NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
हिमालय दिवस: पहाड़ी महिलाओं ने संभाली हिमालयी हरियाली
रामेश्वरी नेगी का नन्हा बेटा वहीं सीढ़ियों पर बैठा किताब के पन्ने उलट-पुलट रहा है। मैं उससे पूछती हूं- तुम क्या सोचती हो, बड़ा होकर तुम्हारा बेटा क्या बने? जवाब मिलता है- हमारे पास इतने पैसे तो नहीं कि इसे डॉक्टर-इंजीनियर बना सकें। हम चाहते हैं कि ये अच्छा किसान बने। अपने खेतों को बंजर न छोड़े।
वर्षा सिंह
09 Sep 2020
Tehri Bharvakatal Village
टिहरी के भरवाकाटल गांव का दृश्य

देहरादून से टिहरी के जौनपुर ब्लॉक की ओर बढ़ते हुए रास्ते में पहाड़ से छिटके पत्थर बताते हैं कि हम दुनिया की सबसे युवा पर्वत श्रृंखला के बीच से गुज़र रहे हैं। जिसके पहाड़ अभी स्थिर नहीं हुए हैं। मानसून में बारिश के साथ  पहाड़ से गिरते पत्थर जानलेवा हो जाते हैं। हल्की बूंदाबांदी के बीच भरवाकाटल गांव की ओर पहाड़ी से उतरते हुए चारों तरफ सब कुछ हरा-हरा दिखाई देता है। इस गांव में पहाड़ी से उतरते पानी के सोते की गूंज हर समय सुनाई देती है। पानी की ये धुन कुदरत की नेमत की तरह है। इस सोते से लोगों के साथ खेतों की भी प्यास बुझती है।

गांव के नीचे बांदल नदी का शोर गूंजता है। किसान महिलाएं कहती हैं कि नदी हमारे किसी काम नहीं आती। हमारी जरूरत तो पहाड़ की दरारों से निकल कर आते पानी के सोते से पूरी होती है। भरवाकाटल गांव की पहचान जैविक खेती के लिए है। सीढ़ीदार खेतों में बोई गई धान की फसल ज़मीन से हाथ भर ऊपर उठ चुकी है। एक तरफ हल्दी के बड़े-बड़े पत्तों के बीच धूप-छांव जैसे आपस में खेल रहे हों। खीरे की बेलें चढ़ी हैं। तो लौकी की लताएं जैसे आपस में ही लिपट गई हों। तोरी, भिंडी, बैंगन समेत सीजन की सारी सब्जियां यहां मुस्कुरा रही हैं। लेकिन टमाटर की फसल इस बार बिगड़ गई। उनमें कीड़े लग गए। खेतों में मुस्कुराती सब्जियां यहां की महिलाओं की मेहनत का नतीजा हैं।

bharvakatal village 1.png

भरवाकाटल गांव की किसान महिलाएं बन रही मिसाल

यहां महिलाएं ही खेती-बाड़ी से जुड़ा ज्यादातर काम करती हैं। गांव के पुरुष नौकरी या रोजगार के लिए बाहर रहते हैं। स्थानीय संस्था हेस्को ने यहां एक कमरेनुमा कम्यूनिटी सेंटर बनाया है। जहां महिलाएं इकट्ठा होकर खेती-किसानी से जुड़ी समस्याओं पर बात करती हैं। किसान शकुंतला नेगी बताती हैं कि पहले वे सभी गेहूं-मंडुवा समेत पारंपरिक फसलें ही उगाया करते थे। लेकिन जलवायु परिवर्तन का असर उनके खेतों पर भी पड़ने लगा। बेमौसम बारिश से खेती की मुश्किलें बढ़ गई। पारंपरिक फसलों का एक लंबा चक्र होता है। उस पर कभी तेज़ बारिश तो कभी सूखे की मार पड़ जाती है। इससे होने वाली आमदनी से घर की जरूरतें भी पूरी नहीं हो पाती थी। लंबे समय की फसल को छोड़ महिलाओं ने मौसमी सब्जियां उगानी शुरू की। जिसकी फसल जल्दी तैयार होती है। जल्दी आमदनी होती है। नुकसान अपेक्षाकृत कम।

मेहनत हम करते हैं मुनाफा कोई और लेता है

भरवाकाटल गांव की जैविक सब्जियां बिक्री के लिए देहरादून के बाजार आती हैं। महिलाएं कहती हैं कि बाजार में जिस रेट पर सब्जी मिलती है, हमें वो रकम नहीं मिलती। हम तो पास के आढ़त को सब्जी बेचते हैं। वो देहरादून के बाज़ार में सब्जियां बेचता है। किसान और बाज़ार के बीच की ये दूरी उनकी मेहनताने को कम कर देती है। वे अपने पॉलीहाउस भी दिखाती हैं। जो अभी नया ही बना है। इसमें सब्जियों की नर्सरी तैयार हो रही है।

women farmer of bharvakatal.pngबंदर भगाने में दिन गुज़र जाता है

किसान महिलाओं की दूसरी बड़ी समस्या जंगली सूअर और बंदर हैं। ऊषा कहती हैं कि घर का काम निबटा कर हम खेतों में पहुंचते हैं और खेत से फिर वापस घर के काम में जुट जाते हैं। हमें अपने बच्चों की देखरेख भी करनी होती है। सूअर के झुंड रात के समय खेतों पर हमला करते हैं तो बंदर दिन में हुड़दंग मचाते हैं। अब कितनी बार बंदरों को भगाएं। एक-एक बंदर भगाना आसान नहीं होता। जंगली जानवरों के बढ़ते हमले पहाड़ों में खेती छोड़ने की बड़ी वजहों में से एक हैं। जंगली जानवरों के हमलों से फसल को होने वाले नुकसान के चलते पहाड़ के युवा खेत बंजर छोड़ नौकरियों के लिए महानगरों की ओर जा रहे हैं। हालांकि कोरोना का कहर एक बार फिर उन्हें अपने गांवों की ओर ले आया है।

खेती और अकाउंटिंग भी

हेस्को संस्था की वनस्पति विज्ञानी डॉ. किरन नेगी कहती हैं कि हमने भरवाकाटल गांव को एक मॉडल के तौर पर तैयार किया है। यहां महिलाएं बिना किसी रासायनिक खाद के खेती करती हैं। वे खेतों में हाथों से चलने वाला ट्रैक्टर भी दौड़ाती हैं। हमने खेती से जुड़ी जानकारियां उनके साथ साझा कीं। इसके साथ ही महिलाओं को अचार बनाने और जूस बनाने और उसकी पैकिंग जैसे प्रशिक्षण भी दिए गए। महिलाएं बताती हैं कि ऑर्डर मिलने पर वे इस काम को करती हैं। इससे जो भी कमाई होती है वो उनके सामूहिक बैंक अकाउंट में जमा होता है। अगले ऑर्डर की तैयारी के लिए इस रकम का इस्तेमाल किया जाता है।

बदलती जलवायु के साथ बदलना होगा

दरअसल भरवाकाटल गांव बदलते जलवायु के अनुसार खुद को तैयार करने की कोशिश कर रहा है। जलवायु परिवर्तन का असर मैदानी हिस्सों से ज्यादा हिमालयी क्षेत्र पर पड़ता है। क्योंकि मुश्किल भौगोलिक परिस्थितियों के साथ हिमालयी क्षेत्र प्राकृतिक तौर पर ज्यादा संवेदनशील हैं। पुरुष आबादी रोजगार की तलाश में बाहर निकल रही है। संयुक्त राष्ट्र की ये रिपोर्ट कहती है कि गांवों में रह गई, घरों और खेतों की ज़िम्मेदारी संभाल रही महिलाएं और बच्चे ही जलवायु परिवर्तन का पहला विक्टिम होते हैं। इससे उपजी चुनौतियां उन्हें ज्यादा झेलनी पड़ती है। नदी-गदेरे से पानी लाने या जंगल से लकड़ी लाने जैसे काम महिलाओं के ही हिस्से में आते हैं। इससे जुड़े जोखिम भी महिलाओं के होते हैं। उदाहरण के तौर पर उत्तराखंड में इसी वर्ष लकड़ी लाने के लिए जंगल गई तीन महिलाएं वहां आग की चपेट में आने से मारी गईं।   

जलवायु परिवर्तन का महिलाओं पर असर

इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट यानी आईसीआईमॉड ने वर्ष 2019 की अपनी रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन का हिमालयी क्षेत्र पर पड़ने वाले असर को लेकर विस्तृत अध्ययन किया। ये रिपोर्ट कहती है कि हिंदुकुश हिमालयी क्षेत्र में भोजन और पौष्टिक तत्वों को लेकर असुरक्षा एक बड़ी चुनौती है। इस क्षेत्र के 30 फीसदी लोग खाद्य असुरक्षा से जूझते हैं और 50 फीसदी से अधिक कुपोषण का सामना कर रहे हैं। इसमें महिलाएं और बच्चे सबसे अधिक हैं।

महिलाओं को ध्यान में रखकर बनें हिमालयी नीतियां

वैज्ञानिकों-शोधार्थियों ने इन मुद्दों पर बहुत से अध्ययन किए हैं। जो ये कहते हैं कि हिमालयी क्षेत्रों की चुनौतियों से निपटने के लिए महिलाओं को सक्षम बनाना होगा। इसके लिए राज्यों को अपनी नीतियां महिलाओं को ध्यान में रखकर तय करनी होंगी। उत्तराखंड में आमतौर पर कहा जाता है कि महिलाएं गांवों में नहीं रहना चाहती। वहां उनके सिर पर जिम्मेदारियों का इतना बोझा होता है कि वे शहरों की आराम वाली ज़िंदगी चाहती हैं। यानी हिमालयी महिलाओं के कार्य का बोझ हमें हलका करना होगा। उनकी सहूलियतों के बारे में सोचना होगा। इसमें एक अच्छी बात इस वर्ष ही हुई है। जुलाई महीने में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राज्य में भूमि बंदोबस्त की घोषणा की। जिसमें महिलाओं को भी अपने पति के साथ ज़मीन पर मालिकाना हक दिया गया। ऐसा इसलिए ताकि किसान महिलाओं को बैंकों से आसानी से लोन मिल सके। ये बात अभी घोषणा के स्तर पर ही है।

पहाड़ में पहाड़ सा है जीवन

भरवाकाटल गांव की किसान महिलाएं अभी अपने छोटे-छोटे खेतों को उपजाऊ बनाने के लिए दिन-रात मेहनत कर रही हैं। उपज अच्छी होती है तो उनके चेहरे खिलखिलाते हैं और उपज पर मौसम की मार पड़ती है तो पूरे परिवार की थाली इससे प्रभावित होती है। जाहिर तौर पर बजट भी। कुछ अन्य कामधंधा कर इनके पति परिवार चलाने में इनका हाथ बंटा रहे हैं। शकुंतला का नन्हा बेटा वहीं सीढ़ियों पर बैठा किताब के पन्ने उलट-पुलट रहा है। मैं उससे पूछती हूं- तुम क्या सोचती हो, बड़ा होकर तुम्हारा बेटा क्या बने?

जवाब मिलता है- हमारे पास इतने पैसे तो नहीं कि इसे डॉक्टर-इंजीनियर बना सकें। हम चाहते हैं कि ये अच्छा किसान बने। अपने खेतों को बंजर न छोड़े।

जंगलों के बीच ये खेत हरे-भरे रहेंगे तो हिमालय हरा-भरा रहेगा। धरती बंजर नहीं होगी। मिट्टी का प्रबंधन बेहतर होगा। बारिश का पानी भी ज़मीन की नमी बनाए रखेगा। सब कुछ एक-दूसरे से जुड़ता है। हिमालय में लोग बचेंगे तभी हिमालय दिवस मनाएंगे।

(वर्षा सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

himalaya
Himalayan States
Himalaya Day
hill
Women
Women Rights
green economy
Environment

Related Stories

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

विशेष: क्यों प्रासंगिक हैं आज राजा राममोहन रॉय

मैरिटल रेप : दिल्ली हाई कोर्ट के बंटे हुए फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, क्या अब ख़त्म होगा न्याय का इंतज़ार!

लखनऊः नफ़रत के ख़िलाफ़ प्रेम और सद्भावना का महिलाएं दे रहीं संदेश

उत्तराखंड: क्षमता से अधिक पर्यटक, हिमालयी पारिस्थितकीय के लिए ख़तरा!

मध्यप्रदेशः सागर की एग्रो प्रोडक्ट कंपनी से कई गांव प्रभावित, बीमारी और ज़मीन बंजर होने की शिकायत

5 वर्ष से कम उम्र के एनीमिया से ग्रसित बच्चों की संख्या में वृद्धि, 67 फीसदी बच्चे प्रभावित: एनएफएचएस-5

मेरे लेखन का उद्देश्य मूलरूप से दलित और स्त्री विमर्श है: सुशीला टाकभौरे

मदर्स डे: प्यार का इज़हार भी ज़रूरी है

पिछले 5 साल में भारत में 2 करोड़ महिलाएं नौकरियों से हुईं अलग- रिपोर्ट


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License