रेलवे का कहना है कि ट्रेनें नहीं भटकीं। सच ही कहना है, ट्रेनें कहां भटकती हैं, दरअसल हम ही भटक गए हैं। हमने ही ‘साहेब’ को चुना, हमने ही ऐसी सरकार बनाई, जो हमारी आपदा को भी अपने अवसर में बदलने पर आमादा है!
मैं लौटने के इरादे से जा रहा हूँ मगर
सफ़र, सफ़र है, मेरा इंतज़ार मत करना
साहिल सहरी नैनीताली का ये शेर आजकल श्रमिक स्पेशल ट्रेनों पर बिल्कुल फिट बैठ रहा है। जो “जाना था जापान, पहुंच गए चीन...” की तर्ज पर कहीं की कहीं पहुंच रही हैं। नतीजा है कि कोरोना की कौन कहे भूख, प्यास, गर्मी से कई लोगों ने दम तोड़ दिया। 16 मई को गुजरात के सूरत से सीवान के लिए चली ट्रेन 25 मई को पहुंची है।
इस मामले पर रेलवे ने सफाई दी है कि ट्रेनें रास्ता नहीं भटकीं, सम्बंधित ट्रैक पर लोड बढ़ने की वजह से ट्रेनों को अलग-अलग रूट से चलाया गया। ख़ैर कुछ भी हो लेकिन मज़दूर हैरान-परेशान हैं।