NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
शिक्षा
संस्कृति
पुस्तकें
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
शाहीन बाग़ : सीएए विरोध के बीच बच्चों को मिल रही है इंक़लाबी तालीम
शाहीन बाग़ में हो रहे नागरिकता क़ानून के विरोध ने एक सांस्कृतिक रूप ले लिया है। जिसमें सबसे ज़्यादा तादाद में यहाँ के बच्चे शामिल हैं, जो पेंटिंग, किताबों, कविताओं और गानों के ज़रिये एक इंक़लाबी इतिहास का हिस्सा बन रहे हैं।
सत्यम् तिवारी
13 Jan 2020
Read for revolution Shaheen Bagh
शाहीन बाग़ का 'रीड फ़ॉर रेवोल्यूशन

देश भर में नागरिकता क़ानून का विरोध जारी है। हालांकि सरकार के ऐलान के मुताबिक़ 10 जनवरी से नागरिकता क़ानून यानी सीएए प्रभावशाली हो चुका है, लेकिन इसके बावजूद देश के कई हिस्सों में इस क़ानून को असंवैधानिक क़रार देते हुए लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। इन्हीं विरोध प्रदर्शनों में से एक प्रदर्शन है दिल्ली के शाहीन बाग़ का, जहाँ क़रीब एक महीने से इलाक़े की महिलाओं के नेतृत्व में 24 घंटे इस क़ानून का विरोध हो रहा है।

WhatsApp Image 2020-01-13 at 13.05.38.jpeg

शाहीन बाग़ के प्रदर्शन में एक अनोखी चीज़ है यहाँ बनी बच्चों के लिए एक 'ओपन लाइब्रेरी'। जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों और इलाक़े के युवाओं द्वारा शुरू की गई यह एक अनोखी पहल है जहाँ सड़क के कोने में प्रदर्शन में आ रहे बच्चों के लिए एक ओपन लाइब्रेरी बनाई गई है। चूंकि प्रदर्शन में ज़्यादातर महिलाएं हैं, तो उनके साथ बच्चे भी आ रहे हैं। इस सोच से कि बच्चे इन प्रदर्शनों में इधर-उधर भटकने की जगह थोड़ी तालीम पा सकें, इस ओपन लाइब्रेरी का एहतमाम किया गया है। इसका नाम दिया गया है "इंडिया रीड्स, इंडिया रेसिस्ट्स" यानी "भारत पढ़ता है, भारत विरोध करता है।" इसी को अब 'रीड फ़ॉर रेवोल्यूशन' का भी नाम दे दिया गया है। दो तीन दुकानों के सामने बनाई गई इस लाइब्रेरी में आसपास के इलाक़ों से हर वर्ग के बच्चे आते हैं, पेंटिंग करते हैं, कहानियाँ सुनते-पढ़ते हैं, गाने गाते हैं, कविताएँ सुनते हैं। बच्चों के लिए रोज़ अलग-अलग तालीम के तरीक़ों के साथ दिल्ली के अलग अलग क्षेत्र से कलाकार आते हैं, और इन बच्चों को कुछ सिखा कर जाते हैं। ग़ौरतलब है कि अभी इलाक़े में स्कूल बंद हैं, और बच्चों की पढ़ाई का नुक़सान हो रहा है, इसी को सोचते हुए यह जगह बनाई गई है जहाँ बच्चे चीज़ों को, कला को जान सकें और समझ सकें।

 

इन बच्चों में ज़्यादातर की उम्र 15 साल से कम है। यही वो उम्र होती है, जब शिक्षा और शख़्सियत दोनों के बनने-सँवरने का वक़्त होता है। ऐसे में सरकार की यह कैसी योजना है, जिसकी वजह से इन बच्चों को रात में, शोर में, तालीम पाने पर मजबूर होना पड़ रहा है, यह भी एक बड़ा सवाल है। इसपर विचार कीजिये।

WhatsApp Image 2020-01-13 at 13.05.37 (1).jpeg

कहाँ से शुरू हुआ रीड फ़ॉर रेवोल्यूशन?

जामिया में 13 दिसम्बर को हुई हिंसा और 15 दिसम्बर से शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों में सबसे पहले ऐसे स्टॉल लगाने शुरू किए गए थे। इस जगह पर लोग किताबें लेकर आते थे, साथ बैठ कर पढ़ते थे और विचार साझा करते थे। विरोध करने का यह एक और तरीक़ा था, जिसका मक़सद शायद यह दिखाना ही था कि तालीम जारी रहेगी, और विरोध भी जारी रहेगा। इसी सोच को आगे ले जाते हुए 1 जनवरी से शाहीन बाग़ में इस ओपन लाइब्रेरी की शुरुआत की गई। इस पहल के आयोजकों में से एक हैं उसामा ज़ाकिर। उसामा जामिया के रिसर्च स्कौलर हैं। इस ओपन लाइब्रेरी के बारे में वो बताते हैं, कि इसका मक़सद बच्चों में सरकार के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाना नहीं है, बल्कि उनकी कलात्मत्क प्रतिभा को सँवारने की कोशिश करना है। उसामा ने कहा कि प्रदर्शन में अपने माँ-बाप के साथ आए बच्चों को सीएए एनआरसी के बारे में जानकारी नहीं है, ऐसे में उन्हें नारेबाज़ी में ना लगाकर उनको देश और समाज के बारे में जागरुक करना ही 'रीड फ़ॉर रेवोल्यूशन' का मक़सद है।

WhatsApp Image 2020-01-13 at 13.05.38 (4).jpeg

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए उसामा ने कहा, “हमने यहाँ पर संस्कृति, धर्म, ज़िंदगी, साहित्य अलग-अलग क्षेत्र की किताबें हैं। हमारे यहाँ 5 साल से लेकर 70 साल तक के लोग आते हैं। जब यह प्रदर्शन ख़त्म हो जाएगा, तो इन बच्चों के पास नारों के अलावा कुछ नहीं बचेगा, इसलिए हमने ये तरक़ीब निकाली कि ऐसा कुछ किया जाए, जिसमें बच्चों को शामिल किया जाए। हम यहाँ रोज़ बच्चों को एक थीम देते हैं, जिस पर बच्चे पेंटिंग बनाते हैं। इन बच्चों ने जेएनयू हिंसा, ऑस्ट्रेलिया के जंगलों की आग, शाहीन बाग़, सब पर पेंटिंग बनाई हैं। जब हमने बच्चों को ऑस्ट्रेलिया के जंगलों की आग के बारे में बताया, दसियों बच्चे रोने लगे।"

WhatsApp Image 2020-01-13 at 14.26.03.jpeg

बच्चों ने जो हर विषयों पर पेंटिंग बनाई हैं, पोस्टर बनाए हैं, उनसे दिखता है कि उनके पास कितना कुछ कहने और बताने को मौजूद है। 'रीड फ़ॉर  रेवोल्यूशन' जैसी ख़ूबसूरत पहल में शाहीन बाग़ इलाक़े के अलावा, पड़ोसी इलाक़ों और दिल्ली-एनसीआर के अलग अलग इलाक़ों के बच्चे, युवा शामिल होते हैं। उसामा बताते हैं कि इस स्टॉल पर एक 70 साल के बुज़ुर्ग रोज़ आते हैं, और बैठ कर किताब पढ़ते हैं। सांस्कृतिक विरोध या कल्चरल रेसिस्टेंस का ये नज़ारा जो शाहीन बाग़ में दिख रहा है, वो ज़ाहिर तौर पर एक ख़ूबसूरत और सकारात्मक पहल है।

10 साल की अफ़रा अपनी अम्मी-अब्बू के साथ हर रोज़ शाहीन बाग़ के प्रदर्शन में शामिल होने आती हैं। वो 1 तारीख़ से रोज़ 'रीड फ़ॉर  रेवोल्यूशन' के स्टॉल पर आ रही हैं। अफ़रा बताती हैं कि उनकी अम्मी ने कहा है कि जब तक सीएए-एनआरसी-एनपीआर की योजनाएँ वापस नहीं ली जातीं, वो लगातार यहाँ आती रहेंगी। यहाँ आ कर पढ़ने के बारे में अफ़रा ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "हमें यहाँ बहुत अच्छा लगता है। हम देश के बारे में पेंटिंग बनाते हैं, पोस्टर बनाते हैं। हमने वंदे मातरम गाया है, उसके साथ और भी गाने गाये हैं। 15 तारीख़ से स्कूल खुलेंगे, उसके बाद भी हम यहाँ आते रहेंगे।"

बच्चों के अलावा यहाँ आने वाले युवाओं को संविधान की प्रस्तावना, देश की धर्मनिरपेक्षता के बारे में बताया जाता है, उनसे बातें की जाती हैं। उसामा ने बताया कि युवाओं को प्रस्तावना और सीएए के ड्राफ़्ट को एक साथ पढ़ने को कहा जाता है, और उनसे कहा जाता है कि इसमें फ़र्क़ पता करें।

12वीं क्लास में पढ़ने वाली शान्या ने बताया कि वो क़रीब एक महीने से इस प्रदर्शन में आ रही हैं। उन्होंने कहा, ""हम यहाँ आते हैं, बाहर से आए लोगों से बात करते हैं उसमें बहुत मज़ा आता है। यह हमारे लिए ऐतिहासिक लम्हा है। हम चाहते हैं कि यह तब तक चलता रहे जब तक सरकार हमारी माँगें नहीं मान लेती हैं।"

 

यह बात लिखनी बेहद ज़रूरी है कि इस जगह पर लोगों के मन में सीएए-एनआरसी-मोदी सरकार के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने का काम नहीं हो रहा है, बल्कि कला और संस्कृति के माध्यम से उनके मन में देश के विचार, देश की भावना और संविधान की प्रस्तावना की समझ को बढ़ाया जा रहा है।

रीड फ़ॉर रेवोल्यूशन' की यह सकारात्मक पहल उन सभी के मुँह पर एक मीठा सा तमाचा साबित हो रहा है, जो इस विरोध प्रदर्शनों को नफ़रत की निगाहों से देखने का कर रहे हैं।

शाहीन बाग़ के बच्चे ना चाहते हुए भी एक इतिहास का हिस्सा बन रहे हैं। यह प्रदर्शन एक मिसाल है कि संस्कृति को साथ लेकर, शायरी और साहित्य की बात करते हुए विरोध कैसे किया जाता है। यह बच्चे इस वक़्त को ता-ज़िंदगी याद रखेंगे और उनकी शख़्सियत में इस इंक़लाबी तालीम का असर ज़रूर दिखेगा।

लेकिन दूसरी तरफ़ यह सवाल और चिंता भी सामने आती है कि बच्चों को सड़कों पर, रातों को पढ़ने पर क्यों मजबूर होना पड़ रहा है। क्यों वो एक साधारण ज़िंदगी नहीं जी रहे हैं, क्यों सरकारें इतनी बेबस और कठोर हैं कि सबसे युवा देश के बच्चे इस तरह की तालीम पाने पर मजबूर हैं।

शाहीन बाग़ के प्रदर्शन की तरह ही गया के शांति बाग़, दिल्ली के जाफ़राबाद जैसी जगहों पर भी महिलाओं के नेतृत्व में प्रदर्शन हो रहे हैं। 

नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ हो रहे इस विरोध का अंत क्या होगा, यह किसी को मालूम नहीं है। लेकिन एक बात जो ज़ाहिर तौर पर सच है, वो यह है कि जिस दिन इन प्रदर्शनों की तारीख़ मुरत्तब की जाएगी, तब 'रीड फ़ॉर रेवोल्यूशन' के इन युवाओं का नाम ज़रूर शामिल किया जाएगा। यह ज़रूर लिखा जाएगा कि एक दौर में जब सरकार अपने हर विरोधी को देशद्रोही और आतंकवादी कह रही थी, उस वक़्त ये लोग बच्चों को साथ लेकर एक तालीमी इंक़लाब को जन्म दे रहे थे।

‘रीड फ़ॉर रेवोल्यूशन' यह काम बग़ैर किसी आर्थिक मदद के कर रहा है। आप चाहें तो यहाँ जा कर हर तरह की किताबें डोनेट कीजिये, और बच्चों को जागरुक करने में इनकी मदद कीजिये।

Shaheen Bagh
Shaheen Bagh read for revolution
shaheen bagh anti CAA protests
Cultural Resistance
jamia millia islamiya
protest with art
constitution
Constitution of India
children on CAA protests

Related Stories

विचारों की लड़ाई: पीतल से बना अंबेडकर सिक्का बनाम लोहे से बना स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी

शाहीन बाग से खरगोन : मुस्लिम महिलाओं का शांतिपूर्ण संघर्ष !

अगर मामला कोर्ट में है, तब क्या उसके विरोध का अधिकार खत्म हो जाता है? 

यादें हमारा पीछा नहीं छोड़तीं... छोड़ना भी नहीं चाहिए

जय किसान: आंदोलन के 100 दिन

गणतंत्र पर काबिज़ होता सर्वसत्तावाद बनाम जन-गण का गणतंत्र

महिला किसान दिवस: खेत से लेकर सड़क तक आवाज़ बुलंद करती महिलाएं

2020 : सरकार के दमन के बावजूद जन आंदोलनों का साल

2020: लोकतंत्र और संविधान पर हमले और प्रतिरोध का साल

सिर्फ़ दादी बिल्क़ीस ही नहीं, शाहीन बाग़ आंदोलन की सभी औरतें प्रभावशाली हैं!


बाकी खबरें

  • padtal dunia ki
    न्यूज़क्लिक टीम
    कोलंबिया में लाल को बढ़त, यूक्रेन-रूस युद्ध में कौन डाल रहा बारूद
    31 May 2022
    पड़ताल दुनिया भर की' में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने लातिन अमेरिका के देश कोलंबिया में चुनावों में वाम दल के नेता गुस्तावो पेत्रो को मिली बढ़त के असर के बारे में न्यूज़क्लिक के प्रधान संपादक प्रबीर…
  • मुकुंद झा
    छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"
    31 May 2022
    एनईपी 2020 के विरोध में आज दिल्ली में छात्र संसद हुई जिसमें 15 राज्यों के विभिन्न 25 विश्वविद्यालयों के छात्र शामिल हुए। इस संसद को छात्र नेताओं के अलावा शिक्षकों और राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी…
  • abhisar sharma
    न्यूज़क्लिक टीम
    सरकारी एजेंसियाँ सिर्फ विपक्ष पर हमलावर क्यों, मोदी जी?
    31 May 2022
    आज अभिसार शर्मा बता रहे हैं के सरकारी एजेंसियों ,मसलन प्रवर्तन निदेशालय , इनकम टैक्स और सीबीआई सिर्फ विपक्ष से जुड़े राजनेताओं और व्यापारियों पर ही कार्रवाही क्यों करते हैं या गिरफ्तार करते हैं। और ये…
  • रवि शंकर दुबे
    भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बैंक है मुसलमान?... संसद भेजने से करती है परहेज़
    31 May 2022
    अटल से लेकर मोदी सरकार तक... सदन के भीतर मुसलमानों की संख्या बताती है कि भाजपा ने इस समुदाय का सिर्फ वोटबैंक की तरह इस्तेमाल किया है।   
  • विजय विनीत
    ज्ञानवापी सर्वे का वीडियो लीक होने से पेचीदा हुआ मामला, अदालत ने हिन्दू पक्ष को सौंपी गई सीडी वापस लेने से किया इनकार
    31 May 2022
    अदालत ने 30 मई की शाम सभी महिला वादकारियों को सर्वे की रिपोर्ट के साथ वीडियो की सीडी सील लिफाफे में सौंप दी थी। महिलाओं ने अदालत में यह अंडरटेकिंग दी थी कि वो सर्वे से संबंधित फोटो-वीडियो कहीं…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License