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दिल्ली: कुछ अच्छा नहीं है कोरोना मरीज़ों का हाल, केजरीवाल सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल
राजधानी दिल्ली में लगातार कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के बीच बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का दावा और वादा करने वाली आम आदमी पार्टी की सरकार पर इन दिनों स्वास्थ्य व्यवस्था और टेस्टिंग को लेकर गंभीर आरोप लग रहे हैं।
सोनिया यादव
06 Jun 2020
कोरोना वायरस

27 मई को कोरोना की जांच के बाद विकास का 3 जून को रिजल्ट पॉजिटिव आता है। इसके बाद उन्हें होम क्वारिंटिन की सलाह दी जाती है, मेडिकल टीम घर पर आएगी इसका भी आश्वासन मिलता है, लेकिन बावजूद इसके अभी तक विकास को न तो कोई मेडिकल सलाह मिली है न ही उनके घर को सेनेटाइज़ किया गया है। यहां ये भी बताना जरूरी है कि विकास के पिता भी कोविड-19 के चलते हॉस्पिटल में भर्ती हैं।

कोरोना वायरस की तैयारी और दिल्ली सरकार के बड़े-बड़े दावों की पोल खोलती विकास की ये आपबीती केजरीवाल सरकार के साथ-साथ दिल्ली के अस्पतालों और सरकारी सिस्टम पर भी कई बड़े सवाल खड़े करती है।

इस वक्त दिल्ली में कुल कोरोना मरीजों की संख्या 25 हजार के पार पहुंच गई है, लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाज हालात बेकाबू होने की बात स्वीकारना तो दूर इससे इत्तेफ़ाक भी नहीं रखते। मुख्यमंत्री की लगातार दिल्ली के अच्छे हेल्थ सिस्टम की दुहाई लोगों की जान बचाने के काम नहीं आ रही। आलम ये है कि महाराष्ट्र के बाद दिल्ली में सबसे ज्यादा एक्टिव केसों की संख्या है, वहीं मौत के मामलों में दिल्ली देशभर में तीसरे स्थान पर है।

होम क्वारंटीन लेकिन कोई मेडिकल सुविधा नहीं

अब फिर लौटते हैं विकास की कहानी पर। विकास के छोटे भाई विवेक ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में बताया, “26 मई, मंगलवार के दिन विकास को बुखार के साथ गले में इंफेक्शन महसूस हुआ। उन्हें लगा की उनके सूंघने की शक्ति पर भी असर हो रहा है तो उन्होंने जांच कराने का फैसला किया। इसके बाद उन्होंने 1075 हेल्पलाईन नंबर पर फोन किया। उन्हें पास के सेंटर की जानकारी मिली साथ ही ये भी कहा गया कि आपका टेस्ट तभी हो सकता है जब आप किसी सरकारी डॉक्टर से इसकी अनुमति लेकर आएं।”

दो दिन के बजाय सात दिन में आई रिपोर्ट

इसके बाद विकास का 27 मई को कोरोना टेस्ट हो गया लेकिन इसकी रिपोर्ट जो अमूमन दो दिन में आनी होती है, उसे आने में लगभग हफ्तेभर का समय लग गया यानी रिपोर्ट आई 3 जून को। जिसके बाद से विकास होम क्वारंटीन पर हैं और अभी तक उन्हें सरकारी सिस्टम से कोई मदद नहीं मिली है।

विवेक के दोस्त सुबोध मिश्रा, जो एक पत्रकार हैं उन्होंने सोशल मीडिया पर इस संबंध में एक वीडियो पोस्ट कर विवेक के पिता और भाई के हालात की गंभीरता बताई है। सुबोध के अनुसार, 29 मई को विकास के पिता जो कि बुजुर्ग हैं और पहले से कई बीमारियों से ग्रसित हैं, उन्हें भी बुखार हो जाता है। जिसके बाद विकास अपने पिता को टेस्ट के लिए राममनोहर लोहिया अस्पताल यानी आरएमएल ले जाते हैं। इसके बाद उनके पिता का टेस्ट होता है लेकिन इसकी रिपोर्ट भी दो दिन में नहीं मिल पाती। जिस दिन विकास की रिपोर्ट आती है यानी तीन जून उसी विवेक आरएमएल में अपने पिता की रिपोर्ट भी पता करते हैं लेकिन उन्हें तब रिपोर्ट नहीं मिलती। हालांकि उनके घर पर एक फोन आ जाता है जिसमें पिता के पॉजिटिव होने की बात बताई जाती है।

रिपोर्ट की हार्ड कॉपी नहीं तो अस्पताल में भर्ती नहीं

सुबोध बताते हैं कि विवेक के परिवार में दो कोरोना पॉजिटिव मामलों की पुष्टि होने के बाद 1075 पर फोन करके परिवार मदद की गुहार लगाता है लेकिन कोई मदद नहीं मिलती। जब पिता की तबीयत खराब होने लगती है तो एंबुलेंस मंगवाई जाती है, लेकिन राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में पहुंचने पर पिता को एडमिट करने से मना कर दिया जाता है क्योंकि उनके पास रिपोर्ट की हार्ड कॉपी नहीं होती। सुबोध रात के करीब 1 बजे आरएमएल ट्रामा सेंटर से जैसे-तैसे एक डॉक्टर के माध्यम से फोन में रिपोर्ट का जुगाड़ तो कर लेते हैं, लेकिन जब तक ये सब होता है एंबुलेस वाला विवेक के पिता को वापस घर की ओर मोड़ देता है, क्योंकि एक एंबुलेंस वाला सिर्फ 3 घंटे ही एक मरीज को दे सकता है। और ये सब तब होता है जब सत्ताधारी पार्टी के विधायक दिलीप पांडे विवके के लगातार टच में थे, मदद की कोशिश कर रहे थे।

परिवार के अन्य संदिग्ध लोगों का नहीं हो रहा टेस्ट

विवेक कहते हैं, “तमाम जदोजहद के बाद उनके पिता को अगले दिन 4 जून को जैसे-तैसे एडमिट तो कर लिया गया लेकिन उचित इलाज नहीं मुहैया कराया गया। इसे लेकर विवेक ने जब सोशल मीडिया का सहारा लेकर ट्वीटर पर इसकी शिकायत की तो डॉक्टर ने उनके पिता से कहा कि अपने बेटे को बोल दो कि ये सब बंद कर दे, नहीं तो इलाज नहीं होगा।”

विवेक के मुताबिक वो अपने परिवार के बाक़ी चार लोग यानी अपनी मां, भाभी, बहन और खुद का भी कोरोना टेस्ट करवाना चाहते हैं लेकिन उन्हें सिस्टम की ओर से कोई सहायता नहीं मिल पा रही है।

“मेरे पिता नहीं रहे, सरकार विफल साबित हुई”

बहरहाल ये कहानी सिर्फ विकास के परिवार की ही नहीं है। कई और लोग भी इस महामारी में सिस्टम की बदहाली का शिकार हो रहे हैं। गुरुवार, 4 जून को सुबह आठ बजकर पांच मिनट पर अमरप्रीत के ट्विटर हैंडल से एक ट़्वीट होता है, "मेरे पिता को बहुत बुखार है। उन्हें जल्द से जल्द अस्पताल में भर्ती कराना होगा। मैं उन्हें लेकर लोक नायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल के बाहर खड़ी हूं, लेकिन डॉक्टर उन्हें भर्ती नहीं कर रहे हैं। उन्हें कोरोना है। तेज बुखार है, वे सांस नहीं ले पा रहे हैं। बिना मदद के जिंदा नहीं रह पायेंगे।"

उसके ठीक 16 मिनट बाद आठ बजकर 21 मिनट पर मदद की आस में दोबारा यही मैसेज ट़्वीट किया जाता है। और फिर इसके ठीक 47 मिनट बाद एक और ट़्वीट आता है जिसमें लिखा होता है, “वो नहीं रहे, सरकार ने हमें विफल साबित कर दिया"। जिसका सीधा मतलब था अमरप्रीत के पिता नहीं रहे, सरकार नाकाम साबित हुई।

दिल्ली की सत्ता में काम के नाम पर वापसी करने वाली आम आदमी पार्टी की सरकार पर इन दिनों स्वास्थ्य से जुड़े कई गंभीर सवाल उठ रहे हैं। जिसके पर्याप्त कारण भी हैं।

हेल्पलाइन नंबर काम नहीं कर रहे

मुख्यमंत्री केजरीवाल ये कहते नहीं थक रहे कि ‘अगर आप कोरोना पॉजिटिव हो गए हैं, तो घबराइए नहीं सरकार ने आपके इलाज की पूरी व्यवस्था कर रखी है। आप सरकारी हेल्पलाइन नंबर पर फोन कर के जानकारी दीजिए, आपकी मदद की जाएगी, आपके घर सरकारी मेडिकल टीम भी सलाह देने आएगी।’ लेकिन हकीकत ये है कि दिल्ली स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट पर दिए हेल्पलाइन नंबर काम नहीं कर रहे। लोगों की शिकायत है कि इन नंबरों पर फोन ही नहीं लगते हैं।

न्यूज़क्लिक ने भी सत्यता जानने के लिए इन हेल्पलाइन नंबरों पर कई बार फोन किया लेकिन हमारा संपर्क नहीं हो पाया। हर बार फोन बिज़ी आ रहा था। यही हाल दिल्ली के सरकारी अस्पतालों का भी है। अधिकतर अस्पताल फोनकॉल का जवाब ही नहीं दे रहे।

दिल्ली कोरोना मोबाइल ऐप की जानकारी सही नहीं

हाल ही में 2 तारीख को मुख्यमंत्री केजरीवाल ने दिल्ली कोरोना मोबाइल ऐप की जानकारी साझा करते हुए कहा था कि ये ऐप आपको दिल्ली के सभी कोविड अस्पतालों और उनमें उपलब्ध बेड की जानकारी देगा। सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में कहां कितने बेड खाली हैं, इसकी स्थिति बताएगा। इसका डेटा दिन में दो बार यानी सुबह 10 बजे और शाम को 6 बजे अपडेट किया जाएगा।

हालांकि कई लोगों का आरोप है कि इस ऐप में दी गई जानकारियां सही नहीं है। ऐप में दिए फोन नंबरों पर कोई कॉल नहीं उठाता तो वहीं कई बार अस्पताल और बेड की जानकारी भी गलत होती है।

कोविड अस्पतालों में कोई जानकारी देने को तैयार नहीं

आस्था (बदला हुआ नाम, क्योंकि वे दिल्ली सरकार की एक कर्मचारी हैं और अपना नाम जाहिर नहीं करना चाहती) बताती हैं, “मेरे ससुर को कोरोना जांच के लिए ले जाना था। हमने ऐप पर अस्पतालों और बेड की संख्या देखी। हमें कई अस्पतालों में बेड खाली दिखाई दिया, लेकिन जब हमने उन अस्पतालों से संपर्क किया तो हमें कोई जवाब नहीं मिला। फिर हमने खुद जाकर चेक करने का फैसला किया, इसके बाद हम घंटों यहां से वहां भागते रहे। कोई हेल्प डेस्क या किसी कोविड अस्पताल में कोई जानकारी देने को तैयार नहीं था। जैसे-तैसे आरएमएल में टेस्ट हुआ तो वहां रिपोर्ट लेने का और टेस्ट का टाइम फिक्स है, सिर्फ सुबह 9 बजे से दोपहर 3 बजे तक ही रिपोर्ट मिल सकती है। ऐसे में अगर मरीज की तबीयत खराब हो जाए तो वो भगवान भरोसे है।”

टेस्ट के लिए लंबी लाइन और स्क्रीनिंग

आस्था आगे कहती हैं “दिल्ली के जिन अस्पतालों में कोरोना की जांच हो रही है वहां लंबी-लंबी लाइने लगी हैं। टेस्ट से पहले मरीज की स्क्रीनिंग होती है। फिर जिन मरीजों को जांच के लायक समझा जाता है सिर्फ उनकी जांच ही होती है। जांच के रिज़ल्ट पॉजिटिव आने पर भी अगर स्थिति गंभीर नहीं होती तो होम क्वारंटीन के लिए कहा जाता है। अब हम दिल्ली में दो कमरों के मकान में पांच लोग कैसे इसे फॉलो कर सकते हैं।”

इस संबंध में हमने दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय से ईमेल के जरिए सवाल पूछे हैं। खबर लिखने तक हमें कोई जवाब नहीं मिला है।

टेस्टिंग कम करने के आदेश

गुजरात सरकार की तरह ही दिल्ली सरकार पर भी कम टेस्टिंग के जरिए संक्रमितों की सही संख्या छुपाने का आरोप लग रहा है। इसकी प्रमुख वजह मीडिया रिपोर्ट्स में दिल्ली सरकार का वो आदेश है जिसमें प्राइवेट लैब के मालिकों से कहा है कि वो टेस्टिंग की संख्या कम करें, ख़ासकर एसिंप्टोमैटिक मतलब बिना लक्षण वाले मरीज़ों की टेस्टिंग।

दिल्ली स्वास्थ्य विभाग का तर्क है कि बिना लक्षणों वाले या हल्के लक्षणों वाले मरीज़ टेस्ट करा रहे हैं और कोविड-19 पॉज़िटिव आने पर अस्पतालों में भर्ती हो रहे हैं। अगर अस्पताल कम गंभीर या बिना लक्षणों वाले मरीज़ों से भर जाएंगे तो गंभीर रूप से बीमार मरीज़ों के इलाज में कठिनाइयां आएंगी। सरकार अभी अपना ध्यान सिंप्टोमैटिक (लक्षणों वाले मरीज़) मरीज़ों पर केंद्रित करना चाहती है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक़ प्राइवेट लैब के निजी अस्पतालों के प्रतिनिधियों का कहना है कि एसिंप्टोमैटिक मरीज़ों की टेस्टिंग इसलिए ज़रूरी है ताकि अस्पताल में कोविड और ग़ैर-कोविड मरीज़ों को अलग-अलग रखा जा सके।

हालांकि विशेषज्ञों का भी कहना है कि भारत में बिना लक्षण वाले मरीज़ों की संख्या काफ़ी ज़्यादा है इसलिए भी एसिंप्टोमैटिक मरीज़ों का टेस्ट ज़रूरी है क्योंकि ज्यादातर संक्रमण यहीं से फैल रहा है।

टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक दिल्ली के लोकनायक अस्पताल में शवगृह इस क़दर भर चुका है कि कई शवों को ज़मीन पर एक के ऊपर एक लादकर रखना पड़ रहा है। इतना ही नहीं, कोविड-19 की वजह से मरे लोगों का मौत के पाँच दिनों बाद भी अंतिम संस्कार नहीं हो पा रहा है। निगम बोध घाट, पंजाबी बाग़ और सीएनजी शवदाह गृह से शवों को लौटाया जा रहा है।

बता दें कि इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए सरकार से जवाब मांगा है। हाईकोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार शवों के प्रबंधन के लिए अपने ही दिशा-निर्देशों का पालन नहीं कर पा रही है।

इस संबंध में दिल्ली सरकार ने अदालत से कहा था कि कोविड-19 से जुड़े मामलों में मौतों का आँकड़ा अचानक बढ़ने से शवों के प्रबंधन में कठिनाई आ रही है।

काम के नाम पर आई सरकार नाकाम हो रही है

दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था पर पब्लिक हेल्थ रिसर्चर जोशिता सिंह का मानना है कि विश्व स्वाथ्य संगठन की गाइडलाइंस की मानें तो कोरोना संक्रमण के मामले में शवों की अंत्येष्टि के लिए अधिकतम 24 घंटे का समय लिया जा सकता है। लेकिन दिल्ली सरकार इसके प्रबंधन में नाकाम साबित हो रही है। स्वास्थ और शिक्षा जैसे बुनियादी मुद्दों को आधार बनाकर चुनाव लड़ने वाली अप सरकार अब स्वास्थ्य व्यवस्था संभालने में ही विफल साबित होती दिख रही है। इसका एक बड़ा कारण है कि दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार में आपस में तालमेल की कमी है। महामारी काल में भी दोनों स्वास्थ्य मंत्री एक दूसरो पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं।

दिल्ली सरकार की तैयारी

 दिल्ली सरकार ने अस्पतालों में कोविड बेड की संख्या बढ़ाई है। अब तक जानकारी के मुताबिक 5 सरकारी और 3 निजी अस्पतालों को पूरी तरह से कोविड अस्पताल घोषित कर दिया गया। इसके अलावा दिल्ली सरकार ने 61 और प्रवाइवेट अस्पतालों को भी चुना जिसमें कुल 70 या उससे अधिक बेड हैं और फिर इन अस्पतालों में 20 फीसदी बेड कोविड मरिजों के लिए रिजर्व रखने का आदेश दिया है।

दिल्ली के डिप्टी सीएम ने यहां तक कहा है कि जो निजी अस्पताल मरीजों के लिए 20 फीसदी बेड रिजर्व नहीं कर पा रहे हैं। उन्हें पूरी तरह से कोविड अस्पताल घोषित कर दिया जाएगा।

दिल्ली सरकार ने कोरोना मरीजों और अस्पतालों के लिए बाकायदा एक स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) भी जारी किया है। इसमें मरीज के आगमन, छंटाई, एडमिट, ट्रीटमेंट, अस्पताल के टेस्ट और डिस्चार्ज के लिए गाइडलाइंस जारी की गई हैं।

गौरतलब है कि बीजेपी और कांग्रेस जैसी विपक्षी पार्टियां भी आम आदमी पार्टी पर लचर स्वास्थ्य व्यवस्था और बढ़ते कोरोना मामलो को लेकर कुप्रबंधन का आरोप लगा रहा है। केजरीवाल सरकार पर कम टेस्टिंग को लेकर आँकड़े छिपाने का आरोप भी लग रहा है। हालांकि दिल्ली के मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री लगातार दिल्ली में सबसे बेहतर व्यवस्था के दावे कर रहे हैं।

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