NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
दिल्ली ने नफ़रत को नामंज़ूर किया!
दिल्ली का पूरा चुनाव बीजेपी ने व्यक्ति के तौर पर अमित शाह के नाम पर और राजनीति के तौर पर नफ़रत के सहारे लड़ा, लेकिन इन दोनों को ही दिल्ली वालों ने नकार दिया।
मुकुल सरल
11 Feb 2020
Amit Shah
Image courtesy: Twitter

दिल्ली चुनाव में जीते तो केजरीवाल हैं, लेकिन हारा कौन? निश्चित तौर पर बीजेपी। लेकिन बीजेपी में भी कौन? वही जिसके नाम पर पूरा चुनाव लड़ा गया और वह एक नाम है अमित शाह।

जी हां, आप इस ग़लतफहमी में मत रहना कि इस चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी या नये नवेले राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की हार हुई है। या फिर किसी और उम्मीदवार की हार हुई है। जिस तरह अब गोदी मीडिया साबित करना चाहता है। जिसने सुबह से अपने बीजी-स्टिंग में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के चेहरे की बजाय मनोज तिवारी और जेपी नड्डा का चेहरा लगाना शुरू कर दिया। जबकि इससे पहले वही मीडिया अमित शाह को चुनाव का चाणक्य और न जाने क्या-क्या नाम से पुकार रहा था। इस चुनाव में वही चाणक्य धड़ाम से गिर गए।

दिल्ली का पूरा चुनाव बीजेपी ने व्यक्ति के तौर पर अमित शाह के नाम पर लड़ा और राजनीति के तौर पर नफ़रत की राजनीति के सहारे लड़ा लेकिन इन दोनों की ही इस चुनाव में हार हुई है।

वास्तव में अगर इस चुनाव में बीजेपी जीतती तो उसका सारा श्रेय अमित शाह और उनकी रणनीति को ही जाता। यह पहली बार था कि देश के किसी भी राज्य के चुनाव की तरह पोस्टर पर चेहरा तो दिल्ली में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दिया गया लेकिन चुनाव वास्तव में गृहमंत्री अमित शाह लड़ रहे थे। यही अमित शाह पहली बार दिल्ली की सड़कों पर खुद पर्चा बांटने उतरे। पहली बार उन्होंने खुद को पूरी तरह दांव पर लगाया और 70 सीटों के लिए करीब 60 छोटी-बड़ी सभाएं कीं। उन्होंने ही नारा दिया कि ईवीएम का बटन इतनी ज़ोर से दबना चाहिए कि करंट शाहीन बाग़ तक पहुंचे। हर सभा में उन्होंने इसे दोहराया। लेकिन हुआ इसके उलट करंट शाहीन बाग की बजाय प्रधानमंत्री निवास और गृहमंत्री निवास पर पहुंच गया।

व्यक्ति के तौर पर दिल्ली ने गृहमंत्री अमित शाह को नामंज़ूर किया और राजनीति के तौर पर नफ़रत की राजनीति को नकार दिया।

AMIT SHAH CAA.jpg

अमित शाह का जलवा या ख़ौफ़ उसी दिन टूट गया जब लाजपत नगर में दो लड़कियों ने उनके सामने सीएए के विरोध में बैनर लहरा दिया था। अमित शाह के मुख्य सिपाहसलारों के तौर पर सांसद और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, सांसद प्रवेश वर्मा, तेजिन्दर पाल सिंह बग्गा, कपिल मिश्रा मैदान में उतरे और एक से बढ़कर एक नफ़रती बयान दिए। नफ़रत की राजनीति जिसमें न सिर्फ गोली मारों के नारे लगाए गए, बल्कि गोली मारने के लिए भी लोग सड़कों पर उतारे गए। जिन्होंने कभी जामिया और कभी शाहीन बाग़ में तमंचे लहराए और गोलियां दागी। इससे पहले जेएनयू हमला और चुनाव से ऐन पहले गार्गी कॉलेज में यौन हमला। ये सब एक ख़ास राजनीति और रणनीति के तहत ही हुआ। 8 तारीख़ चुनाव के दिन को हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के बीच मुकाबला बना दिया गया लेकिन दिल्ली वालों ने सबको नकार दिया। 

हां, जिताया उसने हिन्दुस्तान को ही, लेकिन अमित शाह या कपिल मिश्रा के नफ़रती हिन्दुस्तान को नहीं बल्कि शाहीन बाग़ वाले विविधता और प्यार भरे हिन्दुस्तान को। जहां आज भी इस देश और इसके लोकतंत्र और संविधान को बचाने की जद्दोजहद जारी है। शाहीन बाग इस चुनाव का एक मुख्य मुद्दा था और इस तरह इस वोट को सीएए-एनआरसी के ख़िलाफ़ भी वोट कहा जा सकता है। हालांकि मैं इसे सीएए-एनआरसी के ख़िलाफ़ जनादेश कहने में अभी थोड़ी सी सतर्कता बरतूंगा, लेकिन इतना तय है कि बीजेपी भी सीएए या एनआरसी के नाम पर वोटों का ध्रुवीकरण नहीं कर पाई यानी लोगों ने इस मुद्दे को उसके हिन्दू-मुसलमान एजेंडे के तौर पर स्वीकार नहीं किया जैसा बीजेपी चाहती थी।

इस तरह वास्तव में यह चुनाव काम बनाम सांप्रदायिकता के बीच हुआ, जिसमें निश्चित तौर पर सांप्रदायिकता की हार हुई। लेकिन कुछ पत्रकार और चैनल अब इसे “मुफ्त में हारी बीजेपी?” का नाम दे रहे हैं। यह वही कथित पत्रकार और चैनल हैं जो एग्ज़िट पोल में ही आम आदमी पार्टी की जीत देखकर बौखला गए थे और सियापा करने लगे थे। इन लोगों ने दिल्ली की जनता की समझदारी पर ही सवाल उठा दिए थे और उसे आलसी, शराबी और मुफ़्तख़ोर तक बता दिया था यही पत्रकार अब रिजल्ट आने पर ये बता रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल की बिजली-पानी की मुफ्त योजनाओं की वजह से बीजेपी हार गई।

लेकिन ये लोग भूल गए कि बीजेपी ने तो स्कूटी तक मुफ्त में देने का ऐलान कर दिया था। और इसके अलावा किसी भी लोक कल्याणकारी राज्य में बिजली-पानी, शिक्षा-स्वास्थ्य मुफ्त या कम से कम दामों में उपलब्ध कराना मुफ्तखोरी नहीं बल्कि जनता का हक़ और सरकारों की ड्यूटी है। 

Delhi Assembly Election 2020
Delhi Election Result
AAP
Arvind Kejriwal
AAP wins
BJP
Amit Shah
Delhi Rejected Hate Politics
Hate Speech by BJP
Shaheen Bagh
CAA
NRC
NPR
hindu-muslim
Religion Politics
manoj tiwari

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

मुंडका अग्निकांड: 'दोषी मालिक, अधिकारियों को सजा दो'

मुंडका अग्निकांड: ट्रेड यूनियनों का दिल्ली में प्रदर्शन, CM केजरीवाल से की मुआवज़ा बढ़ाने की मांग


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा
    27 May 2022
    सेक्स वर्कर्स को ज़्यादातर अपराधियों के रूप में देखा जाता है। समाज और पुलिस उनके साथ असंवेदशील व्यवहार करती है, उन्हें तिरस्कार तक का सामना करना पड़ता है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से लाखों सेक्स…
  • abhisar
    न्यूज़क्लिक टीम
    अब अजमेर शरीफ निशाने पर! खुदाई कब तक मोदी जी?
    27 May 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा चर्चा कर रहे हैं हिंदुत्ववादी संगठन महाराणा प्रताप सेना के दावे की जिसमे उन्होंने कहा है कि अजमेर शरीफ भगवान शिव को समर्पित मंदिर…
  • पीपल्स डिस्पैच
    जॉर्ज फ्लॉय्ड की मौत के 2 साल बाद क्या अमेरिका में कुछ बदलाव आया?
    27 May 2022
    ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन में प्राप्त हुई, फिर गवाईं गईं चीज़ें बताती हैं कि पूंजीवाद और अमेरिकी समाज के ताने-बाने में कितनी गहराई से नस्लभेद घुसा हुआ है।
  • सौम्यदीप चटर्जी
    भारत में संसदीय लोकतंत्र का लगातार पतन
    27 May 2022
    चूंकि भारत ‘अमृत महोत्सव' के साथ स्वतंत्रता के 75वें वर्ष का जश्न मना रहा है, ऐसे में एक निष्क्रिय संसद की स्पष्ट विडंबना को अब और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    पूर्वोत्तर के 40% से अधिक छात्रों को महामारी के दौरान पढ़ाई के लिए गैजेट उपलब्ध नहीं रहा
    27 May 2022
    ये डिजिटल डिवाइड सबसे ज़्यादा असम, मणिपुर और मेघालय में रहा है, जहां 48 फ़ीसदी छात्रों के घर में कोई डिजिटल डिवाइस नहीं था। एनएएस 2021 का सर्वे तीसरी, पांचवीं, आठवीं व दसवीं कक्षा के लिए किया गया था।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License