NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
“मुझे इस महामारी के बाद कोई उज्ज्वल भविष्य नहीं दिखायी देता”
“महामारी की आड़ में हमारे शासक उन सभी शिकंजों को कस रहे हैं, जिन्हें वे हमेशा से कसना चाहते थे। और यह आपातकालीन स्थिति उन्हें बेहिचक ऐसा करने की अनुमति देती है।” मुकुलिका आर के साथ तनिका सरकार की बातचीत।
इंडियन कल्चरल फोरम
02 Jun 2020
future beyond the pendemic

बीमारी के बारे में इतिहासकारों की बात

संक्रामक रोगों ने इतिहास के रुख़ को कई तरीक़ों से बदल दिया है, क्योंकि इन रोगों ने कुछ सामाजिक-राजनीतिक और सांस्कृतिक घटनाक्रम को जन्म दिया है। ये बीमारियां हर समाज में विशिष्ट संकट और समस्यायें पैदा करती हैं। उनका व्यक्तिगत रिश्तों, कला, साहित्य और दुनिया भर में अलग-अलग तरह की असमानताओं और भेदभावों पर अहम असर पड़ा है।

इन सभी बातों को समझने के लिए इंडियन कल्चरल फ़ोरम ने भारतीय इतिहासकारों के साथ एक लघु श्रृंखला शुरू की है। इस श्रृंखला की पहली कड़ी में मुकुलिका आर ने रोमिला थापर और दूसरी कड़ी में उमा चक्रवर्ती से बात की थी। इस श्रृंखला के तीसरी कड़ी में हम तनिका सरकार से बात कर रहे हैं। तनिका सरकार इस बात की पड़ताल करती है कि तबाही के दौरान पूर्वाग्रहों का सामना क्यों करना पड़ता है और क्या महामारी एक नयी तरह की स्थिति का प्रवेश-द्वार है।

मुकुलिका आर: हमने देखा है कि एक तरफ़ इस तरह के संकटों के समय कैसे किसी को बलि का बकरा बना दिया जता है और कुछ पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ता है, और दूसरी तरफ़ शक्ति समीकरण कैसे मज़बूत हो जाते हैं। क्या आप इस स्थिति की व्याख्या कर सकती हैं ?

तनिका सरकार: मुझे लगता है कि जब कभी किसी तरह की अप्रत्याशित तबाही होती है, तो लोगों को इसके लिए किसी को दोषी ठहराने की ज़रूरत होती है, और अगर कोई ऐसी जानी-पहचानी शख़्सियत हैं, जो पहले से ही खलनायक ठहराये जा चुके हैं, तो वे आसान लक्ष्य बन जाते हैं। यह एक तरह से संदिग्धों की खोज जैसा मामला है। याद कीजिए, जर्मनी की हार में यहूदियों की भूमिका की परिकल्पना की गयी थी, ताकि यहूदियों के विरोध में अभियान चलाया जा सके। ऐसा इसलिए, क्योंकि उस समय की परंपरा में यहूदीवाद का विरोध मौजूद था। जहां तक भारत का सवाल है, तो  सत्ता ने इस प्रवृत्ति को साफ़ तौर पर बढ़ावा दिया है और मीडिया ने भी तबलीग़ियों, मस्जिद में इकट्ठे होने वाले सामान्य संदिग्धों की भूमिका पर ज़बरदस्त तरीक़े से समय दिया है। जितनी ही देर तक तबाही रहती है, उतना ही इस फ़ंदे का विस्तार होता चला जाता है। मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं दिखता है कि यह फ़ंदा बहुत जल्द ही उन सभी लोगों तक फैल जायेगा,जो किसी भी तरीक़े से हिंदुत्व से असहमत हैं।

मुकुलिका आर: कई लोग संक्रामक रोगों को जनसांख्यिकीय, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक बदलावों को प्रेरित करते हुए इतिहास का रुख़ बदल देने वाला और नयी दुनिया के दरवाज़े खोल देने वाला मानते हैं। इसके लिए अक्सर यूरोपीय पुनर्जागरण की मिसाल दी जाती है, जो प्लेग के कारण हुई तबाही से पैदा हुआ था। क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि महामारी इस तरह का कोई प्रवेश-द्वार है ?

तनिका सरकार:  सच बताऊं, तो मुझे महामारी के बाद कोई उज्ज्वल भविष्य दिखाई नहीं देता, बल्कि इसके उल्टा दिखायी देता है। महामारी की आड़ में हमारे शासक उन सभी शिकंजों को कस रहे हैं, जिन्हें वे हमेशा से कसना चाहते थे। और यह आपातकालीन स्थिति उन्हें बेहिचक ऐसा करने की अनुमति देती है। यह स्थिति उन्हें यथासंभव आलोचना पर लगाम लगाने, या आलोचना करने वालों की ज़बान बंद करने की अनुमति देती है, और यह उत्पादन बढ़ाने के नाम पर सख़्त श्रम और पर्यावरणीय क़ानूनों को लागू करने की अनुमति देती है, क्योंकि सत्ता वास्तव में उन बहु-राष्ट्रीय निवेशों को आसान बनाना चाहती है, जो कामगार नहीं,बल्कि भारतीय व्यापार समूहों, सत्ताधारी हलकों के क़रीबियों की मदद करेगा।

मुझे लगता है कि यह कोई प्राकृतिक नियम नहीं है कि प्रकाश मानवीय मामलों में अंधेरे का अनुसरण करता है। किसी तरह का सुधार एक असरदार विपक्ष की उस मौजूदगी पर निर्भर करता है, जो वास्तव में मरने वाले मज़दूरों और उन नागरिक तथा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के मुद्दे को उठा सके, जिन्हें बक़ायदा चुप कराया जा रहा है। हालांकि, हमारे जो विपक्षी दल और समूह हैं, उनमें से भी कुछ ने इन मुद्दों को मौखिक रूप से नामंज़ूर कर दिया है। जल्द ही, महत्वपूर्ण क्षेत्रों के बारे में वास्तविक समाचार भी सार्वजनिक क्षेत्र से ग़ायब हो जायेंगे और सौ साल के एकाकीपन के हवाले कर दिये जायेंगे।

तनिका सरकार नई दिल्ली स्थित जेएनयू में इतिहास की सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर हैं। उनका सबसे हालिया शोध भारत में महिलाओं पर पड़ने वाले हिंदू अधिकार के उदय के प्रभाव पर केंद्रित है। तनिका हिन्दू वाइफ़,हिन्दू नेशन: कम्युनिटी,रिलीज़न,एंड कल्चरल नेशनलिज़्म (2001) और रिबेल्स, वाइव्स,सेंट्स:डिज़ाइनिंग सेल्व्स एंड नेशन इन कोलोनियल टाइम्स(2009) समेत अनेक पुस्तकों की लेखिका हैं। मुकुलिका आर नई दिल्ली स्थित इंडियन कल्चरल फ़ोरम के संपादकीय मंडल की सदस्य हैं।

सौजन्य: इंडियन कल्चरल फ़ोरम

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

“I Don’t See a Brighter Future Beyond the Pandemic”

COVID 19
COVID Pandemic
Mukulika R
Tanika Sarkar
Romila thapar
historian
Economy
World Economy

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

क्या कोविड के पुराने वेरिएंट से बने टीके अब भी कारगर हैं?

कोविड-19 : दक्षिण अफ़्रीका ने बनाया अपना कोरोना वायरस टीका

कोविड-19 से सबक़: आपदाओं से बचने के लिए भारत को कम से कम जोखिम वाली नीति अपनानी चाहिए

कोविड के नाम रहा साल: हमने क्या जाना और क्या है अब तक अनजाना 

Covid-19 : मुश्किल दौर में मानसिक तनाव भी अब बन चुका है महामारी

कोविड-19: अध्ययन से पता चला है कि ऑटो-एंटीबाडी से खतरनाक रक्त के थक्के बनने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है

कोविड-19 : असली मुद्दे से ध्यान भटकाने की कोशिश है हर्ड इम्यूनिटी का मामला 

महामारी का यह संकट पूंजीवाद के लिए किसी अंधी गली का प्रतीक क्यों बन गया है

मानवता मौत के अपराधों का प्रतिरोध करती है


बाकी खबरें

  • hisab kitab
    न्यूज़क्लिक टीम
    लोगों की बदहाली को दबाने का हथियार मंदिर-मस्जिद मुद्दा
    20 May 2022
    एक तरफ भारत की बहुसंख्यक आबादी बेरोजगारी, महंगाई , पढाई, दवाई और जीवन के बुनियादी जरूरतों से हर रोज जूझ रही है और तभी अचनाक मंदिर मस्जिद का मसला सामने आकर खड़ा हो जाता है। जैसे कि ज्ञानवापी मस्जिद से…
  • अजय सिंह
    ‘धार्मिक भावनाएं’: असहमति की आवाज़ को दबाने का औज़ार
    20 May 2022
    मौजूदा निज़ामशाही में असहमति और विरोध के लिए जगह लगातार कम, और कम, होती जा रही है। ‘धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाना’—यह ऐसा हथियार बन गया है, जिससे कभी भी किसी पर भी वार किया जा सकता है।
  • India ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    ज्ञानवापी विवाद, मोदी सरकार के 8 साल और कांग्रेस का दामन छोड़ते नेता
    20 May 2022
    India Ki Baat के दूसरे एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, भाषा सिंह और अभिसार शर्मा चर्चा कर रहे हैं ज्ञानवापी विवाद, मोदी सरकार के 8 साल और कांग्रेस का दामन छोड़ते नेताओं की। एक तरफ ज्ञानवापी के नाम…
  • gyanvapi
    न्यूज़क्लिक टीम
    पूजा स्थल कानून होने के बावजूद भी ज्ञानवापी विवाद कैसे?
    20 May 2022
    अचानक मंदिर - मस्जिद विवाद कैसे पैदा हो जाता है? ज्ञानवापी विवाद क्या है?पक्षकारों की मांग क्या है? कानून से लेकर अदालत का इस पर रुख क्या है? पूजा स्थल कानून क्या है? इस कानून के अपवाद क्या है?…
  • भाषा
    उच्चतम न्यायालय ने ज्ञानवापी दिवानी वाद वाराणसी जिला न्यायालय को स्थानांतरित किया
    20 May 2022
    सर्वोच्च न्यायालय ने जिला न्यायाधीश को सीपीसी के आदेश 7 के नियम 11 के तहत, मस्जिद समिति द्वारा दायर आवेदन पर पहले फैसला करने का निर्देश दिया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License