देश के अलग-अलग राज्यों में अलर्ट जारी किया जा रहा है कि दोपहर के वक्त बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं है, दूसरी ओर सरकार है कि बिजली की उचित व्यवस्था करने की जगह इसी गर्मी में अपनी सियासत और ज्यादा गर्म करने में जुटी है।
बिजली संकट पर कोयला मंत्री और ऊर्जा मंत्री के बयान का अबतक कोई असर नहीं दिखने के बाद उत्तर प्रदेश में विदेशों से कोयला ख़रीद का मामला गंभीर होता जा रहा है। दरअसल कोयले की कमी दिखाकर विदेशों से इंपोर्टेड कोयला खरीदने के खिलाफ उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने विरोध शुरू कर दिया है। परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने सरकार के इस फैसले के खिलाफ नियामक आयोग में याचिका भी दाखिल कर दी है।
अवधेश वर्मा ने अपनी याचिका में कहा है कि उत्पादन निगम के पावर प्लांट के लिए अगर विदेशों से कोयला ख़रीदा जाता है तो सीधे तौर पर बिजली महंगी हो जाएगी। और इसका असर उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ेगा। साथ ही साथ अवधेश ने ये भी आरोप लगाया है कि ऐसा सिर्फ कुछ निजी घरानों को फायदा देने के लिए किया जा रहा है।
अवधेश ने बताया कि जब अक्टूबर 2021 में कोयले की कमी आई थी, तो ऐसे ही निजी घरानों ने एनर्जी एक्सचेंज पर 19 से 20 रुपये प्रति यूनिट बिजली बेची थी। अब कोयले में भी यही खेल किया जा रहा है उस वक्त भी कोयला विदेश से आयात किया गया था। अब आरोप है कि 1700 रुपये प्रति टन वाला कोयला 17000 रुपये प्रति टन में मंगवाने की तैयारी है। अवधेश की माने तो कोल इंडिया ने सभी बिजली उत्पादन इकाइयों से फ्यूल एग्रीमेंट किया है। ऐसे में कोयला उपलब्ध कराना कोल इंडिया की जिम्मेदारी है।
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा की याचिका और उसमें दिए गए तर्क इस लिए ज्यादा सवाल खड़े करते हैं क्योंकि पिछले दिनों बिहार में एक कार्यक्रम के लिए पहुंचे केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह से जब कोयले की कमी के बारे में सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा था कि पंजाब और यूपी में कोयले की कोई कमी नहीं हुई है, बल्कि आंध्र, राजस्थान और तमिलनाडु में कोल की कमी है। आरके सिंह ने बकायदा वजह के साथ कहा कि तमिलनाडु आयात किए कोयले पर निर्भर है, लेकिन पिछले दिनों आयात वाले कोयले के दाम काफी तेज़ी से बढ़े हैं। उधर आंध्र मे भी कोयले का संकट है।
महाराष्ट्र में भी कोयले में कमी की खबर सामने आ रही है। हालांकि, यहां भी केंद्र के मंत्री रावसाहेब दानवे ने महाराष्ट्र सरकार को ही जिम्मेदार ठहरा दिया। केंद्रीय मंत्री ने कहा, महाराष्ट्र सरकार द्वारा योजना में कमी के चलते राज्य में कोयले की कमी हुई है। इसके चलते राज्य में बिजली संकट पैदा हुआ है। उन्होंने कहा, महाराष्ट्र सरकार कोयले की कमी को लेकर हाहाकार मचा रही है। लेकिन अगर राज्य सरकार ने पहले से तैयारी की होती, तो अब राज्य को बिजली संकट का सामना करना नहीं पड़ता।
ग़ौर करने वाली बात है कि केंद्रीय मंत्री उन्हीं राज्यों में कोयले की कमी की बात कह रहे हैं, जहां-जहां भाजपा की सरकार नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि देश में बिजली संकट को लेकर राज्यों के साथ एक समन्वय की ज़रूरत है तो केंद्र को राजनीति सूझ रही है। दूसरी बात ये जो अवधेश ने मुद्दा उठाया कि अगर यूपी में बिजली का संकट नहीं है तो विदेशी कोयला ख़रीदने की ज़रूरत क्या है, जिसके लिए अवधेश की ओर से प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप करने का भी आग्रह किया गया था, लेकिन अभी तक इसपर कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
मंत्रियों और नेताओं के दावों से दूर हटकर अगर ग्राइंड रिपोर्ट की ओर झांके तो देश के करीब 10 राज्यों में बिजली के कोयले का घोर संकट है। उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और तेलंगाना को कोयले की कमी का सामना करना पड़ रहा है। इतना ही नहीं बताया ये भी जा रहा है कि झारखंड, बिहार, हरियाणा और उत्तराखंड में मांग के मुकाबले कम बिजली उपलब्ध हो पा रही है। वहीं मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जहां उत्तर प्रदेश में 21 से 22 हज़ार मेगावाट बिजली की मांग है, ऐसे में यहां सिर्फ 19 से 20 हज़ार मेगावाट बिजली ही मिल पा रही है।
ऊर्जा मंत्री आरके सिंह के अलावा 6 अप्रैल को लोकसभा के पटल पर संसदीय कार्य और कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने भी कहा था कि कोयले की कोई कमी नहीं है।
प्रह्लाद जोशी ने कहा था कि कोल इंडिया लिमिटेड यानी सीआईएल और सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड यानी एचसीसीएल पिट हेड में कोयला भंडारण 1 अप्रैल 2022 की स्थिति के अनुसार 60.77 मिलियन टन और 4.71 मिलियन टन कोयला उपलब्ध है। मार्च 2022 में 95 मिलियन टन कोयला उत्पादन की बात कही गई थी।
ऐसे में सवाल उठता है कि जब देश में कोयले की कमी नहीं है तो फिर पूरे देश में विदेशी कोयला खरीदने का दबाव क्यों बनाया जा रहा है। महाराष्ट्र और एनटीपीसी हरियाणा सहित कुछ राज्यों ने विदेशी कोयला खरीदने का टेंडर भी निकाल दिया। ऐसे में विदेशी कोल खरीदने की साजिश के पीछे कहीं न कहीं कोई बहुत बड़ा गोलमाल है, जो सामने आने नहीं दिया जा रहा है। फिलहाल इसकी एक उच्चस्तरीय जांच कराए जाने की आवश्यकता है।
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