NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अमेरिका
जॉर्ज फ़्लॉयड के लिए विरोध का ‘सही वक़्त’ क्या है?
शांति का आह्वान कोरी बातें है, यह आह्वान उसी तरह से दमनकारी होता हैं,जिस तरह पुलिसिया लाठी और डंडे दमनकारी होते हैं।
प्रतीक पटनायक
04 Jun 2020
जॉर्ज फ़्लॉयड
Image Courtesy: New York Times

जॉर्ज फ़्लॉयड की हत्या से पैदा होने वाले विरोध को शायद अब आज़माने की ज़रूरत नहीं रह गयी है। कोई भी मौत पूरी तरह व्यक्तिगत होती है, यह व्यक्तिगत किसी के परिवार के लिए होती है और दोस्त अक्सर एकांत में विलाप करते हैं। हालांकि, यह मौत व्यक्तिगत नहीं, बल्कि इससे कहीं ज़्यादा कुछ है या शायद अश्वेतों के पूरे समुदाय के लिए व्यक्तिगत है। जो कुछ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में दिखाया जा रहा है, उस वियोग के शोक से गुज़र रहे उस परिवार पर जो कुछ गुज़र रहा होगा, इसकी कल्पना कर पाना बहुत मुश्किल है।

हर बार इस तरह की घटना होती है, चाहे वह शक्तिशाली महासागरों के पार हो या भारत में अपने घर के क़रीब, सबसे महत्वपूर्ण सवाल जो कौंधता है, वह यही कि "विरोध करने का सही समय कब होता है"। क्या शांति और व्यवस्था बनाये रखना बेहतर नहीं होता है? क्या सड़कों-गलियों पर उतरकर ‘बोलना’ और विरोध को सड़कों-गलियों पर ‘ले आना’ बेहतर नहीं होता है? बाइबल में ऐकलेसिस्टास (बाइबिल के पहले भाग, ओल्ड टेस्टामेंट का एक खंड) की पुस्तक, अध्याय 3 में कहा गया है कि हर चीज़ का एक वक़्त होता है, और आसमान के नीचे हर गतिविधि के लिए एक मौसम होता है:

जन्म लेने का एक वक़्त होता है और मरने का एक वक़्त होता है,

पौधे लगाने का एक वक़्त होता है और उसे उखाड़ने का एक वक़्त होता है,

मारने का एक वक़्त होता है और चंगा होने का एक वक़्त होता है,

ढहाने का एक वक़्त होता है और निर्माण का एक वक़्त होता है,

रोने का एक वक़्त होता है और हंसने का एक वक़्त होता है,

शोक मनाने का एक वक़्त होता है और नृत्य करने का एक वक़्त होता है,

पत्थरों को बिखेरने का एक वक़्त होता है और उन्हें इकट्ठा करने का एक वक़्त होता है,

गले लगाने का एक वक़्त होता है और गले लगाने से परहेज करने का एक वक़्त होता है,

तलाश करने का एक वक़्त होता है और तलाश छोड़ देने का एक वक़्त होता है,

सहेजने का एक वक़्त होता है और फेंक देने का एक वक़्त होता है,

तोड़-फोड़ करने का एक वक़्त होता है और दुरुस्त करने का एक वक़्त होता है,

ख़ामोश रहने का एक वक़्त होता है और बोलने का एक वक़्त होता है,

प्यार करने का एक वक़्त होता है और नफ़रत करने का एक वक़्त होता है,

जंग का एक वक़्त होता है और अमन का एक वक़्त होता है।

हालांकि मैं समय के इस सवाल का जवाब देने में पूरी तरह से असक्षम महसूस कर रहा हूं, ऐसे समय में मैं एक पुराने देवदूत, डॉ मार्टिन लूथर किंग जूनियर द्वारा लिखे गये एक पुराने पत्र से कुछ इशारे ले रहा हूं, जब संयुक्त राज्य अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट की तरफ़ से पब्लिक स्कूलों में वर्णभेद दूर करने के फ़ैसले के रूप में अफ़्रीकी-अमेरिकी समुदाय को ब्राउन वी बोर्ड ऑफ एजुकेशन की 'दिव्य खुराक'  मिल गयी थी, उस फ़ैसले ने नागरिक अधिकारों के मुद्दों की चरम परिणति यानी 1963 में बर्मिंघम में होने वाले प्रदर्शन और इसके बाद डॉ. किंग सहित अन्य नेतृत्व की गिरफ़्तारी को लेकर एक उत्प्रेरक की तरह काम किया था।

डॉ. किंग पर एक गोरे पादरी द्वारा शहर में 'अव्यवस्था' और 'अराजकता' भड़काने के आरोप लगाये गये थे। उनका आरोप था कि हालांकि वे इसे लेकर संवेदनशील तो थे, लेकिन वे "विरोध नासमझी भरे और असामयिक थे"। उन्होंने कहा कि अपनी बात रखने के बेहतर तरीक़े और तरक़ीब होते हैं। सर्वप्रिय "लिबरल" राष्ट्रपति कैनेडी भी एक तटस्थ शख़्स निकले; वह इस मामले को लेकर इतना तटस्थ थे कि वह सुदूर वाशिंगटन में नागरिक अधिकार समर्थकों के सदस्यों के साथ दिखने से परहेज कर रहे थे। हालांकि उस विरोध का नेतृत्व आम तौर पर ग़लत तरीके से पेश किये जाने के जोखिम के बढ़ने को लेकर सभी आलोचनाओं का जवाब देने के विचार से बिल्कुल उलट था। डॉ. किंग ने सोचा कि वह वक्त दक्षिणी क्षेत्र के उन पादरियों से भिड़ जाने का उपयुक्त था, जिन्होंने उनके और चल रहे विरोध के ख़िलाफ़ बयान जारी किया था। इसके लिए उन्होंने अपने पत्रों को अपना ज़रिया बनाया, इस तरह, उन्होंने विश्व इतिहास के सबसे शानदार दस्तावेजों में से एक, "बर्मिंघम जेल से पत्र" लिखा।

न्याय और यीशु

आख़िर विरोध क्यों, आप कब यह तय करते हैं कि आपको विरोध करना चाहिए? डॉ. किंग विरोध के लिए आधार निर्धारित करते हैं,  और जो आधार है- अन्याय। उन्होंने लिखा है, “मैं बर्मिंघम में इसलिए हूं, क्योंकि यहां अन्याय है। जिस तरह आठवीं शताब्दी ई.पू. में देवदूतों ने अपने गांव छोड़ दिए और उन्होंने अपने गृहनगर की सीमाओं के पार अपने "यहोवा की वाणी" को आगे बढ़ाया, और ठीक जिस तरह देवदूत पॉल ने अपने गांव तारसस को छोड़ दिया और यीशु मसीह की शिक्षा को यूनान-रोमन जगत के सुदूर कोनों तक पहुंचा दिया, उसी तरह मैं भी स्वतंत्रता के उपदेश को अपने गृह नगर से आगे ले जाने के लिए मजबूर हूं। इसके अलावा, मैं सभी समुदायों और राज्यों के परस्पर सम्बन्ध से अच्छी तरह बाख़बर हूं। मैं अटलांटा में बेफ़िक़्री से नहीं बैठ सकता हूं और बर्मिंघम में जो कुछ हो रहा है, उसे लेकर मुझे चिंतित नहीं होना चाहिए। किसी भी जगह हो रहा अन्याय हर जगह के न्याय के लिए ख़तरा होता है।"

सत्ता संरचना और देवदूत

’लोगों’ के संघर्ष और किसी क़ानून-व्यवस्था वाले सवाल के रूप में उनकी सविनय अवज्ञा को देखना बहुत आसान है। कोई भी क़ानून मानवगत कमियों से अछूता नहीं होता, क्योंकि इसे भी नश्वर प्राणियों ने ही बनाया है। कुल मिलाकर, सामाजिक क़ानून यथास्थिति के शक्तिशाली क़िले की रक्षा करने के लिए एक खंदक के रूप में शक्ति-संरचनाओं का निर्माण करते हैं।

डॉ. किंग ने लिखा, “आप बर्मिंघम में हो रहे प्रदर्शनों को लेकर विलाप करते हैं। लेकिन, मुझे यह बात कहते हुए खेद हो रहा है कि इन प्रदर्शनों को लेकर जो स्थितियां बनायी गयी हैं, उनके लिए आपका यह बयान उसी तरह चिंता व्यक्त करने में नाकाम रहा है। मुझे यक़ीन है कि आप में से कोई भी इस बारे में उस सतही प्रकार का सामाजिक विश्लेषण नहीं करना चाहेगा, जो केवल इस विरोध के असर की बातें करता है और उसके अंतर्निहित कारणों से दो-चार नहीं होता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बर्मिंघम में प्रदर्शन हो रहे हैं, लेकिन यह और भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि शहर की श्वेत शक्ति संरचना ने नीग्रो समुदाय को बिना किसी विकल्प के छोड़ दिया है।”

यथास्थितिवाद बनाम प्रत्यक्ष कार्रवाई

उस समुदाय के लिए यह कहना हमेशा आसान होता है, जो विशेषाधिकार प्राप्त करने की हैसियत से बातें कर रहा होता है कि क्यों यथास्थिति के बनिस्पत सीधी कार्रवाई को प्राथमिकता दी जानी चाहिए; ऐसा तब भी होता है, जब वे लोग अपनी नेकनीयती के साथ बोल रहे होते हैं। व्यवस्था और शांति वांछनीय है और यह डॉ. किंग के लिए भी वांछनीय थी, लेकिन तब क्या होगा, जब ‘शांति और व्यवस्था’ बहाने बन जायें और जिसका वैसा अंत नहीं हो, जिसे हासिल करने के लिए कोई समुदाय वर्षों से संघर्ष कर रहा हो? क्या ऐसा होने की संभावना अक्सर नहीं होती है?

डॉ. किंग जवाब में कहते हैं, “आप कुछ सवाल बिल्कुल कर सकते हैं, मसलन- “सीधी कार्रवाई ही क्यों? धरना-प्रदर्शन, मार्च और इसी तरह की बातें क्यों? क्या बातचीत बेहतर रास्ता नहीं है? " आप बातचीत के आह्वान करने की बात ठीक कह रहे हैं। असल में प्रत्यक्ष कार्रवाई का यही बड़ा उद्देश्य भी है... जिस तरह सुकरात ने भी महसूस किया था कि मन में तनाव पैदा करना ज़रूरी होता है, ताकि लोग मिथकों के बंधन और आधी-अधूरी सच्चाइयों से रचनात्मक विश्लेषण और उद्देश्य मूल्यांकन के अनपेक्षित दायरे से ऊपर उठ सकें, इसलिए हमें समाज में इस तरह के तनाव को पैदा करने के लिए उन अहिंसक साधनों की ज़रूरतों पर ग़ौर करना चाहिए, जो मनुष्य को पूर्वाग्रह और नस्लवाद की गहरे अंधकार से उठने और समझदारी और भाईचारे की शानदार ऊंचाइयों तक ले जाने में मदद कर सके। हमारे प्रत्यक्ष कार्रवाई कार्यक्रम का मक़सद ऐसी स्थिति पैदा करना है, जिससे संकट इतना गहरा हो जाये कि यह अनिवार्य रूप से बातचीत का दरवाज़ा खोल दे। इसलिए, मैं बातचीत को लेकर आपकी राय से सहमत हूं। बहुत लंबे समय से हमारी प्यारी साउथलैंड बातचीत के बजाय एकालाप में रहने के दुखद प्रयास में फंसी रही है।”

‘इंतज़ार’ का मतलब ‘कभी नहीं’ होता है’ ?

शांति का आह्वान कोरी बातें है, वह उसी तरह से दमनकारी होती हैं,जिस तरह पुलिसिया लाठी और डंडे दमनकारी होते हैं। दमनकारी हमेशा आपके पीछे आप पर बंदूक ताने ही नहीं आयेंगे। वह सफेद झंडे और शांति का आह्वान भी करेंगे। वह सुलह के लहजे के साथ पीछे हटने का प्रस्ताव लेकर आयेंगे। हमें हमेशा इस बात को याद रखना चाहिए कि यथास्थिति उनके लिए एक जीत की तरह होती है, क्योंकि उसे अपनी हैसियत और अपने ऐश्वर्य, यानी अपनी सत्ता संरचनाओं को बनाये रखना है, जबकि इसे चुनौती देना ही पीड़ित की चिंता का विषय होता है। वे कहेंगे-रुको! हम बात करते हैं, और इसका मतलब क़रीब-क़रीब हमेशा यही होगा कि 'कभी नहीं' !

डॉ. किंग इसी आधार पर अपने विचारों के साथ हमारी मदद करते हैं, “हमे दर्दनाक अनुभव के ज़रिये यह बात मालूम है कि उत्पीड़कों से अपने आप आज़ादी कभी नहीं मिलती है; शोषितों की तरफ़ से आज़ादी की मांग की जानी चाहिए। साफ़-साफ़ कहूं, तो मुझे अभी एक प्रत्यक्ष कार्रवाई अभियान में शामिल होने के लिए ‘समुचित समय’ का इंतज़ार करना चाहिए, मगर यह उन लोगों का दृष्टिकोण है, जो पृथकतावाद की बीमारी से पीड़ित नहीं हैं। अबतक तो सालों से मैं यही "रुको!" शब्द सुनता रहा हूं। यह हर नीग्रो के कान को भेदता और गूंजने वाला वाला एक जाना-पहचाना शब्द है। इस "इंतज़ार" करने का मतलब क़रीब-क़रीब हमेशा से "कभी नहीं" होता है। हमें अपने एक मशहूर न्यायविद् की उस बात पर ग़ौर करना चाहिए कि “बहुत देर से मिलने वाला न्याय असल में न्याय से वंचित हो जाने जैसा होता है।” हमने अपने संवैधानिक और ईश्वर प्रदत्त अधिकारों के लिए 340 से ज़्यादा वर्षों तक इंतज़ार किया है। एशिया और अफ़्रीका के राष्ट्र राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल करने की दिशा में बहुत तेज़ी के साथ आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन हम अभी भी एक लंच काउंटर पर एक कप कॉफ़ी पाने को लेकर मंथर गति से रेंग रहे हैं। शायद यह उन लोगों के लिए ‘इंतज़ार करो’ जैसी बातें कह देना आसान है, जिन्होंने कभी वर्ण के आधार पर अलगाव के दंश को महसूस नहीं किया है।

तो फिर सही समय क्या है?

अपने मशहूर गीत, ‘ब्लॉन इन द विंड’ में बॉब डिलन ने एक संगीतमय सवाल पूछा है, “ आप किसी आदमी को एक आदमी कहें, इससे पहले उस आदमी को कितने रास्तों से गुज़रना चाहिए? हां, मुक्त होने से पहले कुछ लोग आख़िर ‘और’ कितने वर्षों तक अपना वजूद बनाये रह सकते हैं?

हालांकि डिलन का निष्कर्ष था कि यह जवाब अधूरा है, मगर मेरे विचार में डॉ. किंग ने अपने पत्र में इसका सटीक उत्तर दिया है, उन्होंने कहा है, “हमें न सिर्फ़ बुरे लोगों के घृणित शब्दों और कार्यों को लेकर,बल्कि इस पीढ़ी के अच्छे लोगों की ख़ामोशी को लेकर भी प्रायश्चित करना होगा। मानव प्रगति अनिवार्यता के पहियों पर कभी नहीं आगे बढ़ती; यह उन लोगों के अथक प्रयासों के ज़रिये आती है,जो ईश्वर के साथ सहकर्मी बनने के इच्छुक होते हैं, और कई बार इस कड़ी मेहनत के बिना समय ही सामाजिक ठहराव की ताक़तों का सहयोगी बन जाता है। हमें इस समझ के साथ समय का रचनात्मक रूप से इस्तेमाल करना चाहिए कि समय सही करने के लिए हमेशा तैयार रहता है।”

मुझे लगता है, कोई भी समय सही काम करने के लिए हमेशा सही होता है। इसके लिए हम किंग, बॉब डिलन और सबसे महत्वपूर्ण रूप से जॉर्ज, जॉर्ज फ़्लॉयड का अहसानमंद हैं।

(प्रतीक पटनायक नई दिल्ली स्थित एक वक़ील और संविधानवादी हैं। उनसे @chiefdissenter पर संपर्क किया जा सकता है।)

सबसे पहले द लिफ़लेट में प्रकाशित।

सौजन्य: द लिफ़लेट,

अंग्रेजी में लिखे मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

What ‘Time’ is the Right ‘Time’ for the George Floyd Protests?

George Floyd
American Racism
Police brutality
Dr. Martin Luther King
Bob Dylan
#BlackLivesMatter
Protest against racism
US Police Killings

Related Stories

ग्राउंड रिपोर्ट: चंदौली पुलिस की बर्बरता की शिकार निशा यादव की मौत का हिसाब मांग रहे जनवादी संगठन

रेलवे भर्ती मामला: बर्बर पुलिसया हमलों के ख़िलाफ़ देशभर में आंदोलनकारी छात्रों का प्रदर्शन, पुलिस ने कोचिंग संचालकों पर कसा शिकंजा

रेलवे भर्ती मामला: बिहार से लेकर यूपी तक छात्र युवाओं का गुस्सा फूटा, पुलिस ने दिखाई बर्बरता

साकेरगुडा नरसंहार के 9 साल पूरे होने के मौक़े पर पहुंचे हज़ारों प्रदर्शनकारी, बस्तर में आदिवासी की होती हत्यायाओं को बताया एक निरंतर चलने वाला वाक़या

मांगने आए रोज़गार, मिली पुलिस की लाठी–पानी की बौछार

‘पुलिसिया हिंसा’ में मारे गए वाम कार्यकर्ता के लिए कोलकाता से दिल्ली तक रोष प्रदर्शन

रोज़गार की मांग को लेकर वाम मोर्चा कार्यकर्ताओं की कोलकाता में मार्च के दौरान पुलिस का बर्बर बल प्रयोग

बढ़ते आर्थिक संकट और पुलिस की बर्बरता को लेकर ट्यूनीशिया में विरोध प्रदर्शन जारी

केन्या : पुलिस हिंसा और मासूम नागरिकों की हत्या के ख़िलाफ़ जनता का प्रदर्शन

अमेरिकी बहुत ही चालाक हैं, हमें ट्विटर पर आंदोलन करना सिखा दिया और खुद सड़क पर निकले हैं


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License