आज हमारी सरकार के नुमाइंदे, उसकी ट्रोल आर्मी और हमारा तथाकथित मुख्यधारा का मीडिया नामकरण में इस क़दर माहिर हो गया है कि आंदोलन बाद में होता है, वो उसके लिए एक नाम पहले से तैयार रखते हैं। दिलचस्प है कि आप अगर दलित, पिछड़ों, आदिवासियों, अल्पसंख्यक और महिलाओं की अधिकारों के बात करेंगे तो आप अर्बन नक्सल हैं। आप जनहित, छात्रहित की बात करेंगे तो टुकड़े-टुकड़े गैंग हैं। आप सीएए-एनआरसी विरोधी हैं तो आप देशद्रोही-आतंकवादी या पाकिस्तानी हैं और अगर अब अगर आप किसान हैं या उनके आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं तो आप खालिस्तानी या खालिस्तान के समर्थक हैं।
आप भले ही लेखक, कवि, पत्रकार, समाजसेवी या छात्र-मज़दूर-किसान हों, उनके पास आपके लिए एक नया नाम हमेशा से तैयार है। ताकि आपकी आवाज़ को दबाया जा सके, आपके आंदोलन को बदनाम किया जा सके, आपकी छवि को धूमिल किया जा सके और आपके ऊपर कार्रवाई करना आसान हो सके। हालांकि अब जनता इन सब चालाकियों को समझ रही है।