NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
किसान आंदोलन : 26 जनवरी के परेड के लिए महिलाओं ने भी कसी कमर
किसान एक तरफ जहां सरकार से बातचीत करने जा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ वो अपने आंदोलन को और तेज़ कर रहे है। क्योंकि उन्हें सरकार से बातचीत से कोई बहुत उम्मीद नहीं है।
मुकुंद झा
19 Jan 2021
किसान आंदोलन

किसान आंदोलन अपने दो महीने पूरे करने जा रहा है। बुधवार को एकबार फिर किसान और सरकार के बीच में दसवें दौर की बातचीत हो रही है, परन्तु सरकार के रवैये को देखते हुए लगता नहीं है इस मीटिंग से भी कोई हल निकलेगा।

किसान एक तरफ जहां सरकार से बातचीत करने जा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ वो अपने आंदोलन को और तेज़ कर रहे है। क्योंकि उन्हें सरकार से बातचीत से कोई बहुत उम्मीद नहीं है। वो अपनी पूरी ताकत से 26 जनवरी के प्रस्तावित किसान परेड की तैयारी कर रहे है। इस परेड में किसान अपने ट्रैक्टर ट्रॉली के साथ दिल्ली की आउटर रिंग रोड पर उतरेंगे। हालांकि दिल्ली पुलिस और केंद्र सरकार लगातार इसे न करने को कह रही है। परन्तु किसानों ने साफ किया वो इसे स्थगित नहीं करेंगे।

इसके वीडियो भी सोशल मिडिया पर भी शेयर किये जा रहे है। जिसमें किसान सैनिको के तरह अभ्यास करते और एक लाइन से ट्रैक्टर मार्च करते देखे जा सकते हैं।

अब इस आंदोलन में महिलाओं की संख्या भी लगातार बढ़ रही है और वो भी किसान परेड की तैयारी कर रही हैं। न्यूज़क्लिक की टीम लगातार प्रदर्शन कर रहे किसानों के बीच से रिपोर्ट कर रही है।

महिला किसान दिवस के मौके पर 18 जनवरी को भी हमारी टीम ने प्रदर्शन स्थलों का दौरा किया। जिसमें हर बॉर्डर पर महिला किसानों की बड़ी भागीदारी दिखी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की उस बात पर भी तल्ख़ टिप्पणी की और कहा कि हम घरों में भी नेतृत्व करती हैं और अब इस आंदोलन की भी कमान अपने हाथों में लेने आए हैं।

प्रदर्शन में शामिल किसान महिलाओं ने कहा कि किसान परेड में हम अपने परदे को पीछे करके ट्रैक्टर के हैंडल (स्टीयरिंग) को संभालने को तैयार हैं। गाजीपुर में महिलाओं ने एक समूह गान भी गाया जिसमें उन्होंने कहा- अब चाहे ससुर, जेठ या पिता भी रोके लेकिन अब हम आंदोलन में जाएंगे। इस तरह एक अन्य महिला गीत प्रस्तुत किया जिसमे उन्होंने कहा '... मेरे देश की बहनों तुमको देख रही दुनिया सारी, तुम पे है बड़ी ज़िम्मेदारी, देखो कभी तुम भटक मत जाना झूठे हास दिलासों में, करना ऐसे काम तुम्हारा नाम रहे इतिहासों में ...'  इस दौरान वो महिलाओं को बता रहीं थीं कि इस आंदोलन में उनपर कितनी बड़ी जिम्मेदारी है साथ ही वो उन्हें किसी बहकावे में न आने के लिए भी आगाह कर रहीं थीं।

image

गाज़ीपुर बॉर्डर जहाँ उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसान बड़ी संख्या में पहुंचे हुए हैं, वहां उत्तर प्रदेश के कानपुर से सीपीएम की पूर्व सांसद और वर्तमान में अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (एडवा) की अध्यक्ष सुभाषनी अली कानपुर से एक जत्थे के साथ पहुंचीं, जबकि उनके साथ ही उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद और गौतम बुद्ध नगर से भी सैकड़ों की संख्या में महिलाओं का जत्था गाज़ीपुर बॉर्डर पहुँचा।

सुभाषनी अली ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि महिलाएं आज दिखा रहीं हैं कि कोई काम नहीं है जो वो नहीं कर सकती हैं। आज वो इस आंदोलन में मंच संभालने से लेकर भाषण और गीत गा रही हैं।

image

उन्होंने बताया कि 'आज हमने बहुत बड़ा सवाल उठाया कि देश की 75% महिलाएं खेती करती हैं। पूरा पशुपालन का काम करती हैं लेकिन आप उन्हें किसान का दर्जा क्यों नहीं देते हैं? उन्हें कोई सरकारी मदद भी नहीं मिलती है। यहाँ तक कि अगर कोई महिला किसान क़र्ज़ तले दबकर आत्महत्या कर लेती है तो सरकार उसे मुआवज़ा तक नहीं देती है। सब महिलाओं की कुर्बानी और निष्ठा को तो देख रहे हैं लेकिन अब समय आ गया है कि महिलाओं के किसानी के अधिकार पर भी लड़ाई लड़ी जाए।'

पश्चिम उत्तर प्रदेश से आई महिला किसान नेता निर्देश चौधरी जो इस आंदोलन के शुरुआत से ही बॉर्डर पर डटी हुई हैं, उन्होंने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए इस आंदोलन को एक ऐतिहासिक महाआंदोलन कहा। उन्होंने साफतौर पर बातचीत में कहा 'जबतक बिल वापसी नहीं तबतक घर वापसी नहीं।'

image

चौधरी ने आगे कहा 'हमने सरकार के हर फैसले का साथ दिया लेकिन इसबार सरकार ने हमारी ज़मीन को गुलाम बनाने का कानून बनाया है। यही वजह है कि इसबार क्रांति हो जाएगी लेकिन ज़मीनों की गुलामी नहीं होगी। '

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और उन सवालों को लेकर भी जवाब दिया कि महिलाए इस आंदोलन में क्यों हैं? उन्होंने कहा 'महिलाएं, बच्चे और बूढ़े घर चले जाएंगे तो आंदोलन कौन करेगा अंबानी और अडानी? हम यहां छह महीने-सालभर बैठने को तैयार हैं जबतक कि सरकार इन काले कानूनों को वापस नहीं लेती हम यहीं बैठे रहेंगे। हमारी लड़ाई सरकार से है किसी पार्टी से नहीं।'

image

उन्होंने बुलंद आवाज में सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि ‘सुधर जाओ वरना जिस जनता ने आपको गद्दी पर बैठाया है वही आपको नीचे भी ले आएगी।’

संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओ ने अपने बयान में कहा कि महिलाएं कृषि की रीढ़ हैं और सरकार द्वारा लाये गए तीन कृषि कानून सबसे ज़्यादा बड़े पैमाने पर महिलाओं और मजदूरों को प्रभावित करेंगे। औरतों के उत्साह और ऊर्जा ने यह साबित कर दिया कि हर उस जगह पर औरत की भागीदारी होगी जहां पर उनकी हिस्सेदारी है।

रविवार से ही देशभर से औरतों का दिल्ली बोर्डर्स पर पहुंचना शुरू हो गया था। महाराष्ट्र, गुजरात, केरल, हरियाणा और पंजाब से भारी संख्या में महिलाएं दिल्ली बोर्डर्स पर धर्मस्थलों पर पहुंची। सभी बोर्डर्स पर मंच संचालन से लेकर सभा संबोधन महिलाओं ने किया।

image

शाहजहांपुर बॉर्डर पर अनेक राज्यों से आई महिलाओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किये। टीकरी मोर्चे पर महिलाओं ने विश्व व्यापार संगठन और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पुतले जलाए। सिंघु बॉर्डर पर प्रगतिशील महिला संगठनों के वक्ताओं ने तीन कानूनों के अलावा सामान्य तौर पर महिला किसानों के मुद्दों को सभा के सामने रखा। गाजीपुर बॉर्डर पर महिलाए भुख हड़ताल पर बैठी।

देशभर में मनाया गया महिला किसान दिवस

आपको बता दे कि केवल गाजीपुर नहीं या दिल्ली के अन्य बॉर्डर पर ही नहीं बल्कि सोमवार को तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे प्रदर्शन के अंतर्गत देशभर में महिला किसान दिवस मनाया गया। दिल्ली की सभी सीमाओं से लेकर गांव-कस्बों तक औरतों ने इन कार्यक्रमों का नेतृत्व किया और सफल बनाया।

कुछ लोग लगातार कह रहे हैं कि इस आंदोलन में केवल पंजाब और हरियाणा के किसान है जो बॉर्डर पर हैं परन्तु अब लगातार देश के विभिन्न हिस्सों में किसान आंदोलन हो रहा है। देश की राजधानी से दूर, बरसों से संघर्ष कर रहे नर्मदा घाटी के आदिवासी क्षेत्रों की महिला किसानों ने इस दिन को मनाकर दिल्ली के बोर्डर्स पर संघर्षरत किसानों को अपना समर्थन दिया। इलाहाबाद में महिला किसान रैली आयोजित की गई। ओडिशा में कई जगहों पर सोमवार को कार्यक्रम आयोजित किये गए। बिहार में दरभंगा, पटना समेत अनेक जगहों पर महिला किसान दिवस मनाया गया। ग्वालियर समेत मध्य प्रदेश के कई स्थानों पर किसान लामबंद हुए और कृषि कानूनों का विरोध किया।

image

संयुक्त मोर्चे ने जानकारी दी कि कोलकाता में लगे पक्के मोर्चे (दिन-रात का धरना) में महिला किसान दिवस मनाया गया। असम में गाँव स्तर पर भी कार्यक्रम आयोजित किये गए। 'किसान दिल्ली चलो यात्रा' को झारखंड में भारी समर्थन मिल रहा है। राजस्थान के कोटपुतली से महिला किसानों का एक जत्था शाहजहांपुर पहुंचा। जबकि हज़ारों की संख्या में राजस्थान के सीकर में किसानों ने प्रदर्शन किया।

हैदराबाद में भी सोमवार को एक मार्च निकालकर इस दिन महिलाओं के संघर्ष को याद किया गया। आंध्र प्रदेश में विजयवाड़ा, अनंतपुर समेत कई जगह सोमवार को विरोध प्रदर्शन किये गए।

जबकि हरियाणा में अनेक जगहों पर किसान संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किए। संयुक्त किसान मोर्चे ने बताया कि पंजाब में इन कानूनों के विरोध और महिला दिवस के साथ साथ भाजपा नेता सुरजीत ज्याणी और हरजीत ग्रेवाल, जो लगातार किसान आंदोलन को बदनाम कर रहे हैं, के गांवों में हज़ारों की सख्यां में महिलाओं ने बड़ी सभाएं कर विरोध प्रकट किया।

farmers protest
Farm bills 2020
Women Farmers Protest
women farmers
26th January Parade
republic day
BJP
subhashini ali
AIKS
AIKSCC

Related Stories

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

दिल्ली : पांच महीने से वेतन व पेंशन न मिलने से आर्थिक तंगी से जूझ रहे शिक्षकों ने किया प्रदर्शन

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

आईपीओ लॉन्च के विरोध में एलआईसी कर्मचारियों ने की हड़ताल

जहाँगीरपुरी हिंसा : "हिंदुस्तान के भाईचारे पर बुलडोज़र" के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन

दिल्ली: सांप्रदायिक और बुलडोजर राजनीति के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन

आंगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने क्यों कर रखा है आप और भाजपा की "नाक में दम”?

NEP भारत में सार्वजनिक शिक्षा को नष्ट करने के लिए भाजपा का बुलडोजर: वृंदा करात


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License