NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कृषि
भारत
राजनीति
हरियाणा का नया भूमि अधिग्रहण कानून : किसानों पर एक और प्रहार
हरियाणा में “भूमि अधिग्रहण, पुनर्स्थापन और पुनर्वास संशोधन कानून, 2021” पारित कर कथित विकास की परियोजनाओं के लिए किसानों से उनकी ज़मीनें हड़पने के लिए 2013 के केंद्रीय कानून की पूरी मंशा और प्रावधानों को बदल दिया गया है।
सत्यम श्रीवास्तव
22 Sep 2021
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर। फाइल फोटो, साभार: The Indian Express
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर। फाइल फोटो, साभार: The Indian Express

तीन विवादित कृषि क़ानूनों को संसद से पारित हुए एक साल हो चुका है। इनके विरोध में जारी किसान आंदोलन को भी दिल्ली की सरहदों पर पूरे दस महीने हो रहे हैं। हालांकि पंजाब और हरियाणा, दो प्रमुख राज्य हैं जहां इन क़ानूनों का विरोध जून 2020 से ही जारी है जब केंद्र सरकार ने इन्हीं क़ानूनों को अध्यादेशों के तौर पर थोपा था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों के किसान भी स्थानीय स्तर पर इन अध्यादेशों के खिलाफ अलख जगा रहे थे। इन राज्यों के किसान उसी समय से सरकार की मंशाओं पर गंभीर सवाल उठा रहे हैं। ये बात तब भी किसी के गले नहीं उतर नहीं थी कि ऐसे समय में जब पूरा देश सख्त लॉकडाउन से गुज़र रहा था, इन अध्यादेशों को लाने की क्या ज़रूरत थी? यह सवाल हालांकि अब सवाल नहीं रहा बल्कि सरकार की कॉर्पोरेटपरस्ती और अपने नागरिकों के प्रति उसकी निष्ठुरता सभी के सामने है।

सितंबर 2020 में इन अध्यादेशों को हड़बड़ी में और न्यूनतम संसदीय मर्यादायों को ताक पर रखकर संसद के दोनों सदनों से पारित करवा लिया गया। इसके बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान भी इन दोनों राज्यों के किसानों से जुड़े और दिल्ली का रुख किया गया। 26 नवंबर 2020 को तीनों राज्यों के किसानों ने एक साथ दिल्ली पहुँचकर इन तीनों क़ानूनों के खिलाफ अहिंसक सत्याग्रह शुरू करने का निर्णय लिया। दिल्ली पहुँचने से पहले ही हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकारों ने सत्याग्रही किसानों पर दमनात्मक कार्रवाइयां कीं। अंतत: किसानों को दिल्ली से लगी दोनों राज्यों की सीमाओं पर रोक दिया गया।

मजबूत इरादे लेकर घर से चले किसान खाली हाथ वापस लौटने के लिए नहीं आए थे इसलिए वो उन्हीं सरहदों पर बैठ गए। अब दस महीने बीत रहे हैं। सरकार ने किसानों से अंतिम औपचारिक संवाद 22 जनवरी को किया था उसके बाद से सरकार इनकी तरफ से बेपरवाह है।

इस बीच किसान आंदोलन देश के अन्य सभी राज्यों में पहुँच चुका है। पूरे देश के किसान इन तीनों क़ानूनों के खिलाफ लामबंद हैं और ‘कानून वापसी नहीं तो घर वापसी नहीं’ के इरादे लेकर धैर्य से बैठे हैं। प्रचंड बहुमत सरकार के पास देश की 70 प्रतिशत आबादी की समस्याओं के लिए कोई समाधान नहीं है।

इस बीच हरियाणा सरकार ने 24 अगस्त 2021 को विधानसभा में भूमि अधिग्रहण, पुनर्स्थापन और पुनर्वास संशोधन कानून, 2021 पारित किया है। इस संशोधन कानून को हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्रातेय ने 11 सितंबर 2021 को मंजूरी भी दे दी है।

यह कानून भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास, पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार, 2013 के खिलाफ लाया गया है। एक ऐसा कानून जिसे पारित हुए 8 साल हो रहे हैं लेकिन जिसका उपयोग देश भर की किसी भी राज्य सरकार ने नहीं किया है। यानी अब 2013 का कानून महज़ एक रेफरेंस की तरह वजूद में बना हुआ है ताकि उसके खिलाफ हर राज्य अपने अपने मसौदे बना सकें।

दिसंबर 2014 में इस सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में ही संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार द्वारा 2013 में लाये गए भूमि अधिग्रहण से जुड़े कानून को सिरे से खारिज करते हुए एक अध्यादेश लाया। इस अध्यादेश का पुरजोर विरोध हुआ। न केवल जन संगठनों, किसान संगठनों बल्कि तत्कालीन विपक्षी दलों ने भी इन अध्यादेश का भरसक विरोध किया। लोकसभा में पूर्णबहुमत पाने के बाद भी राज्यसभा में इस सरकार के पास पर्याप्त बहुमत न होने से ये अध्यादेश कानून के रूप में पारित नहीं हो सका।

हालांकि केंद्र सरकार ने हार नहीं मानी और इसी अध्यादेश को कुल तीन बार थोपने की कोशिश की। तीनों ही बार इसमें असफलता मिली। इसके बाद केंद्र सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन करने की ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों पर डाल दी। 2015 से अब तक कई राज्यों विशेष रूप से भाजपा-शासित राज्यों ने इस केंद्रीय कानून के खिलाफ और भाजपा सरकार द्वारा लाये गए अध्यादेश के अनुरूप अपने अपने कानून विधानसभाओं से पारित कर लिए।

हालिया उदाहरण हरियाणा का है और यह दिलचस्प भी है कि प्रदेश के किसान पूरी तरह अपनी सरकार के खिलाफ हैं, वो सड़कों पर हैं, प्रदेश के मुख्यमंत्री तक कहीं सार्वजनिक सभा करने की जुर्रत नहीं कर पा रहे हैं, राज्य सरकार के मंत्रियों और विधायकों का घर से निकल पाना दुश्वार है। बावजूद इसके यही विधायक, यही मंत्री और यही मुख्यमंत्री किसानों की शिकायतें और समस्याएँ सुनने समझने और उनका समाधान करने की जगह उनके खिलाफ कानून बना रहे हैं। क्या हरियाणा सरकार पूरी तरह यह भूल चुकी है कि वह अपने ही राज्यों के नागरिकों द्वारा चुनी गयी है और हरियाणा के 80 प्रतिशत नागरिक खेती पर ही आश्रित हैं? और हरियाणा में इस समय बेरोजगारी दर पूरे देश में सबसे ज़्यादा है?

24 अगस्त 2021 को एक पत्रकार वार्ता में प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस कानून के बारे में बताया कि –‘प्रदेश में अब कृषि भूमि का रेशनेलाइजेशन कर उसकी न्यूनतम सीमा निर्धारित की जाएगी जिसमें तय किया जाएगा कि कम से कम कितनी ज़मीन को कृषि भूमि माना जाएगा’। यह किसान और कृषि विरोधी काम इसी नए कानून के मार्फत होना है।

इस एक बयान से संशोधित भूमि अधिग्रहण कानून की मंशा समझ में आती है। लेकिन यह संशोधित कानून कई और मामलों में केंद्र सरकार द्वारा लाये गए अध्यादेश और अन्य राज्यों में किए गए संशोधनों से भी आगे जाकर कृषि की ज़मीनों को किसानों से जबरन हड़पने का रास्ता साफ करते नज़र आता है।

इस कानून के मुख्य प्रावधानों को अगर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार द्वारा 2013 में लाये गए कानून के संदर्भ में देखें तो उन तमाम प्रावधानों को सिरे से खारिज कर दिया गया है जिनकी वजह से 2013 के कानून को सही मायनों में यह माना जा रहा था कि यह एक स्वतंत्र, संप्रभुता सम्पन्न लोकतान्त्रिक गणराज्य का कानून है। उल्लेखनीय है कि 2013 में पारित हुआ कानून औपनिवेशिक काल के भूमि अधिग्रहण कानून 1894 को रद्द करके बना था और इस जबरिया कानून के स्थान पर देश के इतिहास में 127 सालों के बाद भूमि-अधिग्रहण में ‘सहमति’ जैसा प्रावधान जोड़ा जा सका था। इस कानून को लाने की प्रक्रिया देश के लोकतान्त्रिक इतिहास में शायद सबसे ज़्यादा जन भागीदारी और परामर्श आधारित प्रक्रिया थी। जिसका प्रभाव भी इस कानून में दिखलाई देता है। तमाम ऐसे प्रावधान इसमें रखे गए थे जिनकी वजह से जन भागीदारी और निर्णय प्रक्रिया को लोकतान्त्रिक व समावेशी बनाने की पहल थी। हालांकि इसकी भी आलोचनाएँ हुईं थीं लेकिन यह कानून भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी व जनतान्त्रिक बनाने का प्रयास ज़रूर था।

भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास, पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार (हरियाणा संशोधन), बिल 2021 के नाम से पारित हुए इस कानून की असल मंशा इस कानून के जरिये भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को आसान बनाकर ‘विकास परियोजनाओं’ में तेज़ी लाना है। जिन विकास परियोजनाओं को इस कानून के माध्यम से तेज करने की कोशिशें की जा रहीं हैं उनमें मुख्य रूप से प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप यानी पीपीपी मॉडल के तहत -राष्ट्रीय सुरक्षा या भारत की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण परियोजनाएं,विद्युतीकरण, ग्रामीण आधारभूत संरचना,-किफायती आवास, गरीबों के लिए आवास,प्राकृतिक आपदा से विस्थापित लोगों के पुनर्वास की आवास योजना,राज्य सरकार या उसके उपक्रमों द्वारा स्थापित औद्योगिक गलियारे, जिसमें निर्दिष्ट रेलवे लाइनों या सड़कों के दोनों ओर 2 किमी तक की भूमि का अधिग्रहण करना हो,स्वास्थ्य और शिक्षा से संबंधित परियोजनाएं,पीपीपी परियोजनाएं जिनमें भूमि का स्वामित्व राज्य सरकार के पास हो और शहरी मेट्रो और रैपिड रेल परियोजनाएं प्रमुख हैं।

इन तथाकथित विकास की परियोजनाओं के लिए किसानों से उनकी ज़मीनें हड़पने के लिए 2013 के केंद्रीय कानून की पूरी मंशा और प्रावधानों को बदल दिया गया है। उदाहरण के लिए 2013 में बने भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास, पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार कानून में स्पष्ट और बाध्यकारी प्रावधान था कि पीपीपी के तहत किसी भी परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण से पहले कम से कम 70 प्रतिशत प्रभावित ज़मीन मालिकों की ‘सहमति’ लेना होगी और परियोजना का सामाजिक प्रभाव आंकलन करना होगा। हरियाणा विधानसभा से पारित इस कानून में ये दोनों ही प्रावधान खारिज दिये गए हैं।

जिला कलेक्टर को असीम शक्तियाँ इस कानून में दे दी गईं हैं। हरियाणा सरकार ने इस बिल में एक नई धारा 31ए भी जोड़ दी है। कलेक्टर के पास सभी योजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण का मुआवज़ा तय करने का सम्पूर्ण अधिकार होगा।

इस धारा के अंतर्गत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए जिला कलेक्टर रेल या सड़क जैसी रेखीय संरचनाओं के लिए तय मुआवज़े का 50 प्रतिशत प्रभावित परिवारों को एकमुश्त देकर मुआवज़े का फ़ुल एंड फ़ाइनल सेटल्मेंट कर सकेगा। यानी अगर आपकी ज़मीन के लिए आपको एक साल में 1 लाख रुपए मिलने थे, तो कलक्टर आपको एकमुश्त 50 हज़ार रुपए मुआवज़ा देकर भरपाई कर सकेगा। इसके बाद आप किसी मुआवज़े के हक़दार नहीं होंगे। इस कानून में संपत्ति के ‘मौद्रीकिकरण’ करने के लिए भारत सरकार द्वारा लायी गयी ‘नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन (एनईपी)’ की स्पष्ट छाप दिखलाई देती है। ठीक देश की वित्तमंत्री की तरह यहाँ भी यही तर्क दिया जा रहा है कि पीपीपी के तहत अधिग्रहित ज़मीनों का स्वामित्व सरकार के पास ही रहेगा लेकिन लंबी अवधि के लिए कारपोरेट्स या कंपनियों को वो दी जाएंगीं।

इस बिल का एक और भयावह पक्ष जिस पर कम चर्चा हुई है वो है किसी अधिग्रहीत जमीन या इमारत को मुआवजा राशि देने के तत्काल बाद ज़मीन पर नियंत्रण लिया जाना। यह 2013 के कानून की धारा 40(2) को संशोधित करके किया गया है। अब तक चले आ रहे क़ानूनों में कम से कम 48 घंटे की पूर्व सूचना देना जरूरी होता है। लेकिन इस कानून में स्पष्ट और बाध्यकारी प्रावधान दिया गया है कि मुआवजा राशि के भुगतान होते ही वह ज़मीन या संपत्ति तत्काल राज्य सरकार के अधीन ले ली जाएगी।

देश में महज़ नाम के लिए लेकिन मौजूद 2013 के कानून में बहुफसलीय ज़मीन के अधिग्रहण को लेकर स्पष्ट निर्देश थे कि इसका अधिग्रहण नहीं किया जाएगा। लेकिन हरियाणा सरकार ने यह बंदिश भी हटा दी है।

इसके अलावा इस कानून में धारा 23ए के तहत भू-आयुक्त को यह अधिकार दिये गए हैं कि वो उन किसानों की ज़मीनों का जबरन अधिग्रहण कर सकता है जो अपनी ज़मीन स्वेच्छा से देने को राजी नहीं हैं। इसके अलावा इस कानून में उन लोगों के हकों को दरकिनार किया गया है जिनके प्रोप्राइटरी राइट्स यानी स्वामित्वाधिकार तो किसी ज़मीन पर होते हैं लेकिन उनके नाम भू-अभिलेखों में दर्ज़ नहीं होते हैं। ऐसे लोगों में सबसे ज़्यादा मार महिलाओं और किराएदारों पर पड़ने वाली है।

इस कानून में कृषि भूमि की न्यूनतम सीमा तय किए जाने का प्रावधान भी खेती की छोटी जोतों को एक साथ लाकर ‘रीयल एस्टेट’ के लिए मुहैया कराना है। जिसे मुख्यमंत्री रेशनेलाइजेशन कह रहे हैं। अभी ज़्यादा दिन नहीं बीते जब देश के प्रधानमंत्री ने अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप के नाम से बनाए जा रहे विश्वविद्यालय के अवसर पर अपने भाषण में तीन कृषि क़ानूनों का यह कहकर बचाव किया था कि उनकी सरकार की मंशा छोटे और सीमांत किसानों के हितों की रक्षा करना है। शायद उस समय तक प्रधानमंत्री यह भूल रहे थे कि उनकी ही सरकार ने हरियाणा में एक ऐसा कानून बना दिया है जिससे सबसे ज़्यादा नुकसान इन्हीं छोटी जोत के किसानों को होने जा रहा है।

हालांकि हरियाणा में विपक्ष ने इस कानून का पुरजोर विरोध किया है और इसे किसान विरोधी बताया है लेकिन उनकी आपत्तियों को अनसुना करते हुए राज्यपाल ने इसे मंजूरी दे दी है। अब देखना है कि राष्ट्रपति विपक्ष और देश में चल रहे किसानों आंदोलन को देखते हुए इसे अंतिम मंजूरी देते हैं या नहीं।

_____________

(लेखक क़रीब डेढ़ दशक से सामाजिक आंदोलनों से जुड़े हैं। समसामयिक मुद्दों पर लिखते हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)

Haryana new land acquisition law
Haryana
BJP
manohar laal khattar

Related Stories

आख़िर किसानों की जायज़ मांगों के आगे झुकी शिवराज सरकार

किसान-आंदोलन के पुनर्जीवन की तैयारियां तेज़

ग़ौरतलब: किसानों को आंदोलन और परिवर्तनकामी राजनीति दोनों को ही साधना होगा

यूपी चुनाव: पूर्वी क्षेत्र में विकल्पों की तलाश में दलित

उप्र चुनाव: उर्वरकों की कमी, एमएसपी पर 'खोखला' वादा घटा सकता है भाजपा का जनाधार

केंद्र सरकार को अपना वायदा याद दिलाने के लिए देशभर में सड़कों पर उतरे किसान

यूपी चुनाव: आलू की कीमतों में भारी गिरावट ने उत्तर प्रदेश के किसानों की बढ़ाईं मुश्किलें

ग्राउंड  रिपोर्टः रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के गृह क्षेत्र के किसान यूरिया के लिए आधी रात से ही लगा रहे लाइन, योगी सरकार की इमेज तार-तार

मोदी सरकार ने मध्यप्रदेश के आदिवासी कोष में की 22% की कटौती, पीएम किसान सम्मान निधि योजना में कर दिया डाइवर्ट

MSP की कानूनी गारंटी ही यूपी के किसानों के लिए ठोस उपलब्धि हो सकती है


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License