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भारत
राजनीति
मोदी सरकार के दौर में नौकरी से जुड़ी योजनाओं में भारी कटौती
प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सरकार रोजगार पैदा करना नहीं चाहती है।
भारत डोगरा
09 Mar 2020
Translated by महेश कुमार
How Pervasive Are Modi Govt

45 वर्षों की सबसे खराब बेरोजगारी का स्तर जो अब सबके लिए व्यापक और गहन चिंता का विषय बन गया है और इससे उपजे संकट और असंतोष के मद्देनजर सबने उम्मीद की थी कि केंद्र सरकार नौकरी-सृजन को अब अपनी प्राथमिकता की सूची में रखेगी। ऐसा करने के लिए सरकार को सबसे स्पष्ट और प्रत्यक्ष तरीकों में से एक खुद की योजनाओं और कार्यक्रमों का विस्तार करना होगा जो रोजगार के नए अवसरों को पैदा करने में अधिक से अधिक योगदान दे सकती हैं। लेकिन हमारा वास्तविक अनुभव क्या रहा है?

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (एमएसएमई) के तहत एक महत्वपूर्ण योजना पर नज़र डालते हैं, जिसकी नोडल एजेंसी खादी और ग्रामोद्योग आयोग या केवीआईसी है। प्रधान मंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (यानी - पीएमईजीपी, क्रेडिट-आधारित) के लिए 2020-21 के बजट अनुमान में 2,800 करोड़ रुपये का आवंटन है। यह पिछले वर्ष के बजट अनुमान (3,274 करोड़ रुपये) और 2017-18 के वास्तविक व्यय से बहुत कम है, जो कि 4,113 करोड़ रुपये था।

इसलिए हम पिछले दो साल के अंतराल में यह आवंटन 4,113 करोड़ रुपये से लुढ़क कर 2,800 करोड़ रुपये पर आ गया हैं, जो कि 32 प्रतिशत की कमी को दर्शाता है।

संसद में दिए गए एक हालिया प्रश्न के जवाब के अनुसार 2018-19 में पीएमईजीपी ने 5.9 लाख नौकरियां पैदा कीं थी। 2019-20 का डेटा 31 दिसंबर 2019 तक का उपलब्ध है। यह दर्शाता है कि वित्तीय वर्ष के पहले नौ महीनों में इस योजना के तहत सिर्फ 2.6 लाख नौकरियां उत्पन्न हुईं- जो  लगभग 56 प्रतिशत की गिरावट है। दूसरे शब्दों में इस योजना द्वारा एक पूरे वित्तीय वर्ष में केवल आधे से भी कम रोजगार पैदा किए गए है।

वर्ष 2019-20 के बजट अनुमान में ‘कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय’ का बजट 2,989 रुपये था। संशोधित अनुमान के मुताबिक यह 2,531 करोड़ रुपये था। इस मंत्रालय के भीतर प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना की सबसे प्रमुख योजना का बजट अनुमान 2,676 करोड़ रुपये था। जबकि संशोधित अनुमान के आवंटन में 2,247 करोड़ रुपये की कटौती की गई है। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इस वर्ष के लिए उपलब्ध आंकड़े इस योजना के तहत कौशल और रोजगार प्राप्त करने वाले लोगों की संख्या में गिरावट को दर्शाते हैं।

महिलाओं के बीच कौशल को बढ़ावा देने के लिए समर्पित योजनाओं की गिरावट के बारे में विशेष रूप से चिंतित होना चाहिए क्योंकि महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी कम हो रही है। सेंटर फॉर बजट एंड गवर्नेंस एकोण्टबिलिटी द्वारा नए बजट की समीक्षा में पाया गया कि कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय कौशल प्रशिक्षण संस्थान और जन शक्ति संस्थान जैसी महिलाओं के लिए विशिष्ट योजनाओं के आवंटन में 2019-20 के बजट अनुमान की तुलना में 107 करोड़ की गिरावट की गई है।

अब श्रम और रोजगार मंत्रालय पर आते हैं। हालत को देखते हुए कोई भी प्रधानमंत्री रोजगार योजना सहित नौकरियों और कौशल विकास के लिए आवंटन में वृद्धि की उम्मीद करेगा। यहाँ 2020-21 के बजट अनुमान में केवल 2,646 करोड़ रुपये दिए गए हैं जो पिछले वर्ष के 4,584 करोड़ रुपये के बजट अनुमान की तुलना में 42 प्रतिशत की गिरावट को दर्शाता है। वास्तव में इस वर्ष का बजट अनुमान 2018-19 में वास्तविक व्यय से भी कम है, जो 3,563 करोड़ रुपये है। यानी इस वर्ष का आवंटन एक साल पहले किए गए खर्च से 25 प्रतिशत कम है।
 
ग्रामीण क्षेत्रों में गंभीर संकट है - जैसा कि प्रति व्यक्ति मासिक खर्च में गिरावट के रूप में देखा गया है, इसे पिछले नवंबर में भारी चिंता के साथ दर्ज किया गया था- यह सरकार को ग्रामीण रोजगार सृजन करने को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त कारण है। रोजगार गारंटी के लिए पीपुल्स एक्शन द्वारा तैयार अनुमानों के अनुसार, ग्रामीण रोजगार की जरूरतों में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए, इस वर्ष 85,000 करोड़ रुपये और 1,00,000 करोड़ रुपये के बीच के बजट की आवश्यकता थी। जबकि वास्तविक आबंटन केवल 61,000 करोड़ रुपये का है – जो लगभग 27-38 प्रतिशत की गिरावट है।

ध्यान दें कि एमजी-एनआरईजीएस यानि नरेगा को ध्यान में रखते हुए रोजगार की स्थिति का जायजा लिया जाना चाहिए, जो सूखा राहत कार्यों के लिए अलग-अलग आवंटन प्रदान करता है, जिसे अब ज्यादातर स्थानों पर बंद कर दिया गया हैं।अब ग्रामीण विकास विभाग के समग्र खर्च पर विचार करते हैं। इसमें केंद्र सरकार के 2017-18 के कुल बजट का 5.1 प्रतिशत का खर्च शामिल है। 2020-21 के बजट अनुमान में यह घटकर 3.9 प्रतिशत पर आ गया है। यद्द्पि राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के लिए आवंटन में इस वर्ष वृद्धि हुई है, लेकिन वह बहुत मामूली सी वृद्धि है।

प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार पैदा करने में मदद कर सकती है। 2019-20 में, इस योजना का बजट अनुमान 19,000 करोड़ रुपये था। जो संसोधित अनुमान में घटकर 14,070 करोड़ रुपये रह गया जो अपने आप में 26 प्रतिशत की भारी कटौती है। आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के तहत चल रही दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन योजना, में नौकरियों की पैदावार में उल्लेखनीय गिरावट आई है। सरकार द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, 2019-20 के पहले 10 महीनों के भीतर यानि 27 जनवरी 2020 तक पिछले वर्ष (2018-19) के बारह महीनों की तुलना में एक चौथाई से भी कम लोग कौशल हासिल किए और उन्हे नौकरी मिली। इसमें गिरावट 1,80,000 से 44,000 तक की रही है। पिछले दो वर्षों की तुलना में इस वर्ष भी प्रदर्शन खराब रहा है।

बहुप्रतीक्षित प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (NCGTC के माध्यम से) पर वास्तविक खर्च 2016-17 में 1,500 करोड़ रुपये था। इस वर्ष का आवंटन 510 करोड़ रुपये है, जो पिछले वर्ष, 2019-20 के समतुल्य है। पिछले वर्षों में भी इसका खराब प्रदर्शन चिंता का विषय रहा है।आवंटन केवल कहानी का छोटा सा हिस्सा हैं। इनमें से कई योजनाओं के काम में भ्रष्टाचार और अनियमितताएँ भी व्याप्त हैं, जो अपेक्षित लाभ नहीं दे पाती है। उत्तर प्रदेश के दौरे के दौरान मुझे पता चला कि कुछ स्थानों पर प्रभावशाली ग्राम प्रधानों को मशीनों द्वारा नरेगा के काम की इजाजत मिली हुई है- जो योजना के तहत वर्जित है साथ ही वे वास्तविक श्रमिकों को काम पर रखने के बजाय अपने गुर्गों की गलत प्रविष्टियाँ भी दाखिल करते हैं।

वेतन के लिए आवंटित धन को गाँव के प्रधान या प्रभावशाली हस्तियों द्वारा लाभार्थियों के बैंक खातों में स्थानांतरित कर दिया जाता है, लेकिन वास्तविक मजदूरों को कुछ पैसा देकर सारा धन वापस ले लिया जाता है। सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में कौशल विकास कार्यक्रम बहुत ही खराब स्थिति में हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि सरकार ने स्पष्ट रूप से रोजगार उत्पन्न करने के प्रत्यक्ष साधनों में बहुत ही खराब प्रदर्शन किया है। स्थिति में सुधार लाने के लिए कठोर सुधार की आवश्यकता है।

लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं जो कई सामाजिक आंदोलनों से जुड़े रहे हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

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