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भारत
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अर्थव्यवस्था
क्या एफटीए की मौजूदा होड़ दर्शाती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था परिपक्व हो चली है?
अक्सर यह दावा किया जाता है कि मुक्त व्यापार समग्र रूप से तथाकथित 'राष्ट्रीय हितों' की पूर्ति करेगा। यह बकवास है। कोई भी एफटीए केवल निर्माताओं, अंतरराष्ट्रीय व्यापारियों, खनिकों और खनिज निर्यातकों तथा सेवा प्रदाताओं के कुछ चुनिंदा समूहों को ही सेवा प्रदान करता है।
बी. सिवरामन
15 Apr 2022
Indian Economy

18 फरवरी 2022 को भारत ने संयुक्त अरब अमीरात के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर हस्ताक्षर किए। 2 अप्रैल 2022 को, भारत ने ऑस्ट्रेलिया के साथ एक और FTA पर हस्ताक्षर किए।

यह तो अब हुआ है; भारत ने पहले से ही 2004 के दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (साफ्टा) समझौते के तहत दक्षिण एशियाई देशों के साथ अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका को कवर करते हुए व्यापार समझौते किए थे।

भारत ने 13 अगस्त 2009 को भी आसियान के साथ एक एफटीए (Free Trade Agreement)) पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, थाईलैंड, सिंगापुर और वियतनाम शामिल थे। भारत ने पूर्वी एशिया की दो प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं -जापान और दक्षिण कोरिया के साथ भी एफटीए पर हस्ताक्षर किए हैं।

इसके अलावा भारत का 1 जून 2009 से अर्जेंटीना, ब्राजील, पैराग्वे, उरुग्वे और वेनेजुएला सहित लैटिन अमेरिका के मर्कोसुर देशों के साथ एक तरजीही व्यापार समझौता (पीटीए) है।

भारत ने ब्रेक्सिट के बाद यूके के साथ एफटीए वार्ता के दो दौर अभी संपन्न किए हैं। भारतीय विदेश सचिव ने कहा है कि दिसंबर 2022 तक यूके के साथ एक एफटीए किया जा सकता है। ईयू द्वारा पूर्व शर्त के रूप में पर्यावरण और श्रम मानकों जैसे गैर-व्यापार बाधाओं (एनटीबी) को पटल पर लाए जाने के बाद भारत-ईयू एफटीए वार्ता 2014 में गतिरोध में चली गई थी।

मार्च 2022 में, भारत ने यूरोपीय संघ से एनटीबी की पूर्व शर्तों को छोड़ कर वार्ता की मेज पर लौटने का आग्रह किया, और वार्ता नए सिरे से जल्द ही शुरू होने की उम्मीद है। वैसे भी, EU भारत का केवल दसवां प्रमुख व्यापारिक भागीदार है।

हालांकि, अमेरिका और चीन, भारत के दो शीर्ष व्यापारिक साझेदार और दो प्रमुख वैश्विक आर्थिक शक्तियां इस प्रक्रिया से बाहर हैं। भारत चीन के नेतृत्व वाली क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरईसीपी) से डरकर बाहर हो गया और भगवा संगठनों ने चीनी सामानों के खिलाफ एक सप्ताह लम्बा अभियान शुरू किया था। महामारी प्रतिबंधों के बहाने सीमा व्यापार स्थगित है। यह नोट करना महत्वपूर्ण है कि डोकलाम में सीमा संघर्ष से पहले ही इन सभी व्यापार प्रतिबंधात्मक उपायों को लागू किया गया।

मोदी ने अमेरिका के साथ एक सीमित व्यापार समझौते के लिए बहुत कोशिश की और ट्रंप ही नहीं, यहां तक कि बाइडेन ने भी  जवाब देना मुनासिब नहीं समझा। बल्कि मार्च 2019 में अमेरिका ने कुछ उत्पादों के मामले में भारत के लिए वरीयता शुल्क मुक्त रियायत की सामान्य प्रणाली (General system of preferences duty free concession) को हटा दिया।

ये यूपीए और मोदी सरकार के तहत भारत द्वारा शुरू किए गए अन्यथा साहसिक एफटीए-होड़ के विपरीत था।क्या हाल के वर्षों में भारत द्वारा इस तरह की एफटीए की होड़ भारत को एक व्यापारिक शक्ति के रूप में परिपक्व बनने का संकेत देती है? क्या यह भारत के आर्थिक और तकनीकी कौशल को दर्शाता है? क्या भारत आखिरकार पुनः फायदे में होगा? या, क्या भारत अन्य एफटीए भागीदारों से सस्ते आयात के लिए डंपिंग ग्राउंड बन जाएगा और क्या भारतीय निर्माताओं और किसानों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा?

ठोस शब्दों में, क्या एफटीए की बदौलत  देश का निर्यात नाटकीय रूप से बढ़ेगा? क्या यह प्रधानमंत्री मोदी के मेक-इन-इंडिया के आह्वान की सफलता का मार्ग प्रशस्त करेगा? इन सवालों को संबोधित करने से पहले, आइए यूएई और ऑस्ट्रेलिया के साथ हाल के दो एफटीए की विस्तार से समीक्षा करें।

हाल के दो एफटीए का विस्तृत विवरण

भारत-यूएई एफटीए: व्यापार की दृष्टि से यूएई कोई छोटी इकाई नहीं है। चीन और अमेरिका के बाद यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। 2019-2020 में भारत और यूएई के बीच 59 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार था। संयुक्त अरब अमीरात अमेरिका के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य भी है, जिसका निर्यात 2019-2020 में लगभग 29 बिलियन डॉलर था।

दुर्भाग्य से, महामारी के कारण 2020-21 में द्विपक्षीय व्यापार गिरकर 43.3 बिलियन डॉलर हो गया और भारत से यूएई को निर्यात  16.7 बिलियन डॉलर तक गिर गया।

यूएई में करीब 35 लाख भारतीय कामगार काम कर रहे हैं। वे संयुक्त अरब अमीरात में काम करने वाले विदेशी कामगारों में सबसे बड़ा दल है। वे संयुक्त अरब अमीरात की आबादी का 30% हिस्सा हैं। प्रवासी आबादी में, दुबई की आबादी में 51% जनसंख्या भारतीयों की है।

भारत के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका से बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक भी संयुक्त अरब अमीरात में काम कर रहे हैं। वे भारत से उपभोग के सामान के लिए एक बड़ा बाजार निर्मित करते हैं। खाद्य पदार्थ, कपड़ा और वस्त्र, रत्न और गहने, चमड़े के सामान और जूते, ऑटोमोबाइल आदि भारत से प्रमुख निर्यात आइटम हैं। संयुक्त अरब अमीरात से भारत के लिए पेट्रोलियम उत्पाद और रत्न दो प्रमुख आयात हैं।

यूएई एफटीए के पीछे छिपे निहित स्वार्थ

संयुक्त अरब अमीरात के साथ एफटीए के पीछे कुछ 'विशेष हित' छिपे हैं, जो प्रधान मंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के गृह राज्य गुजरात के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हो जाते हैं। हीरा काटना (diamond cutting) सूरत में एक बड़ा उद्योग है और बिना पॉलिश किए हीरों का आयात और पॉलिश और कटे हुए हीरे का निर्यात गुजरात से विदेशी व्यापार में प्रमुख हैं।

सूरत हीरा व्यापार भी भारी मात्रा में सब्सिडी वाले निर्यात ऋण (subsidized export credit) को आकर्षित करने के लिए " वृत्तीय व्यापार" (circular trade) के लिए एक अवसर के रूप में उभरा है (यह एक तरकीब है जिसके माध्यम से सब्सिडी पर बैंक लोन लिए जा सकते हैं।)

यह हवाला लेनदेन के माध्यम से काले धन को सफेद करने के लिए मनी-लॉन्ड्रिंग के लिए "राउंड-ट्रिपिंग" के इस्तेमाल का एक प्रमुख चैनल भी बना है। ("राउंड-ट्रिपिंग" बार-बार एक ही सामान को खरीदने- बेचने का तरीका है, जिससे काले धन को सफेद में बदला जाता है।)

संयुक्त अरब अमीरात गुजरात के साथ हीरे के व्यापार का एक प्रमुख केंद्र है, जो बेल्जियम में एंटवर्प के बाद दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा गन्तव्य है। यहां तक कि दक्षिण अफ्रीका के हीरों का भी यूएई के जरिए कारोबार होता है। व्यापार शब्दजाल में 'सर्कुलर ट्रेड' का अर्थ है कि हीरे का एक ही पार्सल यूएई में दुबई और गुजरात में सूरत के बीच तीन या चार बार भेजा जाता है, जिससे प्रत्येक अवसर पर मूल्य बढ़ जाता है। इस तथाकथित "निर्यात" के लिए भारत और यूएई दोनों में बैंकों से रियायती शर्तों पर पैसा उधार लिया जाता है और इसका उपयोग अन्य लाभकारी उद्देश्यों के लिए किया जाता है।

मनी लॉन्ड्रिंग एक अलग तरीके से होती है। भारत में ब्लैकमनी धारक हवाला चैनलों के माध्यम से यूएई में अपने स्रोतों को पैसा भेजते हैं। वे स्रोत कुछ बेकार पार्सल को बिना कटे हीरों के नाम पर (असल में नहीं ) भेजते हैं और उन्हें बहुत अधिक मूल्य पर कटे हुए हीरे के नाम पर (असल में नहीं ) वापस भेज दिया जाता है, जिसके लिए भुगतान संयुक्त अरब अमीरात से किया जाता है, जो कानूनी सफेद धन बन जाता है।

पहले संयुक्त अरब अमीरात से बिना पॉलिश किए हीरों के आयात पर कोई शुल्क नहीं लगता था। इस सर्कुलर ट्रेडिंग पर अंकुश लगाने के लिए, भारत सरकार ने जनवरी 2012 में आयातित हीरों पर सिर्फ 2% टैरिफ लगाया और गुजरात हीरा उद्योग व्यापक विरोध में उठ खड़ा हुआ। जब संयुक्त अरब अमीरात ने जनवरी 2018 में हीरा व्यापार पर 5% वैट लगाया, तो गुजरात के हीरा व्यापारी फिर से विरोध में उतरे और मांग की कि सरकार को हस्तक्षेप कर इसे रद्द कर देना चाहिए। भारत सरकार ने यूएई के साथ बातचीत शुरू की। अब एफटीए के चलते कोई ड्यूटी नहीं है। अब सर्कुलर ट्रेडिंग और राउंड ट्रिपिंग के माध्यम से मनी लॉन्ड्रिंग दोनों बिना किसी बाधा के जारी रह सकते हैं। यह 'राष्ट्रीय हित' में 'मुक्त व्यापार' है!

10 फरवरी 2012 को, लाइवमिंट ने ‘टैक्स टू कर्ब राउंड-ट्रिपिंग ऑफ डायमंड्स’ (tax to curb round tripping of diamonds) नामक एक विस्तृत कहानी को प्रकाशित किया, जिसमें राजस्व खुफिया निदेशालय (Directorate of Revenue Intelligence) के अधिकारियों के उद्धरणों के साथ इन अनियमितताओं को उजागर किया गया, जिन्होंने गुमनामी की शर्तों के तहत इन अनियमितताओं के खिलाफ कार्रवाई करने में असमर्थता ज़ाहिर की।

भारत-ऑस्ट्रेलिया एफटीए: 11 साल की कठिन वार्ता के बाद ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत के एफटीए पर हस्ताक्षर किए गए। यह एफटीए भारत को अपने निर्यात के लगभग 96.4% तक शुल्क- मुक्त पहुंच (duty free access) प्रदान करने वाला है। यह बड़ा लग सकता है लेकिन भारत के इन निर्यात उत्पादों में से अधिकांश पहले से ही केवल 4% से 5% के मामूली शुल्क झेल रहे थे।

इसलिए, इस एफटीए से भारतीय निर्यात में नाटकीय वृद्धि होने की संभावना नहीं है। अपनी ओर से, भारत ऑस्ट्रेलिया के 12.6 बिलियन डॉलर मूल्य के निर्यात के 85% पर टैरिफ को समाप्त कर देगा। ऑस्ट्रेलिया 2020 में भारत का सातवां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था और दोनों देशों के बीच दोतरफा व्यापार का मूल्य कुल 24.3 बिलियन डॉलर था। भारत ऑस्ट्रेलिया का छठा सबसे बड़ा निर्यात बाजार है।

अक्सर यह दावा किया जाता है कि मुक्त व्यापार समग्र रूप से तथाकथित 'राष्ट्रीय हितों' की पूर्ति करेगा। यह बकवास है। कोई भी एफटीए केवल निर्माताओं, अंतरराष्ट्रीय व्यापारियों, खनिकों और खनिज निर्यातकों तथा सेवा प्रदाताओं के कुछ चुनिंदा समूहों को ही सेवा प्रदान करता है।

जापान और चीन के बाद भारत ऑस्ट्रेलिया से कोयले का तीसरा बड़ा आयातक है। 2019 में, भारत ने ऑस्ट्रेलिया से 50 मिलियन टन कोयले का आयात किया। उस वर्ष भारत में थर्मल संयंत्रों ने 673 टन कोयले की खपत की। अडानी ऑस्ट्रेलिया में कोयले का खनन कर रहा है और उसने अपने और अन्य बिजली संयंत्रों के लिए 2021 से भारत में कोयले का आयात करना शुरू कर दिया है। संयोग से, संयुक्त अरब अमीरात के एक समूह ने 2022 में अदानी समूह में $ 2 बिलियन का निवेश किया।

भारत वर्तमान में ऑस्ट्रेलिया से मटन आयात पर 30% शुल्क लगाता है और ऑस्ट्रेलिया से आयात पहले से ही भारतीय मटन बाजार का 20% हिस्सा है। अगर एफटीए के बाद इस आयात शुल्क को शून्य पर लाया जाता है, तो सस्ते ऑस्ट्रेलियाई मटन भारतीय बाजारों में भर जाएंगे, जिससे पशु पालन करने वाले भारतीय किसानों और छोटे कसाईयों को नुकसान होगा। अगर गरीब कसाई नवरात्रि के दिनों में मीट बेचते हैं तो उन्हें गिरफ्तार किया जाएगा।और, रामनवमी पर मांस खाने के अपने अधिकार पर जोर देने वाली जेएनयू की निहत्थी छात्राओं के सिर को भगवा खाद्य-फासीवादियों द्वारा फोड़ा जाएगा। लेकिन रिलायंस समूह और टाटा, वॉलमार्ट व अमेज़ॅन आयातित ऑस्ट्रेलियाई मटन बेचकर खुशी-खुशी पैसा कमा सकते है, चाहे वह राम नवमी हो या महावीर जयंती।

ऑस्ट्रेलिया भारत को फलों और कुछ उच्च मूल्य वाली सब्जियों- जैसे कीवी, एवोकाडो, चेरी, ब्लूबेरी, ब्लैकबेरी, रास्पबेरी, संतरे और करंट (बीज रहित अंगूर) का एक प्रमुख निर्यातक भी है।

भारतीय फल-उत्पादकों को, विशेष रूप से महाराष्ट्र के नासिक और नागपुर क्षेत्रों में, कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा। इसी तरह, प्याज उत्पादक और अन्य बागवानी करने वाले किसान, जो बीन्स, शिमला मिर्च और कुछ सूखे मेवे आदि उगाते हैं, वे भी ऑस्ट्रेलियाई आयात से प्रभावित होंगे।

भारतीय डेयरी किसानों के कुछ संगठनों में यह आशंका है कि सस्ता दूध और अन्य डेयरी उत्पाद उनके लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने ऑस्ट्रेलियाई डेयरी उद्योग की शीर्ष संस्था डेली ऑस्ट्रेलिया को 76,400 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर दिये हैं ताकि वह भारत को डेयरी निर्यात बढ़ाए।

श्रीलंका और बाद में आसियान के साथ एफटीए के बाद चाय और कॉफी की कीमतों में गिरावट के चलते केरल, कर्नाटक और असम में बागान किसान दुखी हो गए हैं। आशा है कि ऑस्ट्रेलिया के साथ एफटीए की वजह से भारत में डेयरी किसानों का जीवन त्रासद न बन जाए।

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