NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
"डे जीरो" आने से पहले सचेत हो जाएं तो अच्छा है!
नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि हमारे देश में  साल 2030 तक पानी ख़त्म होने कगार पर आ जाएगा और इस भारी किल्लत का सामना सबसे ज्यादा दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई को करना  पड़ सकता है। 
सरोजिनी बिष्ट
22 Mar 2020
World Water Day
Image courtesy: The Indian Express

जब हम छोटे थे और गर्मियों की छुट्टियों में नानी के गांव जाते थे तो एक दृश्य हम बहन भाई के लिए बहुत रोमांचकारी होता था । चूंकि नानी का गांव पहाड़ पर बहुत ऊंचाई पर स्थित था और साल भर वहां पानी की कमी बनी रहती थी, तो जिस दिन भी इंद्र देव मेहरबानी से झूम कर बरस जाते थे तो सब लोग उस बारिश के पानी को एकत्रित करने के लिए छोटे बड़े बरतन घर से बाहर रख देते थे और जब, गागर, बाल्टी, ड्रम सब लबालब हो जाते तो लोग यह सोचकर चैन की सांस लेते कि कुछ दिन का इंतजाम तो हुआ।

तब हमारे लिए ये करना और देखना किसी रोमांच से कम नहीं होता था लेकिन बाद में समझ आया कि जो इलाके पानी की भारी किल्लत से जूझते हैं वहां बारिश की एक एक बूंद उनके लिए किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं। वर्षा के जल को संचित करके उसके सदपयोग का गुण बचपन में जो नानी के गांव से सीखा उस हुनर का कई साल तक मैंने भी अपने जीवन में अनुसरण किया। लेकिन कहते है न जब जीवन में आपको कुछ चीजें बिना जद्दोजहद के आसानी से उपलब्ध हो जाए तो आपके लिए उसका महत्व भी गौण हो जाता है।

चूंकि हमेशा ऐसे मैदानी इलाके में रहने के कारण जहां पानी भरपूर उपलब्ध होता रहता है, तो धीरे धीरे वर्षा जल संग्रह की आदत छूटती चली गई पर सच यही है कि इन छूटती जरूरी आदतों ने ही आज हमारे सामने जल संकट की चुनौतियां खड़ी कर दी है। भारत की एक बहुत बड़ी आबादी भयंकर पानी की किल्लत से जूझ रही है। जितनी तेजी से जल दोहन हो रहा है उतनी तेजी से हम  जल संग्रह की ओर नहीं बढ़ पा रहे जो बेहद चिंता का विषय है और यह बात केवल हम ही नहीं बल्कि देश के नीति आयोग ने भी माना है।  

cropped-water_crisis_in_india_1561457814_0.jpg

आज जबकि पूरी दुनिया विश्व जल दिवस मना रही है, तो ऐसे में यह बेहद जरूरी हो जाता है कि हम अपनी मौजूदा स्थिति का आंकलन एक वृहद रूप में करें। हर साल 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है। दुनिया के प्रत्येक देश और प्रत्येक देश के हर नागरिक को पानी की महत्ता समझाने के लिए ही संयुक्त राष्ट्र  ने वर्ष 1993 से विश्व जल दिवस की शुरुआत की थी। पर दुखद विषय यह है कि पानी को लेकर सत्ताईस साल पहले दुनिया ने जिस मकसद की शुरुआत की थी उसमें अब तक संतोषजनक परिणाम नहीं मिल पाए हैं उल्टे पानी को लेकर हालात चिंताजनक बने हुए हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट (सी एस ई) की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के दो सौ शहर और दस मेट्रो सिटी " डे जीरो"  की ओर बढ़ रहे हैं और इन शहरों में हमारा शहर बेंगलुरु भी शामिल है। डे जीरो वह स्थिति है जब नलों से पानी आना बिल्कुल बन्द हो जाएगा।

कई वैश्विक स्टडीज के विश्लेषण बताते हैं कि वर्ष 2050 तक छत्तीस प्रतिशत शहर पानी की गंभीर समस्या से जूझेंगे जबकि शहरों में पानी की मांग अस्सी फीसदी तक बढ़ जाएगी। यदि भारत की बात करें तो सरकार का थिंक टैंक माने जाने वाले नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि हमारे देश में  साल 2030 तक पानी ख़त्म होने कगार पर आ जाएगा और इस भारी किल्लत का सामना सबसे ज्यादा दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई को करना  पड़ सकता है।  पिछले साल ही आयोग ने यह रिपोर्ट पेश की थी। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2020 से ही पानी की समस्या शुरू हो जाएगी। 2030 तक देश के लगभग चालीस प्रतिशत लोग पीने के पानी तक को तरस जाएंगे। नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में साफ़ कहा है कि देश में जल संरक्षण को अधिकत्तर राज्य गंभीरता से नहीं ले रहे।

यह सच है कि भारत के कई ग्रामीण क्षेत्र पानी की भारी कमी से जूझ रहे हैं जिसके कारण किसान आत्महत्या कर लेते हैं तो वहीं सरकार कहती है उनकी महत्वकांक्षी योजनाओं में से एक योजना साल 2024 तक देश के सभी ग्रामीण घरों तक पाईप के जरिए  पानी पहुंचाना है। इसमें दो राय नहीं कि निश्चित ही यह एक अति महत्वपूर्ण योजना है लेकिन इस महत्वपूर्ण योजना का खाका अभी तक स्पष्ट नहीं कि जब देश जल संकट से जूझ रहा हो तब सरकार कैसे अपनी इस योजना को सफल बनाएगी। अभी ज्यादा समय नहीं बीता जब चेन्नई भारी जल समस्या से लड़कर बाहर निकला। हालात इतने खराब हो गए थे कि आईटी सेक्टर में काम करने वाले लोगों को वर्क फ्रॉम होम के लिए कह दिया गया था ताकि दफ्तरों में पानी बचाया जा सके। लोग पानी लेने के लिए घंटों लाईन में खड़े रहते और अंत में उन्हें गंदा पानी ही मिलता। हालात विचलित कर देने वाले थे। 

आज पूरी दुनिया जल संकट से जूझ रही है। साफ़ और रोग रहित पानी की भारी कमी है। भारत जैसे अर्द्ध विकसित देशों के लिए यह समस्या किसी भारी संकट से कम नहीं। यह सच है कि  हम जल संग्रह की परंपरागत तरीकों को भूल चुके हैं। जल दोहन जिस तेजी से हो रहा है जल संग्रह में हम उतने ही पीछे हैं। आज हमें आजाद हुए करीब 72 साल हो गए हैं इन 72 सालों में हमने वैज्ञानिक, सूचना प्रौद्योगिकी, तकनीकी, शैक्षणिक क्षेत्र में भले ही काफी तरक्की की हो लेकिन हम अपने एक बड़ी आबादी के लिए स्वच्छ जल की व्यवस्था करने में कहीं पिछड़ गए हैं। हमारी राष्ट्रीय जल नीति-1987 के मुताबिक पानी एक बेहद प्रमुख प्राकृतिक संसाधन हैं।

यहां मानव जाति के लिए एक बुनियादी आवश्यकता है। हमारी प्रकृति ने वायु और जल प्रत्येक जीव को निशुल्क प्रदान किए हैं। लेकिन आज अमीर तबके ने भूजल पर पूर्णता अपना अधिकार स्थापित कर लिया है। भारत की 18% आबादी सिर्फ 4% जल पर ही निर्भर है जो कि एक चिंता का विषय है। विशेषज्ञों के मुताबिक क्योंकि हम अभी भी सही रूप से जल संग्रह के तरीकों को नहीं समझ पाए हैं इसलिए हम ज्यादा खामियाजा भुगत रहे हैं। साथ ही बढ़ते औद्योगिकीकरण,  अवैज्ञानिक कृषि नीति और भूमिगत जल के अत्याधिक दोहन ने स्थिति को और भयावह बना दिया है। प्रत्येक जल दिवस पर हमारा प्रमुख संकल्प "पानी की एक एक बूंद बचाना है" होता है। पर फिर क्यूं हम अपने मकसद से भटक जाते हैं इस पर हर नागरिक का मंथन जरूरी है

World Water Day
water crises
Groundwater Depletion
Water conservation
ground water depletion
water logging
Environment
Save environment
Environmental Pollution
NITI Aayog

Related Stories

जलवायु परिवर्तन : हम मुनाफ़े के लिए ज़िंदगी कुर्बान कर रहे हैं

उत्तराखंड: क्षमता से अधिक पर्यटक, हिमालयी पारिस्थितकीय के लिए ख़तरा!

मध्यप्रदेशः सागर की एग्रो प्रोडक्ट कंपनी से कई गांव प्रभावित, बीमारी और ज़मीन बंजर होने की शिकायत

क्यों आर्थिक विकास योजनाओं के बजट में कटौती कर रही है केंद्र सरकार, किस पर पड़ेगा असर? 

बनारस में गंगा के बीचो-बीच अप्रैल में ही दिखने लगा रेत का टीला, सरकार बेख़बर

दिल्ली से देहरादून जल्दी पहुंचने के लिए सैकड़ों वर्ष पुराने साल समेत हज़ारों वृक्षों के काटने का विरोध

जलविद्युत बांध जलवायु संकट का हल नहीं होने के 10 कारण 

समय है कि चार्ल्स कोच अपने जलवायु दुष्प्रचार अभियान के बारे में साक्ष्य प्रस्तुत करें

आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव के पर्यावरण मिशन पर उभरते संदेह!

पुतिन को ‘दुष्ट' ठहराने के पश्चिमी दुराग्रह से किसी का भला नहीं होगा


बाकी खबरें

  • शारिब अहमद खान
    ईरानी नागरिक एक बार फिर सड़कों पर, आम ज़रूरत की वस्तुओं के दामों में अचानक 300% की वृद्धि
    28 May 2022
    ईरान एक बार फिर से आंदोलन की राह पर है, इस बार वजह सरकार द्वारा आम ज़रूरत की चीजों पर मिलने वाली सब्सिडी का खात्मा है। सब्सिडी खत्म होने के कारण रातों-रात कई वस्तुओं के दामों मे 300% से भी अधिक की…
  • डॉ. राजू पाण्डेय
    विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक
    28 May 2022
    हिंसा का अंत नहीं होता। घात-प्रतिघात, आक्रमण-प्रत्याक्रमण, अत्याचार-प्रतिशोध - यह सारे शब्द युग्म हिंसा को अंतहीन बना देते हैं। यह नाभिकीय विखंडन की चेन रिएक्शन की तरह होती है। सर्वनाश ही इसका अंत है।
  • सत्यम् तिवारी
    अजमेर : ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह के मायने और उन्हें बदनाम करने की साज़िश
    27 May 2022
    दरगाह अजमेर शरीफ़ के नीचे मंदिर होने के दावे पर सलमान चिश्ती कहते हैं, "यह कोई भूल से उठाया क़दम नहीं है बल्कि एक साज़िश है जिससे कोई मसला बने और देश को नुकसान हो। दरगाह अजमेर शरीफ़ 'लिविंग हिस्ट्री' है…
  • अजय सिंह
    यासीन मलिक को उम्रक़ैद : कश्मीरियों का अलगाव और बढ़ेगा
    27 May 2022
    यासीन मलिक ऐसे कश्मीरी नेता हैं, जिनसे भारत के दो भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह मिलते रहे हैं और कश्मीर के मसले पर विचार-विमर्श करते रहे हैं। सवाल है, अगर यासीन मलिक इतने ही…
  • रवि शंकर दुबे
    प. बंगाल : अब राज्यपाल नहीं मुख्यमंत्री होंगे विश्वविद्यालयों के कुलपति
    27 May 2022
    प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बड़ा फ़ैसला लेते हुए राज्यपाल की शक्तियों को कम किया है। उन्होंने ऐलान किया कि अब विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री संभालेगा कुलपति पद का कार्यभार।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License