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भारत
राजनीति
बुरे दौर में प्रतियोगी परीक्षाएं, लापरवाह आयोग, सोती सरकारें और बर्बाद होते लाखों अरमान
प्रतिवर्ष घटती 'वेकैंसी' और बढ़ती बेरोज़गारी दर की दोहरी मार झेलते छात्रों के अरमानों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। चयन आयोगों के गैरज़िम्मेदाराना रवैये के कारण परीक्षा की प्रक्रिया पूरी होने में सालों लग जाते हैं। एक विश्लेषण-
अभिषेक पाठक
14 Oct 2020
/Competitive-exams-in-bad-times-careless-commissions-sleeping-governments-and-ruining-millions

हमारे देश के युवाओं में बेहद प्रचलित 'सरकारी नौकरी' के लिए उम्मीदवारों का एक बड़ा वर्ग निम्न व मध्यम परिवार के छात्रों का होता है जिनके पास विरासत में कुछ खास नहीं होता। कठोर परिश्रम, लगन और इच्छाशक्ति ही इनकी पूंजी होती है जो इन्हें सपने देखने की प्रेरणा देती है और वे सरकारी नौकरी में एक अच्छी आय, बेहतर जीवन और सुरक्षित भविष्य को तलाशते हैं। एक बेहतर ज़िंदगी की उम्मीद में पूरी संकल्प शक्ति के साथ देशभर में प्रतिवर्ष लाखों छात्र विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में खुद को झोंकतें हैं लेकिन देश मे प्रतियोगी परीक्षाओं के बद से बदतर होते हालात ने युवा देश की इस युवा पीढ़ी के सपनों को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

प्रतिवर्ष घटती 'वेकैंसी' और बढ़ती बेरोज़गारी दर की दोहरी मार झेलते छात्रों के अरमानों के साथ खिलवाड़ किया जाता है। चयन आयोगों के गैरज़िम्मेदाराना रवैये के कारण परीक्षा की प्रक्रिया पूरी होने में सालों लग जाते हैं कई बार इतना कि वन-डे एग्जाम को 3 साल का स्नातक पाठ्यक्रम बना दिया जाता है। इन्ही आयोगों में से एक है 'कर्मचारी चयन आयोग' (SSC), देखिये एक विश्लेषात्मक तस्वीर-

 कर्मचारी चयन आयोग (SSC) केंद्र सरकार के अधीन एक प्रमुख भर्ती आयोग है जो सीजीएल (स्नातक स्तर), सीएचएसएल(12वीं स्तर), एमटीएस (मेट्रिक स्तर), स्टेनोग्राफर और जीडी जैसी विभिन्न परीक्षाओं के माध्यम से भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों में रिक्त पदों के लिए कर्मचारियों का चयन करता है।

बीते कुछ वर्षों से एसएससी की कार्यप्रणाली पर छात्रों का सवालिया निशान है। पिछले 4-5 वर्षों की परीक्षा प्रणाली का तथ्यात्मक अवलोकन करने पर ये पता चलता है एसएससी समयबद्ध परीक्षा कराने के लिए बिल्कुल भी गम्भीर नहीं है। छात्रों के जीवन के कई साल परीक्षा परिणाम और जॉइनिंग के इंतजार में बीत रहे हैं और आयोग को इससे कुछ फर्क नही पड़ता। कुछ तथ्यों के माध्यम से इसे समझते हैं-

एसएससी द्वारा कराई जाने वाली परीक्षाओं में से सीजीएल (कंबाइंड ग्रेजुएट लेवल) छात्रों के बीच बेहद लोकप्रिय है। सीजीएल परीक्षा के माध्यम से इनकम टैक्स डिपार्टमेंट, केंद्रीय सचिवालय, सीबीआई, कस्टम, एक्ससाइज और प्रवर्तन निदेशालय जैसे प्रमुख विभागों एवं मंत्रालयों में ग्रुप-बी और ग्रुप-सी के पदों पर प्रतिभागियों का चयन किया जाता है। एसएससी के द्वारा कराई गई सीजीएल 2017 परीक्षा के कालक्रम पर एक नज़र डालें-

एसएससी के द्वारा सीजीएल 2017 की परीक्षा के लिए 16 मई 2017 को नोटिफिकेशन निकाला गया। इसके दूसरे चरण की परीक्षा के दौरान प्रश्नपत्र और आंसरशीट लीक होने की खबरे सामने आयीं। परीक्षा-प्रक्रिया में विलंब झेलते छात्रों के सामने जब धांधली की खबरे आयी तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर था जिसके बाद हज़ारों आक्रोशित छात्रों ने एसएससी मुख्यालय के सामने निष्पक्ष और समयबद्ध परीक्षा प्रणाली जैसे मुद्दों को लेकर कई दिनों तक आंदोलन किया।

छात्रों के इस आंदोलन ने पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया जिसके बाद इस मामले में सीबीआई जांच की सिफारिश की भी की गयी। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच द्वारा इस मामले में कई गिरफ्तारियां भी की गयी और एक बेहद लंबे प्रकरण के बाद 15 नवंबर 2019 को इस परीक्षा का फाइनल रिजल्ट जारी किया गया।

ध्यान दे नोटिफिकेशन जारी होने से लेकर फाइनल रिजल्ट तक परीक्षा के प्रोसेस में लगभग 2 साल 6 महीने का समय लगा और फाइनल रिजल्ट के बाद भी जॉइनिंग आने में औसतन 5-8 महीनों का वक़्त लगता है यानी नोटिफिकेशन जारी होने से जॉइनिंग तक 3 साल का वक़्त लग रहा है। 3 साल में तो एक स्नातक पाठ्यक्रम भी पूरा हो जाता है।

 SSC 1.PNG

आयोग का ये ढुलमुल रवैया यहीं नही थमता। सीजीएल 2018 की परीक्षा का नोटिफिकेशन 5 मई 2018 को जारी किया गया और नोटिफिकेशन जारी होने से आजतक करीब 2.5 साल का वक़्त पूरा हो चुका है पर अबतक परीक्षा का प्रोसेस पूरा नही हुआ और इस परीक्षा की भी जॉइनिंग आते-आते 3 साल की अवधी पूरी हो जाएगी।

सीजीएल 2019 का नोटिफिकेशन 22 अक्टूबर 2019 को जारी किया गया तबसे से लगभग एक साल का वक़्त बीत चुका है लेकिन परीक्षा का दूसरा चरण भी अबतक शुरू नही हुआ है।

बात सीजीएल 2020 की करें तो एसएससी के नये कैलेंडर के अनुसार सीजीएल 2020 की परीक्षा अगले साल 2021 के मई-जून में होगी। और ये सिर्फ सीजीएल भर की बात नही है बल्कि एसएससी द्वारा कराई जाने वाली बाकी परीक्षाओं का भी यही हाल है चाहे वो सीएचएसएल हो या एमटीएस।

एमटीएस परीक्षा सीजीएल की अपेक्षाकृत कम वक्त में पूरी होने वाली परीक्षा है। सीजीएल की परीक्षा 4 चरणों मे होती है वही एमटीएस मात्र 2 चरणों मे समाप्त हो जाती है। पर आलम ये है एमटीएस 2019 के दूसरे चरण की परीक्षा हो जाने के 11 महीने बाद परिणाम जारी किया जाएगा। परीक्षाओं की बदहाल स्थिति को नीचे दी गयी तालिका के माध्यम से समझते हैं-

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गौर करने वाली बात ये हैं की इन परीक्षाओं की इतनी दुर्दशा तब है जब पूरी परीक्षा-प्रणाली ऑनलाइन है। परीक्षा और परिणाम की प्रक्रिया में तेज़ी लायी जा सके इसी कारण ऑनलाइन परीक्षा प्रणाली को अपनाया गया अगर इसके बावजूद परीक्षा के प्रोसेस में 2.5 से 3 साल का वक़्त लगाया जाता है तो ये समझ के बाहर है।

बहरहाल प्रतियोगी परीक्षाओं और चयन आयोगों की ये दुर्दशा केवल एसएससी तक सीमित नही है। देशभर में अनेक राज्यस्तरीय परीक्षाओं का यही हाल है। परीक्षा शुरू होने से जॉइनिंग आते-आते सालों-साल लग जाते हैं।

रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड तो एसएससी से भी 4 कदम आगे चलते हुए लाखों प्रतिभागियों के सपनो के साथ खिलवाड़ कर रहा है। दरअसल रेलवे द्वारा पिछले साल बंपर भर्ती की घोषणा की जाती है जिसके बाद लाखों बेरोज़गार युवा आशान्वित महसूस करते हैं। रेलवे द्वारा एनटीपीसी और ग्रुप-डी की भर्ती के लिए 1 मार्च 2019 और 12 मार्च 2019 को रजिस्ट्रेशन चालू किया गया जिसके बाद बेहद चौंका देने वाले आंकड़े सामने आए। इन दोनों परीक्षाओं के लिए 2.4 करोड़ से भी अधिक आवेदन प्राप्त किये गए जो भारत मे बेरोज़गारी की स्थिति को बयां करता है। रेलवे के खजाने में फीस के रूप में करोड़ों रुपए आये। आवेदन शुल्क के नाम पर छात्रों से 500 रुपये वसूले गए जिसमें से 400 रुपये पहले चरण की परीक्षा के बाद वापस लौटाने का वायदा किया गया। लेकिन रजिस्ट्रेशन से लेकर अबतक 1.7 वर्ष का समय हो चुका है मगर अभी तक पहले चरण की परीक्षा भी नहीं कराई जा सकी हालांकि हाल ही में छात्रों के 'डिजिटल आंदोलन' के बाद रेलवे ने परीक्षा की रिवाइज्ड डेट जारी कर दी है।

क्या है डिजिटल आंदोलन?

 दरअसल परीक्षा और परिणामों में अत्यधिक विलंब से आक्रोशित छात्रों ने सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर अपना गुस्सा व विरोध जताया। ये आंदोलन एसएससी और रेलवे के छात्रों द्वारा संयुक्त रूप से चलाया गया। प्रधानमंत्री से लेकर सरकार के प्रवक्ताओं और अन्य नुमाइंदों के भाषणों और कार्यक्रमों को भारी संख्या में डिस्लाइक किया गया। छात्रों ने SpeakUpForSSCRailwayStudents के नाम से ट्विटर पर हैशटैग चलाया जो सिर्फ भारत में नहीं बल्कि दुनियाभर में टॉप ट्रेंडिंग में रहा। छात्रों की मुख्य मांगें इस प्रकार से थी-

*एसएससी सीजीएल 2018 और एमटीएस का परिणाम घोषित हो।

*रेलवे एनटीपीसी और ग्रुप-डी की परीक्षा की तारीख जारी हो।

*एसएससी में वेटिंग लिस्ट का प्रावधान हो।

*परीक्षाएं तय कैलेंडर के अनुसार समयबद्ध तरीके से हों।

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 छात्रों द्वारा चलाए गए इस डिजिटल आंदोलन के सकारात्मक परिणाम भी सामने आए।

#SpeakUpForSSCRailwayStudents के भारत व दुनियाभर में ट्रेंड होने के बाद एसएससी ने 1 सितंबर 2020 को सीजीएल 2018 और एमटीएस के परिणामों की तारीख जारी कर दी। और ठीक इसके 4 दिन बाद 5 सितंबर 2020 को रेलवे ने भी पहले चरण की परीक्षा तारीखों का ऐलान कर दिया।

एसएससी की तैयारी करने वाले छात्र प्रेम कुमार ने व्यंग करते हुए इसे 'सबसे स्लो कमीशन' बताया। बातचीत में प्रेम ने बताया की यहां परीक्षा, परिणाम और भविष्य सब अनिश्चित है। उनके अनुसार गणित, अंग्रेजी भाषा, तर्कशक्ति और सामान्य ज्ञान के साथ-साथ एसएससी धैर्य की भी परीक्षा लेता है। प्रेम ने बताया कि पिछले कुछ समय में एसएससी में 'ऐज रेकनिंग' भी एक गम्भीर समस्या बनकर सामने आई है जिसके तहत हज़ारों छात्रों को अप्रत्यक्ष रूप से परीक्षा से बाहर कर दिया जाता है उनका एक अटेम्प्ट उनसे छीन लिया जाता है। दरअसल 'ऐज रेकनिंग' का आशय परीक्षा के लिए उम्र की गणना से है। प्रेम ने कहा," यदि कोई परीक्षा 2018 की है तो उम्र की गणना भी 2018 से होती है लेकिन सीजीएल 2019 की परीक्षा चूंकि 2020 में हुई इसलिए एसएससी ने उम्र की गणना 2019 के बजाय 2020 से की इससे कई छात्र परीक्षा की रेस से ही बाहर हो गए। परीक्षा में देरी का कारण छात्र नहीं है तो इसका खामियाज़ा छात्र क्यों भुगतें?"

छात्रों के लिए परीक्षा और परिणामों में सालों-साल की देरी के साथ-साथ हर वर्ष घटती वेकैंसी और बढ़ती बेरोज़गार दर भी एक चुनौती है। एक नज़र डालिए विभिन्न परीक्षाओं के वेकैंसी ट्रेंड पर-

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लगातार बढ़ती बेरोज़गारी और प्रतिवर्ष घटती वेकैंसी, ऊपर से परीक्षाओं के ये हाल युवाओं को हतोत्साहित करते हैं। एक अच्छे भविष्य के अरमान लेकर छोटे-छोटे गावों से शहरों में आकर छोटे कमरों में रहते हुए छात्र इन परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। कोचिंग की महँगी फीस, कमरे का किराया, रूखा-सूखा खाना, परिवार की चिंता और ना जाने कितनी ही मानसिक वेदनाओं से गुजरते हुए छात्र एक आशा के साथ पढ़ाई करते हैं। इन सबके बाद परिणाम और जॉइनिंग के लिए अगर उन्हें आंदोलन करना पड़े और परीक्षा की प्रक्रिया में 3-3 साल लगें तो उनके सपने टूट जाते हैं। इस देश की अधिकतर आबादी युवा है पर युवाओं के भविष्य के प्रति कोई जवाबदेह नही है। इन्ही परीक्षाओं से चयनित होकर छात्र विभिन्न विभागों में सेवा देकर देश के तंत्र को संभालते है। एक हतोत्साहित छात्र देश की प्रगति में किस प्रकार से अपना योगदान दे सकेगा आज इस बात पर विचार करने की ज़रूरत है।

 

(अभिषेक पाठक स्वतंत्र लेखक हैं।)

 

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