NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
चुनावबाज़ नेताओं का चश्मा न ख़रीदें भारत और बांग्लादेश
घुसपैठियों और प्रवासियों के राजनीतिक एजेंडे को सामने रखकर दोनों देशों की आर्थिक प्रगति की तुलना न सिर्फ़ बेमानी है बल्कि एक दुर्भावनापूर्ण आख्यान भी है।
अरुण कुमार त्रिपाठी
17 Apr 2021
Amit shah and AK momen

भारत और बांग्लादेश की अवाम के सामने दो रास्ते हैं। एक तो यह कि वे आपसी रिश्तों और समस्याओं को चुनावबाज नेताओं के नजरिए से देखें और एक दूसरे के दुश्मन बन जाएं। दूसरा रास्ता यह है कि वे उन लोगों का नजरिया अपनाएं जो एक दूसरे की प्राकृतिक और सामाजिक निकटता को एक साझी विरासत मानते हैं और दक्षिण एशिया में विकास का ऐसा मॉडल तैयार करें जो दोनों के हित में हो और दुनिया के लिए आदर्श हो।

हाल में भारत के गृहमंत्री अमित शाह के बयान पर बांग्लादेश के विदेश मंत्री ए.के. अब्दुल मोमेन की प्रतिक्रिया पहले रास्ते की ओर ले जाती है। वहीं पिछले साल जुलाई में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी और बांग्लादेश के उद्मी और नोबेल अर्थशास्त्री मोहम्मद युनुस के बीच हुआ संवाद दूसरा रास्ता दिखाता है।

निश्चित तौर पर न तो बांग्लादेश का मॉडल बहुत सुनहरा है और न ही भारत का। दोनों देशों के मॉडल पर नवउदारवाद की छाया है और उसने गरीबी कम करने का दिखावा तो बहुत किया लेकिन हकीकत में बहुत सारा काम उसके उलट चला गया है। यही कारण है कि जहां भारत में डॉ. मनमोहन सिंह के नवउदारवादी मॉडल की कड़ी आलोचनाएं हुई हैं और आज उस मॉडल पर तेजी से दौड़ रही मोदी सरकार भी किसानों और मजदूरों को तबाह करने पर आमादा है तो दूसरी ओर बांग्लादेश में ग्रामीण बैंक की स्थापना करने वाले और सूक्ष्म ऋण के माध्यम से हस्तशिल्प में लगी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने वाले मोहम्मद यूनुस के विकास मॉडल की भी बड़े स्तर पर आलोचनाएं हुई हैं। लेकिन दोनों देशों के आर्थिक विकास के मॉडल को महज घुसपैठियों के नजरिए से देखने वाले नेता विकास के आर्थिक पहलू को न तो समझ सकते हैं और न ही समझने का मौका देना चाहते हैं। वे एक ओर देश के भीतर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करके चुनाव जीतना चाहते हैं तो दूसरी ओर पड़ोसी देश से राष्ट्रवादी नोकझोंक करके संबंध खराब करना चाहते हैं।

यही वजह है कि भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने पश्चिम बंगाल के चुनाव प्रचार के दौरान एबीपी बांग्ला को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि बांग्लादेश के विकास का असर वहां सीमाई जिलों में जमीनी स्तर तक नहीं पहुंचा है इसीलिए घुसपैठ हो रही है। उन्होंने यह भी कहा कि यह घुसपैठ सिर्फ बंगाल में नहीं है बल्कि जम्मू और कश्मीर तक पहुंच गई है। उसी के जवाब में बांग्लादेश के विदेश मंत्री मोमेन ने प्रथम आलो को दिए इंटरव्यू में यह आरोप लगाया कि इससे दोनों देशों के रिश्ते बिगड़ सकते हैं। उन्होंने इस तरह के आरोपों को अस्वीकार्य बताया और कहा कि अमित शाह का बयान जानकारी पर आधारित नहीं है। उन्होंने तंज करते हुए कहा है कि दुनिया में तमाम बुद्धिमान लोग हैं जो नजर पड़ने के बावजूद देख नहीं पाते और तमाम लोग ऐसे हैं जो जानने के बावजूद समझ नहीं पाते। यानी अमित शाह कुछ ऐसे ही हैं। मोमेन का दावा है कि आज बांग्लादेश में कोई भी व्यक्ति भूख से नहीं मरता। वहां मौसमी गरीबी भी नहीं है। बल्कि उन्होंने यह भी दावा किया कि कई सामाजिक सूचकांक के पैमाने पर बांग्लादेश की स्थिति भारत से बेहतर है। बांग्लादेश में ज्यादा पढ़े लिखे तबके में जरूर बेरोजगारी है लेकिन सामान्य वर्ग को काम मिल जाता है। उल्टे आज भारत के एक लाख लोग वहां काम कर रहे हैं।

उन्होंने दावा किया है कि आज बांग्लादेश में 90 प्रतिशत लोग साफ सुथरे शौचालयों का इस्तेमाल करते हैं जबकि भारत में (मोदी के स्वच्छ भारत अभियान के बावजूद) यह औसत 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं है। इसी प्रकार वैश्विक भूख सूचकांक में 107 देशों की सूची में अगर भारत 94वें नंबर पर है तो बांग्लादेश 75वें पर। इस तरह से अन्य सूचकांक भी बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के बाइब्रें (गतिशील) होने का प्रमाण देते हैं जैसे कि एशिया विकास बैंक के अनुसार 2019 में बांग्लादेश की जीडीपी की विकास दर स्थिर रही। यानी 8 प्रतिशत से 8.1 प्रतिशत तक गई। जबकि भारत की घटकर 7.2 से 6.5 हो गई थी।

बांग्लादेश सामाजिक सूचकांक और कई मोर्चों पर भारत से बेहतर कर रहा है यह निष्कर्ष नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन और ज्यां द्रेज ने 2013 में आई अपनी पुस्तक –द अनसरटेन ग्लोरी—में भी निकाला था। जब भारत में स्वच्छ भारत अभियान नहीं शुरू हुआ था तब भी बांग्लादेश में खुले में शौच करने वाले 8.4 प्रतिशत लोग ही थे। इसी प्रकार कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी भारत की दोगुना थी। अगर भारत में नौ साल पहले 29 प्रतिशत महिलाएं कार्यबल में हिस्सेदारी करती थीं तो बांग्लादेश में यह संख्या 57 प्रतिशत थी। बांग्लादेश में परिवार नियोजन के कार्यक्रम इतनी अच्छी तरह से चले हैं कि जहां 1970 के दशक में प्रति महिला बच्चों का औसत 7 था वही 1990 के दशक में 4.5 पर आ गया और 2011 में 2.1 हो गया। विगत दस सालों में यह औसत और भी कम हुआ है। कुछ विशेषज्ञ तो मानते हैं कि वहां परिवार नियोजन को दालभात की तरह से अपना लिया गया है। वास्तव में बांग्लादेश के विकास की कुंजी महिलाओं की बढ़ी भूमिका में ही है। बांग्लादेश की शिशु मृत्यु दर भी भारत से बेहतर है। अगर 2020 में भारत में यह दर प्रति 1000 पर 29 है तो बांग्लादेश में यह 25 है। इसका मतलब यह नहीं कि बांग्लादेश अपने आर्थिक विकास में भारत से आगे निकल गया है।

निश्चित तौर पर प्रति व्यक्ति आय और प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में भारत बांग्लादेश से बेहतर है लेकिन अगर 2013 में बांग्लादेश प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में भारत के आधे पर था तो आज वह भारत से ज्यादा पीछे नहीं है। अगर बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति जीडीपी 2000 अमेरिकी डालर है तो भारत के संदर्भ में यह आंकड़ा 2099 अमेरिकी डालर का है। इसी तरह प्रति व्यक्ति सालाना आय के मामले  में भी अगर भारत 6920 डालर पर है तो बांग्लादेश 5,200 डालर पर है। इस तरह की बहुत सारा तुलनात्मक आंकड़ा दोनों देशों के बीच विकास की होड़ को भी दर्शाता है और नव उदारवादी नीतियों की विफलता और बुरे परिणामों की भी कहानी कहता है।

इसीलिए घुसपैठियों और प्रवासियों के राजनीतिक एजेंडे को सामने रखकर दोनों देशों की आर्थिक प्रगति की तुलना न सिर्फ बेमानी है बल्कि एक दुर्भावनापूर्ण आख्यान भी है। इसका मतलब यह नहीं कि घुसपैठ नहीं हुई है या फिर समस्याएं नहीं हैं। उनके होने और उनके राजनीतिक दुरुपयोग में अंतर है। अगर समस्याएं हैं तो उनका समाधान भी होगा। लेकिन जहां राजनीतिक दुरुपयोग और राष्ट्रवादी तनातनी का सवाल है तो उसका समाधान आसान नहीं होगा। यही कारण है कि हमें अमित शाह और अब्दुल मोमन के विवाद का हश्र प्रधानमंत्री मोदी की उस ढाका यात्रा में देखना चाहिए जिसका विरोध करते हुए बांग्लादेश में जमाते इस्लामी के 10 लोग मारे गए थे।

हालांकि मोहम्मद यूनुस के मॉडल की भी बड़ी आलोचनाएं हुई हैं और कहा गया है कि समाज के कमेरे तबके का विकास बाहरी ऋण की बजाय उस लघु बचत से होगा जो आम आदमी करता है। इसीलिए यूनुस के ग्रामीण बैंक के मॉडल पर विकसित देशों द्वारा संचालित उन अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं की नीतियां हावी हो गईं जो नवउदारवाद की समर्थक हैं। इस तरह बांग्लादेश में गरीबी मिटाने के नाम पर गरीबी का एक जाल निर्मित हुआ जो वहां के लोगों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। उसके चलते स्वयं मोहम्मद यूनुस भी परेशान हैं। उसकी वजह यह थी कि उनका मॉडल लोगों की मदद करने की बजाय उपभोक्तावादी हो गया।

इन आरोपों और खराब अनुभवों के बावजूद अमित शाह और अब्दुल मोमेन की बहस से अलग उस चर्चा पर गौर करने लायक है जो राहुल गांधी ने यूनुस के साथ की थी। यूनुस ने कहा था कि कोरोना की मौजूदा चुनौती ने हमें यह सोचने पर विवश किया है कि पूंजीवादी मॉडल से अलग किस तरह से उन गरीबों और मजदूरों पर ध्यान दिया जा सकता है जो अनौपचारिक क्षेत्र में बताए जाते हैं। कोरोना के कारण भारत में भी बेरोजगारी दर इसी अप्रैल माह में 6.65 प्रतिशत से बढ़कर 8.58 प्रतिशत तक पहुंच गई है। अपनी तमाम कमियों के बावजूद यूनुस पर्यावरणीय संकट और बेरोजगारी संकट की ओर ध्यान देने पर जोर देते हैं। राहुल गांधी भी उन बातों को उठा रहे हैं। इसलिए आवश्यकता हिंदू मुस्लिम और घुसपैठिए बनाम मूल निवासी के आख्यान से आगे जाकर उस मॉडल को तलाशने की है जिससे दोनों देश मौजूदा आर्थिक चुनौतियों का सामना कर सकें।

दुनिया में दक्षिण एशिया और सहारा क्षेत्र के विकास मॉडल काफी गड़बड़ बताए जाते रहे हैं। लेकिन आज अगर उनमें गतिशीलता आई है तो उन्हें उन सूत्रों को पकड़ना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए न किस चुनावबाज नेताओं के राष्ट्रवादी क्षुद्रताओं में उलझकर नई संभावनाओं को नष्ट कर देना चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।) 

Amit Shah
AK Abdul Momen
India
Bangladesh
migrants

Related Stories

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आईपीईएफ़ पर दूसरे देशों को साथ लाना कठिन कार्य होगा

UN में भारत: देश में 30 करोड़ लोग आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर, सरकार उनके अधिकारों की रक्षा को प्रतिबद्ध

वर्ष 2030 तक हार्ट अटैक से सबसे ज़्यादा मौत भारत में होगी

लू का कहर: विशेषज्ञों ने कहा झुलसाती गर्मी से निबटने की योजनाओं पर अमल करे सरकार

वित्त मंत्री जी आप बिल्कुल गलत हैं! महंगाई की मार ग़रीबों पर पड़ती है, अमीरों पर नहीं

जम्मू-कश्मीर के भीतर आरक्षित सीटों का एक संक्षिप्त इतिहास

क्या हिंदी को लेकर हठ देश की विविधता के विपरीत है ?


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License