तोता, मोर बहुत चुगा चुके, उड़ा चुके, अब साहेब का सामना देश के अन्नदाता किसानों से है...उनका आंदोलन उन्हें बातचीत की मेज़ तक तो खींच कर लाया है। अब आगे देखते हैं क्या हल निकलता है।
कहावत है कि “अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे”, इसी को थोड़ा बदलकर देखा जाए तो इरफ़ान का ये कार्टून बिल्कुल समझ में आ जाता है। जैसे-जैसे किसान आंदोलन मज़बूत होता गया, वैसे-वैसे सरकार को बातचीत की मेज़ पर आना पड़ा या कहिए कि अपने कदम पीछे खींचने पड़े। अब पांच दौर की बातचीत का भले ही कोई ठोस नतीजा न निकला हो लेकिन इतना तो तय है कि सरकार को मानना पड़ा कि उसके कानूनों में कुछ ग़लतियां तो हैं और वह संशोधन को तैयार है। हालांकि किसानों का कहना है कि इन तीनों कानूनों का मूल आधार और मंशा दोनों ही ग़लत हैं इसलिए इन्हें पूरी तरह वापस ली जाए, उसके बाद नए कानूनों की तरफ़ बढ़ा जाए। मतलब अब सरकार को समझ आ गया है कि किसान छिटपुट आश्वासन या मामूली संशोधन से मानने वाले नहीं है। अब किसानों ने 8 दिसंबर को भारत बंद का ऐलान किया है जिसे देशभर में ज़बर्दस्त समर्थन मिल रहा है और सरकार को समझ नहीं आ रहा कि वो क्या करे।