मोदी सरकार का लोकसभा चुनाव में बहुत बड़ा वादा था कि जहाँ झुग्गी वहीं मकान, लेकिन इसके विपरीत वर्तमान महामारी के समय में दिल्ली-एनसीआर, मुंबई सहित कई राज्यों में अवैध अतिक्रमण के नाम पर हज़ारों लोगों को बेघर किया जा रहा है। बेघर करके उन्हें सड़कों पर खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर किया जा रहा है। ऐसे समय जब देश ही नहीं दुनिया अभूतपूर्व संकट कोरोना माहमारी का सामना कर रही है। जिस दौरान सरकार खुद भी घर में रहें, सुरक्षित रहें जैसे नारे और सबक जनता को दे रही है। ऐसे में लोगो के आशियाने को छीनकर सड़क पर लाना कई सवाल खड़े करता है।
अभी ताज़ा मामला हरियाणा के फरीदाबाद में अरावली क्षेत्र में बसे खोरी गाँव बस्ती का है। जहाँ 10 हजार से भी ज्यादा परिवारों पर बेदखली व बेघर होने का खतरा मंडरा रहा है।
आपको बता दे 7 जून को उच्चतम न्यायालय ने एक याचिका की सुनवाई में खोरी गाँव बस्ती के लोगों को हटाने के लिए फरीदाबाद नगर निगम व प्रशासन को 6 सप्ताह का समय दिया है। आदेश के बाद से ही बस्ती में नोटिस लगा दिया गया और वहां पर भारी पुलिस बल तैनात कर बस्ती को छावनी में बदल दिया गया है।
बस्ती सुरक्षा मंच, वर्किंग पीपल चार्टर, बंधुआ मुक्ति मोर्चा और एनएपीएम ने एक साझा बयान जारी कर बताया है कि फिलहाल बस्ती में 20 हजार से भी अधिक बच्चे, गर्भवती महिलाएं, व एकल परिवार के साथ वृद्ध व निःशक्त जन रहते हैं। किसी भी वैकल्पिक व्यवस्था के बिना यह बेदखली इन सभी वर्गों के लिए जानलेवा हमला के समान है।

एक सप्ताह पहले उच्चतम न्यायलय ने आदेश जारी कर गांव खोरी की जमीन पर बने मकानों को हटाने के आदेश दिए हैं। आदेश के अनुसार, 10 हजार मकान को तोड़ा जाना है। हालांकि, न्यायलय के आदेश आए एक सप्ताह हो गया है। प्रशासन ने भी अब यह बेदखली करने का पूरा मन बना लिया है। सोमवार से इस इलाके में बिजली पानी काट दिया है। इससे डरकर कुछ लोगों ने अपने घर मकान छोड़ दिए हैं, लेकिन एक बड़ी आबादी भी भी वहीं जमी है और उनका कहना है कि परिणाम कुछ भी हो लेकिन वह किसी भी हाल में अपने घरों को छोड़कर नहीं जाएंगे।
साथ ही लोगों ने प्रशासन से पहले भूमाफिया पर कार्रवाई की मांग की है। क्योंकि उन्होंने ये ज़मीन उन्ही से खरीदी थी। प्रशासन ने भी जो सर्वे कराया उसमें पता चला कि 800 से अधिक प्लाट काटकर बेचे जा चुके हैं। इसको लेकर वहां रहने वाले लोगो का कहना है उन्होंने अपनी पूरे जीवन की कमाई से अपना घर बनाया और अब एक झटके उसे तोड़ने की बात हो रही है। जिससे वो घबराए हुए हैं।
लोगों का यह भी कहना है कि ऐसी आपदा की परिस्थिति में शासन-प्रशासन अदालत से भी अभी कार्रवाई पर रोक की प्रार्थना कर सकता था। लेकिन सरकार ही उन्हें बेदखल करना चाहती है।
बस्ती को बचाने की कोशिश कर रहे लोगो का कहना है कि प्रशासन की ओर से किसी भी तरह के पुनर्वास की बात नहीं की जा रही है और निर्वाचित प्रतिनिधि लोगों से मिलने को तैयार नहीं हो रहे हैं। बस्ती में जो भी बेदखली का विरोध करता है उसे गिरफ्तार कर लिया जा रहा है। अभी तक 150 से भी अधिक स्थानीय निवासियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया जा चुका है। सामाजिक कार्यकर्ता व बंधुआ मुक्ति मोर्चा के महासचिव निर्मल गोरना को भी पुलिस ने 15 जून को गिरफ्तार किया व बिना किसी मुकदमे के भी 10 घण्टे से अधिक थाने में रखा।
हालांकि प्रशासन ने दावा किया है कि वो लोगों को इलाक़े को खाली करने में मदद कर रहा है और यहाँ से शिफ्ट कर रहे लोगो के लिए गाड़ी की व्यवस्था की गई है जिससे वो अपना समान ले जा सकते हैं। साथ ही दो दिन के अस्थाई कैंप की भी बात कही जा रही है।
बस्ती में स्थिति बिगड़ती जा रही है और लोग कुछ सोच नहीं पा रहे हैं। कई स्थानीय लोगों ने आत्महत्या की भी कोशिश की है। बस्ती को लेकर प्रशासन कुछ स्पष्ट नहीं कर रहा व लाखों लोगों का जीवन अधर में अटका हुआ है वहीं उसी ज़मीन पर सैकड़ों फार्म हाउस, होटल व उद्योगों को कोई खतरा नहीं बताया जा रहा।
ये कोई पहला मौका नहीं है जब सरकारों की शह पर इस तरह के अभियान चलाएं जा रहे हों। इससे पहले पिछले साल जुलाई अगस्त में हरियाणा के गुरुग्राम में 600 परिवारों को नगरपालिका ने बेघर कर दिया था। ये सभी परिवार लगभग 25-30 वर्षों से गुरुग्राम के सिकंदरपुर इलाक़े के आरावली क्षेत्र में रहते थे। इसी तरह इस महामारी काल में दक्षिण दिल्ली में कालका स्टोन, दक्षिणी दिल्ली में तुगलकाबाद रेलवे बस्ती और पूर्वी दिल्ली में चिल्ला खादर में बड़ी बेदखली के साथ दिल्ली में लगभग 300 परिवार बेघर किए गए। इसी तरह मुंबई में इसी वर्ष अप्रैल में अतिक्रमण के नाम पर झुग्गियों को ध्वस्त कर दिया गया, जिससे लगभग 600 परिवार बेघर हो गए और कई लोग वायरस की चपेट में आ गए।
यह कोई अकेला मामले नहीं है राष्ट्रीय आवास अधिकार अभियान एक रिपोर्ट के मुताबिक़ इस महामारी और लॉकडाउन के समय में देशभर में ऐसे 100 से अधिक डेमोलिशन यानी तोड़-फोड़ की कार्रवाई हुईं हैं।
मानवाधिकार कार्यकर्ता इस तरह की कार्रवाई का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि “ किसी भी अदालत का आदेश कोरोना माहमारी के विस्तार को रोकने के लिए सरकारी गाइडलाइन को नहीं तोड़ सकता है।"
उनका मानना है कि, "मौजूदा स्थितियों को देखते हुए, जबकि सरकार लोगों को घर के अंदर रहने, हाथ धोने और सामाजिक दूरी बनाए रखने के लिए कह रही है, इन परिवारों को अदालत के आदेशों के पालन के लिए सड़कों पर पंहुचा दिया गया है,यह पूरी तरह गैरमानवीय कदम है।"
कई सामाजिक कार्यकर्ता दबे स्वर में कहते है " सरकारें शहरी इलाक़ों से ग़रीबों को बाहर निकालने के लिए महामारी की स्थिति का फ़ायदा उठा रहे हैं”। इसका विरोध करते हुए, यह वर्ग बेदख़ली अभियान पर रोक लगाने की मांग कर रहा है।