NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
मोदी के कार्यकाल में अब ऐसा क्या बचा है जिससे कुछ उम्मीद करें 
प्रधानमंत्री जिस त्‍याग या बलिदान की बात कर रहे हैं, वह दुख और तकलीफ़ों से भरा है और वह तब आता है जब कठोर पदानुक्रम और व्‍यक्‍तिवादी शासन का बोलबाला होता हैं।
अजय गुदावर्ती
02 Jun 2020
Translated by महेश कुमार
मोदी

नरेंद्र मोदी ने हाल ही में प्रधानमंत्री के रूप में दूसरे कार्यकाल का एक वर्ष पूरा किया है और नागरिकों के नाम एक खुला पत्र जारी किया है जिसमें उन्होने अपने बाकी के कार्यकाल की के बारे में लिखा है। इस पत्र के माध्यम से, उन्होंने जनता से प्रतिकूल परिस्थितियों से बचने का आह्वान किया है। अगर आप किसी भी मामले में उनके पिछले रिकॉर्ड को खंगालेंगे तो पाएंगे कि मोदी जो कहते हैं, कराते उसके बिल्कुल उलट हैं। इसके अलावा, उनके द्वारा तैयार कुछ हल्कों क्षेत्रों में भी उनकी विश्वसनीयता गिर रही है। लेकिन कोई अब उनके बाकी बचे कार्यकाल से क्या उम्मीद कर सकता है, जिसे उन्होने प्रतिकूल समय बताया है-जिसमें अधिक नागरिक संकट, सामाजिक संघर्ष और डूबती अर्थव्यवस्था का बोलबाला होगा।

मोदी को "संप्रभु तानाशाह" के रूप में स्थापित करना और उसके प्रति बड़े समर्थन की जड़ों को, एलन बदीउ ने बीसवीं शताब्दी की प्रमुख विशेषता के रूप में पहचाना था – जिसे "यथार्थ का जुनून" कहा गया है। बदीउ का तर्क यह है कि अब उन्नीसवीं शताब्दी के यूटोपिया और वैज्ञानिक परियोजना के मुक़ाबले  हम भविष्य की योजनाओं के प्रति या भविष्य के प्रति सोचने के बजाय उसे एकदम सीधे हासिल करने की तलाश में हैं। दूसरे शब्दों में कहे तो अब हमारा सहज आग्रह इस पर है कि हम वास्तविक दुनिया का अनुभव करें जिसमें भयंकर हिंसा की प्रामाणिकता का पुट है। 

हिंसा का मतलब शारीरिक और आंत जैसी प्रकृति से होता है, क्योंकि हमारी कल्पनाएं एक शानदार भविष्य के बजाय एक खोए हुए गौरव में अधिक होती हैं। इसलिए, जो कुछ भी हासिल करना है उसे तुरंत हासिल कर लेना चाहिए। यहां तक कि आर्थिक विकास और विकास पर मोदी की भव्यता ने आकांक्षाओं को पूरा करने की उम्मीद जगाने के बजाय उसे प्रतिशोधी अधिक बनाया है। उन्होंने एक उम्मीद भरी मनोदशा की शुरुआत की और इसने निंदक मेल मिलाप का रास्ता दिया। इस तरह, जो बातें सच से परे है उन्हे सिविल, विनम्र, राजनीतिक रूप से सही माना जाता है, और असंतोष को अवास्तविक, दिखावा और अमानवीय के रूप में खारिज किया जाता है।

बहुमतवाद की शिकारी प्रकृति इस प्रकार नव-उदारवादी व्यवस्था के सामाजिक डार्विनवाद के साथ मिल जाती है और वे “संप्रभु तानाशाह" को इन हालत में पूरी तरह से फिट कर देती हैं। अतीत की असफलताओं से बढ़ते असंतोष को एक आकांक्षात्मक भविष्य के दर्शन के साथ मोड दे दिया, लेकिन वह हवा में खड़े महल की तरह ढहने लगे और धीरे-धीरे निराशा, बेचैनी हाथ लगने  लगी। वर्तमान वर्ष को इस मोड़ में परिवर्तित करने के लिए याद किया जाएगा, और प्रधानमंत्री के शेष कार्यकाल के दौरान हम जिस बात के गवाह बनने जा रहे हैं, वह इसके परिणामों की एक झांकी होगी।

वर्तमान महामारी को जिस तरह से सँभाला गया है उसने केवल इस भावना को बढ़ाया है कि नागरिकता के दिखावे के पीछे निर्ममता है, और जो लोग संकट का समाधान एक संस्थागत और सामूहिक तरीके से चाहते हैं, वे केवल समाधान का दिखावा कर रहे हैं जबकि असल में इसका कोई हल है ही नहीं। मोदी के बाकी के कार्यकाल इस आत्म-संदेह को दोहराएंगे। अर्थव्यवस्था को संभालने में विफलता और बहुमतवाद को आगे बढ़ाने के प्रमुख मिश्रण के साथ एक बेचैनी की भावना को पैदा किया गया है। एक "संप्रभु तानाशाह" को एक वैध ठहराया जा रहा है और संकट और अपवाद को अलौकिक यानि आनंद और सामान्य रहने का सार बताया जा रहा है।

मोदी का "तपस्या" और "त्याग" का संदर्भ उस नई असाधारण वास्तविकता का उल्लेख है जिसका भारत इंतज़ार कर रहा है। वह जिस तपस्या और त्याग का जिक्र कर रहे हैं, वह वस्तुतः ध्यान लगाना या फिर त्याग करना नहीं है बल्कि वह तरक्की की जन आकांक्षा का अंत है और प्रतिशोधी राजनीति की शुरुआत है। अब खुद की उपलब्धि और ज़िंदा रहने के लिए खुद ही जवाबदेह होगा। यहाँ, फिर से, नव-उदारवादी राजनीति और अर्थशास्त्र के साथ प्रमुख-हिंदू विचार का प्रमुख मिश्रण है। आपके भीतर जो है उसे आप तभी संरक्षित कर सकते है जब आपपास के हालत के प्रति लापरवाह रहे – ऐसा आप द्रष्टृगत होकर कर सकते हैं। तयाग, या बलिदान, जिसका वह जिक्र किया जा रहा है वह पदानुक्रम और व्यक्तिवाद पर आधारित है जिसका पालन एक नए आदेश के रूप में करना अनिवार्य होगा।

मोदी और अमित शाह इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं - वे जिस चीज के लिए जाने जाते हैं – वह इन्सानों की कीमत पर हिंसा पैदा करना है। उनकी मजबूती ठोस रणनीति में है और उसे हर कीमत पर लागू करने की इच्छाशक्ति की ठोस कल्पना पर आधारित है। जैसे शिक्षा में, इसका मतलब निश्चित रूप से सार्वजनिक निवेश के मुक़ाबले निजी निवेश को बढ़ाना होगा; लेकिन इसका मतलब यह भी होगा कि अब पदानुक्रमित शैक्षिक प्रणाली बड़े ही स्पष्ट ढंग से और बिना खेद के आगे बढ़ेगी। यह प्रणाली बहुमत को उच्च शिक्षा तक नहीं पहुंचने देगी – क्योंकि उच्च शिक्षा केवल उन लोगों के लिए होगी जो इसे खरीद सकते हैं। बाकी जनता के लिए, शिक्षा का मुख्य रूप या तो व्यावसायिक पाठ्यक्रम होगा और या फिर जाति आधारित उन व्यवसायों का "आधुनिकीकरण" होगा जिनमें लोग पहले से ही लगे हुए हैं।

यहाँ तेलंगाना सरकार द्वारा पेश मॉडल को आगे बढ़ाया जा सकता है, जिसका अर्थ है जाति-आधारित व्यवसायों को फंड करना और एक "रोजगारपरक" कार्यबल तैयार करना जो "पेशेवर" शिक्षा को बढ़ावा देगा। इसे लेकर कोई भी यह तर्क दे सकता है कि "श्रम की गरिमा" मैनुअल श्रम पर मानसिक रूप से विशेषाधिकार हासिल, पुराने ब्राह्मणवादी आदेश इसकी जगह ले लेगा। 

वास्तव में हम सब आखिर में नेहरूवादी सामाजिक लोकतांत्रिक कल्पना से दूर जा रहे हैं जहां समाज के भीतर उपर से आर्थिक तौर पर बंटवारा था और लम्ब रूप से सांस्कृतिक विभाजन न्यायोचित था। यह समरसता के बारे में आरएसएस के दर्शन का मोटे तौर पर अनुवाद या इसकी प्राप्ति होगा; अर्थात्, यह गतिशीलता की आकांक्षात्मक कल्पना को बन्धुत्व की  पदानुक्रमित कल्पना से प्रतिस्थापित करेगा।

"न्यू इंडिया" पदानुक्रम और धार्मिक बंधुत्व के आधार पर एक नई व्यवस्था होगी। जातियों को अगतिशील बनाया जाएगा, और इसलिए कृषि संकट के बावजूद किसानों और मजदूरों को नए श्रम कानूनों के माध्यम से अगतिशील किया जा रहा है। और बावजूद इसके आभी तक अनौपचारिक श्रमिकों की संख्या ने विरोध का रास्ता नहीं अपनाया है, बावजूद इसके कि उनके साथ जो व्यवहार किया गया वह अमानवीय है।

यह केवल छात्रों और युवाओं को सीधे तौर पर नहीं छू रहा है, यही वजह है कि शैक्षिक सुधार इस परियोजना के लिए महत्वपूर्ण रहेंगे। छात्र-कार्यकर्ताओं और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के साथ-साथ, शिक्षा में बड़े पैमाने पर सुधार और विनिवेश, हमेशा के लिए चिंता और असुरक्षा की स्थिति को पैदा कर देगा। ऑनलाइन और दूरस्थ शिक्षा पर जोर फिर से एक सस्ती और बड़े पैमाने तक पहुंच वाली शिक्षा को लोकतांत्रिक शिक्षा के नाम पर पेश किया जा सकता है।

इस तरह की ढांचागत बेचैनी और असुरक्षा की भावना बहुत जल्दी बदलाव की प्रकृति को आगे बढ़ाएगी। आकांक्षात्मक गतिशीलता से न्यूनतम गरिमा के साथ बुनियादी अस्तित्व में बदलाव आएगा। आंशिक रूप से, इस मॉडल के पायलट प्रोजेक्ट की जांच प्रवासी संकट के दौरान की गई थी, जिसने दिखाया कि जरूरी नहीं बहुत खराब हालात में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन खुद-ब-खुद आयोजित हो जाएंगे। उदारवादी हिंदू जाति से जुड़े कुलीन तबकों को पहले से ही देशद्रोही और "शहरी नक्सल" के रूप में तेज़ी से प्रचारित कर दिया गया है। 

अपने बाकी के कार्यकाल में अब मोदी जो करेंगे, वह बहुत स्पष्ट है, लेकिन सवाल यह है कि क्या समाज के पुनर्गठन के इस तरीके की सीमाएं हैं।

इस संभावना के बढ़ाने के लिए आर्थिक संकट का होना एक आवश्यक उपाय है। हिंदुत्व और विकास के मिश्रण से, हम सांस्कृतिक और आर्थिक अभिजात्यता और एक सतत आर्थिक संकट की तरफ बढ़ रहे हैं। इसे अभी, कम से कम, एक मूल आय या प्रत्यक्ष-नकद हस्तांतरण जैसी छोटी-मोटी योजनाओं के माध्यम से या छोटे व्यवसाय शुरू करने के लिए ऋण देने के माध्यम से सँभाला जा सकता है। संकट के एक स्तर के बढ़ाने के बाद, बहुमत के लिए विरोध करना बेमानी हो जाएगा और आपके पास एक छोटा प्रगतिशील-उदारवादी कुलीन (जैसा कि हम अफ्रीकी देशों और लैटिन अमेरिका में देखते हैं), तबका रह जाएगा जो अनिवार्य रूप से संघर्षरत बहुमत के जीवन और जीवन के अनुभवों से बहुत दूर हैं। कम से कम इस तरह से मोदी और उनके वैचारिक हमसाथियों के लिए एक नए मॉडल की उम्मीद की जा सकती है।

लेखक, सेंटर फ़ॉर पॉलिटिकल स्टडीज़, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

What to Expect from What Remains of Modi’s Term

Ideology
Deindustrialisation
Workers
education policy
Caste

Related Stories

भूख-जाति से लड़ती सामुदायिक रसोई

लॉकडाउन: वेतन न काटने के सरकारी आदेश के बाद भी कर्मचारियों का वेतन कटा

बुंदेलखंड की सुनो : 'सरकार कहत कुछ है करत कुछ'


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License