NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
कोविड-19 : स्वतंत्र मीडिया अराजकता का जवाब है, इसे सेंसर नहीं करना चाहिए
एक स्वतंत्र मीडिया और सजग नागरिकों को दबाना नहीं चाहिए या उन्हें बुरा-भला नहीं कहा जाना चाहिए।
गौतम नवलखा
04 Apr 2020
स्वतंत्र मीडिया
Image Courtesy: Deccan Herald

निज़ामुद्दीन पश्चिम में तब्लीग़ी जमात मरकज़ से कोरोना वायरस का अब तक का सबसे बड़ा संक्रमण हुआ है। इस घटना से केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार की नाकामी साफ़ उजागर हुई है।

तब्लीग़ी मरकज़ ने उस वक़्त लोगों का जमावड़ा लगाने का फ़ैसला लिया, जब महामारी का ख़तरा साफ़ हो चुका था। ऐसा नहीं का जा सकता कि उन्हें कोरोना वायरस संक्रमण के बारे में जानकारी नहीं थी। लेकिन सरकार ने उन्हें अनुमति दे दी। विदेशियों को आने के लिए केंद्र सरकार ने वीज़ा जारी किए और दिल्ली पुलिस समेत स्थानीय प्रशासन ने उन्हें जमावड़े में आने की अनुमति दी। जब सब ख़तरे के प्रति सजग हुए, तब तक रेल, हवाई यातायात और सड़कें बंद हो चुकी थीं। इस तरह मरकज़ पहुंचे लोग फंस गए और उन्हें मरकज़ की डॉर्मेट्ररीज़ में रहने को मजबूर होना पड़ा और यह जगह वायरस का हॉटस्पॉट बन गई।

छोटे अधिकारियों को मामले के निपटाने में देरी के लिए दोषी ठहराना ग़लत होगा। जबकि ऊपरी स्तर से विरोधाभासी इशारे हुए। यह साफ नहीं किया गया कि उन्हें क्या कार्रवाई करनी है। आज जो क़दम उठाए जा रहे हैं, अगर वो पहले उठाए जाते तो चीज़ें बेहतर हो सकती थीं।

लेकिन मरकज़ निज़ामुद्दीन को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने महामारी के दौर में भी हिंदू-मुस्लिम विभाजन बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया। कुछ दिन पहले ही सरकार ने कोर्ट में अर्जी लगाकर फेक न्यूज़ की आड़ में मीडिया की प्री-सेंसरशिप की बात कही थी। लेकिन इस बार सरकार ने तय किया कि देश में जारी मुस्लिम विरोधी माहौल को मिटने न दिया जाए।

सोशल मीडिया पर बहुत ज़हर भरी टिप्पणियां की गईं। बीजेपी सरकार को इन सब पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन स्वतंत्र मीडिया द्वारा लॉकडॉउन के पहले अधूरी तैयारी पर सवाल उठाया जाना सरकार को अखरता है।

कांग्रेस और कम्यूनिस्ट पार्टियों द्वारा सरकार की आलोचना के परिप्रेक्ष्य में देखें, तो पाएंगे कि इस सरकार की प्रवृत्ति खुद की ग़लतियों से ध्यान हटाने की है। जबकि महामारी के शुरूआती दौर में उठाए गए खराब क़दमों से ही इतनी उठापटक फैली है।

न्यायपालिका भी सरकारी मांगों के सामने खुद को समर्पित करती आई है। चाहे वह राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला हो या मौजूदा महामारी का दौरा, संवैधानिक आज़ादी की कटौती में वह सरकारी मांगें मानती आ रही है। ऐसा एक दम से नहीं हुआ, बल्कि धीरे-धीरे हुआ। सरकार समर्थक मीडिया द्वारा खुलकर विभाजनकारी एजेंडा चलाया गया। वह खुलकर कुछ भी बोलने के लिए आज़ाद हैं। जबकि इन पर लगाम लगाए जाने की ज़रूरत है, लेकिन यह लोग आराम से बच जाते हैं। जबकि जो लोग अपनी पेशेवर ज़िम्मेदारियां निभा रहे हैं, उनको सेंसर कर रोका जाता है।

इस वक़्त देश का कामगार वर्ग अपनी चिंताओं, संघर्ष की आवाज़ों के लिए मंच से मरहूम है। केवल स्वतंत्र मीडिया ही उनकी शिकायतों पर ग़ौर कर उनको हल करने की आशा जगाता है। अगर इस स्वतंत्र मीडिया पर लगाम लगा दी जाती है, तो इस कामगार वर्ग की अपनी आवाज़ को ऊपर उठाने की उम्मीद भी धूमिल हो जाएगी। क्योंकि सरकार नियंत्रित मीडिया या जंग लग चुका मीडिया कामगार वर्ग के बारे में कोई फ़िक्र नहीं करता।

स्वतंत्र मीडिया ने विभाजनकारी सांप्रदायिकता को हमेशा दूर करने की कोशिश की है। वह जंग लग चुके शिथिल मीडिया की तरह कट्टरपंथियों से डरता नहीं है। अगर प्रशासन सरकार समर्थक मीडिया से खुश है और स्वतंत्र मीडिया द्वारा की जाने वाली आलोचना से नाराज़ हो जाता है, तो इससे उनकी आलोचना सहने की शक्ति का पता लग जाता है। इससे यह भी दिखता है कि वे अपनी ग़लतियों को सुधारने के लिए कितने आतुर हैं।

इसके अलावा मीडिया को सरकार ने अहम सेवाओं वाली सूची में डाला है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी प्रेस से ज़मीनी फीडबैक देने के लिए कहा है, ताकि सरकार को स्वतंत्र आवाज़ों और इनपुट तक पहुंच मिल सके। इसके तहत ज़मीन से सच्ची रिपोर्टिंग करनी होगी। लोगों को प्रभावित करने वाले सवाल पूछने होंगे। पूछना होगा कि PPEs देने में इतनी देर क्यों हो रही है। पुलिस, स्वास्थ्य कर्मियों को N-95 मास्क और ग्लव्स जैसे साधन देने में क्यों लेट-लतीफ़ी की जा रही है, जबकि यह लोग कोरोना के ख़िलाफ़ जंग में सबसे आगे हैं। जब यात्री सेवाएं रोके जाने का फ़ैसला लिया गया, तब प्रवासी मज़दूरों और उनके परिवारों पर कोई विचार नहीं किया गया। जबकि विदेशी लोगों को यहां से बाहर भेजा जा रहा है और बाहर फंसे लोगों को देश में लाया जा रहा है। इतना ही नहीं, जिन्हें देश के बाहर-भीतर किया जा रहा है, उनकी अच्छे तरीक़े से स्क्रीनिंग भी की जा रही है। तो आख़िर केंद्रीय या राज्य स्तर पर 18 करोड़ 20 लाख प्रवासी के लिए कोई योजना क्यों नहीं बनाई गई? 

क्या यह बताना ग़लत है कि कैसे पुलिस ने प्रवासी मज़दूरों पर लाठी चार्ज किया। जबकि वह अपने घर जाने की कोशिश कर रहे थे, क्योंकि सरकार ने उनके और परिवार के लिए कोई कल्याण योजना नहीं बनाई। अब जब सरकार इन मज़दूरों की मदद के लिए आ रही है, तो वे उस पर कैसे भरोसा करें, जबकि उन्होंने देखा कैसे उन्हें सीधा करने के लिए कितने कठोर क़दम उठाए गए। उन्हें जेलों में तक ठूंसा गया।

क्या यह पूछना ग़लत है कि कोरोना से पहली पंक्ति में लड़ रहे लोगों को ऐसी परिस्थितियों में काम करने पर मजबूर क्यों किया जा रहा है, जिसमें उनकी ही जिंदगी को ख़तरा है। एक ऐसे वक़्त में जब दिल्ली, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की जेलों में जरूरत से ज्यादा भीड़ है, तब सरकार ने यह आदेश क्यों दिया है कि लॉकडॉउन का उल्लंघन करने वालों को जेल में डाल दिया जाए? क्या वो जेल के भीतर बंद लोगों, जेल प्रशासन और पुलिस के बारे में परवाह करते हैं? क्या इन मुद्दों और लॉकडॉउन लागू करने के लिए अपनाए जा रहे भयावह तरीकों पर विरोध नहीं करना चाहिए?

क्या सरकार इस बात में यकीन रखती है कि उससे किसी भी तरह के सवाल नहीं पूछे जा सकते? क्या सरकार को लगता है कि अबतक जारी ग़लत नीतियों को भूल जाया जाए और अब इनके नतीजे हमें महामारी के दौर में परेशान नहीं करेंगे? क्या सरकार को लगता है फ़िलहाल जो क़दम उठाए जा रहे हैं, वे अस्थायी और फौरी तौर पर सिर्फ राहत पहुंचाने के लिए नहीं हैं? क्या वो देश में सबकुछ ज्यों का त्यों छोड़ना चाहते हैं, ताकि उन्हें उनके ग़लत क़दमों और लंबी अवधि के कुप्रबंधन के लिए कोई दोषी न ठहराए।

क्या हमें यह नहीं पूछना चाहिए कि महामारी की आड़ में उत्तरप्रदेश सरकार नागरिकता संशोधन क़ानून की मुख़ालफ़त करने वालों को क्यों निशाना बना रही है?

अगर सरकार के क़दम इतने ही सही हैं, तो क्यों जम्मू-कश्मीर के लिए नई मूलनिवासी नीति की घोषणा की गई? क्यों सरकार ने प्रावधानों को ढीला कर बाहरी लोगों को मूलनिवासी प्रमाणपत्र को हासिल करना आसान बनाया? क्यों सरकार ने स्थानीय लोगों के लिए सरकारी नौकरियों को हासिल करने की स्थितियां कठिन कर दीं? जब प्रधानमंत्री ने हाल ही में बनाई गई अपनी पार्टी से वायदा किया था कि जम्मू-कश्मीर की डेमोग्राफी बदलने का सरकार का कोई इरादा नहीं है, तो क्यों नई मूलनिवासी नीति से यही किया जा रहा है? जब बीजेपी सरकार अपनी मनमर्जी करते हुए अपनी शैतानी योजनाओं को क्रियान्वित करती रहे, तब क्या हम नागरिकों को अपना मुंह बंद रखना चाहिए?

याद रखिए कि केवल स्वतंत्र मीडिया ही अपनी आत्मा से समझौता नहीं कर रहा है। वही मौजूदा दौर में सवाल उठाते हुए सरकार से कड़े क़दम उठाने की मांग कर रहा है। यह नियंत्रित मीडिया चाहे वह इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट या ऑनलाइन हो, उसके बिलकुल उलट है। यह नियंत्रित मीडिया खराब स्थितियों को छुपाते हुए लॉकडॉउन में ज़मीन पर लोगों की बुरी स्थित, आपूर्ति की कमी और योजना के आभाव की ख़बर\ें छुपा रहा है। मुझे लगता है कि अब जब प्रधानमंत्री मोर्चे पर आ चुके हैं और संपादकों-मालिकों से बात कर चुके हैं, तब ''सब चंगा सी'' वाली तस्वीर पेश कर नियंत्रित मीडिया जनता का बहुत नुकसान कर रहा है। 

स्वास्थ्यकर्मियों, निचले सरकारी अधिकारियों और पुलिस वालों के साथ-साथ स्वतंत्र मीडिया की तारीफ करनी होगी। इस वक़्त खराब कहानियों को ''संतुलित'' बनाने से कोई फायदा नहीं होगा।  अगर हम प्रशासन की मदद करना चाहते हैं, तो हमें स्थितियों का वैसा ही वर्णन करना होगा, जैसा हमें मिला। लेकिन बड़ी चिंताएं अब भी मौजूद हैं, महामारी के नाम पर इनसे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। अगर कोई आपदा चीजें ठीक करने के लिए एक मौका है, तो स्वतंत्र मीडिया के पास एक मौका है कि वो ग़लत क़दमों को बताए औऱ सरकार को अपनी जिम्मेदारियां याद दिलाए।  सबकुछ नियंत्रण पसंद करने वाली सरकार के भरोसे छोड़ देना ग़लत साबित हुआ है। नतीजे देने के लिए सरकार पर दबाव बनाने की जरूरत होती है।

अहम बात यह है कि एक मजबूत सरकार ने आलोचना और अच्छी रिपोर्टिंग का स्वागत किया होता। उन्होंने रिपोर्टिंग की मदद से जरूरी सुधार किए होते। लेकिन एक कमजोर सरकार सिर्फ खुद की रेटिंग और लोकप्रियता के नज़रिए से सोचती है, ना कि लोक कल्याण के हिसाब से। इसलिए बीजेपी की नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को समझना चाहिए कि वे कितना भी स्वतंत्र मीडिया और आलोचना को दबाने की कोशिश करें, लेकिन शुरूआती स्तर पर ही उठाए गए क़दम काफ़ी प्रभाव डालते हैं। अमीर और ग़रीब के बीच की खाई बहुत चौड़ी है। यह सिर्फ भरोसे की बातों से नहीं भरेगी। इसके लिए कुछ मज़बूत क़दम उठाने होंगे।

जब तक यह नहीं होता, स्वतंत्र मीडिया, सजग नागरिकों को दबाना या उनसे गाली-गलौज नहीं करनी चाहिए।

लेखक मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं, यह उनके निजी विचार हैं।

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

Covid-19: Independent Media is Antidote to Chaos, Don’t Censor it

COVID-19
Independent media
Jamaat
Markaz Nizamuddin
Narendra modi
CAA-NPR-NRC
BJP government

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा

कोरोना अपडेट: देश में आज फिर कोरोना के मामलों में क़रीब 27 फीसदी की बढ़ोतरी


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License