तीन-तीन साल बीत जाने पर भी पेपर देने की तारीख़ नहीं आती। तारीख़ आ जाए तो रिज़ल्ट नहीं आता, रिज़ल्ट आ जाए तो नियुक्ति नहीं होती। कभी पेपर लीक हो जाता है तो कभी कोर्ट में चला जाता है। ऐसे लगता है जैसे महामारी के दौर में सरकारी नौकरियाँ भी बेरोज़गारों से सोशल डिस्टेंसिंग के नियम का पालन कर रही हैं।
देश में नौकरियों का टंटा लगा हुआ है, छात्र इतने तंग आ चुके हैं कि पटरियाँ तक उखाड़ दे रहे हैं, नौकरी का फार्म निकलता है, छात्र फ़ॉर्म भरता है, तैयारी के लिए शहरों में जाकर किराए पर रहता है, जैसे-तैसे काम चलाता है। लेकिन तीन-तीन साल बीत जाने पर भी पेपर की तारीख़ नहीं आती। तारीख़ आ जाए तो रिज़ल्ट नहीं आता। रिज़ल्ट आ जाए तो नियुक्ति नहीं होती। कभी पेपर लीक हो जाता है तो कभी कोर्ट में चला जाता है। कुल मिलाकर ज़िंदगी जीने के लिए एक अदब सरकारी नौकरी नसीब नहीं होती। ऐसे लगता है जैसे कि महामारी के दौर में सरकारी नौकरियाँ भी बेरोज़गारों से सोशल डिस्टेंसिंग के नियम का पालन कर रही हैं। छात्र एक कदम आगे आता है नौकरी दो कदम पीछे चली जाती है।
इधर हरियाणा सरकार, सरकारी नौकरियाँ नहीं दे पाई, तो सोचा प्राइवेट नौकरियों पर ही बिल फाड़ दिया जाए। सरकार क़ानून ले आई कि अब हरियाणा में प्राइवेट नौकरियों में 75% कोटा स्थानीय लोगों के लिए रहेगा, यानी हरियाणा में ज़्यादातर उसे ही प्राइवेट नौकरी मिल सकेगी जो हरियाणा का निवासी होगा। लेकिन सरकार के इस बेतुके फ़ैसले पर हाईकोर्ट ने डंडा चला दिया। अब हरियाणा सरकार चिंता में है कि सरकारी नौकरियाँ तो दे नहीं पाए, न आरक्षण दे पाए, प्राइवेट नौकरियों पर “Thank You Modi Ji” के नाम का प्रचार करवाते, वो भी चांस चला गया… ये दुःख ख़त्म काहे नहीं होता बे…
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