NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
हैदराबाद : बलात्कार संस्कृति को ख़त्म करने के लिए मौत की सज़ा उचित मार्ग नहीं
बलि का बकरा बनाना, फांसी देना, मुठभेड़ में मारना : हमारे सामूहिक अपराध पर परदा डालने जैसा है।
सोनम मित्तल
08 Dec 2019
no to rape

हम अभी भी हैदराबाद में एक युवा पशु चिकित्सक से बलात्कार और हत्या को लेकर स्तब्ध हैं। लेकिन देश के अलग-अलग हिस्सों में महिलाओं के साथ बलात्कार, हत्या और जलाने की घटना होती रहती है। हैदराबाद की घटना के बाद आम नागरिकों और नेताओं की तरफ़ से बलात्कारियों को फांसी देने की फिर आवाज़ उठी।

महज़ पांच दिन पहले जया बच्चन सहित प्रमुख नेताओं ने संसद में लिंचिंग के पक्ष में अपील की जहां इसके लिए क़ानून बनाया जाना था। और कुछ ही दिनों के बाद यानी शुक्रवार की सुबह हैदराबाद में पुलिस ने ऐलान किया कि उन्होंने कथित बलात्कारियों का "एनकाउंटर"कर दिया है।

हमारे कभी न ख़त्म होने वाले रक्तपात के बावजूद मृत्युदंड अप्रभावी है। यह बलात्कार जैसी घटना को नहीं रोकता है और भविष्य के पीड़ितों को परेशान करता है।

भारतीयों का दृढ़ विश्वास है कि सख़्त सज़ा देने से अपराध रुक जाएगा। यह सच से आगे नहीं हो सकता। वास्तव में, यह इसकी सख़्ती के बजाय सज़ा देने का आश्वासन है जो बलात्कार जैसे अपराधों को रोक देगा।

मौत की सज़ा के डर से बलात्कारियों को पीड़ितों की हत्या करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा ताकि पीड़ितों को गवाही देने से रोका जा सके। मौत की सज़ा का डर बलात्कारियों को दुष्कर्म की घटना को अंजाम देने के बाद बचने के लिए वह सब कुछ करने के लिए प्रेरित करेगा जो वे कर सकते हैं।

कुछ अनुमानों के अनुसार दस में से यदि नौ नहीं तो आठ बलात्कार की घटना को पीड़िता के परिचितों द्वारा अंजाम दिए जाते है। बाल तथा किशोरी पीड़ितों के मामले में 34% आरोपी परिवार के सदस्य होते है और 59% परिचित होते है। पीड़ित और उसके रिश्तेदार दोनों बलात्कार की रिपोर्ट इस डर से नहीं करते है कि उनके पूर्व सहयोगियों और रिश्तेदारों को मौत की सजा का सामना करना पड़ेगा। रिपोर्ट दर्ज न किए गए बलात्कार की घटनाओं की संख्या जो पहले से अधिक है वह कई गुना बढ़ जाएगी।

बलात्कारी और पीड़ित के बीच शक्ति का अंतर क़ानून विहीनता के साथ प्रतिशोध की संभावना को बढ़ाता है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के उन्नाव में एक सामूहिक दुष्कर्म की पीड़िता को तब आग के हवाले कर दिया गया जब वह अपने मामले की सुनवाई के लिए स्थानीय अदालत में गई थी।

हमें पूछना चाहिए कि मौत की सज़ा आम लोगों और नेताओं दोनों की तरफ़ से पहली मांग क्यों है?

इसका उत्तर स्पष्ट तौर पर छिपा है। लोगों को असुविधाजनक मूल कारण को बताने से बचने के लिए एक बहाना चाहिए, जो कि वे सामूहिक रूप से बलात्कार संस्कृति के लिए ज़िम्मेदार हैं। बलात्कार संस्कृति को समाप्त करने में हमारी सामूहिक विफलता है जिसके कारण बड़े पैमाने पर दुष्कर्म की घटनाएं हुई हैं। ये हमारे अपराध और भय को हवा देते हैं और हम इसके लिए मौत की सजा के तौर पर मांग करते हैं।

भारत में निम्न श्रेणी की लैंगिक असमानता को नज़रअंदाज़ किया गया है और महिलाओं के प्रति भेदभाव अनियंत्रित रहा है। इसी तरह हमने बलात्कार की संस्कृति ने जन्म लिया है जो कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा का एक गंभीर स्वरूप है। कभी "मामूली" किस्म के भेदभाव की अनुमति दी जाती है, यह अधिक से अधिक बड़ी घटनाओं के लिए बढ़ते समर्थन और बहाने का दुष्चक्र बनाता है।

गंभीरता के पैमाने पर महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा के कृत्यों को इक्टठा करने पर; घृणित व्यवहार जैसे कि- पीछा करना, छेड़ना, प्रेम की सहमति के बिना आत्महत्या की धमकी देना इस हद तक सामान्य है कि हम उन्हें पुरुष के प्रेम संबंध का एक हिस्सा मानते हैं।

रांझणा जैसी सफल फ़िल्में नायक को तब महिमामंडित करती हैं जब वह धमकी देता है और फिर वास्तव में कलाई काटने का नाटक करने का प्रयास करता है जो नायिका के लिए उसके असीम प्रेम को "साबित" करता है। जब वह उसके इस प्रयास के बाद उससे लिपटती है तो रोमांटिक पृष्ठभूमि का संगीत दर्शकों में मौजूद युवा पुरुषों और महिलाओं को यह स्वीकार करने पर मजबूर करता है कि विवाह के प्रति यह मेलजोल किस तरह होता है।

क्या हम बलात्कार की संस्कृति को क़ायम रखने के लिए रांझणा को फांसी दे सकते हैं? नहीं, इसके बजाय हम उसके 'प्रेम' की प्रशंसा करते हैं।

आत्महत्या के ख़तरों को मान्यता मिलती है और महिलाओं पर अत्याचार करने के लिए चेतनाशून्य रूप से बड़ी घटनाओं को बढ़ावा मिलता है। यह एक सामाजिक प्रमाण है कि एक लड़की को पाने के लिए घूरने और चालबाज़ी का तरीक़ा काम करता है।

फ़िल्म कबीर सिंह में नायक महिला को चाकू की नोक पर चूमता है और इस बीच पृष्ठभूमि में मधुर ध्वनि का संगीत बजता रहता है। क्या हम कबीर सिंह को फांसी दे सकते हैं? नहीं।

वास्तविक जीवन में अश्विनी कश्यप को अस्वीकार करने वाली महिला सहित उसने तीन लोगों की हत्या कर दी थी। साथ ही कश्यप ने ख़ुद को गोली मारने से पहले एक टिकटॉक वीडियो अपलोड किया था। इस वीडियो में उसके द्वारा दिया गया डायलॉग फिल्म कबीर सिंह से प्रेरित थाः “जो मेरा ना हो सकता, उसे किसी और का होने का मौक़ा नहीं दूंगा।”

यदि हम कबीर सिंह को फांसी नहीं दे सकते तो हमें अश्विनी कश्यप को फांसी देने का कोई अधिकार नहीं है।

कबीर सिंह के निर्देशक संदीप रेड्डी का हालिया ट्वीट निम्न श्रेणी की लैंगिक हिंसा को समाप्त करने के लिए हमारी सामूहिक विफलता के बारे में हमारे पाखंड का एक उदाहरण है। कबीर सिंह के लिए ताली बजाने और उनका बचाव करने वाले लोग अब मृत्युदंड की मांग कर रहे हैं!

शायद केवल एक असफल समाज और एक असफल राज्य के सामने बलात्कारियों की मौत एक सुकून देने वाला विचार होगा। नेता मौत की सजा का इस्तेमाल अपने निर्वाचन क्षेत्र से लोकलुभावन मांगों को पूरा करने के लिए करते हैं। कुछ बलात्कारियों को फांसी देने या उनका एनकाउंटर करने की मांग कर हम सब "न्याय" में अपने व्यवहार की प्रशंसा कर सकते हैं और शांति से सो सकते हैं…

और अगले ही दिन हम अभी भी महिलाओं या लड़कियों पर भद्दी टिप्पणियां करेंगे और उनके नितम्ब पर चिकोटी काटेंगे। हम अभी भी कार्यालयों में बोलते हुए उनके स्तनों को घूरते रहेंगे। अकेले इस महिला को समझौते के लिए आंका जाएगा जिसमें दो लोग शामिल हैं।

यहां तक कि जब हम अपने पुरुष मित्रों को छेड़ते हैं, डांटते हैं या उनका अपमान करते हैं तो हम उन गालियों का इस्तेमाल करते हैं जो उनके साथ जुड़ी महिलाओं के सम्मान का अपमान करती हैं।

यह भी बलात्कार की संस्कृति है। यहां तक कि दूसरे पुरुष का नीचा दिखाने के लिए हम महिलाओं पर ही हमला करते हैं।

बलात्कार की ऐसी संस्कृति के भीतर भी भेदभाव है। कौन फैसला करता है कि कौन सा बलात्कार का मामला राष्ट्रीय समाचार बन जाता है? मीडिया घरानों सहित हम सभी निर्दोष पीड़ित और संपूर्ण बलात्कारी रिवायत पर काम करते हैं।

वर्ग और जाति का विशेषाधिकार तय करता है कि आप उचित पीड़ित हैं या नहीं। अगर पीड़ित रोहिंग्या मुसलमान होता है तो हम इसे राजनीतिकरण कहकर रोष को दबा देते हैं। यह मानना आसान है कि "दुर्लभ से दुर्लभतम" के वर्गीकरण में मृत्युदंड को उचित ठहराया जाना चाहिए। कौन तय करता है कि कौन सा मामला पीड़ित के लिए दुर्लभ है? कौन मामला किस पीड़ित के लिए अधिक जघन्य है?

सोनी सोरी के साथ क्रूरतापूर्वक दुष्कर्म किया गया और उन्हें प्रताड़ित किया गया। आदिवासी के बलात्कारी के लिए मौत की सजा की मांग करने के लिए शायद ही कोई मांग उठी था। भारत के दक्षिणी हिस्सों में दलित महिलाओं के बलात्कार के हालिया मामले अब जेहन से दूर हैं।

जाति, वर्ग, धर्म और सत्ता यह तय करती है कि सामूहिक रूप से फांसी देने के लिए समाज के लिए कौन सही दुष्कर्मी है।

जब बलात्कारी शक्तिशाली होता है तो लोग बलात्कारी का समर्थन करने के लिए मार्च निकालते हैं। इसे कठुआ बलात्कार मामले में देखा जा सकता है। जब बलात्कारी ट्रक चालक या सफाई कर्मी होता है तो उसे मार देने की मांग होती है। वे प्रसन्नता से समाज के बाहरी अपराधी सदस्यों के रूप में चित्रित किए जाते हैं न कि पीड़ित के सभ्य समाज के किसी अपराध के प्रतिनिधि के रुप में। जब बलात्कारी मुस्लिम होता है तो सत्ताधारी पार्टियों के नेताओं सहित दक्षिणपंथी कट्टरपंथी इस मुद्दे कोसांप्रदायिक रूप दे देते हैं।

बलात्कार संस्कृति से इनकार लैंगिकवादी विचारों और व्यवहारों को बढ़ावा देता है और दुष्कर्म को समस्या के रूप में बने रहना आसान बनाता है।

पीड़िता की मौत हो जाती है। हम यानी रिश्तेदार, पुलिस, दर्शक, सोशल मीडिया ट्रोल मृतक बलात्कार पीड़िता के बारे में केवल सुनते हैं और इसे मानते हैं। जबकि वह जीवित होती है तो हम उसकी परेशानी को ग़लत और दुर्भावनापूर्ण मानते हैं। यह भी बलात्कार की संस्कृति को हवा देती है।

हर वह बलात्कार की घटना जिसकी जांच नहीं होती है तो 10 अन्य बलात्कारी को यह साहस मिलता है कि वे कभी भी पकड़े नहीं जाएंगे।

कोई भी महिला जो पुरुषों द्वारा निर्धारित समाज के मानदंडों से दूर जाने का विकल्प चुनती है तो उसे यौन उत्पीड़न और बलात्कार के माध्यम से दंडित किया जाता है।

हम सभी अपने-अपने परिवारों और कार्यस्थलों में हमारे बीच यौन उत्पीड़न करने वालों, हमलावरों और बलात्कारियों को शरण देते हैं। हम कितने रिश्तेदारों और दोस्तों को फांसी दे सकते हैं?

हमने महिलाओं की एक पूरी पीढ़ी को सशक्त बनाया लेकिन हम पुरुषों को यह सिखाना भूल गए कि सशक्त महिलाओं से कैसे पेश आना है। क्या हम एक पूरी पीढ़ी को फांसी दे सकते हैं?

फिर एक और बलात्कार की घटना होगी और इस पर टिप्पणी किए बिना कि निर्भया फंड्स का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाता है, हमारे नेता "कड़े उपायों" का वादा करते हैं।

यह सही समय है जब हमें संस्थागत बलात्कार संस्कृति पर चर्चा करना है। पुलिस को कार्रवाई में देरी और असंवेदनशीलता के लिए मुठभेड़ों के लिए उनकी प्रशंसा करने के बजाय दंडित किया जाना चाहिए। सत्तारूढ़ बीजेपी में बलात्कार के आरोपी नेताओं की संख्या सबसे अधिक है। जब सत्ताधारी दल बलात्कार के शक्तिशाली आरोपियों को बर्खास्त करने की कोशिश नहीं कर सकती है तो चुनिंदा बलात्कारियों को फांसी देकर क्या मिलेगा?

एक बार फिर यह सख़्त सज़ा नहीं है लेकिन एक का आश्वासन है जो एक निवारक के रूप में कार्य करता है। हमें बलात्कार संस्कृति से निपटना चाहिए। हमें बलात्कारियों की शरण देने की ज़रूरत नहीं है।

अन्यथा, हम कुछ लोगों को एक बलि का बकरा बना देंगे जो पकड़े जाते हैं। कुल मिलाकर, हमारे इर्द गिर्द जो बलात्कार की घटनाएं हो रही है उस मामले में हमारे समान सहअपराध को स्वीकार करने और दोषी ठहराने की तुलना में कुछ लोगों को फांसी देना आसान है।

सोनम मित्तल पर्यावरण तथा लैंगिक समानता से जुड़ी एक्टिविस्ट हैं। मित्तल द स्पॉयल्ट मॉडर्न इंडियन वुमन की सह-संस्थापक हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Hyderabad: Death Penalty is No Cure for Rape Culture

Rape culture
Hyderabad Vet Rape
Police encounter
Scapegoat for rape culture
Collective guilt
Political culture of rape
AP Fake Encounters
Fake Encounters
Hyderabad

Related Stories

2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी

उत्तर प्रदेश में दरवाज़े पर पुलिस की दस्तक ही बन गया है जीवन

दिल्ली के खजूरी खास इलाके में पुलिस मुठभेड़ में दो वांछित अपराधी ढेर

जीएचएमसी चुनाव में टीआरएस को नुकसान, भाजपा को फ़ायदा, ओवैसी की भूमिका बढ़ी

जीएचएमसी चुनाव और भाजपा : कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना!

पीएचडी और एमफिल में एडमिशन के नए मानदंडों को लेकर एचसीयू छात्रसंघ की भूख हड़ताल जारी

कोविड-19 से जान गंवाने वाले रोगी के तीमारदारों का डॉक्टर पर हमला, चिकित्सकों ने किया प्रदर्शन

कवि-एक्टिविस्ट वरवर राव मुंबई के अस्पताल में भर्ती, परिवार ने ज़मानत की मांग की

उप्र बंधक संकट: सभी बच्चों को सुरक्षित बचाया गया, आरोपी और उसकी पत्नी की मौत

CAA के ख़िलाफ़ यशवंत और शत्रुघ्न भी मैदान में, 9 से 'भारत जोड़ो यात्रा’


बाकी खबरें

  • वी. श्रीधर
    आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार
    03 Jun 2022
    सकल घरेलू उत्पाद के नवीनतम अनुमानों से पता चलता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था रिकवरी से बहुत दूर है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 
    03 Jun 2022
    देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 4,041 नए मामले सामने आए हैं। देश में एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 21 हज़ार 177 हो गयी है।
  • mundka
    न्यूज़क्लिक टीम
    मुंडका अग्निकांड: 'दोषी मालिक, अधिकारियों को सजा दो'
    02 Jun 2022
    देश की राजधानी दिल्ली के पश्चिम इलाके के मुंडका गाँव में तीन मंजिला इमारत में पिछले महीने हुई आग की घटना पर गुरुवार को शहर के ट्रेड यूनियन मंच ने श्रमिकों की असमय मौत के लिए जिम्मेदार मालिक,…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड: ट्रेड यूनियनों का दिल्ली में प्रदर्शन, CM केजरीवाल से की मुआवज़ा बढ़ाने की मांग
    02 Jun 2022
    दिल्ली में मुंडका जैसी आग की ख़तरनाक घटनाओं के ख़िलाफ़ सेंट्रल ट्रेड यूनियन के संयुक्त मंच दिल्ली के मुख्यमंत्री के आवास पर प्रदर्शन किया।
  • bjp
    न्यूज़क्लिक टीम
    बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !
    02 Jun 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे में आज अभिसार शर्मा चर्चा कर रहे हैं बीजेपी सरकार जिस तरह बॉलीवुड का इस्तेमाल कर रही है, उससे क्या वे अपना एजेंडा सेट करने की कोशिश कर रहे हैं?
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License