NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
इतवार की कविता : सस्ते दामों पर शुभकामनायें
कविता-कहानी की कहकशाँ में आज पढ़ते हैं शिक्षिका प्रज्ञा सिंह की कविता।
प्रज्ञा सिंह
03 Nov 2019
shopping mall
प्रतीकात्मक तस्वीर, साभार : गूगल

बाज़ार

 

नुकीले सींग लिये घुसा आ रहा बाज़ार 

सीवान की सरहद के पार 

हमारे खेत खलिहान 

मड़ई पर चढ़े

हमारे नेनुआ तरोई 

हमारी भाषा  हमारे चमकीले गीत 

हमारी रसोई जहां भूख सीझती है 

पतीलियों में 

हमारे बच्चों की उत्कट भूख 

हमारी अदमनीय हंसी की हंसुली 

चांदी की 

खरीद लेगा नासपीटा बाज़ार 

सुना है उसके पास पैसा बहुत है 

पैसे से वो ख़रीद लेता है लोगो की भाषा 

उनके मौलिक विचार 

किडनी और अंतड़ियां 

लहू और लहू का लाल रंग ख़रीद लेता है बाज़ार 

बेचता है सस्ते दामों पर शुभकामनायें 

हार्दिक इच्छायें 

मगंलकामनाओं के आर्ची कार्ड 

बाज़ार सस्ते दामों पर बेच देगा 

इंटरनेट पर बीमार बाप के मर जाने की मेरी दुश्चिंता 

जलकर मरी बेटी के झुलसे पांव  के वीडियो 

बना बेच देगा 

आंख मलती उठती हूं 

डर की चादर झटककर रख दूं 

पी लूं कूयें का ठंडा पानी 

जो अब बस स्मृति में हैं 

मिठउवा आम के नीचे जेठ की तपती दुपहरिया में 

गाये कुछ गीत गुनगुना लूं 

क्या पता कब बाज़ार इन्हे भी ख़रीद ले 

सस्ते दामों में बेच दे 

आख़िर यही तो है सबसे अच्छा सबसे सस्ता

(कवि प्रज्ञा सिंह एक शिक्षिका हैं और आज़मगढ़ में रहती हैं।)

hindi poetry
hindi poet
Good luck at cheap prices
market
poem
Sunday Poem

Related Stories

वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!

इतवार की कविता: भीमा कोरेगाँव

सारे सुख़न हमारे : भूख, ग़रीबी, बेरोज़गारी की शायरी

इतवार की कविता: वक़्त है फ़ैसलाकुन होने का 

कविता का प्रतिरोध: ...ग़ौर से देखिये हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र

जुलूस, लाउडस्पीकर और बुलडोज़र: एक कवि का बयान

फ़ासीवादी व्यवस्था से टक्कर लेतीं  अजय सिंह की कविताएं

सर जोड़ के बैठो कोई तदबीर निकालो

देवी शंकर अवस्थी सम्मान समारोह: ‘लेखक, पाठक और प्रकाशक आज तीनों उपभोक्ता हो गए हैं’

लॉकडाउन-2020: यही तो दिन थे, जब राजा ने अचानक कह दिया था— स्टैचू!


बाकी खबरें

  • मुकुल सरल
    विचार: क्या हम 2 पार्टी सिस्टम के पैरोकार होते जा रहे हैं?
    14 Mar 2022
    कला हो या संस्कृति या फिर राजनीति, मैं तो इसी बात का कायल हूं कि “सौ फूलों को खिलने दो—सौ विचारों में होड़ होने दो”, हां बस इसमें इतना और जोड़ना चाहूंगा कि...
  • परमजीत सिंह जज
    पंजाब में आप की जीत के बाद क्या होगा आगे का रास्ता?
    14 Mar 2022
    जब जीत का उत्साह कम हो जाएगा, तब सत्ता में पहुंचे नेताओं के सामने पंजाब में दिवालिया अर्थव्यवस्था, राजनीतिक पतन और लोगों की कम होती आय की क्रूर समस्याएं सामने खड़ी होंगी।
  • एम.ओबैद
    बिहारः भूमिहीनों को ज़मीन देने का मुद्दा सदन में उठा 
    14 Mar 2022
    "बिहार में 70 वर्षों से दबे-कुचले भूमिहीन परिवार ये उम्मीद लगाए बैठे हैं कि हमारा भी एक दिन आएगा कि जिस चटाई पर हम सोएंगे उसके नीचे की ज़मीन हमारी होगी।।" 
  • शशि शेखर
    यूपी चुनाव परिणाम: क्षेत्रीय OBC नेताओं पर भारी पड़ता केंद्रीय ओबीसी नेता? 
    14 Mar 2022
    यूपी चुनाव परिणाम ऐसे नेताओं के लिए दीर्घकालिक नुकसान का सबब बन सकता है, जिनका आधार वोट ही “माई(MY)” रहा है।
  • maths
    समीना खान
    इसलिए मैथ्स से बेदख़ल होती जा रही हैं लड़कियाँ
    14 Mar 2022
    आइडियाज़ फॉर इण्डिया द्वारा किये गए शोध में बताया गया है कि गणित पढ़ने में लैंगिक असमानताएं बढ़ती जा रही हैं। क्या हैं इसकी वजहें?
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License