NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
कृषि
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
किसानों के चक्का जाम ने दिखाया कि आंदोलन देशव्यापी बन गया है
सरकार को नहीं पता है और वह अभी भी इस भ्रम में जी रही है कि यह मुदा सिर्फ़ एक राज्य का मुद्दा है।
सुबोध वर्मा
08 Feb 2021
Translated by महेश कुमार
किसानों के चक्का जाम ने दिखाया कि आंदोलन देशव्यापी बन गया है

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने 5 फरवरी को राज्यसभा में जोर देकर बयान दिया कि केवल एक राज्य के किसान गलतफहमी के शिकार हैं और इसलिए तीन-कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन केवल एक ही राज्य का मसला है, लेकिन पूरे देश में चक्का जाम आंदोलन से बड़े पैमाने हुए जाम इस तरफ इशारा करते हैं कि किसान बड़ी संख्या में निकले और इन कानूनों का विरोध किया। इस आंदोलन से न केवल मंत्री के दावे की हवा निकल गई बल्कि फिर से यह बात स्थापित हो गई कि किसानों के बीच इन कानूनों और मोदी सरकार की कठोरता के खिलाफ गहरा गुस्सा है। 

मीडिया रिपोर्ट और न्यूज़क्लिक की ज़मीनी कवरेज से पता चलता है कि पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, केरल, बिहार, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु के लगभग सभी जिलों में और राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा और अन्य राज्यों में कई जिलों में तीन घंटे तक चक्का जाम चला। कुछ प्रमुख किसान यूनियनों ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में चक्का जाम नहीं करने का फैसला लिया था, क्योंकि उन्हें संदेह था कि भारतीय जनता पार्टी सरकारें स्थिति का नाजायज लाभ उठा सकती हैं और कुछ अप्रिय घटना को अंजाम देने का प्रयास कर सकती हैं।  हालाँकि, इन राज्यों में भी, अन्य किसान यूनियनों ने कई जिलों में विरोध प्रदर्शन किए हैं। 

कृषि मंत्री, जो किसानों के संघर्ष से निपटने में मोदी सरकार के सबसे अगुआ और महत्वपूर्ण व्यक्ति रहे हैं, वे इस बात पर इतना ज़ोर दे रहे थे कि यह केवल एक राज्य का मसला है? निम्न तथ्यों के बावजूद मंत्री और सत्तारूढ़ पार्टी के अन्य नेताओं ने बार-बार यही कहा है:

  • 26 नवंबर की दिल्ली की घेराबंदी शुरू होने के ठीक दो हफ्ते बाद, 8 दिसंबर को किसानों के समर्थन में और हरियाणा में उनके खिलाफ की गई हिंसा के खिलाफ देशव्यापी "बंद" या हड़ताल की गई।
  • तब से, सभी राज्यों में किसानों ने बड़े भारी विरोध प्रदर्शन, धरने, पदयात्राएं, रैलियां और अन्य कार्यक्रम किए हैं।
  • केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच, जो 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों से बना है और जिसमें दर्जनों अन्य स्वतंत्र फ़ेडरेशन भी शामिल हैं ने किसानों का समर्थन करते हुए सभी राज्यों में विरोध प्रदर्शन किए है।
  • व्यावहारिक रूप से सभी राज्यों के किसान- जिनमें दक्षिण में तमिलनाडु और केरल और पूर्व में ओडिशा और पश्चिम में महाराष्ट्र से 5,000 मजबूत किसानों का दल दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे धरनों में शामिल हैं।
  • व्यावहारिक रूप से सभी विपक्षी दलों जिनमें ऐसे कई दल हैं जो विभिन्न राज्यों में  मजबूत हैं ने तीन कृषि कानूनों का विरोध किया और किसानों के संघर्ष का समर्थन किया है।
  • छह राज्य सरकारों ने तीन केंद्रीय कानूनों के खिलाफ अपनी-अपनी राज्य विधानसभाओं में प्रस्ताव पारित किए हैं।

बावजूद इसके मंत्री झूठे दावे की सवारी कर रहे हैं, वह भी संसद में! क्या उनका अंदाज़ा गलत है या सरकार को कोई भ्रम है, जिसे लेकर वह इतनी मेहनत कर रही है या बात कुछ और है?

बदनाम करने की कोशिश 

सबसे बड़ा अपरिहार्य तथ्य यह है कि सरकार का लगातार इस बात पर चोट कर रही है कि आंदोलन एक राज्य तक ही सीमित है। यह सोच दो अलग-अलग वजहों के संयोजन से (या बिना किसी सोच के) उत्पन्न होती है- पहली, आंदोलन की अभूतपूर्व सफलता में कील ठोकने के प्रयास में लगातार यह कहा जाता रहा कि यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे केवल पंजाब के किसान ही उठा रहे हैं; और दो, कि इसे पंजाब के सत्तारूढ़ दल, कांग्रेस द्वारा उकसाया गया है जो अपने आप में सुविधाजनक निष्कर्ष है, और आंदोलन को जारी रखने के लिए विदेशों में रहे पंजाब के प्रवासी फंड दे रहे है, जिनके खालिस्तानी अलगाववादीयों से संबंध हैं।

इस एक ही बात को एक या दूसरे रूप में बार-बार व्यक्त किया गया जबकि ये दोनों धारणाएँ, असत्य हैं। अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने किसानों के मुद्दों पर अपना समर्थन दिया है। लेकिन, पंजाब में मुख्य विपक्षी दल अकाली दल है, जो हाल ही के समय तक केंद्र में मोदी के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा था और उसने तीनों कानूनों के मुद्दे पर गठबंधन को छोड़ दिया था। वैसे भी आप देखें तो किसान आंदोलन में बहुत अधिक गुस्सा और दृढ़ संकल्प है, और आंदोलन का यह इतना बड़ा पैमाना है जिसे किसी भी राजनीतिक दल द्वारा चालान नामुमकिन है।

इसलिए, वास्तव में देखा जाए तो सरकार उस वक़्त देश और संसद को गुमराह करने की कोशिश कर रही होती है जब वह इस किस्म के दावे करती है कि किसानों का विरोध सिर्फ एक राज्य का विद्रोह है। और इस माध्यम से, उसका उद्देश्य किसान एकता में दरार डालना हो सकता है, जो दूसरों को इसमें जुड़ने से हतोत्साहित कर सकता है और वे आशा करते है कि इस तरह आंदोलन की हवा निकाल जाएगी।  

किसानों को विदेशों से समर्थन 

इस दौरान देश और दुनिया में घटे दो घटनाक्रमों ने भाजपा के सामूहिक मन की आंतरिक कार्यप्रणाली को उजागर करके रख दिया। एक तो तत्काल अलार्म बड़ी तेजी से तब बजा जब  विदेशी हस्तियों के बड़े झुंड ने किसानों के आंदोलन के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया। न सिर्फ देश बल्कि दुनिया को इन हस्तियों के ट्वीट का जवाब देने में सरकार ने जो रुख अपनाया वह एक आश्चर्यजनक तमाशा बन गया, और इसके जवाब में विभिन्न बॉलीवुड हस्तियों ने  आश्चर्यजनक रूप से, यहां तक कि कुछ क्रिकेटर्स ने अपने ट्वीट्स के माध्यम से कहा कि वे देश के साथ हैं और विश्वास करते हैं कि आंदोलन का सौहार्दपूर्ण हल निकाल लिया जाएगा। 

यह काफी भ्रामक था- सरकार को देश मानने का घालमेल और उस पर आक्रोशपूर्ण देशभक्ति का प्रदर्शन करना जैसे कि कुछ विदेशी ताकतों ने भारत पर हमला करने की घोषणा कर दी हो, यह सब सरकार के भीतर विश्वास के संकट की तरफ इशारा करता है कि मोदी सरकार इससे काफी त्रस्त हो गई थी। हाल के सप्ताहों में खुद की गतिविधियों से ध्यान हटाने के लिए इस तरह की कमजोर धारणाएँ अपनाई गई- और दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के रास्ते में बैरिकेड्स और कील, कांटे लगाए गए क्योंकि भीड़ लाल किले तक चली गई थी, और दिल्ली की सर्द सुबह में वृद्ध महिलाएं और बच्चों की तस्वीरें भारत के "विश्व गुरु" होने की छवि को गंभीर नुकसान पहुंचा रही थी। 

अन्य घटनाओं में अमेरिकी सरकार ने घोषणा कर दी कि नए कृषि कानून भारत में बाजारों की "दक्षता" बढ़ाने में मदद करेंगे। भारत की आंतरिक नीति पर इस तीखी टिप्पणी से ट्वीट करने वाले सेलिब्रिटी के बीच नाराजगी नहीं दिखी, लेकिन रिहाना और अन्य लोगों के किसानों के समर्थन में बोलने से ये नाराज़ हो गए। 

अमेरिका, को इस बात के लिए अच्छी तरह से जाना जाता है वह भारत की खाद्य सब्सिडी के खिलाफ एक लंबी लड़ाई का नेतृत्व कर रहा है जो किसानों को बेहतर मूल्य और लाखों गरीब लोगों को सस्ता अनाज/खाद्यान्न सुनिश्चित करता है। अमेरिकी सरकार ने इस मसले को लगातार विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में और दोहा दौर की बातचीत सहित अन्य व्यापार समझौतों में उठाया है।

उनका तर्क यह है कि चूंकि भारत किसानों को सब्सिडी देता है, इसलिए उन्हे भारत को अनाज निर्यात करने का अवसर नहीं मिलता हैं। यह तारीफ की बात है कि अतीत में भारत की सरकारों ने खुद की जमीन पर खड़े होकर इस दबाव का हमेशा विरोध किया था। यह भी याद रखने की जरूरत है कि खुद अमेरिकी सरकार और यूरोपीयन यूनियन के देश भी अपने किसानों को भारी सब्सिडी देते है- लेकिन वे नहीं चाहते कि भारत ऐसा करे। इसलिए अमेरिका नए कृषि कानूनों का समर्थन करता है- जो अंतत सार्वजनिक खरीद और वितरण प्रणाली को समाप्त कर देगा।  

तो, अब क्या होगा? किसानों ने घोषणा की है कि वे कम से कम 2 अक्टूबर तक दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले रहेंगे। यह तारीख नौ महीने दूर है। इस बीच, आंदोलन लगातार फैल रहा है और गहराता जा रहा है। पिछले कुछ हफ्तों में, गणतंत्र दिवस के बाद से, पश्चिमी यूपी और हरियाणा, दिल्ली से सटे दो राज्यों में बड़े पैमाने पर महापंचायतें (सामुदायिक सभाएं) हुई हैं। हजारों लोगों ने इनमें भाग लिया और दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे धरनों में शामिल होने की तैयारी कर रहे है। पंजाब के गांवों में इससे लड़ने का दृढ़ संकल्प काफी गहरा है और हर गांव से आने वाले आंदोलनकारियों की व्यवस्था घड़ी की तरह चल रही है।

कई राज्यों में, जैसा कि चक्का जाम से नज़र आता है, आंदोलन का समर्थन बढ़ रहा है। शहरों में भी, विभिन्न वर्ग संघर्षरत किसानों के साथ एकजुटता में सामने आ रहे हैं। संक्षेप में, सरकार केवल किसानों से समझौता कर बच सकती है, क्योंकि आंदोलन में तो कोई कमी आने वाली नहीं है।

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Farmers’ Chakka Jam Shows the Struggle has Spread Far and Wide

Farm Law 2020
Agricultural
Chakka Jam
BJP
Singhu Border
Tikri Border

Related Stories

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

दिल्ली : पांच महीने से वेतन व पेंशन न मिलने से आर्थिक तंगी से जूझ रहे शिक्षकों ने किया प्रदर्शन

आईपीओ लॉन्च के विरोध में एलआईसी कर्मचारियों ने की हड़ताल

जहाँगीरपुरी हिंसा : "हिंदुस्तान के भाईचारे पर बुलडोज़र" के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन

दिल्ली: सांप्रदायिक और बुलडोजर राजनीति के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन

आंगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने क्यों कर रखा है आप और भाजपा की "नाक में दम”?

NEP भारत में सार्वजनिक शिक्षा को नष्ट करने के लिए भाजपा का बुलडोजर: वृंदा करात

नौजवान आत्मघात नहीं, रोज़गार और लोकतंत्र के लिए संयुक्त संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ें


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License