NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू करने की जल्दी में सरकार
मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में इन देशों के ऐसे प्रताड़ित अल्पसंख्यकों से आवेदन बुलवाए गए हैं जो गुजरात, राजस्थान, छतीसगढ़, हरियाणा और पंजाब के 13 जिलों में निवासरत हैं। ध्यान देने की बात है कि अधिसूचना में पश्चिम बंगाल और असम में रह रहे शरणार्थियों की कोई चर्चा नहीं है जबकि इन राज्यों में हाल में हुए विधानसभा चुनावों में सीएए का मुद्दा प्राथमिकता से उठाया गया था।
राम पुनियानी
11 Jun 2021
नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू करने की जल्दी में सरकार
फ़ोटो साभार: फ्री प्रेस जर्नल

इन दिनों (जून 2021) देश कोरोना महामारी के दुष्प्रभावों से जूझ रहा है। इस बीमारी से बड़ी संख्या में मौतें हुईं हैं और अस्पतालों में दवाओं से लेकर ऑक्सीजन और बिस्तरों से लेकर डॉक्टरों तक की गंभीर कमी सामने आई है। इस संकटकाल में, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) लागू करने की कवायद शुरू कर दी है। मंत्रालय ने अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के गैर-मुस्लिम शरणार्थियों से आवेदनपत्र आमंत्रित किए हैं। ज्ञातव्य है कि सीएए को संसद की मंजूरी काफी विवादस्पद परिस्थिर्तियों में प्राप्त हुई थी। यह दिलचस्प है कि मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में इन देशों के ऐसे प्रताड़ित अल्पसंख्यकों से आवेदन बुलवाए गए हैं जो गुजरात, राजस्थान, छतीसगढ़, हरियाणा और पंजाब के 13 जिलों में निवासरत हैं। ध्यान देने की बात है कि अधिसूचना में पश्चिम बंगाल और असम में रह रहे शरणार्थियों की कोई चर्चा नहीं है जबकि इन राज्यों में हाल में हुए विधानसभा चुनावों में सीएए का मुद्दा प्राथमिकता से उठाया गया था।

केरल में कांग्रेस की गठबंधन सहयोगी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने सरकार के इस विवादस्पद निर्णय को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है। आईयूएमएल की याचिका में कहा गया है कि नागरिकता अधिनियम के खंड 5 (1) (क) से (छ) सहपठित खंड 6, धर्म के आधार पर आवेदकों के वर्गीकरण की इज़ाज़त नहीं देता। और इसलिए सरकार का हालिया आदेश अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करता है। खंड 5(1) (क) से (छ) में रजिस्ट्रीकरण द्वारा नागरिकता हासिल करने के लिए आवेदकों की पात्रताओं का वर्णन करता है जबकि खंड 6 में देशीयकरण (नेचुरलाईज़ेशन) द्वारा ऐसे व्यक्तियों को देश की नागरिकता देने की बात कही गई है जो अवैध प्रवासी नहीं हैं।

याचिका में यह भी कहा गया है कि अगर केन्द्र सरकार का यह आदेश लागू कर दिया और धर्म के आधार पर लोगों को नागरिकता दे दी गई और उसके बाद अदालत द्वारा सीएए और उसके अधीन जारी इस आदेश को रद्द कर दिया गया तब सम्बंधित व्यक्तियों से उनकी नागरिकता वापस लेना बहुत मुश्किल होगा। सीएए से सम्बंधित मामले के उच्चतम न्यायालय में लंबित रहने के बावजूद सरकार उसे लागू करने की इतनी जल्दी में क्यों है इसे समझना मुश्किल नहीं है। दरअसल, सीएए के बहाने सरकार मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए समस्याएं खड़ीं करना चाहती है।

पहली बात यह है कि इसमें संदेह है कि हमारा संविधान नागरिकता प्रदान करने के मामले में धर्म के आधार पर भेदभाव करने की इज़ाज़त देता है। पड़ोसी देशों में प्रताड़ना के शिकार लोगों को नागरिकता देना पूरी दुनिया में आम है। हम सब जानते हैं कि पाकिस्तान में कई मुस्लिम अल्पसंख्यकों जैसे अहमदियाओं को प्रताड़ित किया जाता है। यह भी आश्चर्यजनक है कि श्रीलंका में प्रताड़ना के शिकार हिन्दू तमिलों को सीएए से बाहर क्यों रखा गया है। दुनिया के इस इलाके में जो समुदाय सबसे भयावह प्रताड़ना के शिकार हैं वे हैं म्यांमार के रोहिंग्या। परन्तु वे भी इस अधिनियम की जद से बाहर हैं।

संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा भी सीएए की कड़ी आलोचना की गई है। सीएए के पारित होने के बाद यूएन हाई कमिश्नर मिशेल बैचलेट ने उच्चतम न्यायालय में इस अधिनियम के संवैधानिकता को चुनौती देते हुए एक याचिका दाखिल की थी। उन्होंने इस अधिनियम की कड़ी आलोचना भी की थी। इसकी प्रतिक्रिया में भारत के विदेश मंत्री एस। जयशंकर ने उनकी आलोचना का खंडन करते हुए कहा था कि वे जिस संस्था (संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग) से जुड़ी हुईं हैं वह सीमा पार आतंकवाद की समस्या को नज़रअंदाज़ कर रहा है। यह भी कहा गया कि सीएए भारत का आतंरिक मामला है।

विदेश मंत्री का कहना है कि यह भारत का आतंरिक मामला है जो देश की प्रभुसत्ता से जुड़ा हुआ है। जहाँ तक प्रभुसत्ता का सवाल है, यह स्पष्ट करना ज़रूरी है आज के समय में किसी भी प्रभुसत्ता संपन्न देश के लिए इंटरनेशनल कोवेनेंट ऑन सिविल एंड पोलिटिकल राइट्स (आईसीसीपीआर) की धारा 26 के अनुपालन में नागरिकता के मामले में गैर-भेदभाव का सिद्धांत अपनाना आवश्यक है।

भारत में सीएए और एनपीआर का ज़बरदस्त विरोध हुआ। शुरुआत में अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में हुए विरोध प्रदर्शनों पर सरकार ने जमकर डंडा चलाया। पुलिस ने इन विश्वविद्यालयों के परिसरों के अन्दर घुस कर विद्यार्थियों को बेरहमी से मारा। इसके बाद मुस्लिम महिलाओं ने अपना आन्दोलन शुरू किया जो भारत के सबसे बड़े, सबसे प्रजातान्त्रिक और सबसे शांतिपूर्ण आंदोलनों में से एक था। शाहीन बाग़ आन्दोलन जल्दी ही देश के अलग-अलग हिस्सों में फैल गया और उसने देश के लोगों की अंतरात्मा को झकझोरा। दिल्ली में हुए दंगे इस आन्दोलन को दबाने के प्रयास थे। कोरोना के प्रसार ने भी इस आन्दोलन को बाधित किया।

यह ऐतिहासिक आन्दोलन मुस्लिम समुदाय के बरसों के भरे गुस्से के फट पड़ने का प्रतीक भी था। मुसलमानों को सांप्रदायिक हिंसा और गौमांस के नाम पर लिंचिंग द्वारा और लव जिहाद, कोरोना जिहाद और कई तरह के जिहाद करने के नाम पर समाज के हाशिये पर धकेल दिया गया। इस आन्दोलन ने नागरिकता के मामले में सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ बराबरी का व्यवहार किये जाने की वकालत की। यह आन्दोलन, सीएए-एनआरसी के खिलाफ सबसे बुलंद प्रजातान्त्रिक आवाज़ थी।  

सीएए के मामले को अकेले देखना ठीक नहीं होगा। गृहमंत्री अमित शाह ने ट्वीट किया था, "पहले हम नागरिकता संशोधन विधेयक पारित करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि पड़ोसी देशों से भारत आए सभी शरणार्थियों को देश की नागरिकता मिल जाए। इसके बाद एनआरसी बनाया जायेगा और हम हमारी मातृभूमि में रह रहे हर एक घुसपैठिये का पता लगा कर उसे इस देश से बाहर निकालेंगे।"  

एनआरसी के मामले में असम के अनुभव के बाद हमें इस तरह की कोई भी कवायद करने का इरादा पूरी तरह से त्याग देना चाहिए। असम के लोगों के लिए एनआरसी एक अत्यंत कष्टपूर्ण प्रक्रिया थी। झुग्गीवासियों और ग्रामीण क्षेत्रों के निवासियों के लिए कागज़ात से सार-सम्हाल करना बहुत मुश्किल होता है। इसके बाद भी, पूरे राज्य में केवल 19।5 लाख लोग ऐसे पाए गए जिनके पास नागरिकता सम्बन्धी दस्तावेज नहीं थे। दिलचस्प यह है इनमें से करीब 12 लाख हिन्दू थे। इस कवायद से भाजपा और उसके साथियों के इस दावे की हवा निकल गई कि बांग्लादेश के करीब 50 लाख घुसपैठिये असम में रह रहे हैं।

बांग्लादेश से भारत में जो भी पलायन हुआ उसका मुख्य कारण था तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में सेना के अत्याचार। कुछ लोगों ने रोज़गार पाने के लिए भी पलायन किया। पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान से कितने लोगों ने भारत में पलायन किया है इसका कोई अंदाज़ा नहीं है। इन आंकड़ों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। जैसा कि पहले बताया जा चुका है, संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धांतों का तकाजा है कि हमें हमारे पड़ोसी देशों में प्रताड़ित किये जा रहे समुदायों को अपने यहाँ शरण देनी चाहिए। अब बांग्लादेश से आर्थिक कारणों से लोगों के भारत में पलायन करने की कोई सम्भावना नहीं है क्योंकि बांग्लादेश आर्थिक सूचकांकों पर भारत से काफी आगे निकल गया है।

(अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया) 

CAA
Citizenship Amendment Act
NRC
minorities
Modi government
BJP
Narendra modi

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति


बाकी खबरें

  • channi sidhu
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: ‘अनिवार्य’ वैक्सीन से सिद्धू-चन्नी के ‘विकल्प’ तक…
    23 Jan 2022
    देश के 5 राज्यों में चुनावों का मौसम है, इसलिए खबरें भी इन्हीं राज्यों से अधिक आ रही हैं। ऐसी तमाम खबरें जो प्रमुखता से सामने नहीं आ पातीं  “खबरों के आगे-पीछे” नाम के इस लेख में उन्हीं पर चर्चा होगी।
  • Marital rape
    सोनिया यादव
    मैरिटल रेप: घरेलू मसले से ज़्यादा एक जघन्य अपराध है, जिसकी अब तक कोई सज़ा नहीं
    23 Jan 2022
    भारतीय कानून की नज़र में मैरिटल रेप कोई अपराध नहीं है। यानी विवाह के बाद औरत सिर्फ पुरुष की संपत्ति के रूप में ही देखी जाती है, उसकी सहमति- असहमति कोई मायने नहीं रखती।
  • Hum Bharat Ke Log
    अरुण कुमार त्रिपाठी
    महज़ मतदाता रह गए हैं हम भारत के लोग
    23 Jan 2022
    लोगों के दिमाग में लोकतंत्र और गणतंत्र का यही अर्थ समा पाया है कि एक समय के अंतराल पर राजा का चयन वोटों से होना चाहिए और उन्हें अपना वोट देने की कुछ क़ीमत मिलनी चाहिए।
  • Hafte Ki Baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    नये चुनाव-नियमों से भाजपा फायदे में और प्रियंका के बयान से विवाद
    22 Jan 2022
    कोरोना दौर में चुनाव के नये नियमों से क्या सत्ताधारी पार्टी-भाजपा को फ़ायदा हो रहा है? कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने प्रशांत किशोर पर जो बयान दिया; उससे कांग्रेस का वैचारिक-राजनीतिक दिवालियापन…
  • chunav chakra
    न्यूज़क्लिक टीम
    चुनाव चक्र: यूपी की योगी सरकार का फ़ैक्ट चेक, क्या हैं दावे, क्या है सच्चाई
    22 Jan 2022
    एनसीआरबी की रिपोर्ट है कि 2019 की अपेक्षा 2020 में ‘फ़ेक न्यूज़’ के मामलों में 214 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। फ़ेक न्यूज़ के जरिए एक युद्ध सा छेड़ दिया गया है, जिसके चलते हम सच्चाई से कोसो दूर होते…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License