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'व्यापार युद्ध' को रोकने के लिए चीन-अमेरिका में सहमति बनी 
व्यापार युद्ध का स्थगन “चरण एक” सौदे के साथ हुआ है जिसमें तकनीकी हस्तांतरण के लिए बौद्धिक संपदा अधिकार जैसे विषयों पर कुल नौ अध्याय शामिल हैं। 
ट्राईकोंटिनेंटल : सामाजिक शोध संस्थान, विजय प्रसाद
17 Jan 2020
'व्यापार युद्ध'
यू यूहान, हम बेहतर हो जाएंगे, 1995

बुधवार 15 जनवरी को चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका अपने व्यापार युद्ध को स्थगित करने के लिए सहमत हो गए। फरवरी 2018 से संयुक्त राज्य अमेरिका ने अमेरिकी बाजार में प्रवेश करने वाली चीनी वस्तुओं पर टैरिफ लगाना शुरू कर दिया और चीन ने इसकी जवाबी कार्रवाई भी की। “जैसे को तैसा” का यह खेल लगभग दो वर्षों तक चला, जिसके कारण वैश्विक मूल्य श्रृंखला में बड़े पैमाने पर व्यवधान पैदा हुआ। अक्टूबर 2019 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के जी-20 निगरानी नोट ने बताया कि संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच एल्यूमीनियम, स्टील, सोयाबीन और कार जैसे वस्तुओं पर शुल्क की वजह से वैश्विक जीडीपी में 0.8% की गिरावट आई है। चीनी 5G तकनीक पर - और टेक कम्पनी हुवाई (Huawei) पर - किए जा रहे पश्चिमी हमले चीन पर दबाव बनाने का ही पैंतरा है ताकि चीन अमेरिका के आगे घुटने टेक दे। लेकिन चीन नहीं झुका। “चरण एक” सौदे के प्रस्ताव के रूप में, अमेरिका के कोषा-विभाग ने चीन को 'मुद्रा नियंत्रक’ कहना बंद कर दिया है, जो कि दशकों से चीन के लिए परेशानी का सबब बना हुआ था।

व्यापार युद्ध का निलंबन “चरण एक” सौदे के साथ हुआ है जिसमें तकनीकी हस्तांतरण के लिए बौद्धिक संपदा अधिकार जैसे विषयों पर कुल नौ अध्याय शामिल हैं। यह बातचीत और टकराव की लंबे समय तक जारी रहने वाली एक सतत प्रक्रिया में मात्र पहला चरण है। यदि “चरण एक” अच्छी तरह से चलता है, और यदि कार्यान्वयन और संवाद तंत्र ठीक से काम करते रहे, तो ही ये दोनों देश “चरण दो” की ओर बढ़ेंगे। चीनी राजनयिकों का कहना है कि वे फरवरी 2018 में व्यापार युद्ध शुरू होने से पहले के समय में तत्काल वापसी की उम्मीद नहीं करते हैं।

इस संभावित व्यापार सौदे के समाचार के चलते अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने चीन पर किए अपने 2020 के विकास पूर्वानुमान को संशोधित किया और विकास दर को 5.8% से 6% तक बढ़ा दिया है। अमेरिकी कोष सचिव स्टीवन म्नूचिन ने कहा कि संयुक्त राज्य की जीडीपी संख्या 2020 में 2.5% तक बढ़ जाएगी (हालांकि आईएमएफ संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए 1.9% जीडीपी के अपने पूर्वानुमान पर क़ायम है)।

वैश्विक जीडीपी की 2020 के लिए अनुमानित 2.5% विकास दर में ऊपर की ओर संशोधन किए जाने की संभावना बन सकती है, लेकिन गंभीर वैश्विक मंदी की भविष्यवाणियां भी बरकरार हैं; 2019 की चौथी तिमाही के लिए डेलॉयट के सीएफओ सिग्नल्स की माने तो अमेरिकी कंपनियों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में आने वाली मंदी नहीं बल्कि गिरावट की प्रत्याशा में निवेश करना रोक दिया है। अमेरिकी कंपनियों को फरवरी 2018 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा शुरू किए गए व्यापार युद्ध के परिणामस्वरूप तकरीबन 4600 करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ है। व्हाइट हाउस पर अमेरिकी कम्पनियों का दबाव व्यापार युद्ध में अपनी 'जीत' साबित  करने की ट्रम्प की चुनावी जरूरत का परस्पर विरोध है। 2018 की चौथी तिमाही में चीन की आर्थिक विकास दर 1990 के बाद की सबसे धीमी गति पर पहुंच गयी थी, यही वजह है कि चीन फरवरी 2018 से ही ख़ास मुद्दों पर चर्चा  करने को तैयार था।

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शि गूरोई, यांग्त्ज़ी नदी, 2013

ट्राईकोंटिनेंटल : सामाजिक शोध संस्थान के डोजियर नं. 24 —द वर्ल्ड ओस्सिलेट्स बिटवीन क्राइसिस एंड प्रोटेस्ट्स— में द्विध्रुवीय विश्व व्यवस्था पर एक महत्वपूर्ण खंड है। यह व्यापक रूप से मान्य है कि एक ओर 2003 के इराक पर अवैध हमले और 2007-08 के विश्व वित्तीय संकट के बाद से अमेरिका की शक्ति घटी है; और दूसरी तरफ़ चीन की अर्थव्यवस्था में तेज़ी से हो रहे विकास व विश्व पटल पर चीन के बढ़ते महत्व को भी नकारा नहीं जा सकता है। एक दशक पहले, जब चीन और रूस ब्रिक्स (BRICS) बनाने के लिए ब्राजील, भारत और दक्षिण अफ्रीका के साथ जुड़े, तब ऐसा लगने लगा था कि विश्व-वास्तुकला अमेरिका व उसके सहयोगियों की अमेरिकी एकध्रुवीयता से बहुपक्षीयता में बदल रही है; लेकिन, ब्राजील और चीन जैसे देशों में गहराते संकट के मद्देनज़र और सिंघुआ यूनिवर्सिटी (बीजिंग) के अन्तर्राष्ट्रीय संबंध संस्थान के दृष्टिकोण के हिसाब से नई विश्व-वास्तुकला अमेरिका और चीन के रूप में दो ध्रूवों की द्विध्रुवीयता पर आधारित होगी।

1978 में शुरू हुए सुधार युग के बाद से चीन की विकास दर लगातार बनी हुई है। इसे समझने-समझाने की कोशिश में एक विशाल साहित्य रचा गया है जिसमें से कुछ केवल आंशिक रूप से व्याख्यात्मक हैं, लेकिन अधिकांश रूढ़ियों से भरा पड़ा है। सिंघुआ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वांग हुई का सुझाव है  कि चीन का नीतिगत ढांचा नवउदारवादी नीतियों से नहीं बल्कि, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की संप्रभुता के प्रति प्रतिबद्धता, क्रांतिकारी दौर के शुरुआती दशकों में स्वास्थ्य और शिक्षा में की गई अपार उन्नति, उस दौर की समाजवादी वस्तु अर्थव्यवस्था के कारण बढ़ी चीन की अर्थव्यवस्था, देश के भूमि अधिकारों को बदलने के लिए ग्रामीण इलाकों के निरंतर संघर्षों और कम्युनिस्टों के गहरे उपयोगितावाद ('पत्थरों को महसूस करके ही नदी को पार करो’) से उपजा है। प्रोफेसर बाजारवाद के तनावों से चीन में नए - और खतरनाक - अंतर्विरोधों के उद्भव की आशंका भी जताते हैं। इन सब अंतर्विरोधों में संयुक्त राज्य अमेरिका का ज़ाहिर ख़तरा भी शामिल है।

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झांग शिगांग, ब्लडलाइन - बिग फैमिली नं.4, 1995

संयुक्त राज्य अमेरिका जिसे प्रभुत्व की आदत है उसने चीन की बढ़ती वैश्विक भूमिका को प्रबंधित करने और रोकने की पूरी कोशिश की। चीन को प्रबंधित करने का मतलब है उसे धमका कर अमेरिकी आर्थिक हितों के अधीन करना: वाशिंगटन ने बीजिंग पर मुद्रा के हेरफ़ेर का आरोप लगाकर चीन को अपनी मुद्रा संशोधित करने के लिए उकसाया जिससे संयुक्त राज्य अमेरिका को लाभ होता; पर ऐसा हुआ नहीं और ऐसा न होना इस बात का संकेत है कि चीन अमेरिकी प्राधिकरण के सामने नहीं झुकेगा। मुद्रा के हेरफ़ेर के आरोपों के तुरंत बाद ये दावा किया गया कि चीन ने ज़बरन प्रौद्योगिकी हस्तांतरण कराए, बौद्धिक संपदा की चोरी की, वित्तीय सेवाओं तक पहुंच पर रोक लगा दी और चीन अपनी औद्योगिक सब्सिडी में कटौती भी नहीं करेगा। पिछले एक दशक में प्रत्येक अमेरिकी राष्ट्रपति - जॉर्ज डब्ल्यू बुश, बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन के खिलाफ अपने आरोपों को लगातार बढ़ाया है और चीन को ऐसे चित्रित किया है कि जैसे उसने सारी तरक़्क़ी धोखे से ही पायी है।

जब चीन ने अमेरिका की मांगों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और जब उसने अपनी आर्थिक परियोजना— बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव— को विकसित करना जारी रखा तब संयुक्त राज्य अमेरिका ने कई राजनीतिक और सैन्य हथकंडों— जिनमें से कुछ फुड़ान विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन संस्थान के डीन वू सिन्बोसे द्वारा विकसित  किए गए हैं— उससे चीन को डराना शुरू किया।

  1. इंडो-पैसिफ़िक रणनीति:— 2017 में संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत ने मिल कर चीन के (यूरेशिया की भूमि पर) बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव और (हिंद महासागर में) स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स इनिशटिव के खिलाफ ‘इंडो-पैसिफ़िक' रणनीति तैयार करनी शुरू की। जून 2019 में अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा जारी किए गए पहले इंडो-पैसिफ़िक रणनीति दस्तावेज में कहा गया है कि चीन 'सैन्य आधुनिकीकरण के द्वारा, अभियानों/कार्यवाइयों को प्रभावित करके और लूट के अर्थशास्त्र के इस्तेमाल से अन्य देशों को बाध्य कर क्षेत्र को अपने लाभ के लिए पुनः संगठित करना चाहता है। संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत - जापान और अन्य छोटे देशों के साथ मिल कर- चीन के महाद्वीपीय और वैश्विक शक्ति के रूप में उद्भव को रोकने के लिए एक गुट बनाने में जुटे हुए हैं। यह कोई विडंबना नहीं है कि अमेरिकी रक्षा विभाग अभियानों/कार्यवाइयों को प्रभावित करने या लूट के अर्थशास्त्र के इस्तेमाल — जो की सही मायनों में इंडो-पैसिफिक रणनीति सहित अमेरिकी नीतियां हैं— के बारे में शिकायत कर रहा है।
  2. ताइवान का उपयोग:— इंडो-पैसिफ़िक दस्तावेज ताइवान की —अमेरिकी रणनीति में एक आवश्यक स्तंभ के रूप में— रक्षा को बढ़ावा देता है। चीन ने लंबे समय से ताइवान के कूटनीतिक अलगाव और चीन में इसके अंतिम समावेश पर जोर दिया है। वाशिंगटन में ताइवान का दूतावास न होने के कारण 1971 से ताइवान में उत्तर अमेरिकी मामलों के लिए एक समन्वय परिषद और ताइपे आर्थिक और सांस्कृतिक प्रतिनिधि कार्यालय हैं; ट्रम्प ने इन्हें बदल कर ताइवान काउंसिल फॉर यूएस अफ़ेयर्स कर दिया और इससे बीजिंग नाराज़ है। ट्रम्प और उनके अधिकारी न सिर्फ़ यूएस-ताइवान संबंधों को बढ़ाना चाहते हैं; बल्कि अमेरिका ने ताइवान के F-16 विमानों को बेचा है और जनवरी 2020 के राष्ट्रपति चुनावों में डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के त्साई इंग-वेन के पुन: चुनाव का समर्थन कर चीन से ताइवान की स्वतंत्रता का दावा भी किया है। 

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लियू बोलिन, न्यूयॉर्क के नंबर 9- गन रैक में छिपे हुए, 2013

  1. हांगकांग और झिंजियांग:— अमेरिकी रक्षा विभाग के इंडो-पैसिफ़िक दस्तावेज में कहा गया है कि अमेरिका - और भारत - चीन में मुस्लिम आबादी के भाग्य पर 'गहरी चिंता' व्यक्त करते हैं; और ये भी कि अमेरिका हांगकांग में विरोध आंदोलन के साथ है। अमेरिका या भारत के द्वारा चीनी मुसलमानों के बारे में चिंता जताना विश्वसनीय नहीं लगता क्यूंकि एक ओर ट्रम्प का मुस्लिम प्रतिबंध मुस्लिमों के बारे में उसके अपने दृष्टिकोण को परिभाषित करता है और दूसरी ओर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में संचालित नागरिकता और शरणार्थी नीति स्पष्ट रूप से मुस्लिम विरोधी है। संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगी चीन पर दबाव बनाने के लिए हांगकांग और झिंजियांग मामलों का उपयोग कर रहे हैं; हांगकांग और शिनजियांग के लोग भ्रम में हैं अगर वे मानते हैं कि अमेरिका वास्तव में लोकतंत्र और मुसलमानों की परवाह करता है।

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टीबीटी: तंजम रेलवे

1965 में, पूर्वी अफ्रीका के राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलनों और सरकारों के आग्रह पर, चीनी जनवादी गणराज्य ने उनके साथ तंजम रेलवे या ग्रेट उहुरू रेलवे का निर्माण-कार्य शुरू किया। इस रेलवे ने ज़ाम्बिया को अलग करने वाली और तंजानिया को महाद्वीप के अंदरूनी हिस्से से अलग रखने वाली पुरानी औपनिवेशिक सीमाओं को तोड़ दिया। माओ ने तंजानिया के जूलियस न्येरे से कहा था कि - चीन की अपनी गरीबी के बावजूद - एक राष्ट्रीय मुक्ति परियोजना के रूप में चीनी क्रांति, महाद्वीप में सबसे लंबे रेलमार्ग को बनाने के लिए अफ्रीका में अपने साथियों की सहायता करने के लिए ‘बाध्य' थी। और यही उन्होंने किया भी।

  1. अफ्रीका में चीन:— पिछले एक दशक से अमेरिका और यूरोप शिकायत कर रहे हैं कि चीन अफ्रीका में एक नई औपनिवेशिक शक्ति के रूप में उभर रहा है। ये सच है कि अफ्रीका में चीनी निवेश बहुत तेज़ी से बढ़ा है, लेकिन अधिकांश देशों में आज भी मुख्य आर्थिक साझेदार पुराने औपनिवेशिक प्रतिद्वंद्वी ही हैं । बहरहाल, औपनिवेशिक शक्ति के रूप में चीन के उभरने के कथन में सच्चाई नहीं है, बल्कि इस बात का उपयोग एक ख़ास मक़सद —ग्लोबल साउथ में चीन की व्यावसायिक रणनीति व अमेरिका व उसके सहयोगियों के आधिपत्य के ख़िलाफ़ चीन की चुनौती को कमज़ोर करने— को साधने के लिए किया जा रहा है। 2013 की मानव विकास रिपोर्ट  में चीन द्वारा अफ़्रीका में की जा रही वास्तविक कार्यवाइयों का विस्तृत वर्णन है: चीन अफ्रीकी देशों में परिधान और कपड़ा क्षेत्रों को आधुनिक बनाने के लिए तरजीही ऋण और प्रशिक्षण कार्यक्रमों को स्थापित कर रहा है; चीन ने अपने चमड़े जैसे परिपक्व उद्योगों को अफ्रीका में सामग्री शृंखलाओं के पास में स्थापित होने व अपनी दूरसंचार, फार्मास्यूटिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स व  निर्माण-क्षेत्र जैसी आधुनिक कंपनियों को अफ्रीकी व्यवसायों के साथ संयुक्त उद्यम में प्रवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया है। कुछ साल पहले, मैंने तंजानिया के पूर्व विदेश मंत्री इब्राहिम कडुमा से पूछा था कि वे अफ्रीका में चीनी वाणिज्यिक हितों के बारे में क्या सोचते हैं। उन्होंने कहा कि ‘अफ्रीकी राज्यों को अपने रास्तों का स्वयं आकलन करने की जरूरत है’, उन्हें पश्चिमी मामलों से प्रेरित/संचालित होने की ज़रूरत नहीं है।

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टा मेन, बर्फ़, 2016

फरवरी 2018 से अमेरिका और चीन द्वारा स्थापित किए गए रणनीतिक आर्थिक वार्ता सहित विभिन्न प्रकार के विवाद सुलझाने वाले तंत्र काम करने में विफल रहे हैं। हाल में हुआ 'चरण एक' सौदा चर्चा और बहस के लिए एक तरफ़ नए मंच बनाता है और दूसरी तरफ़ इस व्यापार युद्ध से उत्पन्न अराजकता से निपटने का रास्ता प्रदान करता है। लेकिन यह समझौता केवल एक संघर्ष विराम है न कि शांति संधि। प्रतिद्वंद्व जारी रहेंगे और अस्थिरता बनी रहेगी। सिंघुआ विश्वविद्यालय के विद्वानों ने लिखा है कि 'अराजकता और अव्यवस्था’ ही आगे का रास्ता होगा।

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