NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
नज़रिया
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
सरकार, जनविरोध और चिरपरिचित लेबलबाज़ी!
किसानों की समझ और विवेक पर प्रश्नचिह्न लगाना बंद कीजिए सरकार जिनकी पीढ़ियां खप गयीं इस माटी में अनाज उगाते। किसान हर लिहाज़ से परिपक्व है, विवेकशील है, जागरूक है और वो अपने हित-अहित से बिल्कुल भी अनभिज्ञ नहीं है।
अभिषेक पाठक
16 Dec 2020
सरकार, जनविरोध और चिरपरिचित लेबलबाज़ी!

भाजपा, जनविरोध और लेबलबाज़ी का ये रिश्ता बेहद घनिष्ठ है। इस त्रिकोणमिति को समझना भी बेहद सरल है। भाजपा सरकार के विरोध की कल्पना मात्र से ही आप पर राष्ट्रविरोधी होने का ठप्पा लग जाता है। इसके अलावा भी भाजपाई पोटली में कई लेबल हैं जो विरोध में उठती हर बुलंद आवाज़ पर चिपकाया जाता है। इस नयी राजनीतिक फिज़ा में अगर आप सरकार के शब्दों का अक्षरश: पालन करते हैं तो आपको स्वतः ही एक देशभक्त नागरिक की प्रमाणिकता प्राप्त हो जाएगी परंतु मजाल है जो आपने विरोध के स्वर को प्रदर्शन का अधिकार दिया! विरोध में उठती हर आवाज़ को किसी-न-किसी लेबल से नवाज़ने वाली भाजपा और उनकी ट्रोल आर्मी किसानों पर अछूता कैसे रहती।

अपनी इमेज और ब्रैंडिंग को सर्वोच्च प्राथमिकता देने वाली भाजपा सरकार के लिए हज़ारों-लाखों किसानों का यूं मजबूती से सत्ता से सवाल करना यकीनन अहसहनीय है क्योंकि जिस तरह से हर दमन, कुचक्र और षड्यंत्र के बावजूद किसान सड़कों पर अपनी मांग के लिए संघर्षरत हैं और उनकी बुलंद आवाज़ की गूंज देश-विदेश तक सुनाई दी है उससे यकीनन भाजपा सरकार की छवि धूमिल हुई है।

आंदोलन की शुरुआत से ही इसे खत्म करने के हर हथकंडे अपनाये गये। चाहे किसान नेताओं की गिरफ्तारी हो या दमन की इंतेहा, 'आज़ाद' किसान के लिए सरहदें तैयार करना हो या आईटी सेल का प्रोपेगेंडा! इनके सबके बावजूद किसानों की आवाज़ को देशभर से चौतरफा समर्थन प्राप्त है। किसान को सड़क पर संघर्ष करते आज 19 दिनों से भी अधिक हो चुके हैं पर सरकार और सत्ता समर्थक मीडिया द्वारा 'लेबलबाज़ी' अबतक जारी है।

शुरुआत से ही किसानों के इस आंदोलन को विपक्ष की सियासी साज़िश साबित करने में सरकार और मेन स्ट्रीम मीडिया के एक सेक्शन ने कोई कसर नही छोड़ी है। सवाल ये है कि सरकार का ये प्रलाप कबतक जारी रहेगा? बजाय किसानों में व्याप्त असुरक्षा की भावना को समाप्त करने के, बजाय किसानों की वेदना, भय और आशंकाओं का समाधान करने के सरकार और मीडिया किसान-आंदोलन को देश के आम जनमानस की दृष्टि में बदनाम करने पर आमादा है।

टीवी मीडिया की भूमिका से किसानों में नाराज़गी!

टीवी मीडिया की पहुँच घर-घर तक है। आज के दौर में टीवी पर होने वाली 'चर्चाएं' और कार्यक्रम देश के आमजन के दिलो-दिमाग पर व्यापक प्रभाव छोड़ती हैं। किसान आंदोलन को जिस तरह से पेश किया गया है उससे किसान बेहद नाराज़ है। किसानों का साफतौर पर कहना है कि वे मानसिक रूप से इतने परिपक्व हैं कि कोई राजनीतिक दल उन्हें गुमराह नहीं कर सकता और वे अपना हित-अहित भली-भांति समझते हैं। आंदोलन में विपक्ष की साज़िश, खालिस्तानी एंगल या एंटी नेशनल एलिमेंट्स खोजने की बजाय इस मीडिया को सत्ता से सवाल करना चाहिए कि किस अहंकारवश सरकार इसे ईगो की लड़ाई बना चुका है? मीडिया को वाकई लोकतंत्र के चौथे स्तंभ होने का प्रमाण देना चाहिए शायद इससे उनकी खत्म होती विश्वसनीयता में आंशिक सुधार हो जाए।

किसानों के विरोध को विपक्ष की साज़िश बताना हो या किसानों को गुमराह करार देना हो, इन सबसे सरकार खुद को अक्षम सिद्ध कर रही है। वो विपक्ष जो खुद सरकार के मुताबिक खत्म हो चुका है और राजनीतिक दृष्टिकोण से सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा है, आज वही विपक्ष इतना मजबूत और सामर्थ्यवान हो गया कि लाखों किसानों को गुमराह कर सके? और ऐसे वक्तव्यों से क्या सरकार खुद की अक्षमता साबित नही करती? क्या भाजपा सरकार खुद को विपक्ष से भी कमज़ोर स्थिति में आँकती है जो देश के अन्नदाता को भरोसे में लेने में नाकाम है?

हकीकत ये है कि ये कोई गुमराह की गयी भीड़ नहीं बल्कि जनतंत्र की वो बुलंद आवाज़ है जो सत्ता से सवाल करना जानती है, संसद में ध्वनिमत के आधार पर पारित कानूनों को सड़क पर चुनौती देना जानती है, सरकारी हथकंडो से जूझना जानती है।

विपक्ष की भूमिका तय करते-करते खुद अपनी भूमिका भूलते सरकारी नुमांइदे!

विपक्ष को विपक्ष होने का अर्थ बतलाने वाले लोग क्या सरकार होने के मायने जानते हैं? रेल मंत्री पीयूष गोयल के अनुसार किसानों को वामपंथियों ने भड़काया है। केंद्रीय मंत्री राव साहब दानवे कहते हैं कि किसान आंदोलन के पीछे चीन-पाकिस्तान का हाथ है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर आंदोलन में मोदी-विरोधी तत्व खोजते हैं। सरकार तो पहले ही किसान को 'भोला' और 'गुमराह' बता चुकी है। क्या जनविरोध को इस प्रकार से हैंडल किया जाता है?

सरकार की नज़र में हर वो शख्स जो सरकार की नीतियों के विरोध में खड़ा होता है वो भ्रमित है, गुमराह है। ठीक इसी तर्ज पर किसान को भी मिसगाइडेड घोषित कर दिया गया। उन किसानों की समझ और विवेक पर प्रश्नचिह्न लगाना बंद कीजिए सरकार जिनकी पीढ़ियां खप गयीं इस माटी में अनाज उगाते। किसान हर लिहाज़ से परिपक्व है, विवेकशील है, जागरूक है और वो अपने हित-अहित से बिल्कुल भी अनभिज्ञ नहीं है।

लेबलबाज़ी के कार्यक्रम के क्रियान्वयन में अग्रणी भूमिका में खड़े आईटी सेल और ट्रोल आर्मी के क्या ही कहने! किसानों को पिज़्ज़ा खाते देख खुद इनका पाचन तंत्र गड़बड़ा सा गया है। किसानों का पिज़्ज़ा खाना, फुट मसाज लेना इनसे डाइजेस्ट नही हो पा रहा। ध्यान रहे ये वही लोग हैं जो किसानों को "न सर पे है पगड़ी, न तन पे है जामा" वाली छवि से आगे देख ही नही पाए या देखना ही नही चाहते। इन लोगों की नज़र किसान के तन पर फटेहाल वस्त्र, किसान की थाली में प्याज़-रोटी और आँखों में बेबसी ही देखना चाहती है। इन लोगों के मन-मस्तिष्क में अंकित किसान की इस बदहाल छवि से इतर इन्हें कुछ बर्दाश्त नही। इस छवि और दायरे को क्रॉस करते किसान को ये लोग किसान मानने से इंकार करते हैं।

खैर 'टू मच' डेमोक्रेसी वाले इस मुल्क में किसानों को राष्ट्रीय राजधानी में आने से रोकने के सरकारी प्रयास तो जगजाहिर है। दक्षिणपंथी ट्रोल आर्मी के द्वारा इस आंदोलन को बदनाम करने के हर संभव प्रयास किये गये हैं जो आज भी निरंतर जारी है। गुमराह, विपक्ष द्वारा भड़काए हुए किसान, वामपंथी साज़िश, एंटी नेशनल एलिमेंट्स, चीन, पाकिस्तान, खालिस्तान और न जाने क्या-क्या!  किसान आंदोलन को इन सभी विशेषणों और लेबल से नवाज़ने वाले सभी सरकारी और गैर सरकारी ज्ञानचंदों के बीच कर्मचंद किसान बेहद मजबूती से खड़ा हैं।

 (अभिषेक पाठक स्वतंत्र लेखक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

kisan andolan
BJP
modi sarkar
anti-national

Related Stories

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

दिल्ली : पांच महीने से वेतन व पेंशन न मिलने से आर्थिक तंगी से जूझ रहे शिक्षकों ने किया प्रदर्शन

आईपीओ लॉन्च के विरोध में एलआईसी कर्मचारियों ने की हड़ताल

जहाँगीरपुरी हिंसा : "हिंदुस्तान के भाईचारे पर बुलडोज़र" के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन

दिल्ली: सांप्रदायिक और बुलडोजर राजनीति के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन

आंगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने क्यों कर रखा है आप और भाजपा की "नाक में दम”?

NEP भारत में सार्वजनिक शिक्षा को नष्ट करने के लिए भाजपा का बुलडोजर: वृंदा करात

नौजवान आत्मघात नहीं, रोज़गार और लोकतंत्र के लिए संयुक्त संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ें


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License