NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
सबको जाननी चाहिए यह कहानी: बेगूसराय के लोगों ने कैसे शुरू किया था श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में राहत अभियान
"हम लोग पैसे वाले नहीं हैं, लेकिन इतना जानते हैं कि भूखों को खाना और प्यासों को पानी पिलाना चाहिए। हमने उस रात को भी यही किया।"
उमेश कुमार राय
03 Jun 2020
 Everyone should know this story: how the people of Begusarai started relief operations in labor special trains
श्रमिक स्पेशल ट्रेन में खाने-पीने का सामान बांटते स्थानीय लोग।

मिज़ोरम के मुख्यमंत्री जोरामथंगा ने 30 मई को एक वीडियो ट्वीट कर बेगूसराय के लोगों को शुक्रिया कहा। उन्होंने ट्वीट में लिखा,"लॉकडाउन में फंसे मिजोरम के नागरिकों की तरफ से बाढ़ प्रभावितों को ट्रेन से खाना देने के कुछ दिन बाद एक श्रमिक स्पेशल ट्रेन के बेगूसराय में रुकने पर बिहार के नेकदिल नागरिकों ने ट्रेन यात्रियों को भोजन मुहैया कराया! अच्छे काम के एवज में अच्छा काम। बेपनाह मोहब्बत से भरपूर भारत बहुत खूबसूरत है।"

सीएम ने जो वीडियो ट्वीट किया था, वो श्रमिक स्पेशल ट्रेन के यात्रियों ने ही बनाया था और ट्विटर पर डाल दिया था। वीडियो में खाने से भरी टोकरियां, फल व अन्य सामान लिए लोग ट्रेन की तरफ दौड़ते दिखते हैं और ट्रेन के करीब जाकर खिड़कियों से खाना, फल, पानी आदि पैसेंजरों को दे रहे हैं

 ये वीडियो वायरल हुआ, तो उस जगह की शिनाख्त शुरू हुई और पता चला कि बेगूसराय में लछमिनिया और बरौनी स्टेशनों के बीच कस्बा नाम के गांव के करीब ये ट्रेन रुकी थी। ट्रेन रुकी, तो गांव वाले खाने-पीने का सामान और पानी लेकर दौड़ते-भागते पहुंचे और खिड़कियों से यात्रियों को खाने का सामान दिया था।

 

न्यूजक्लिक ने कस्बा गांव के लोगों से संपर्क किया, तो एक अलग और दिलचस्प कहानी निकल कर सामने आई। हुआ यों कि 22 मई की रात करीब 11 बजे कस्बा गांव से एक श्रमिक स्पेशल ट्रेन गुज़र रही थी। गांव से कुछ आगे शाहपुर कमाल में रेलवे का कुछ काम चल रहा था, तो ट्रेन आधे-पौन घंटे के लिए गांव में ही रोक दी गई। वो ट्रेन विलंब से चल रही थी और ट्रेन में सवार लोगों के पास न तो खाना बचा था, न पानी। ट्रेन जब रुकी, तो यात्रियों को रेलवे लाइन से बमुश्किल 50 कदम दूर एक घर और वहां बल्ब टिमटिमाता दिखा। फिर क्या था, कुछ लोग ट्रेन से उतरे और उस घर में पहुंच गए। उन्होंने दरवाजा खटखटाया और पानी देने की गुजारिश की।
 

 ये घर 55 वर्षीया सबुन्निसा का है। इतनी रात को दरवाजा पीटने से वह पहले तो डर गईं, लेकिन लोगों की गुहार सुन उन्होंने दरवाजा खोला, तो देखा कि 8-10 जर्द पड़े मायूस चेहरे उन्हें उम्मीद से देख रहे हैं। सबुन्निसा फोन पर कहती हैं, "उन लोगों ने कहा कि वे 4-5 दिनों से भूखे हैं और मेरे पास अगर खाना-पीना बचा है, तो मैं उन्हें दूं। उनकी बातें सुनकर हमसे रहा न गया। मैं, मेरी बहू और बेटे ने बाल्टी भर-भर पानी दिया और घर में खाने का जो भी सामान था, उन्हें दिया।"

"उस वक्त हमारा रोज़ा चल रहा था, इसलिए घर में फरही, चूड़ा, दालमोट आदि ज्यादा मात्रा में रखा था। सब उनमें बांट दिया। कोरोनावायरस के संक्रमण का भी डर था, तो हम लोग पानी और खाने का सामान एक जगह रख दिया था। लोग ज़रूरत के हिसाब उठा ले रहे थे। कई यात्रियों ने शर्ट खोलकर उसी में चूड़ा, फरही रख लिया", उन्होंने कहा।

सबुन्निसा के दो बेटे हैं। बड़ा बेटा परदेस में रहता है और छोटा बेटा गांव में ही रहकर रिक्शा चलाता है। वह कहती हैं, "हमलोग पैसे वाले नहीं हैं, लेकिन इतना जानते हैं कि भूखों को खाना और प्यासों को पानी पिलाना चाहिए। हमने उस रात को भी यही किया।"

सुबह हुई, तो रात की घटना की खबर पूरे गांव में फ़ैल गई। इसके बाद गांव के लोग अपनी क्षमता के हिसाब से खाने-पीने का सामान लेकर पहुंचने लगे और जो भी ट्रेन रुकती थी, उनमें सवार यात्रियों में बांटने लगे। ये बात धीरे-धीरे पड़ोस के गांव हुसैना और सालेहचक तक पहुंच गयी व इस तरह एक अभियान ही शुरू हो गया।

IMG-20200601-WA0014.jpg

गौरतलब हो कि केंद्र सरकार 1 मई से अलग-अलग राज्यों में फंसे मजदूरों को उनके गृह राज्य भेजने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन चला रही है। अभी तक लगभग 4000 श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से तकरीबन 56 लाख प्रवासी मजदूरों और कामगारों को उनके गृह राज्यों तक पहुंचाया जा चुका है। 

लेकिन, इन ट्रेनों में यात्रियों के खाने पीने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं रही। और तो और ट्रेनें गंतव्य से भटक कर अन्यत्र भी चली गईं।

अब तक 40 श्रमिक स्पेशल ट्रेनें  गंतव्य स्टेशन की जगह कहीं और पहुंच गईं। वहीं, श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में अब तक 80 लोगों की मौत हो चुकी है। अव्यवस्था का आलम ये है कि पैसेंजर, ट्रेन के टॉयलेट का पानी पीने को विवश हो रहे हैं।

 बरौनी और कटिहार रेलवे स्टेशन पर तो पिछले दिनों भूखे प्यासे मजदूरों ने खाने-पीने के सामान के लिए छीना-झपटी भी कर ली थी। ऐसे में स्थानीय लोगों की मदद इन मज़दूरों के लिए वरदान बनकर आई। 

हालांकि, बरौनी में कुछ दिन पहले एक श्रमिक स्पेशल ट्रेन में खाना बांटने पर प्राथमिकी दर्ज कर ली गई थी, जिस कारण इन गांवों के लोग भी डरे हुए थे।इसलिए वे राहत अभियान की कोई फ़ोटो या वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डालने से बच रहे थे,जिस वीडियो को मिज़ोरम के सीएम ने शेयर किया था, वो वीडियो शुक्रवार, 29 मई का है।

स्थानीय लोगों के मुताबिक, ट्रेन जब रुकी, तो वे लोग दौड़ कर वहां पहुंचे। कोई तरबूज बांट रहा था,  कोई रोटी और कोई सूखा भोजन दे रहा था। पहले तो यात्रियों को लगा कि वे लोग सामान बेच रहे हैं, इसलिए लेने से इनकार करने लगे। सबुन्निसा के छोटे बेटे नदीम ने फोन पर बताया, "हमलोगों ने समझाया कि ये सब फ्री है, तब वे खाना लेने को तैयार हुए।" 

स्थानीय निवासी और मुखिया पति फ़ैज़-उर-रहमान बताते हैं, "पूरा अभियान स्थानीय लोगों की स्वत:स्फूर्त मदद से चला। लोग खुद अपने घर से रोटी-सब्जी बनकर लाते थे और श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का इंतज़ार करते थे। कुछ लोग चूड़ा लेकर आ जाते थे, तो कोई पानी का पाउच ले आता था। रोज़ाना करीब 2000 लोगों के खाने लायक खाना ट्रेनों में बंटता था। खाना मिलने पर वे लोग कृतज्ञता व्यक्त करते थे।"

दिल्ली, उत्तर प्रदेश व अन्य क्षेत्रों से नार्थ ईस्ट व नार्थ बंगाल जाने वाली ट्रेनों का ये अहम रूट है, इसलिए इस रूट से ज्यादा ट्रेनें चलीं। अब तक इन गांवों के लोग करीब 50 ट्रेनों में खाने-पीने का सामान पहुंचा चुके हैं।

IMG-20200601-WA0013.jpg

शनिवार को कूचबिहार जा रही एक ट्रेन जब गांव में रुकी, तो पता चला कि एक बच्चे ने दो दिनों से दूध नहीं पिया है और वह कमजोर हो गया है। सबुन्निसा ने कहा, "बच्चे को तत्काल ट्रेन से उतारा गया और मेरे पास आधा लीटर दूध था, वो उसे दे दिया। बच्चे को दूध पिलाया गया, तो उसके शरीर में फुर्ती आई।"

फ़ैज़-उर-रहमान कहते हैं, " हमें नहीं पता था कि यहां के आमलोगों के इस प्रयास को इतनी सराहना मिलेगी। हम लोग इंसानियत के नाते ही ये सब कर रहे थे। हमें किसी तरह का प्रचार नहीं चाहिए था, इसलिए हमलोग कोई फ़ोटो वगैरह भी नहीं ले रहे थे।"

पिछले तीन दिनों से गांव के लोग ट्रेनों में खाना नहीं बांट पा रहे हैं, क्योंकि अब ट्रेनों का आना कम हो गया है, रविवार को सिर्फ़ 69 श्रमिक स्पेशल ट्रेनें ही चलीं। दूसरी वजह ये है कि शाहपुर कमाल के पास रेलवे का जो काम चल रहा था, वो संभवतः खत्म हो चुका है, जिस कारण जो भी ट्रेनें चल रही हैं, वे वहां ठहर नहीं रही हैं। 

फ़ैज़-उर रहमान ने कहा, "रविवार को तो काफ़ी खाना बर्बाद हो गया था। हमलोग खाना लेकर ट्रेन का इंतजार करने लगे, लेकिन ट्रेनें रुकी नहीं। इसके बावजूद हमारी तैयारी है और अगर ट्रेन यहां रुकेगी तो हम पैसेंजरों की मदद करेंगे।"

हरियाणा से पूर्वोत्तर के लिए खुली एक श्रमिक स्पेशल ट्रेन 24 मई को पटना के दानापुर जंक्शन पर पहुंची थी, तो स्थानीय लोगों ने ट्रेन में तोड़फोड़ की थी। पूर्वोत्तर के लोगों का आरोप था कि कोरोनावायरस के संक्रमण के ख़तरे के मद्देनजर जब स्थानीय पैसेंजरों को ट्रेन में सवार होने से रोका गया, तो उन लोगों ने ट्रेन में तोड़फोड़ शुरू कर दी थी ।इस घटना से पूर्वोत्तर में बिहार की छवि खराब हुई थी  उम्मीद की जानी चाहिए कि बेगूसराय के लोगों की सदाशयता से बिहार की छवि बदलेगी।

Bihar
Begusarai
shramik special train
worker
indian railways
COVID-19
Lockdown
Migrant workers
IRCTC
Migrant Workers’ Deaths
UP
Heat Wave

Related Stories

मिड डे मिल रसोईया सिर्फ़ 1650 रुपये महीने में काम करने को मजबूर! 

बिहार : गेहूं की धीमी सरकारी ख़रीद से किसान परेशान, कम क़ीमत में बिचौलियों को बेचने पर मजबूर

कर्नाटक: मलूर में दो-तरफा पलायन बन रही है मज़दूरों की बेबसी की वजह

हैदराबाद: कबाड़ गोदाम में आग लगने से बिहार के 11 प्रवासी मज़दूरों की दर्दनाक मौत

ग्राउंड रिपोर्ट: कम हो रहे पैदावार के बावजूद कैसे बढ़ रही है कतरनी चावल का बिक्री?

बिहारः खेग्रामस व मनरेगा मज़दूर सभा का मांगों को लेकर पटना में प्रदर्शन

यूपी चुनाव: बग़ैर किसी सरकारी मदद के अपने वजूद के लिए लड़तीं कोविड विधवाएं

यूपी: महामारी ने बुनकरों किया तबाह, छिने रोज़गार, सरकार से नहीं मिली कोई मदद! 

यूपी चुनावों को लेकर चूड़ी बनाने वालों में क्यों नहीं है उत्साह!

सड़क पर अस्पताल: बिहार में शुरू हुआ अनोखा जन अभियान, स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए जनता ने किया चक्का जाम


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License