NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
भू-राजनीतिक महत्व के देश अफ़गानिस्तान के साथ संबंध को लेकर असमंजस में भारत
अफगानिस्तान भारत के उत्तरी भाग में स्थित एक महत्वपूर्ण पड़ोसी देश है. यह देश दुनिया भर में खास कर दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक महत्व रखता है जिसकी वजह से यह सभी देशों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है
सबरंग इंडिया
27 Jul 2021
भू-राजनीतिक महत्व के देश अफ़गानिस्तान के साथ संबंध को लेकर असमंजस में भारत

अफगानिस्तान भारत के उत्तरी भाग में स्थित एक महत्वपूर्ण पड़ोसी देश है. यह देश दुनिया भर में खास कर दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक महत्व रखता है जिसकी वजह से यह सभी देशों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर अफगानिस्तान में वर्तमान में अमेरिकी सेना के हटाए जाने की घोषणा हो चुकी है. इस देश की सरकारी सेना और तालिबान के बीच सशस्त्र संघर्ष बदस्तूर जारी है. ख़बरों के मुताबिक़ लगातार चल रहे इस संघर्ष द्वारा तालिबानियों नें अफगानिस्तान के कई महत्वपूर्ण सीमाओं और शहरों पर कब्ज़ा कर लिया है जिसमें कई लोग मारे जा चुके हैं. इस बीच अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा है कि सरकार तालिबानी हमले और क्रूरता के ख़िलाफ़ आखरी साँस तक लड़ेगी. देश के सैनिकों और सुरक्षा बल का हौसला अफजाई करते हुए उन्होंने कहा कि “हमारा लक्ष्य है अफगानिस्तान की रक्षा करना, देश की आजादी, समानता और 20 साल की उपलब्धि को बचाए रखना. हम दुश्मनों के मंसूबों को कामयाब नहीं होने देंगे. अफगानिस्तान सभी अफगानियों का घर है और आप सभी में यह क्षमता है कि आप दुनिया को अपनी ताकत का लोहा मनवा सकते हैं.”

गौरतलब है कि अफगानिस्तान आतंरिक संकट से गुजर रहा है. अमेरिका द्वारा जब से अफगानिस्तान से सेना हटाने की बात हुई है तब से भारत की दिक्कते बढ़ गयी हैं. 11 सितम्बर तक अमेरिका ने अफगानिस्तान की भूमि से अपने सेना को वापस बुला लेने का लक्ष्य रखा है. अमेरिकी सेना के हटते ही संभव है कि तालिबान का कब्ज़ा अफगनिस्तान के अधिकांश क्षेत्रों पर हो जाए. भारत अफगानिस्तान की सरकार को जनता का प्रतिनिधि मानती रही है और उनके साथ मिलकर इस देश के उत्थान के लिए कई परियोजनाएं चला रही है. भारत तालिबान को एक आतंकी संगठन की तरह देखती है. भारत नें अफगानिस्तान के विकास के लिए कई काम किए हैं जिसमें अफगानिस्तान की संसद के निर्माण से लेकर, सड़कें, नहर, स्कूल सहित कई परियोजनाएं शामिल है. यह सभी काम भारत ने अफगानिस्तान सरकार के साथ  मिलकर किया है लेकिन आज के हालात में अफगानिस्तान में फंसे हिन्दुस्तानियों के सुरक्षित भारत में लौटने के इंतजाम  सरकार द्वारा किए जा रहे हैं. 

तालिबान भारत सम्बन्ध 

यद्धपि तालिबान साम्राज्यवादी हितों को साधने के लिए बनाया गया औज़ार था लेकिन बाद के दशक में यह तमाम साम्राज्यवादी देशों के लिए ही ख़तरा साबित हुआ. 1996 से 2001 के बीच जब अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभुत्व था उस समय भारत नें काबुल से अपने रिश्ते ख़त्म कर लिए थे. अमेरिकी सेना के हस्तक्षेप के बाद अफगानिस्तान में हामिद करजई की सरकार का गठन हुआ जिसके बाद भारत भी अफगानिस्तान की भूमि पर सक्रिय हुआ. बात साल 1999 की है जब भारत के एक यात्री विमान का अपहरण हुआ था और उसे अफ़गानिस्तान के कांधार एयरपोर्ट पर ले जाया गया था. ये इलाका उस समय तालिबान के नियंत्रण में था इसलिए तालिबान ही अपहरणकर्ता और भारत सरकार के बीच मध्यस्थता कर रहा था. यह पहला मौका था जब भारत की सरकार ने तालिबान के साथ कोई संपर्क बनाया हो. इसके बाद भी भारत सरकार और तालिबान के बीच कोई औपचारिक संपर्क नहीं रहा. वर्तमान में अफगानिस्तान की सेना और तालिबान के बीच भीषण संघर्ष चल रहा है अगर यह हालत शांति समझौता की तरफ़ नहीं बढ़ता है तो पहले से बर्बाद इस देश की अर्थव्यवस्था बदतर हो जाएगी. 

अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान का नियंत्रण दुनिया भर के साथ-साथ भारत के लिए भी चिंता का सबब है. पिछले दो दशकों में भारत द्वारा अफगानिस्तान के विकास में अलग अलग परियोजनाओं में 22 हजार करोड़ का निवेश किया गया है. सिर्फ़ 2020 में ही भारत नें अफ़गानिस्तान में 150 नई परियोजनाओं की घोषणा की थी. अमेरिकी सेना के आगमन के बाद से बीते दो दशक में भारत नें इस देश में भारी निवेश किया है. भारत के विदेश मंत्रालय के अनुसार भारत द्वारा अफगानिस्तान में छोटे बड़े कुल मिलाकर 400 से अधिक प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं.

अफगानिस्तान में भारत द्वारा चलायी गयी बड़ी परियोजनाएं 

 अफ़गानिस्तान में भारत द्वारा चलाए गए सबसे प्रमुख प्रोजेक्ट में काबुल में बनाए गए अफगानिस्तान की संसद है, जिसके निर्माण में भारत नें लगभग 675 करोड़ रूपये ख़र्च किए हैं. इसका उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2015 में किया था. इस संसद में एक ब्लॉक भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर भी है. भारत अफगान मैत्री को दोनों देशों द्वारा ऐतिहासिक बताया गया था. 

 अफगानिस्तान में सलमा डेम हैरात प्रांत में 42 मेगावाट का हाईड्रोपॉवर प्रोजेक्ट है. इसका उद्घाटन 2016 में हुआ था. हैरात प्रांत में भी पिछले कुछ हफ़्तों से अफगान सेना और तालिवान के बीच भारी जंग चल रही है. खबर है कि डेम की सुरक्षा में तैनात सुरक्षा कर्मियों की हत्या तालिबान के द्वारा कर दी गयी है और इस क्षेत्र पर अब तालिबान का कब्ज़ा है.

 भारतीय सीमा सड़क संगठन ने अफ़गानिस्तान में 218 किलोमीटर लम्बा हाईवे भी बनाया है. इरान की सीमा के पास जारांज से लेकर डेलाराम तक इस हाईवे पर 15 करोड़ डालर ख़र्च हुए हैं. यह हाईवे इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि ये अफगानिस्तान में भारत को इरान के रास्ते एक वैकल्पिक मार्ग देता है. इस हाइवे के निर्माण कार्य में भारत के 11 लोगों को जान भी गंवानी पड़ी थी. इस हायवे प्रोजेक्ट के अलावा भी भारत कई सड़क परियोजनाओं में निवेश कर चुका है. अगर इस हाईवे पर तालिबान का नियंत्रण हो जाता है तो यह भारत के लिए हानिकारक साबित होगा.  

अफगानिस्तान की बदलती हुई राजनीतिक परिदृश्य और बढ़ती अस्थिरता ने काबुल के साथ भारत के सम्बन्ध को असमंजस में डाल दिया है. काबुल में राजनीतिक स्थिरता बनी रहे यह भारत-अफगान नीति की पहली शर्त है. भारत हिंसा और अतिक्रमण के ख़िलाफ़ बोलता रहा है हाल के दिनों में भारतीय विदेश मंत्री ने तालिबान द्वारा की गयी हिंसा की आलोचना की है और कहा है कि दुनिया हिंसा और बल प्रयोग के जरिये कब्ज़ा करने के विरुद्ध है इस तरह के कदम को वैधता नहीं दी जानी चाहिए. तालिबान से जारी संघर्ष के बीच अफगानिस्तान के सेना प्रमुख जनरल मोहमद अहमद जई भारत दौरे पर आ रहे हैं इस यात्रा को अहम् माना जा रहा है वहीँ तालिबान चाहता है कि भारत मौजूदा काबुल प्रशासन का समर्थन नहीं करे. ऐसे हालत में भारत का अफगानिस्तान नीति को लेकर असमंजस में पड़ना लाजिमी है. अफगानिस्तान में चाहे जो भी गुट सत्ता में आए अफगानिस्तान में शांति और विकास मानवाधिकार की रक्षा और राजनीतिक स्थिरता से ही संभव है और यही भारत को असमंजस से बहार निकलने की कुंजी भी है.

साभार : सबरंग 

India
Afghanistan
India Afghanistan Relations

Related Stories

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आईपीईएफ़ पर दूसरे देशों को साथ लाना कठिन कार्य होगा

UN में भारत: देश में 30 करोड़ लोग आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर, सरकार उनके अधिकारों की रक्षा को प्रतिबद्ध

वर्ष 2030 तक हार्ट अटैक से सबसे ज़्यादा मौत भारत में होगी

लू का कहर: विशेषज्ञों ने कहा झुलसाती गर्मी से निबटने की योजनाओं पर अमल करे सरकार

वित्त मंत्री जी आप बिल्कुल गलत हैं! महंगाई की मार ग़रीबों पर पड़ती है, अमीरों पर नहीं

रूस की नए बाज़ारों की तलाश, भारत और चीन को दे सकती  है सबसे अधिक लाभ

प्रेस फ्रीडम सूचकांक में भारत 150वे स्थान पर क्यों पहुंचा

‘जलवायु परिवर्तन’ के चलते दुनियाभर में बढ़ रही प्रचंड गर्मी, भारत में भी बढ़ेगा तापमान


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License