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ग्राउंड रिपोर्ट: करोना और लॉकडाउन ने भोपाल की ट्रांसजेंडर कम्युनिटी को भुखमरी के कगार पर ला दिया
लॉकडाउन 3 के दौरान जब भोपाल के कई इलाकों में लोगों को खाना नहीं मिल पा रहा था तब इस कम्युनिटी के लोगों ने बढ़-चढ़कर सूखा राशन बांटा था। मगर आज आलम यह है कि वह खुद राशन के मुहताज हो गए हैं।
काशिफ़ काकवी
15 Aug 2020
 ट्रांसजेंडर कम्युनिटी

भोपाल (मध्यप्रदेश): भोपाल की ट्रांसजेंडर कम्युनिटी आज आपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। वजह है करोना के कारण लगे लॉकडाउन और उसकी वजह से शादी, पार्टी, जन्म दिवस जैसे कार्यक्रमों का न होना।

न्यूज़क्लिक से बातचीत के दौरान भोपाल ट्रांसजेंडर कम्युनिटी मंगलवारा की अध्यक्ष शिल्पा नायक कहती हैं "हमारी रोजी-रोटी या धंधा तो लोगों के ऊपर ही निर्भर है। दुकानों से चंदा लेना, शादी, पार्टी, जन्मदिन जैसे कार्यक्रमों में गाना-बजाना ही हमारे भरण-पोषण का एकमात्र जरिया था, मगर जब से लॉकडाउन लागू हुआ है, यह कार्यक्रम अब न के बराबर हो गए हैं। ऐसे में हमारी कमाई जो 40 हज़ार से 50 हज़ार के बीच महीने हुआ करती थी, आज वह 1000 और 500 होना भी मुश्किल है।"

भोपाल में करीब दो घरानों के 500 से 600 ट्रांसजेंडर हैं। यह दोनों घराने नवाबों के वक्त से चले आ रहे हैं। इन घरानों के अपने-अपने सरदार हैं जो नियम और कायदों के साथ अपने चेलों के साथ रहते हैं। भोपाल के मंगलवारा और बुधवारा में आज भी इनकी हवेली है जो भोपाल के नवाबों की देन है।

लॉकडाउन 3 के दौरान जब भोपाल के कई इलाकों में लोगों को खाना नहीं मिल पा रहा था तब इस कम्युनिटी के लोगों ने बढ़-चढ़कर सूखा राशन बांटा था। मगर आज आलम यह है कि वह खुद राशन के मुहताज हो गए हैं।

35 वर्षीय देवी रानी बताती हैं "हमारा परिवार बहुत बड़ा है। तीन वक्त की जगह दो वक्त या कभी-कभी एक वक्त ही खा पा रहे हैं, वह भी सिर्फ रोटी, चावल, चटनी या अचार के साथ।"

पिछले लॉकडाउन के दौरान जब हमने कई परिवारों को भूखे मरते देखा तो अपनी जमा पूंजी से अनाज खरीद कर उनकी भरपूर मदद करने की कोशिश की थी । लेकिन हमें इस बात का अंदेशा नहीं था की लॉकडाउन इतना लंबा चलेगा और आज हम भी उसी कगार पर आ जाएंगे।"

देवी रानी के परिवार में कुल 17 लोग हैं जो पूरी तरह से बाजार से मिलने वाले चंदे (खासकर न्यूमार्केट क्षेत्र में) और सामाजिक कार्यक्रमों से कमाते हैं लेकिन लॉकडाउन के कारण उपजे हालात ने इनका भरण पोषण मुश्किल कर दिया है।

रानी कहती हैं, “मांग कर खाने के अलावा हमारे पास कोई और चारा नहीं बचा है। भले ही हमारे देश में धारा 377 खत्म हो गई हो लेकिन लोगों की मानसिकता आज भी वही है। न तो हमें कोई नौकरी पर रखता है न मजदूरी करने देता है। अगर किसी ने, बड़ी मेहनत मशक्कत के बाद रख भी लिया तो वह उसे गलत नजरों से देखता है और संबंध बनाने के लिए दबाव डालता है। ऐसे में हमारे पास सिर्फ एक ही रास्ता बचता है, मागं कर खाना।

41 वर्षीय तमन्ना जान बताती है कि लॉकडाउन के दौरान भोपाल में सैकड़ों संस्थाओं ने ज़रूरतमंदों को खाने बांटे मगर ट्रांसजेंडर्स को आज तक कोई भी व्यक्ति या संस्था ने मदद नहीं किया। दो दिन पहले एक अनमोल नामक संस्था ने कुछ सूखा राशन हमें दिया है। सरकारी मदद के तौर पर लॉकडाउन के एक हफ्ते बाद हमारे आधार कार्ड की फोटोकॉपी लेकर हमें पांच 5 किलो चावल दिए गए थे तब से अब तक ना कोई सामाजिक संस्था, ना कोई नेता और न सरकार हमारी सुध लेने आया।

तमन्ना जान बताती है, “लॉकडाउन के खत्म होने के बाद हमारी हालत थोड़ी सुधरी थी मगर लॉकडाउन की वजह से आई मंदी के कारण लोगों के पास पैसे नहीं है और जो हमें हजारों में चंदा दिया करते थे आज वह 100 और 200 तक ही दे पाते हैं।"

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250 साल पुरानी परंपरा टूटी

राखी के 3 दिन बाद भोपाल में 'भुजरिया' नामक त्योहार ट्रांसजेंडर समुदाय द्वारा मनाया जाता है। मान्यता है की नवाबों के दौर में जब अकाल पड़ा था तब उस वक्त के ट्रांसजेंडरों के गुरु ने भगवान से बारिश के लिए प्रार्थना की थी और उनकी दुआ कबूल भी हुई थी। तब से अब तक रक्षा बंधन के तीसरे दिन हजारों-हजार की तादाद में ट्रांसजेंडर भोपाल में रैली निकालते हैं और लालघाटी स्थित देवी मां के मंदिर में चढ़ावा चढ़ाते हैं। इस कार्यक्रम में देश भर से हजारों ट्रांसजेंडर भोपाल आते थे और इसमें शामिल होते थे। मगर इस वर्ष सामाजिक कार्यक्रमों पर पाबंदी और किसी भी तरह की रैली निकालने पर मनाही की वजह से तकरीबन 250 साल पुरानी परंपरा नहीं हो पाई।

मंगलवारा ट्रांसजेंडर घराने के अध्यक्ष शिल्पा नायक बताती हैं हम 250 वर्ष पुरानी परंपरा को खत्म तो नहीं कर सकते थे, इसलिए कुछ लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए मंदिर में जाकर चढ़ावा चढ़ा आए।

इन सारी मुश्किलों के बावजूद ट्रांसजेंडरों का दरवाज़ा आज भी सबके लिए खुला है। लॉकडाउन के दौरान दो बच्चों को उन्होंने गोद भी लिया है। एक बच्चा दरवाज़े पर मिला वहीं दूसरा मंगलवारा पुलिस थाने द्वारा भेजा गया।  

शिल्पा बताती हैं कि वैसे लोग जिन्हें अपने बच्चे के ट्रांसजेंडर होने का पता चलता है और समाज में बदनामी के डर से घर से निकाल देते हैं हम उन्हें पनाह भी देते हैं और साथ ही अपनी निवाला भी उनसे शेयर करते हैं।

कोई भी ट्रांसजेंडर कारोना पाजेटिव नहीं पाया गया 

वहीं बुधवारा ट्रांसजेंडर कम्युनिटी की अध्यक्ष पूजा हाजी बताती हैं की हमारे समाज का कोई भी कारोना पॉजेटिव नहीं पाया गया जबकी हमारे इलाके में यह बीमारी घर-घर फैल गई थी, ऊपर वाले की हमपर बड़ी मेहरबानी रही है।

वह कहती हैं, मगर यह एक मुश्किल दौर है। हमारी आमदनी का ज़रिया लगभग खत्म हो चुका हैं और बीमारी हर रोज शहर में अपने पैर पसार रही हैं। ऐसे में दो वक्त की रोटी और बीमारी से बचे रहना ही सबसे बड़ा चैंलेज हैं।

न्यूज़क्लिक से बातचीत के दौरान वह बताती हैं, “हम साफ सफाई के साथ-साथ अपनी सेहत का भरपूर ख्याल रखते हैं। जरुरी काम के अलावा कोई भी घर से बाहर नहीं जाता । और दिल्लगी के लिए हम अपनी हवेली के अंदर ही नाच, गाने करते हैं।” 

वह कहती हैं की मुझें इस बात का बहुत अफसोस है की इस बुरे दौर में भी हमारा हाल चाल पूछने कोई नहीं आया। न कोई नेता और न कोई समाजिक संस्था। हम अपनी जमा पूंजी और लोगों के चंदे पर ही गुजर बसर कर रहे हैं।

आखिर में वह कहती हैं, भोपाल में 25 जुलाई से 3 अगस्त तक 10 दिनों के लिए लगे लॉकडाउन ने हमारी कमर और तोड़ दी हैं। अगर इसी तरह का एक और बंदी होती है तो हमारे घरों में फाके की नौबत आ जाएगी। 

Bhopal
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Lockdown
Transgender community

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