NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
विशेषज्ञों के हिसाब से मनरेगा के लिए बजट का आवंटन पर्याप्त नहीं
पीपल्स एक्शन फ़ॉर एम्प्लॉयमेंट गारंटी (PAEG) के मुताबिक़ वित्तीय साल 2022-23 के बजट में नरेगा के लिए जो राशि आवंटित की गयी है, उससे प्रति परिवार महज़ 21 श्रमदिवस का काम ही सृजित किया जा सकता है।
दित्सा भट्टाचार्य
11 Feb 2022
MNREGA
प्रतीकात्मक फ़ोटो

पीपल्स एक्शन फ़ॉर एम्प्लॉयमेंट गारंटी (PAEG) ने बजट से पहले वाले ब्यरो में इस बात का अनुमान लगाया था कि अगर वित्तीय साल 2021-22 में कार्यरत परिवारों की संख्या को 269 रुपये के बराबर मज़दूरी दर पर 100 दिन का काम दिया जाना है, तो वित्तीय वर्ष 2022-23 में नरेगा के लिए कम से कम 2.64 लाख करोड़ रुपये आवंटित करने होंगे। पीएईजी का यह भी अनुमान था कि वित्तीय साल 2021-22 के ख़त्म होने पर 21,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा की तो लंबित देनदारियां ही होंगी।

इस क़ानून का 16 वां साल पूरा होने वाला है। वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में इस बात का ऐलान किया था कि वित्तीय साल 2022-23 में नरेगा के लिए बजट अनुमान सिर्फ़ 73,000 करोड़ रुपये होगा। पीएईजी के बजट के बाद के विवरण के अनुमान के मुताबिक़, इस राशि से प्रति परिवार महज़ 21 श्रम-दिवस के काम को ही सृजित किया जा सकता है।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (NREGA) भारत के गावों में रहने वाले लाखों ग़रीबों के लिए एक जीवन रेखा है। यह हर एक परिवार को न्यूनतम मज़दूरी पर 100 दिनों के रोज़गार की गारंटी देता है और गांव के आर्थिक संकट के वक़्त यह ख़ास तौर पर अहम हो जाता है।

वित्तीय साल 2015-16 से इस कार्यक्रम के तहत किया जाने वाला वार्षिक बजट आवंटन रोज़गार चाहने वाले सभी लोगों को काम दिये जाने के लिहाज़ से कभी भी पर्याप्त नहीं रहा है। पीएईजी ने गुरुवार, 10 फ़रवरी को जारी एक बयान में कहा, "हर साल बजट का तक़रीबन 80-90% शुरुआती छह महीनों के भीतर ही ख़त्म हो जाता है, जिसका नतीजा ज़मीनी स्तर पर पर काम के सिलसिले में भारी मंदी के रूप में सामने आता है। इस अपर्याप्त बजट आवंटन के चलते सरकार सभी सक्रिय जॉब कार्ड धारक परिवारों को रोज़गार नहीं दे पाती है।

नरेगा संघर्ष मोर्चा (NSM) ने बजट से पहले के अपने बयान में यह सिफ़ारिश की थी कि सभी सक्रिय जॉब कार्ड धारक परिवारों के लिए अधिकतम रोज़गार सृजन सुनिश्चित करने के लिए कम से कम 3.62 लाख करोड़ रुपये की ज़रूरत होगी।

पीएईजी के जारी बयान में कहा गया है, “मौजूदा बजट आवंटन में से तक़रीबन 18,350 करोड़ रुपये तो पिछले सालों से लंबित देनदारियां ही हैं। इसलिए, अगले साल के लिए क़रीब 54,650 करोड़ रुपये ही उपलब्ध हैं। अगर सरकार सभी सक्रिय जॉब कार्ड धारक 9.94 करोड़ परिवारों को काम की क़ानूनी गारंटी देना चाहती है, तो मौजूदा बजटीय अनुमान को देखते हुए सरकार सिर्फ़ 334 रुपये की प्रति व्यक्ति प्रति दिन औसत लागत पर महज़ 16 दिनों का काम देने में ही सक्षम होगी।”

तालिका: वित्तीय साल 2022-23 में आवंटित बजट के साथ प्रति परिवार सृजित किये जा सकने वाले कार्य दिवसों की अनुमानित संख्या।

इस महीने की शुरुआत में 2 फ़रवरी को जारी एक बयान में एनएसएम ने कहा था, "हमने बजट से पहले के अपने नोट में सिफ़ारिश की थी कि सभी सक्रिय जॉब कार्ड धारक परिवारों के लिए ज़्यादा से ज़्यादा रोज़गार के सृजन को सुनिश्चित करने के लिए 3.62 लाख करोड़ रुपये से कम की ज़रूरत नहीं होगी। सरकार एक बार फिर गांव में रहने वाले अपने उन लाखों नागरिकों को काम देने में विफल रही है, जो अपने जीवन की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए इस ग्रामीण रोज़गार गारंटी कार्यक्रम पर निर्भर हैं। हम नरेगा संघर्ष मोर्चा के लोग नरेगा के लिए इस हास्यास्पद कम बजट आवंटन पर अपनी गहरी निराशा व्यक्त करते हैं, और हम केंद्र सरकार से यह आग्रह करते हैं कि वह इस कार्यक्रम के लिए पर्याप्त धन आवंटित करने के लिए एक महीने के भीतर ज़रूरी कार्रवाई करे।"

पीएईजी ने इस बात पर रौशनी डाली कि जहां केंद्र सरकार यह दलील दे सकती है कि 73,000 करोड़ रुपये तो महज़ बजट अनुमान है और इसे ज़रूरत के हिसाब  से संशोधित किया जा सकता है, वहीं राज्य सरकारों के पास धन की कमी के कारण परियोजनाओं की संख्या कम है, और इस तरह, एक ओर काम का कम सृजन हो पाता  है, और दूसरी ओर केंद्र से भुगतान में देरी होती है।

इस संगठन ने बजट के बाद के अपने बयान में कहा, "नतीजतन, श्रमिकों को काम से वंचित किया जा सकता है। सरकार के ख़ुद के आंकड़ों के मुताबिक़, क़रीब 83 लाख, या 11 प्रतिशत परिवार जिन्होंने काम की मांग की थी, वे कार्यरत नहीं थे।"

उस बयान में आगे कहा गया है, "ध्यान देने वाली एक अहम बात तो यह है कि ये आंकड़े विश्वसनीय स्रोतों पर आधारित नहीं हैं। स्रोत पर मांग में कमी के कारण वास्तविक अधूरी मांग बहुत ज़्यादा होगी। हालांकि, सरकार का दावा है कि पर्याप्त अतिरिक्त धन आवंटित किया जायेगा, अतीत को देखने पर ऐसा लग नहीं रहा है। वित्तीय साल 2020-21 और वित्तीय साल 2021-22 में सरकार की ओर से आवंटित अतिरिक्त धनराशि अपर्याप्त साबित हुई है। दूसरी ओर, नरेगा के काम की मांग लगातार ज़्यादा बनी हुई है, और 31 जनवरी, 2022 की स्थिति के मुतिबाक़, 3,273 करोड़ रुपये की मज़दूरी के 1.99 करोड़ लेन-देन में निर्धारित उन 15 दिनों से अधिक की देरी हुई है, जिनके भीतर मज़दूरी का भुगतान किया जाना होता है।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

 https://www.newsclick.in/Budget-Allocation-MNREGA-Not-Enough-Say-Experts

MNREGA
union budget
Nirmala Sitharaman
unemployment

Related Stories

हिमाचल : मनरेगा के श्रमिकों को छह महीने से नहीं मिला वेतन

कश्मीर: कम मांग और युवा पीढ़ी में कम रूचि के चलते लकड़ी पर नक्काशी के काम में गिरावट

यूपी : 10 लाख मनरेगा श्रमिकों को तीन-चार महीने से नहीं मिली मज़दूरी!

मनरेगा मज़दूरों के मेहनताने पर आख़िर कौन डाल रहा है डाका?

ज़रूरी है दलित आदिवासी मज़दूरों के हालात पर भी ग़ौर करना

मई दिवस: मज़दूर—किसान एकता का संदेश

मनरेगा: ग्रामीण विकास मंत्रालय की उदासीनता का दंश झेलते मज़दूर, रुकी 4060 करोड़ की मज़दूरी

छत्तीसगढ़ :दो सूत्रीय मांगों को लेकर 17 दिनों से हड़ताल पर मनरेगा कर्मी

बिहारः खेग्रामस व मनरेगा मज़दूर सभा का मांगों को लेकर पटना में प्रदर्शन

राजस्थान ने किया शहरी रोज़गार गारंटी योजना का ऐलान- क्या केंद्र सुन रहा है?


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License