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कोरोना काल में GBU ने 156 सफ़ाईकर्मियों को निकाला, 40 दिन से प्रदर्शन जारी
गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय (GBU) प्रशासन ने ठेके पर काम कर रहे 156 कर्मचारियों को बाहर निकाल दिया है, जिसमें 34 महिलाएं शामिल हैं। 14 जून को कर्मचारियों का अनुबंध समाप्त हो गया, जिसका विस्तार नहीं किया जा रहा है। 15 जून से ही सभी कर्मचारी गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय के गेट नंबर 2 के सामने प्रदर्शन कर रहे हैं।
सत्येन्द्र सार्थक
24 Jul 2020
GBU

40 वर्षीय सुनीता सफ़ाई कर्मचारी हैं और पिछले 10 वर्षों से गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय में काम कर रही थीं। 15 जून को बिना किसी पूर्व सूचना के विश्वविद्यालय प्रशासन ने 156 सफ़ाई कर्मचारियों सहित सुनीता को भी बाहर निकाल दिया है। तब से ही सुबह घर का काम करने के बाद सुनीता दर्जनों महिलाओं के साथ विश्वविद्यालय गेट पर प्रदर्शन करने के लिए आ जाती हैं। तीन बच्चों की मां सुनीता विधवा हैं और परिवार की एकमात्र कमाने वाली सदस्य। प्रधानमंत्री द्वारा सफ़ाईकर्मियों को कोरोना योद्धा घोषित किए जाने के बाद सुनीता को अंदाजा भी नहीं था कि उन्हें इतनी जल्दी और इस कदर बेरोजगार होना पड़ेगा। फिलहाल वह एक महीने से अधिक समय से सहकर्मियों के साथ फिर से नौकरी पाने के लिए संघर्ष कर रही हैं।

सुनीता दनकौर गांव की रहने वाली हैं, जो विश्वविद्यालय से 10-12 किलोमीटर की दूरी पर है। लॉकडाउन के दौरान  सवारी गाड़ियों का मिलना निश्चित नहीं, लिफ्ट नहीं मिलने पर सुनीता को यह दूरी पैदल ही तय करनी पड़ती है। पूरी तरह से लॉकडाउन के 3 महीनों के दौरान उन्होंने ड्यूटी के लिए दोनों तरफ की दूरी पैदल ही तय की थी। सुनीता की दो बेटियां और एक बेटा है, जिसमें बड़ी बेटी की उम्र 18 वर्ष हो चुकी है। लॉकडाउन के दौरान कहीं और नौकरी भी नहीं मिल रही। वह बताती हैं कि “हम सुबह 7 बजे से शाम तक विश्वविद्यालय के गेट के बाहर बैठे रहते हैं। तेज धूप के कारण हमारे एक दर्जन साथी बीमार हो चुके हैं। फिर भी हमें परिसर के अंदर से पीने का पानी तक नहीं लेने दिया जाता है, हमें घर से लाकर या खरीदकर पानी पीना पड़ता है।”

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19 मार्च को जनता कर्फ्यू का ऐलान करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई में अगली कतार में खड़े डॉक्टर्स, पुलिसकर्मी, सफ़ाईकर्मी और सरकारी कर्मचारियों के सम्मान में 22 मार्च को लोगों से घर या घर की बॉलकनी में खड़े होकर ताली, थाली और घंटी बजाकर अभिवादन करने को कहा था। स्थानीय प्रशासन से भी शाम को 5 बजे सायरन बजाकर लोगों को याद दिलाने की बात कही। 14 अप्रैल को फिर प्रधानमंत्री ने देश के नागरिकों से कोरोना योद्धाओं का सम्मान करने की बात कही। साथ ही सभी नियोक्ताओं से किसी को भी नौकरी से नहीं निकालने की अपील की। पूरे देश में प्रधानमंत्री की इन अपीलों का कैसा असर रहा यह एक अलग सवाल है। लेकिन उत्तर प्रदेश की योगी सरकार इसके प्रति गंभीर नहीं दिख रही।

गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय प्रशासन ने ठेके पर काम कर रहे 156 कर्मचारियों को बाहर निकाल दिया है, जिसमें 34 महिलाएं शामिल हैं। 14 जून को कर्मचारियों का अनुबंध समाप्त हो गया, जिसका विस्तार नहीं किया जा रहा है। 15 जून से ही सभी कर्मचारी गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय के गेट नंबर 2 के सामने प्रदर्शन कर रहे हैं। विश्वविद्यालय या स्थानीय प्रशासन के किसी भी अधिकारी ने प्रदर्शनकारियों से बात करने की जहमत नहीं उठाई है। सफ़ाईकर्मियों का आरोप है कि जब उन्होंने रजिस्ट्रार से बात करने की कोशिश की तो अपशब्दों का प्रयोग कर उन्हें कार्यालय से बाहर निकाल दिया गया।

प्रदर्शन कर रहे इन सभी कर्मचारियों के पास विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा कोविड-19 के दौरान आवश्यक सेवाओं के संचालन के लिए जारी पास मौजूद है। सफ़ाईकर्मियों ने लॉकडाउन के समय में भी लगातार काम किया है। कोविड-19 के गंभीर खतरे के दौरान काम करने के बावजूद सफ़ाई कर्मचारियों को केवल एक मास्क दिया गया था। ज्यादातर सफ़ाईकर्मी आसपास के गांवों के ही हैं। पूरी तरह से लॉकडाउन के दौरान विश्वविद्यालय में ड्यूटी के लिए सफ़ाईकर्मियों ( विशेषकर महिलाओं ) ने 10 से 15 किमी की दूरी पैदल तय की थी।

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गौतमबुद्ध यूनिवर्सिटी ग्रेटर नोएडा सफ़ाई कामगार यूनियन के अध्यक्ष संजय ने बताया “दस वर्षों से काम करने के बाद भी हमें ऐसे समय निकाला जा रहा है जब हमें काम की सबसे अधिक जरूरत है। वर्तमान समय में जिस कंपनी को ठेके देने की बात चल रही है उसने पहले भी कर्मचारियों को ईएसआई व ईपीएफ का भुगतान नहीं किया है। हमारा प्रदर्शन तब तक चलता रहेगा जब तक कि हमें नौकरी पर फिर से रख नहीं लिया जाता है।”

वेतन के तौर पर सफ़ाईकर्मियों को प्रति महीने केवल 8,300 रुपयों का ही भुगतान किया जाता था। जबकि उत्तर प्रदेश में न्यूनतम मजदूरी अकुशल मजदूरों की 8,625 रुपये, अर्धकुशल की 9,488 और कुशल मजदूरों की 10,628 रुपये है। महीने की 20 तारीख को वेतन का भुगतान किया जाता है। सफ़ाई कर्मचारियों को नौकरी से निकाले जाने के बाद एक महीने से अधिक चले प्रदर्शन के बाद 21 व 22 जुलाई को उन्हें भुगतान किया गया।

गौतमबुद्ध यूनिवर्सिटी ग्रेटर नोएडा सफ़ाई कामगार यूनियन ने 15 जून को ही पत्र लिखकर जिलाधिकारी को घटना से अवगत कराते हुए कार्रवाई की मांग की थी। 22 जून को फिर जिलाधिकारी को पत्र लिखा, लेकिन किसी तरह की कार्रवाई नहीं हुई। 21 जुलाई को सफ़ाई कर्मचारियों के एक प्रतिनिधि मंडल ने जिलाधिकारी से मुलाकात कर ज्ञापन सौंपा जिले अग्रिम कार्रवाई के लिए अग्रसारित कर देने का जिलाधिकारी ने आश्वासन दिया। कुलसचिव से वार्ता के लिए गए 4 सदस्यों के प्रतिनिधिमंडल ने भी उनपर जाति सूचक शब्दों का प्रयोग करते हुए अभद्रता करने का आरोप लगाया है। इस संबंध में गौतमबुद्ध यूनिवर्सिटी ग्रेटर नोएडा सफ़ाई कामगार यूनियन ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग की है।

गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय कुलसचिव एसएन तिवारी ने जाति सूचक शब्दों के उपयोग और अभद्रता करने के आरोपों को खारिज करते हुए बताया “सफ़ाई कर्मचारी काम नहीं करते हैं, जिससे नाराज होकर कंपनी ने बीच में ही अनुबंध तोड़ दिया है। नये टेंडर की प्रक्रिया चल रही है। टेंडर आवंटन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद सभी सफाइकर्मियों को वापस ले लिया जाएगा। बकाया वेतन मानदेय के भुगतान की प्रक्रिया भी 21 जुलाई से शुरू कर दी गई है।”

21 व 22 जुलाई को सफ़ाई कर्मचारियों को बकाया वेतन का भुगतान तो किया गया लेकिन ओवर टाइम का भुगतान नहीं किया गया, इस दौरान कर्मचारी नेताओं को गेट पर ही रोक दिया गया। भुगतान से पहले कर्मियों से एक फार्म भरवाया गया। कर्मचारी नेता कपिल ने बताया “जितने लोगों को पैसे दिए गए हैं सभी से एक फार्म भरवाया जा रहा है, जिसमें लिखा है कि मानदेय व ईपीएफ की भुगतान को लेकर कर्मचारियों को कोई शिकायत नहीं है। वह अपनी इच्छा से नौकरी छोड़ रहे हैं। कर्मचारी आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं इसलिए जो पैसे मिल रहे हैं वह लेने को मजबूर हैं। जबकि अभी बड़े पैमाने पर सफ़ाईकर्मी ईपीएफ में ठेका कंपनी के अंशदान को लेकर संतुष्ट नहीं हैं।”

कोविड-19 के दौर में जब सरकार खुद ही लोगों से घरों में रहने की अपील और आपस में दूरी बनाए रखने की बात कह रही है। दिल्ली से सटे नोएडा में सफ़ाईकर्मियों को नौकरी के दौरान बिना सुरक्षा उपकरणों के काम करते हुए कोरोना संक्रमण का खतरा उठाना पड़ा था। अब उसी नौकरी को पाने के दिनभर विश्वविद्यालय के सामने बैठ कर प्रदर्शन कर रहे हैं।

(सत्येन्द्र सार्थक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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