। तो तकरीबन 42% खरीद एशिया की होती है। रूस और यूक्रेन की जंग की वजह से कच्चे तेल की कीमत 110 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच गई है। यह पिछले सात सालों में सबसे अधिक कीमत है। ओपेक के देशों ने पहले ही समझौता किया है कि वह अधिक कच्चे तेल का उत्पादन नहीं करेंगे। मतलब कीमतें और अधिक बढ़ने वाली हैं। भारत जैसा देश अपनी जरूरतों का तकरीबन 80% कच्चा तेल दूसरे देशों से आयात करता है। जब कच्चे तेल की कीमतें बढ़ेंगी तो पेट्रोल डीजल रसोई गैस बिजली उर्वरक सब महंगा होगा। जब एनर्जी सेक्टर महंगा होगा तो जीवन जीने की लागत महंगी होगी। अब आप पूछेंगे कि कच्चे माल की कीमत तो बढ़ गई है लेकिन कीमतों में इजाफा क्यों नहीं हो रहा है? तो इसका जवाब यह है कि सात मार्च को पांच राज्यों का चुनाव ख़तम होने दीजिए। चुनाव ख़तम होगा तो वोट की चिंता ख़तम होगी। वोट की चिंता ख़तम होगी तो कीमतें अपने आप बढ़ जाएंगी। आम आदमी पर महंगाई कहर बनकर टूटने लगेंगी।
शायद आपको खबर नहीं है कि रूस और यूक्रेन सूरजमुखी तेल के सबसे बड़े उत्पादक हैं। कोरोना और युद्ध के चलते इनकी कीमत भी तेजी से बढ़ रही है। जिसका असर दुनिया भर के बाजारों पर देखा जा रहा है।
15 दिन पहले रिफाइंड जहां 140 रुपए लीटर था तो अब बढ़कर 165 रुपए लीटर हो गया है। सूरजमुखी तेल पहले 140 रुपए था, जो अब 170 रुपए हो गया है। वहीं देसी घी की कीमत पहले 360 रुपए लीटर थी, जो अब 420 रुपए और वनस्पति तेलों के दामों में भी 20 रुपए का इजाफा हुआ है।