NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कोविड-19
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
कोरोना महामारी अनुभव: प्राइवेट अस्पताल की मुनाफ़ाखोरी पर अंकुश कब?
महाराष्ट्र राज्य के ग़ैर-सरकारी समूहों द्वारा प्रशासनिक स्तर पर अब बड़ी तादाद में शिकायतें कोरोना उपचार के लिए अतिरिक्त खर्च का आरोप लगाते हुए दर्ज कराई गई हैं। एक नजर उन प्रकरणों पर जहां कोरोनाकाल में अतिरिक्त बिल वसूल रहे प्राइवेट अस्पतालों के ख़िलाफ़ कड़ा संघर्ष करना पड़ा। 
शिरीष खरे
02 May 2022
corona
फोटो कैप्शन: सोशल मीडिया से प्राप्त प्रतीकात्मक तस्वीर

''मरने से ज्यादा दर्द जीने से हो रहा है, जिंदगी की मझधार जिंदगी के अंत से कठिन हो गई है।'' गए वर्ष एक प्राइवेट अस्पताल से घर लौटे कोरोना मरीज सखाराम शिंदे ने यह दर्द साझा किया था। 62 वर्ष के सखाराम शिंदे कोल्हापुर में सरकारी स्कूल के रिटायर्ड शिक्षक थे और अपनी जिंदगी की जमा पूंजी अपनी जान बचाने के लिए खर्च कर चुके थे। उनका आरोप था कि अस्पताल वालों ने इलाज के नाम पर उन्हें जो बिल पकड़ाया वह जायज नहीं था। जो पूंजी उन्होंने अपने बच्चों और परिजनों के भविष्य के लिए बचाई थी, वह अस्पताल वालों को देनी पड़ी। लेकिन, अस्पताल से घर आने के कुछ दिनों बाद कमजोरी के कारण उनकी मौत हो गई।

हालांकि, हमने देखा कि कोरोना की पहली और दूसरी लहर में सरकारी अस्पतालों में अधिकारी व कर्मचारी जान की परवाह किए बिना महामारी से जूझते रहे। कुछ प्राइवेट अस्पतालों में भी तस्वीरें कुछ ऐसी ही थीं। इसके लिए समाज डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों का ऋणी रहेगा। लेकिन, इस बीच कई सारे प्राइवेट अस्पतालों से आम लोगों को लूटने से जुड़ी जो सच्ची कहानियां बाहर आईं, वे मानवता को शर्मसार करने वाली हैं।

अब महाराष्ट्र राज्य के गैर-सरकारी समूहों द्वारा प्रशासनिक स्तर पर अब बड़ी तादाद में शिकायतें कोरोना उपचार के लिए अतिरिक्त खर्च का आरोप लगाते हुए दर्ज कराई गई हैं। इधर, महाराष्ट्र में ये समूह पीड़ितों के साथ लेखा परीक्षा प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं। कुछ स्थानों पर जिला और तहसील स्तर के अधिकारियों ने जनहित में सक्रिय भूमिका निभाई है।

एक नजर उन प्रकरणों पर जहां कोरोनाकाल में अतिरिक्त बिल वसूल रहे प्राइवेट अस्पतालों के खिलाफ कड़ा संघर्ष करना पड़ा। उनकी पहचान को छिपाते हुए यहां कुछ अनुभव...

अनुभव एक: 79, 000 लौटाए

मैं एक प्राइवेट कॉलेज में प्रोफेसर हूं। कोरोना लॉकडाउन के समय मुझे आधा वेतन ही मिल रहा था। आधे वेतन में परिवार चलाना मुश्किल हो रहा था। इसलिए, इसी समय हम आमदनी के दूसरे काम कर रहे थे। दूसरी लहर में मेरा करीबी दोस्त मर गया। मुझे भी कोरोना हो गया है। शुरुआत में गांव के डॉक्टरों द्वारा किए इलाज हुआ। लेकिन, बाद में मेरी हालत गंभीर हो गई। मेरे पिता, भाई और दोस्तों को मेरे लिए ऑक्सीजन बेड पाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। स्वास्थ्य में सुधार नहीं होने से लागत में वृद्धि हुई। परिवार और दोस्तों ने मिलकर पांच लाख रुपये जमा किए। यह सच है, मैं चंगा हो गया, लेकिन कर्ज का पहाड़ सिर पर चढ़ गया। मुझे जानकारी मिली थी कि कई लोगों ने प्राइवेट अस्पताल द्वारा अतिरिक्त बिल वसूलने की शिकायत की थी। मैंने शिकायत भी की, लेकिन अस्पताल ने पैसे लौटाने से मना कर दिया। इसके बजाय, मुझे दो डॉक्टरों ने बुलाया, उन्होंने मुझसे कहा कि उन्होंने मेरी जान बचाई और अब मैं ही उनकी जेब से वापस पैसे निकाल रहा हूं। उन्होंने भावनात्मक दबाव बनाया। मैंने अपनी शिकायत पर जोर दिया। यह देख उन्होंने कुछ गुंडों का सहारा लिया। गुंडों ने पहले मुझे फोन किया और फिर मुझे घर पर आकर धमकाया। वहीं तहसील, जिला और राज्य स्तर के संगठनों की मदद से मैं सच्चाई के साथ अपना प्रकरण लड़ता रहा। अंत में अस्पताल को 79,000 रुपये वापस लौटाने पड़े।

अनुभव दो: 12,000 रुपए लौटाए

मैं अपने बच्चे के साथ अकेली रह गई हूं। मेरे ससुराल वालों ने पहले ही मुझसे संबंध तोड़ लिए हैं। मैं अपनी मां के बगल वाले कमरे में रहती हूं। छोटी किराना दुकान चलाती हूं। भाई हर चीज में मदद करता है। मैं अकेले बाहर नहीं जाती। हमने पति को कोरोना से बचाने की बहुत कोशिश की। लेकिन, वह मर गया। सिर पर कर्ज चढ़ गया है।

पहचान के कुछ भले लोगों ने हमारी मदद की। हमने उन्हें व्हाट्सैप पर बिल भेजा। उन्होंने बताया कि अस्पताल ने मुझसे अतिरिक्त 12,000 रुपए लिए हैं। उनके कहने पर मैं अगले दिन बिल लेकर सरकारी दफ्तर गई। सरकारी अधिकारियों ने प्राइवेट अस्पताल को नोटिस जारी किया है। अस्पताल ने कहा कि उन्होंने अतिरिक्त शुल्क नहीं लिया। फिर उन भले लोगों ने अधिकारियों से संपर्क किया। उन्हें सरकार के नियम, कायदे समझाए। बताया कि इस महिला का पति चला गया, एक छोटे बच्चे को छोड़कर। मैंने भी लड़ाई लड़ी। जब अधिकारियों ने फिर नोटिस भेजा तो अस्पताल वालों ने 12,000 रुपए लौटा दिए।

अनुभव तीन: दादी, ताई, जमीन सब गई!

दादी को पहले भर्ती कराया गया और फिर ताई को भी परेशानी होने लगी। वह भी भर्ती थीं। दादी की मृत्यु हो गई। ताई के दो छोटे बच्चे हमारे पास थे। ताई की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही थी। तीन से चार अस्पताल बदले। मेरे पास बिलों का भुगतान करने के लिए पैसे खत्म हो गए। किसी ने कर्ज भी नहीं दिया। गिरवी रखे हुए खेत, परिवार की आजीविका का एकमात्र जरिया थे। मुझे भी कोविड हो गया। हम पुणे जिले के शिरूर में घर पर थे और ताई पुणे के ही हडपसर के अस्पताल में। हम सब बेचकर फोन पर पैसे भेजते रहे। एक दिन फोन की घंटी बजी। ताई ने हम सबको अनाथ कर दिया था। दादी, ताई, जमीन सब जा चुकी है।

मैं अस्पताल के भीतर ऐसे कई लोगों से मिला। बहुत से लोग जो सारी कोशिशों के बावजूद अपनों की जिंदगी को नहीं बचा सके, वे डरे, बिखरे, क्रोधित, थे। वे आश्रित, कर्जदार हो गए हैं। अस्पताल में कोई अपनी मां के साथ आया था, कोई अपने बच्चों को साथ लेकर बैठा था। पति को खो चुकी पत्नी अस्पताल वालों से कह रही थी, उसने पति की जान बचाने के लिए लाखों रुपए खर्च किए। पति नहीं रहा। अब उसे उसके रुपए लौटा दो।

महाराष्ट्र सरकार के नियमों को धता बताते प्राइवेट अस्पताल

महाराष्ट्र सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत मई 2020 में निजी अस्पतालों में कोविड के इलाज के लिए 80 फीसदी बिस्तरों पर दर नियंत्रण आदेश जारी किया था। कुछ जिलों में, अनुपालन के लिए जिला कलेक्टर और नगर आयुक्त द्वारा लेखा परीक्षकों को नियुक्त किया गया था। जिन जिलों में दर नियंत्रण आदेश को लेकर जन-जागरूकता रही, वहां मरीज को घर भेजने से पहले कोविड इलाज के खर्च का ऑडिट कराने की मांग की गई। कुछ अस्पतालों ने आदेश के हिसाब से पैसे वसूले तो कुछ ने तरह-तरह के इलाज के नाम पर भारी भरकम बिल वसूला। आम आदमी ने यह सब सहा, क्योंकि यह उसकी भावना थी कि उसके आदमी को बचाया जाए। इन सभी घोटालों ने कई परिवारों को कर्ज में और बेघर कर दिया है। किसान खेतिहर मजदूर बन गए। कुछ जिलों में, सरकारी अधिकारियों ने काम में तेजी लाई, लेकिन अन्य में जिम्मेदारी से बचने के प्रयास किए गए।

सवाल है कि कोरोना महामारी में लोगों ने प्राइवेट अस्पताल की लूट को लेकर इतना हंगामा क्यों किया? क्या दवाओं की कमी थी? क्या किसी महामारी का सामना करना व्यक्तिगत मामला है? या राष्ट्रीय मुद्दा नहीं है? ऐसी विकट स्थिति में प्राइवेट अस्पतालों को मरीजों को ठगने से कौन रोकेगा? लोगों के सबक ने बहुत सिखाया। उनसे सबक लेते हुए सरकार को कम से कम ऐसे अनियंत्रित अस्पतालों को नियंत्रण में लाना चाहिए। नागरिकों को मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के लिए एक कदम उठाया जाना चाहिए। 

COVID-19
corona pandemic
Pandemic
Health Sector
health sector in India
private hospitals
Private Hospital Bills

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा

महामारी में लोग झेल रहे थे दर्द, बंपर कमाई करती रहीं- फार्मा, ऑयल और टेक्नोलोजी की कंपनियां


बाकी खबरें

  • बी. सिवरामन
    क्या एफटीए की मौजूदा होड़ दर्शाती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था परिपक्व हो चली है?
    15 Apr 2022
    अक्सर यह दावा किया जाता है कि मुक्त व्यापार समग्र रूप से तथाकथित 'राष्ट्रीय हितों' की पूर्ति करेगा। यह बकवास है। कोई भी एफटीए केवल निर्माताओं, अंतरराष्ट्रीय व्यापारियों, खनिकों और खनिज निर्यातकों तथा…
  • डॉ. राजू पाण्डेय
    अब भी संभलिए!, नफ़रत के सौदागर आपसे आपके राम को छीनना चाहते हैं
    15 Apr 2022
    हिंसा को स्वीकार्य बनाने के लिए कट्टरपंथी शक्तियों द्वारा संचालित मानसिक प्रशिक्षण कार्यक्रम शायद पूर्ण हो चुका है और हममें से अधिकांश संभवतः इसमें ए प्लस ग्रेड भी अर्जित कर चुके हैं इसलिए इन शोभा…
  • ट्राईकोंटिनेंटल : सामाजिक शोध संस्थान
    यूक्रेन में छिड़े युद्ध और रूस पर लगे प्रतिबंध का मूल्यांकन
    15 Apr 2022
    ऐसा प्रतीत होता है कि ज़्यादातर सूचनाएँ अभी भी शीत-युद्धकालीन मानसिकता से ग्रसित हैं, जो मानवता को दो विरोधी ख़ेमों में बाँटकर देखती है। हालाँकि, सच ये नहीं है।
  • विजय विनीत
    बनारस में गंगा के बीचो-बीच अप्रैल में ही दिखने लगा रेत का टीला, सरकार बेख़बर
    15 Apr 2022
    बनारस की गंगा में बालू के टीले पहले जून के महीने में दिखाई देते थे। फिर मई में और अब अप्रैल शुरू होने के पहले ही दिखाई देने लगे हैं, जो चिंता का विषय है।
  • वसीम अकरम त्यागी
    ‘हेट स्पीच’ के मामले 6 गुना बढ़े, कब कसेगा क़ानून का शिकंजा?
    15 Apr 2022
    2014 में देश में हेट स्पीच के कुल 336 मामले दर्ज हुए थे, जबकि 2020 में 1,804 मामले दर्ज हुए हैं। कुल मिलाकर सात साल में हेट स्पीच के मामले छह गुना तक बढ़े हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License