NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
पीएम मोदी के हैट के पीछे कोई सियासी चाल तो नहीं ?
प्रधानमंत्री बेहद बारीकी से गढ़ी गयी अपने शख़्सियत से हमेशा मतदाताओं को लुभाने की कोशिश करते रहे हैं।
कांचा इलैया शेफर्ड
10 Nov 2020
मोदी

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी अपनी पोशाक से लोगों को आकर्षित करने के लिए जाने जाते हैं, लेकिन 31 अक्टूबर को आयोजित सरदार वल्लभभाई पटेल की 145 वीं जयंती के मौक़े पर उनकी पोशाक ज़रा हटकर थी। उन्होंने आईएएस परिवीक्षकों(Probationers) को संबोधित करने और पटेल की सबसे ऊंची प्रतिमा (जिसे उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए बनाने का आदेश दिया था) से सीप्लेन का उद्घाटन करने से लेकर प्रतिमा के नीचे खड़े होकर प्रतिमा को निहारते हुए तक उस दिन के तमाम घटनाक्रम के दौरान पूरे देश के सामने अपने स्टैंडर्ड कुर्ता-चूड़ीदार में बिना मास्क के एक पनामा टोपी पहन रखी थी। (भाजपा का दावा है कि पिछले साल अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद लौह-पुरुष पटेल का सपना पूरा हो गया।)

मोदी की पोशाक पहनने के विकल्प को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। ग़ौरतलब है कि एक तरफ़ ढीले-ढाले धोती-कुर्ता और कंधे पर शॉल वाले किसान की पोशाक में सरदार पटेल की प्रतिमा और दूसरी तरफ़ कुर्ता-पायजामा के साथ प्रधानमंत्री की पोशाक,दोनों एक दूसरे से मेल नहीं खा रहे थे। पोशाक की इस पसंदगी को शायद भाजपा और मोदी की राजनीति और सरदार पटेल की पृष्ठभूमि से उनके जुड़ाव से समझा जा सकता है। पटेल के पिता एक किसान थे, और पारंपरिक वर्णश्रम के क्रम के मुताबिक़ वह शूद्र श्रेणी से आते थे। जैसा कि हम जानते हैं कि मोदी के परिवार के पास भी उसी राज्य,यानी गुजरात से ही एक छोटी सी व्यवसायिक विरासत है। मंडल आयोग ने विभिन्न राज्यों में पटेल, जाट, मराठा, गुर्जर, यादव, कम्मा, रेड्डी, नायर, लिंगायत, नायर और मुदलियार जाति समूह के जिस अन्य पिछड़े वर्ग के रूप में सामाजिक समूह को वर्गीकृत किया था,वे भी शूद्र की श्रेणी में ही आते हैं। दूसरे शब्दों में, आज के पैमाने के मुताबिक़ सरदार पटेल को संभवतः राष्ट्रीय मंच पर एक ओबीसी नेता के रूप में देखा जायेगा।

कई लोग कहेंगे कि प्रधानमंत्री का बार-बार अपनी पोशाक का बदल लेना उनके ग़ुरूर को दर्शाता है,लेकिन सानाजिक और भौतिक प्रगति की चाहत पाले हुए शूद्र / ओबीसी मतदाता, जो भारतीय राजनीति में अपने लिए एक नयी पहचान की तलाश कर रहे हैं, संभव है कि उन्हें मोदी के इस ड्रेस कोड में राष्ट्रवाद का एक रंगीन संस्करण दिखायी देता हो। इसलिए, यह बात अहमियत रखती है कि प्रधानमंत्री ने कांग्रेस पार्टी से पटेल और उनकी विरासत को छीन लिया है और उन्हें एनडीए के साथ समायोजित कर लिया है। सही मायने में ऐसा लगता है कि सरदार बल्लभ भाई पटेल को ख़ुद के बताने पर से कांग्रेस का दावा खारिज हो गया हो। मिसाल के तौर पर इस साल पटेल की वर्षगांठ के मौक़े पर मोदी को अनुसरण करने वाले लोगों ने ही राष्ट्रीय (अंग्रेज़ी भाषा) प्रेस और क्षेत्रीय अख़बारों में पटेल की महानता को लेकर लिखा था। वे उनके बारे में बोलने के लिए टीवी चैनलों पर भी दिखायी दिये थे। मोदी की नयी आयरन लेडी अनुयायी, कंगना रनौत ने ट्विटर पर महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू पर हमले शुरू करके और पटेल की ज़बरदस्त स्तुति गान करते हुए पटेल की वर्षगांठ मनायी। तेलुगु प्रेस में दो प्रमुख लेख लिखे गये थे; इनमें से  एक लेख हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल,बंडारू दत्तात्रेय ने लिखा था और दूसरा लेख गृह राज्य मंत्री,जी किशन रेड्डी ने लिखा था। (दोनों शूद्र / ओबीसी श्रेणी के हैं।)

यह और बात है कि भाजपा के नेता पटेल की उस वास्तविक विरासत को भूल गये हैं, जिसमें पटेल ने किसानों को संगठित किया था और किसानों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी थी। जब से केंद्र ने तीन से ज़्यादा केंद्रीय कृषि क़ानूनों को पारित किया है, तब से देश भर के किसान आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन उन किसानों की तरफ़ से न तो पटेल हैं, और न ही पटेल के आधुनिक अनुयायियों में से कोई दिखायी दे रहा है।

हमें यह भी याद रखना चाहिए कि आरएसएस और भाजपा के किसी भी वर्ग के भीतर किसी को भी पूरी तरह से समझ नहीं आया कि मोदी ने पटेल की सबसे ऊंची प्रतिमा क्यों बनवायी थी, और यह कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी या दीन दयाल उपाध्याय की प्रतिमा क्यों नहीं बनावयी,जबकि हिंदूवादी इन दोनों को अपना आदर्श पुरुष मानते हैं और वे इस बात का दावा कर सकते हैं कि ये दोनों ही उनके अपने हैं। शायद मोदी की पश्चिमी शैली की हैट पहनने के इस विकल्प की व्याख्या इसे स्पष्ट कर सकती है। दरअसल,ये पटेल के साथ अपनी पहचान बनाने और उन्हें एक आइकन बनाने के उनके प्रयासों का हिस्सा हैं, लेकिन कुल मिलाकर इसका मक़सद सामाजिक और भौतिक आकांक्षा वाले उन ओबीसी मतदाताओं को प्रभावित करना है, जो मोदी की पार्टी उम्मीदें हैं, उन्हें इस तड़क-भड़क से अपनी तरफ़ खींचा जा सकता है।

राष्ट्रीय मंच पर जिस तरह भाजपा शूद्र / ओबीसी के हितों का प्रतिनिधित्व करती है,उसी तरह राज्यों में इनका प्रतिनिधित्व करने वाले दलों में भी उन क्षेत्रों और राज्यों में स्वतंत्र रूप से इनके वोट जुटाने की क्षमता है। उनकी इतनी पर्याप्त संख्या है कि वे किसी भी आम चुनाव के नतीजे को प्रभावित कर सकते हैं और बदल देने की क्षमता रखते हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि उत्तर भारत में इन वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाली राजनीतिक ताक़तें भाजपा के बढ़ते आधिपत्य से कमज़ोर हुई हैं। हालांकि,वे 2024 के आम चुनाव के वक़्त अपनी ताक़त हासिल करने की कोशिश ज़रूर कर रहे हैं।

इसलिए,इसके पीछे का असली राज़ तो यही है,जिस वजह से कांग्रेस अपने चुनाव अभियानों में पटेलों की फ़ोटो या उनके कट-आउट का इस्तेमाल करने से बचती है। आख़िरकार,इसे भी उन शूद्र / ओबीसी मतदाताओं की ज़रूरत तो होगी ही, जिनमें से बड़ी संख्या में मतदाता पिछले दो चुनावी चक्रों के दौरान भाजपा में चले गये हैं। इस लिहाज़ से पार्टी के प्रचार के लिए पटेल एक स्वाभाविक पसंद हो सकते थे,क्योंकि पटेल एक ऐसे राष्ट्रीय नेता थे, जो कांग्रेस पार्टी की भविष्य की योजनाओं का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं और सामाजिक-आर्थिक आकांक्षा वाले शूद्र / ओबीसी युवाओं के लिए पटेल को एक नये सांचे में ढाला जा सकता है; यहां तक कि पटेल को भाजपा-आरएसएस के आक्रामक राष्ट्रवाद के ख़िलाफ़ भी खड़ा किया जा सकता है।

लेकिन,इसके बजाय, कांग्रेस के प्रचार अभियान में गांधी, नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी, राहुल और प्रियंका गांधी शामिल हैं। ज़ाहिर है, इस फ़ैमिली पैक में कोई शूद्र / ओबीसी नेता नहीं है। मोदी राष्ट्रीय और राज्य स्तर के चुनावों में इसी फ़ैमिली पैक का ज़िक़्र करते हैं, और इस परिवार के शासन के ख़िलाफ़ मोदी की बयानबाज़ी मतदाताओं के एक वर्ग को प्रभावित करती दिखायी देती है।

जब क्षेत्रीय दलों की बात आती है, तो यहां भी समस्या यही पारिवारिक मामले ही हैं और इसलिए कांग्रेस की तरह यहां भी जाति के मामले सामने आ जाते हैं और चुनावों के दौरान वे भी प्रचार सामग्री और कट-आउट में मुख्य रूप से अपने परिवारों का ही प्रचार करते हैं। इस सबके बीच यह मोदी के लिए अनुकूल हो जाता है कि सरदार पटेल के परिवार को भुला दिया गया है। आख़िरकार, उन्होंने ख़ुद को भी अपने ही परिवार से दूर किया हुआ है, जबकि पटेल के परिवार का ऐसा कोई भी सदस्य राजनीति या उस बौद्धिक हलकों में नहीं है, जिसे मोदी "ख़ान बाज़ार गिरोह" या "लुटियंस क्लब" कहते हैं।

भारतीय राजनीति के शीर्षस्थ लोगों में गांधी का प्रतिनिधित्व उनके पोते करते हैं, जिनमें प्रसिद्ध इतिहासकार राजमोहन गांधी, पूर्व राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी और दूसरे लोग भी शामिल हैं। राजनीति में नेहरू के वंशक्रम  को सोनिया गांधी और उनके बच्चों ने जारी रखा हुआ है। मोदी ने इसके साथ-साथ धीरे-धीरे ख़ुद को पटेल के नवासे में बदल दिया है,कई तरह के हैट पहनकर ओबीसी युवाओं को आकर्षक करते हैं, उन्होंने अपनी छवि एक ऐसे राज-ऋषि-प्रकार की बना रखी है, जो कांग्रेस के हार्वर्ड-शिक्षित धोती-पहने उन नेतृत्व के ख़िलाफ़ हैं, जो जताते तो ऐसे हैं,जैसे कि जैसे-तैसे जीते  हैं, लेकिन उनके पास अकूत धन-संपदा है। प्रधान मंत्री के तौर पर अपने दस वर्षों के कार्यकाल में मनमोहन सिंह ने अपने गंभीर चाल-ढाल को बनाये रखने के लिए एक ही पायजामा-कुर्ता और नीली पगड़ी पहन रखे थे। क्या यह सच नहीं है कि उन्होंने आर्थिक सिद्धांत पर बहुत कुछ लिखा है, लेकिन शायद ही कुछ लोग भी उनके इन आलेखों के बारे में जानते हों  ? एक तरह से उन्होंने ख़ुद को एक ऐसे चलते-फिरते कट-आउट में बदल दिया था, जो इतनी विनम्रता से बोल रहा था कि उसकी आवाज़ शायद ही कभी कांग्रेस नेतृत्व के कानों से आगे निकल पायी। लेकिन,वहीं मोदी के मन की बात अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, भूगोल, गणित और ज्ञान-विज्ञान के सभी विषयों सहति आर्थिक ज्ञान के भी सतही उपदेशों से भरा हुआ है,उनकी "भाइयों और बहनों" वाली तेज़ आवाज़ हर जगह गूंजती है।

अभी तक एक दूसरे स्तर पर मोदी की पनामा हैट उनकी उस लंबी सफ़ेद दाढ़ी के साथ असंगत दिख रही थी,जो इस समय उन्होंने बढ़ायी हुई है। लेकिन,हमें इस भुलावे में नहीं रहना चाहिए कि यह असंगति कोविड-19 महामारी के चलते उनका नाई से बचने की कोशिश को दर्शाती है। उनकी बढ़ी हुई दाढ़ी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेतृत्व के किसी संकट को लेकर कोई अंधविश्वास की वजह भी नहीं है। मोदी आरएसएस प्रमुख,मोहन भागवत के ठीक उलट एक हिंदू संन्यासी की तरह दिखायी देने लगे हैं।

मोदी ने जिस पनामा हैट को पहना था,वह आरएसएस द्वारा स्वीकृत परिधान जैसी कोई चीज़ भी नहीं है। आरएसएस के मुताबिक़ तो  "पश्चिमी" परिधान भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का प्रतिनिधित्व ही नहीं करते हैं। लेकिन,यह पनामा हैट युवा आकांक्षा का प्रतिनिधित्व तो कर ही सकती है। आज़ादी की लड़ाई के दौरान भी न तो कांग्रेस के नेताओं और न ही हिंदुत्ववादियों को पनामा हैट पहने देखा गया था। पहले और अब भी कांग्रेस का ब्रांड गांधी टोपि ही था, जबकि हिंदुत्व की टोपी एक अर्द्ध सैन्य भगवा (अब काला) टोपी थी। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नियमित रूप से टोपी पहनने वाले एकमात्र नेता डॉ.बीआर अंबेडकर थे। वह इसे पूरे पश्चिमी पोशाक के साथ पहना करते थे और हक़ीक़त यह भी है कि उन्हें अक्सर अपने सूट और हैट पहनने को लेकर निशाना बनाया जाता था, निशाना बनाने वालों में ख़ासकर वे लोग होते थे,जो धोती-कुर्ता पहना करते थे।

लेखक एक राजनीतिक चिंतक हैं। द शूद्राज़-विज़न फ़ॉर ए न्यू पाथ नामक उनकी नयी किताब कार्तिक राजा करुप्पुसामी के सह-संपादन में जल्द ही पेंगुइन द्वारा प्रकाशित होने वाली है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Does Politics Lurk Behind the Hats PM Modi Wears?

Narendra modi
OBC leaders
BR Ambedkar
Modi outfits
Patel statue

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बैंक है मुसलमान?... संसद भेजने से करती है परहेज़

हिमाचल में हाती समूह को आदिवासी समूह घोषित करने की तैयारी, क्या हैं इसके नुक़सान? 


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License