NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
किसान आंदोलन के एक साल बाद भी नहीं थके किसान, वही ऊर्जा और हौसले बरक़रार 
26 नवंबर 2020 को दिल्ली की सीमाओं से शुरू हुए किसान आंदोलन के एक साल पूरे होने पर टिकरी, सिंघू और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर हज़ारों की संख्या में किसान पहुंचे और आंदोलन को अन्य मांगों के साथ जारी रखने का अहम संदेश दिया।
मुकुंद झा
26 Nov 2021
kisan andolan

"किसान आंदोलन ने एक तानाशाह बन रही सरकार को झुकाया है। जर्मनी के तानाशाह ने अपनी हार मानते हुए आत्महत्या की थी और हमारे देश के तानाशाह(नरेंद्र मोदी) ने मीडिया में आकर अपनी हार मानी और अपनी राजनैतिक आत्महत्या कर ली है। यह किसान आंदोलन की पहली जीत है कि उसने देश में लोकतंत्र भी मूल्यों को पुनः स्थापित किया है। यह आंदोलन देश के बाक़ा लोकतांत्रिक आंदोलनों को उर्जा और ताक़त देगा।" 

यह कहना है कृति किसान यूनियन के प्रधान और संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य राजेंद्र दीप सिंह वाला का। उन्होंने ऐतिहासिक किसान आंदोलन के एक साल होने पर टिकरी बॉर्डर पर यह बातें कहीं। 

राजेन्द्र सिंह दीप सिंह

26 नवंबर 2020 को दिल्ली की सीमाओं से शुरू हुए किसान आंदोलन के एक साल पूरे होने पर टिकरी, सिंघू और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर हज़ारों की संख्या में किसान पहुंचे और आंदोलन को अन्य मांगों के साथ जारी रखने का अहम संदेश दिया।

टिकरी बॉर्डर पर पंजाब और हरियाणा के किसानों का बड़े बड़े जत्थे पहुंचे। आंदोलनकारी किसानों में ख़ुशी और राहत का माहौल था। किसानों का मानना है कि उनके आंदोलन ने अपने एक पड़ाव को पार कर लिया है और सरकार को आंदोलन के सामने झुकना पड़ा है । लेकिन किसानों ने यह बात भी स्पष्ट की कि अभी सिर्फ़ क़ानूनों की वापसी हुई है अभी तो फ़सलों के लाभकारी दाम और 700 से ज़्यादा किसानों की "हत्याओं" की ज़िम्मेदार सरकार से उनके लिए शहीद का दर्जा और मुआवज़ा लेकर ही वे घर वापस जाएंगे।

दीप सिंह ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "इस आंदोलन ने देश में फ़ासीवाद के बढ़ते हमलों को रोका है। मोदी सरकार अपने रिवर्स गियर में जा चुकी है। आज देश में केवल सरकार ही सरकारी है बाक़ी सब निजी हाथों में दिया जा रहा है। जिसे इस आंदोलन ने नकारा है। देश के बाक़ी वर्गो को हौसला दिया है कि इस बेलगाम सरकार को अपनी एकता से काबू किया जा सकता है।"

किसान आंदोलन के एक साल हो जाने के बाद भी किसान थके नही है और उनके हौसले और ऊर्जा वही दिख रहा है । जो एक साल पहले था । 

55 वर्षीय गुरु सेवक पंजाब के फ़रीदकोट से टिकरी बॉर्डर तक एक साल पहले अपनी विकलांग साईकिल चलाकर पहुंचे थे। वो पिछ्ले एक साल से बॉर्डर पर ही डटे हुए हैं। उन्होंने एक साल तक हुई घटनाओं को याद करते हुए कहा, "उस दिन ऐसा लग रहा था जैसे हम अपने देश में ही दुश्मन बन गए हैं। सरकार के इशारे पर हमारे बेटे (पुलिस के जवान) हम पर गोली तक चलाने को तैयार थे। मगर आज कलेजे में ठंडक है कि अब हम जल्दी ही अपने घर जाएंगे।"

गुरु सेवक

भारतीय किसान यूनियन एकता के हरबीर सिंह ने कहा, "सरकार ने पिछले एक साल में हमें हर तरीके से परेशान किया। हमे आतंकवादी साबित करने का प्रयास किया। परंतु हम देश की जनता को समझा पाए कि हम ये संघर्ष सिर्फ किसानी नहीं बल्कि देश बचाने के लिए कर रहे हैं। हमें बॉर्डर के आस पास के दुकानदारों, यहाँ रहने वाले परिवारों का साथ मिला। आज हमारा अपने परिवार के साथ ही यहाँ भी एक रिश्ता बन गया है बच्चे हमें बाबा बोलते हैं। बड़े हमें अपने मां बाप की तरह प्यार करते है हम भी उन्हें अपना बेटा-बेटी को तरह चाहते हैं। सरकार हमें इनका दुश्मन बना रही थी लेकिन अब हम जब भी यहां से जाएंगे अपना एक और परिवार बनाकर जाएंगे।"

"सिर्फ़ किसान नहीं, यह उन सबकी जीत है जिन्होंने समर्थन दिया" : ग़ाज़ीपुर बॉर्डर के किसान

शुक्रवार को दिल्ली के ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर भी आंदोलन के एक साल पूरे होने पर सैकड़ों की संख्या में किसान जमा हुए। यह किसान विशेष तौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तरखंड के हैं। ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर किसानों ने पंचायत की। ग़ाज़ीपुर बॉर्डर की इस आंदोलन में ख़ास अहमियत रही है, यही वह जगह है जहाँ 26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद भारी पुलिस बल की तैनाती के बीच किसानों को हटाने की तैयारी उत्तर प्रदेश सरकार ने की थी, मगर 28 जनवरी की रात को किसानों की एकता की वजह से इस आंदोलन को नया जन्म जैसा मिला था।

मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले से आंदोलन के एक साल पर यहाँ आए 52 साल के किसान जोगिंदर सिंह ने कहा, "यह जीत सिर्फ़ किसानों की नहीं है बल्कि हर किसी की है जिसने समर्थन किया। इसी वजह से मोदी सरकार झुकी है।"

सिंह के बगल में शामली के तेजवीर बैठे थे जिन्होंने सबको गुड़ बांटते हुए बताया कि वे पिछले एक साल से ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर मौजूद हैं।

उन्होंने कहा, "मैंने इस आंदोलन में काफ़ी उतार-चढ़ाव देखे हैं। एक समय था जब हमें अपने टेंट या शौचालय लगाने की भी इजाज़त नहीं थी। एक समय पर हमसे कहा गया कि अब किसानों को जाना होगा। मगर हम सब झेल गए, और अब हम अपनी जीत से थोड़े ही दूर हैं।

इस आंदोलन को शुरू से ही हरियाणा और पंजाब के मज़दूरों मेहनतकश जनता का साथ मिला है। वो आज भी कायम दिखा। 45 वर्षीय जगवंती जो हरियाणा में ख़ुद एक आशा वर्कर हैं और उसके सरकारी मुलाजिम रह चुकी हैं। वो अपने पूरे परिवार के साथ यहां मौजूद थी।

"हमने अपने सब्र से दिल्ली को फिर हरा दिया" : सिंघू बॉर्डर पर मौजूद किसान

टिकरी और ग़ाज़ीपुर की तरह ही दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर मौजूद किसानों ने भी आंदोलन के एक साल और आंशिक जीत का जश्न मनाया। किसानों का यही कहना था कि उन्होंने अपने सब्र से दिल्ली में बैठी सरकार को फिर से हरा दिया।

पीआर प्रोफ़ेशनल अजित पाल सिंह पिछले एक साल से बॉर्डर पर ही हैं। उन्होंने बताया कि कृषि क़ानूनों को वापस लेने के मोदी के अचानक हुए ऐलान से वे स्तब्ध थे। उन्होंने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "हम काफ़ी भावुक हो गए थे। हमें उस पल यह एहसास हुए कि हम तभी जीतेंगे अगर हम संघर्ष करेंगे। मेरे परिवार को लग रहा था कि मैं कुछ दिन में अपने किसान भाइयों के साथ वापस आ जाऊंगा। जब मैं यहाँ आया, मुझे एहसास हुआ कि यह कोई छोटा आंदोलन नहीं है। मेरी 12 साल की बेटी आज तक मेरे बग़ैर नहीं सोई थी, मैंने उसे 1 साल तक अकेला छोड़ा है। जब मैं उन 700 किसानों को देखता हूँ जो शहीद हो गए, तो मुझे अपना बलिदान कुछ नहीं लगता। हालांकि, यह हमारी आंशिक जीत है, मगर हम तब तक नहीं जाएंगे जब तक हमारी सारी मांगें पूरी नहीं हो जाएंगी।"

टिकरी बॉर्डर पर मौजूद जगवंति ने कहा वो किसान नहीं हैं लेकिन वो इनका उगाया हुआ खाती है। इसलिए वो इस आंदोलन में हमेशा इनके साथ थीं और राहेंगीं।

जगवंती के साथ बैठी रानी दो किले ज़मीन की किसान हैं। वो भी अपने पति के साथ इस आंदोलन में शामिल हुई थीं।

जगवांती और रानी 

उन्होंने कहा, "इस आंदोलन ने देश और समाज में व्याप्त कई बुराई को भी कम किया है। अब मेरे पति वो काम भी करते हैं जो पहले कभी नहीं करते थे। इस आंदोलन ने हमारे बीच एक बराबरी का रिश्ता बनाया है। यह सिर्फ़ मेरे साथ ही नहीं बल्की बहुत लोगों के साथ हुआ है। यहां मर्द घर के काम के साथ ही महिलाओं की शारीरिक मदद भी करते हैं। हमने यहां कई वृद्ध जोड़ो को एक दुसरे का पांव दबाते देखा जो पहले सपने जैसा था।"

मज़दूर संगठन सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन की नेता सुरेखा ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "आज संविधान दिवस है और आज के ही दिन ठीक एक साल पहले किसानों के दिल्ली कूच के साथ ही मज़दूरों ने भी देशव्यापी हड़ताल की थी। किसान जहां अपने लिए उचित दाम और किसानी के विरुद्ध बने क़ानूनों की वापसी की मांग कर रहे थे, वहीं मज़दूर वर्ग अपने लिए अपनी मेहनत का पूरा दाम और उसके ख़िलाफ़ लाए गए लेबर कोड की वापसी चाहता था। अभी सिर्फ़ सरकार एक मांग पर झुकी है। उसे डर है कि चुनावों में इसका असर दिखेगा, इसलिए उन्होंने कृषि क़ानूनों की वापसी की है अभी उन्हें मज़दूर किसान एकता के सामने सभी जनविरोधी क़ानूनों की वापसी करनी होगी।

युवा किसान नेता और हरियाणा किसान सभा के सचिव सुमित सिंह दिल्ली के बॉर्डर पर पहले दिन से मौजूद हैं। वो सबसे पहले जत्थे में थे जिन्होंने बॉर्डर पर पुलिस की हिंसा का सामना किया था।

सुमित सिंह

सुमित कहते हैं, "आज किसान वापस वही पहुंच गया है जहां इस क़ानूनों के आने से पहले था। परंतु आज भी उसके सवाल जो थे वही बने हुए हैं। हम शुरू से ही एमएसपी की गारंटी की मांग कर रहे थे। वो हमारी एक प्रमुख मांग है, उसका समाधान हुए बिना यह आंदोलन खत्म नहीं होगा।"

मोदी सरकार ने कृषि क़ानूनों की वापसी का फ़ैसला ज़रूर किया है, मगर किसान अभी भी एमएसपी, मृत किसानों को शहीद का दर्जा, लखीमपुर हिंसा मामले में इंसाफ़, पराली क़ानून जैसे मुद्दों पर संघर्षरत हैं। आने वाले समय में किसान 29 नवंबर से शूरू होने वाले संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान संसद तक ट्रैक्टर रैली करेंगे और सरकार पर अपनी बाक़ी मांगों को पूरा करने के लिए दबाव बनाएँगे।

(पत्रकार रवि कौशल और रौनक छाबड़ा से इनपुट के साथ)

kisan andolan
farmers protest
New Farm Laws
MSP
Singhu Border
Ghazipur Border
Samyukt Kisan Morcha

Related Stories

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

क्यों है 28-29 मार्च को पूरे देश में हड़ताल?

28-29 मार्च को आम हड़ताल क्यों करने जा रहा है पूरा भारत ?

मोदी सरकार की वादाख़िलाफ़ी पर आंदोलन को नए सिरे से धार देने में जुटे पूर्वांचल के किसान

ग़ौरतलब: किसानों को आंदोलन और परिवर्तनकामी राजनीति दोनों को ही साधना होगा

एमएसपी पर फिर से राष्ट्रव्यापी आंदोलन करेगा संयुक्त किसान मोर्चा

यूपी चुनाव: किसान-आंदोलन के गढ़ से चली परिवर्तन की पछुआ बयार

कृषि बजट में कटौती करके, ‘किसान आंदोलन’ का बदला ले रही है सरकार: संयुक्त किसान मोर्चा

केंद्र सरकार को अपना वायदा याद दिलाने के लिए देशभर में सड़कों पर उतरे किसान

1982 की गौरवशाली संयुक्त हड़ताल के 40 वर्ष: वर्तमान में मेहनतकश वर्ग की एकता का महत्व


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License