NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
शिक्षा
भारत
राजनीति
केंद्रीय विश्वविद्यालयों में तदर्थ शिक्षकों की तादाद का सरकारी आंकड़ा “गुमराह” करने वाला
डूटा ने सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जोर दे कर कहा कि पिछले महीने लोक सभा में केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए आंकड़ों के विपरीत मौजूदा समय में दिल्ली विश्वविद्यालय में लगभग 4500 तदर्थ शिक्षक कार्यरत हैं।
रौनक छाबड़ा
18 Aug 2021
DUTA

नई दिल्ली:  दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने सोमवार को केंद्र सरकार की इस बात के लिए निंदा कीकि उसने संसद के हालिया संपन्न मानसून सत्र में देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कार्यरत तदर्थ (एडहॉक) शिक्षकों की तादाद के बारे में “तथ्यों को गलत तरीके से पेश” किया। शिक्षकों ने आरोप लगाया कि ऐसा करके सरकार ने देश को “गुमराह” किया है।

दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) ने सोमवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर तदर्थ शिक्षकों की तादाद के बारे में शिक्षक निकायों द्वारा जमा किए गए आंकड़ों को मीडिया के सामने पेश किया और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के संसद में दिए गए आंकड़ों का खंडन किया।

ऑनलाइन आयोजित इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में डूटा ने अस्थाई शिक्षकों के समावेशन के लिए एक बार के नियमन की उसकी चिर लंबित मांग को मानने पर जोर दिया।

मानसून सत्र के दौरान लोक सभा में देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में तदर्थ आधार पर काम करने वाले शिक्षकों से जुड़े एक सवाल के जवाब में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने विभिन्न विश्वविद्यालयों में काम करने वाले शिक्षकों की नियुक्तियों के आंकड़े पेश किए थे।

इन आंकड़ों के मुताबिक, 2021 के अप्रैल महीने तक देश के सभी 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुल 74 तदर्थ शिक्षक काम कर रहे हैं। इनमें  सबसे ज्यादा 58 शिक्षक दिल्ली विश्वविद्यालय में विभिन्न विषयों में कार्यरत हैं।

सोमवार को डूटा ने कहा कि सरकार द्वारा पेश किए आंकड़े “शर्मनाक” हैं और वह “तथ्यों से एकदम अलहदा तस्वीर” पेश करते हैं। इस शिक्षक निकाय ने एक प्रेस वक्तव्य में कहा, “यह जानी-मानी वास्तविकता है कि अकेले दिल्ली विश्वविद्यालय में ही 4500 शिक्षक तदर्थता के आधार पर कार्यरत हैं और यह तादाद नियमित रूप से बढ़ रही है क्योंकि विगत 10 वर्षों से एक भी पूर्णकालिक नियुक्ति नहीं की गई है और कई शिक्षक इस अंतरिम अवधि में सेवानिवृत्त हो गए हैं।”

डूटा की कोषाध्यक्ष आभा देव हबीब ने स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार कैसे देश को “गुमराह” करती है। उन्होंने प्रेस को संबोधित करते हुए कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के अंगीभूत महाविद्यालयों की तदर्थ नियुक्तियों को केंद्रीय विश्वविद्यालय की तदर्थ नियुक्ति की कुल तादाद में नहीं शामिल किया जाता है।”

दिल्ली विश्वविद्यालय एक कॉलेजिएट विश्वविद्यालय है, जिसमें 60 से अधिक अंगीभूत महाविद्यालय हैं, जिनमें  विज्ञान, मानविकी और समाज विज्ञान विषयों में अंडर ग्रेजुएट स्तर की पढ़ाई की जाती है-जिनकी स्कूली शिक्षा पूरी करने वाले पूरे देश के छात्रों के बीच भारी मांग है।

हबीब के मुताबिक, इन कॉलेजों में की गई तदर्थ नियुक्तियों पर विचार भी नहीं किया जाता। केवल केंद्रीय विश्वविद्यालय के विभिन्न संकायों में की गई तदर्थ नियुक्ति की ही गिनती की जाती है और उसी के आंकड़ों को ही संसद में पेश किया जाता है।

उन्होंने कहा, “देश के अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली एकात्मक है, जबकि दिल्ली विश्वविद्यालय का ढांचा संघीय प्रशासनिक चरित्र वाला है।”

डूटा के अध्यक्ष राजीब रे ने केंद्र के आंकड़े को “तथ्यों का गलत प्रस्तुतीकरण” बताया।

इसके अलावा, केंद्र सरकार द्वारा साझा किए गए आंकड़े से यह भी जाहिर होता है कि देश में तदर्थ शिक्षकों की तादाद में साल दर साल में कमी हुई है। इसलिए कि सरकारी आंकड़ों में दावा किया गया है कि 2019 में देश में कुल 551 शिक्षक थे तो 2020 में मात्र 208 शिक्षक ही तदर्थ आधार पर काम कर रहे थे। यही ट्रेंड दिल्ली विश्वविद्यालय में भी दिखाया जा रहा है।  देश  के इस प्रमुख केंद्रीय विश्वविद्यालय में 2019 में 102 अस्थाई शिक्षक काम कर रहे थे जबकि पिछले वर्ष यानी 2020 में उनकी संख्या 76 थी।

केंद्र सरकार द्वारा संसद में पेश किए गए आंकड़ों पर प्रतिवाद करते हुए डूटा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने आंकड़े पेश किए। इसके मुताबिक, दिल्ली विश्वविद्यालय के संकायों की कुल क्षमता- लगभग 10,000 से कुछ अधिक-के 40 फीसदी पदों पर तदर्थ शिक्षकों से ही काम लिया जा रहा है। इनमें से, आधे से अधिक महिलाएं ही हैं जबकि 60 फ़ीसदी पदों पर पीएचडी डिग्रीधारी शिक्षक कार्यरत हैं।

डूटा के पूर्व अध्यक्ष आदित्य नारायण मिश्रा ने कहा कि ये आंकड़े में अस्थाई शिक्षकों की “वेदना एवं यंत्रणा” की तरफ इशारा करते हैं, जो काफी योग्य होते हुए भी अपने पेशेवर जीवन में भारी अनिश्चितता का सामना करते हैं।

मिश्रा ने कहा कि “इन शिक्षकों को अपनी बात कहने की आजादी तक नहीं है... शिक्षिकाओं को भी काफी कुछ झेलना पड़ता है, इसलिए कि एडहॉक के रूप में काम करने पर उन्हें मातृका अवकाश और अन्य लाभ नहीं मिल पाते हैं।”

ड़ूटा की वर्षों से एक मुख्य शिकायत रही है, जिसे वह अपने प्रदर्शनों एवं ह़़ड़ताल के जरिए सबके सामने लाने की भरसक कोशिश की है, वह है-विश्वविद्यालय के सभी तदर्थ शिक्षकों का एक ही समय में समावेशन कर लिया जाए। गौरतलब है कि न्यूज़क्लिक ने इसके पहले  भी अपनी रिपोर्टिंग में यह दिखाया है कि स्थाई शिक्षकों की तुलना में तदर्थ शिक्षक लगभग सभी प्रकार के सामाजिक सुरक्षा-लाभों से वंचित रह जाते हैं।

डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (डीटीएफ) की नंदिता नारायण, जो डूटा की पूर्व अध्यक्ष रहीं हैं,  ने कहा कि राष्ट्र के लिए शिक्षा नीति का मसौदा तैयार करते समय हमारे राष्ट्र के संस्थापकों की चिंता के केंद्र में शिक्षक और उनकी सेवा शर्तें थीं।

“हालांकि हाल के दशकों में इसकी पूरी तरह से उपेक्षा की गई है और फिर, नव उदारवादी हमलों से उसे चुनौती भी दी जा रही है।” इसके बावजूद यह तदर्थ शिक्षकों की कार्यक्षमता है, जिसके बिना पर दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षा की गुणवत्ता बनी हुई है।

इसके अलावा, जुलाई में, शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तदर्थ शिक्षकों के डेटा को साझा करते हुए यह भी दावा किया कि  इन तदर्थ शिक्षकों को स्थायी शिक्षक के रूप में समावेशन के लिए विश्वविद्यालय सेवा आयोग में समक्ष कोई “प्रस्ताव विचाराधीन” नहीं है। मंत्री की इस घोषणा से डूटा को “सदमा” लगा है।

विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (नेप)-2020 के लिए केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया और उस पर कोविड-19 की आड़ में शिक्षण के तरीके में तोड़-मरोड़ करने का आरोप लगाया। एक वक्तव्य में डूटा ने कहा, “उच्च शिक्षा के लिए सरकार द्वारा जिस तरह के पुनर्गठन की परिकल्पना की गई है, उसका तात्पर्य अनुदान की बजाय आवंटन में कटौती और ऋण पर निर्भरता बढ़ाना है। यह सीधे-सीधे उच्च कक्षाओं के छात्रों की फीस पर असर डालेगा और उनके लिए रोजगार के अवसर थोड़े रह जाएंगे, खास कर उन विषयों में जो बाजार की मांग के मुताबिक नहीं हैं या इस लिहाज से कमजोर हैं।”

इसी बीच, डूटा ने कहा कि वह दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप)  सरकार के विरोध में दो दिनी हड़ताल-17 एवं 18 अगस्त को- करेगा। दिल्ली सरकार के वित्तीय कोष पर चलने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय के 12 कॉलेज के शिक्षक मौजूदा संकट के और गहराने के लिए सरकार की कड़ी आलोचना कर रहे हैं।

इसी तरह अनेक ऐसे मसलों में एक है इन वित्त पोषित कॉलेजों के शिक्षकों में वेतन भुगतान में आगे से देरी न होने देने का आश्वासन, जिन्हें लेकर शिक्षक निकाय काफी दिनों ने दबाव डालते रहे हैं।

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

https://www.newsclick.in/DU-teachers-counter-centre-misleading-data-ad-hoc-postings-central-varsities

DUTA
DUTA protest
Ad-hoc Teachers
Parliament

Related Stories

डीयूः नियमित प्राचार्य न होने की स्थिति में भर्ती पर रोक; स्टाफ, शिक्षकों में नाराज़गी

नई शिक्षा नीति ‘वर्ण व्यवस्था की बहाली सुनिश्चित करती है' 

डीयू: एनईपी लागू करने के ख़िलाफ़ शिक्षक, छात्रों का विरोध

डीयू वेतन संकट: शिक्षक और कर्मचारियों की जीत, लेकिन संघर्ष जारी

दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने वेतन नहीं मिलने के विरोध में की हड़ताल

दिल्ली विश्वविद्यालय: हाईकोर्ट ने कहा, 'शिक्षकों को ऐसे परेशान होते नहीं छोड़ा जा सकता है'

दिल्ली में ऑनलाइन शिक्षा और फ़ीस बढ़ोत्तरी को लेकर शिक्षक और छात्रों ने आवाज बुलंद की

मोदी सरकार की नई शिक्षा नीति एक और विनाशकारी दुस्साहस!

ओपन बुक परीक्षा: अन्याय और भेदभाव पर आधारित

परीक्षाओं को रद्द करने की मांग को लेकर छात्रों का देशव्यापी प्रदर्शन


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License