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‘UN खाद्यान्न सुरक्षा सम्मेलन’ के बहिष्कार की अपील, भारतीय संगठनों ने आयोजित की चर्चा
नागरिक समाज संगठनों का कहना है कि सम्मेलन को सिर्फ़ कुछ तकनीकी समाधानों तक सीमित कर दिया गया है, जो मानवाधिकारों की परवाह नहीं करते।
दित्सा भट्टाचार्य
06 Sep 2021
‘UN खाद्यान्न सुरक्षा सम्मेलन’ के बहिष्कार की अपील, भारतीय संगठनों ने आयोजित की चर्चा

तीन और चार सितंबर को "संयुक्त राष्ट्र खाद्यान्न सुरक्षा सम्मेलन (यूनाइटेड नेशंस फूड सिक्योरिटी समिट- NFSS)" पर "इंडियन काउंटर डॉयलॉग" का आयोजन जन-सरोकार द्वारा किया गया। बातचीत के दौरान विशेषज्ञों ने भारतीयों, खासकर वंचित तबके पर UNFSS से पड़ने वाले नतीज़ों पर चर्चा की। यह विमर्श वैश्विक कृषि व्यापार (एग्रो बिज़नेस) की आलोचना भी था। 

जन सरोकार, प्रगतिशील नागरिक समाज संगठनों, सामाजिक संगठनों, अकादमिक जगत से जुड़े लोगों और लोकतांत्रिक जवाबदेही वाली जनहित प्रक्रिया और व्यवस्था के पक्षधरों के बीच का एक साझा तंत्र है।

2019 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने घोषणा करते हुए कहा था, "खाद्यान्न के बारे में दुनिया के उत्पादन, खपत और सोच के तरीकों में बदलाव" लाने के लिए UNFSS का आयोजन किया जाएगा। इसमें सतत विकास लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।" UNFSS 23 सितंबर, 2021 को होनी है। 

जन स्वास्थ्य आंदोलन (पीपल्स हेल्थ मूवमेंट- PHM's) और "न्यूट्रीशन थेमेटिक सर्किल" ने UNFSS का बॉयकॉट करने की अपील की है। इसकी वज़ह कॉरपोरेट का प्रभाव और नागरिक समाज़ की आवाज़ों को इस सम्मेलन के ज़रिए हाशिए पर ढकेले जाने की कोशिश है। नागरिक समाज संगठनों (UN समितियों के साथ संबंधों पर स्थानीय लोगों के तंत्र- CSM समेत) ने भी इस सम्मेलन को चुनौती देने की अपील की है, ताकि खाद्यान्न व्यवस्था पर लोगों की संप्रभुता का फिर से दावा किया जा सके।

नागरिक समाज संगठनों के मुताबिक इस सम्मेलन का विमर्श पहले से ही कॉरपोरेट प्रभाव में है, जो वैश्विक खाद्यान्न प्रशासन में बदलाव चाहता है, जिससे वंचित और संवेदनशील तबकों की खाद्यान्न सुरक्षा और संप्रभुता को ख़तरा है। 4 सितंबर को खाद्यान्न और पोषण पर एक सत्र के दौरान नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया के कार्यकारी निदेशक बिरज पटनायक ने इसके बारे में टिप्पणी करते हुए कहा, "हममें से वो लोग जो विश्व खाद्यान्न सम्मेलन को करीब से देख रहे हैं, वह जानते हैं कि यह पूरी तरह से उथल-पुथल की स्थिति में है।"

उन्होंने इस अस्त-व्यस्त स्थिति के लिए कुछ कारण भी बताए। पटनायक के मुताबिक़, बुनियादी तौर पर बड़े व्यापार, बड़े खाद्यान्न और कृषि व्यापार, जनता, उपभोक्ताओं के बड़े हिस्से और वैश्विक खाद्यान्न व्यवस्था के आधार- उत्पादकों, के हितों के खिलाफ़ हैं। उन्होंने कहा, "इसलिए इन संस्थानों में टकराव जारी है, जहां खाद्यान्न व्यवस्था और कृषि पर कॉरपोरेट नियंत्रण के खिलाफ़ तनाव है, और इस व्यवस्था के इन दो बड़े हिस्सेदारों का खाद्यान्न व्यवस्था के लिए दृष्टिकोण भी पूरी तरह अलग है।"

तो ये दो बड़े हिस्सेदार कौन हैं? एक तरफ दुनिया के उत्पादक, छोटे भूस्वामी, महिलाएं, दलित और स्थानीय लोग हैं। इनमें से 70 फ़ीसदी छोटे स्तर के उत्पादक हैं। दूसरी तरफ बड़ा कॉरपोरेट वर्ग है, जिसका रुझान खाद्यान्न और पोषण से सिर्फ़ मुनाफ़ा कमाना है। 

UNFSS के पूरी तरह अस्त-व्यस्त होने के पीछे एक दूसरी वजह पटनायक ने यह बताई कि यह सम्मेलन कोविड-19 की पृष्ठभूमि में हो रहा है, लेकिन यहां एक बार भी इस महामारी और आम जीवन व जीविका पर इसके प्रभाव का जिक्र तक नहीं है। इसमें ना तो यह बताया गया है कि वैश्विक खाद्यान्न व्यवस्था को कोरोना ने कैसे प्रभावित किया है और भविष्य में कोविड-19 व दूसरी वास्तविकताओं से निपटने के लिए क्या उपाय किए जाएंगे, खासकर लातिन अमेरिका, अफ्रीका, एशिया जैसे दुनिया के कमज़ोर हिस्सों में, जहां बड़े पैमाने पर आर्थिक स्थिति खराब है और भुखमरी की स्थिति है।

पटनायक ने अंत में कहा, "यह सम्मेलन सिर्फ़ कुछ तकनीकी समाधानों की श्रंखला तक सीमित होकर रह गया है, जो खाद्यान्न के अधिकार और इसके मुख्य केंद्र मानवाधिकारों को ध्यान में नहीं रखते।"

डॉक्टर सिल्विया कर्पागम ने बताया कि कैसे नीतियां अलग-अलग समुदायों को प्रभावित करती हैं, खासकर भारतीय पृष्ठभूमि में। उन्होंने बताया कि कैसे भारत जैसे देश में कौन क्या खाएगा और किस तरह का भोजना खाएगा, उसका फ़ैसला एक तरह की विचारधारा और व्यक्तिगत प्राथमिकता वाले लोग ले रहे हैं। डॉ. कर्पागम ने कहा, "हम अपनी खाद्यान्न नीतियां बनाने के क्रम में अग्रणी आवाज़ होने की स्थिति को नहीं गंवा सकते। अगर पोषण या स्वास्थ्य से जुड़े कोई दुष्प्रभाव सामने आए, तो क्या इन नीतियों से जुड़े लोगों पर जिम्मेदारी तय की जाएगी?"

उन्होंने EAT-लांसेट रिपोर्ट 2019 और इसके सम्मेलन पर प्रभाव की भी चर्चा की। इस रिपोर्ट में पौधों पर आधारित खान-पान के लिए भारत की प्रशंसा की गई थी। यह इस गलत अवधारणा पर बात करती है कि भारत जैसे देशों में "पारंपरिक भोजन" में बहुत कम लाल मांस शामिल होता है, जो सिर्फ़ खास मौकों पर खाया जाता है या मिश्रित व्यंजनों में उपयोग किया जाता है। आयोग के प्रतिनिधि ब्रेंट लोकेन ने 2019 में नई दिल्ली में रिपोर्ट के लॉन्च किए जाने के मौक पर कहा कि "पौधों से प्रोटीन हासिल करने मामले में भारत बहुत शानदार उदाहरण है।"

EAT-लांसेट आयोग में पूरी दुनिया से 37 आयुक्त शामिल किए गए थे, इनमें से दो श्रीनाथ रेड्डी और सुनीता नारायण भारत से थे। डॉ. कर्पागम के मुताबिक़ इन 37 आयुक्तों में से 31 शाकाहारी थे और वे अपने काम के ज़रिए शाकाहार और मांस विरोधी विचारों को आयोग में आने से पहले भी प्रचारित करते रहे हैं। इसलिए आयोग में जैसी विविधता होनी चाहिए थी, उसकी कमी थी।

इस सम्मेलन में कार्रवाई के लिए पांच रास्ते (एक्शन ट्रैक) बताए गए हैं:

1) सभी के लिए सुरक्षित और पोषण वाला भोजन सुनिश्चित करना

2) सतत खपत तरीकों की तरफ़ स्थानांतरित होना

3) प्रकृति को लेकर सकारात्मक रहने वाले उत्पादन को बढ़ाना

4) समतावादी आजीविका को बढ़ाना

5) तनाव, झटकों और संकटों के खिलाफ़ प्रतिरोधकता विकसित करना।

प्रोफ़ेसर रमेश चंद की अध्यक्षता और नीति आयोग को शामिल कर भारत सरकार ने UNFSS-भारत प्रक्रिया पर निगरानी रखने के लिए एक समिति का गठन किया है। एक सदस्य देश के तौर पर अखिल भारतीय स्तर का विमर्श 12 अप्रैल, 2021 को आयोजित किया गया था। सरकार ने एक वेबसाइट का निर्माण भी किया है। जन सरोकार के मुताबिक़, यह राष्ट्रीय या अखिल भारतीय विमर्श UNFSS के आयोजकों द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर नीति निर्माताओं, CSOs, अकादमिक जगत के लोगों और दूसरे लोगों से सहमति लेने के लिए था। 

भारत सरकार ने चौथे नंबर के रास्ते- समतावादी आजीविका को बढ़ाना देना, चुना है। सरकार के मुताबिक़, "एक्शन ट्रैक नंबर-4 उत्पादक और पूर्ण रोज़गार को बढ़ावा देकर गरीब़ी को कम करने और अच्छे काम की आपूर्ति का लक्ष्य रखता है। इससे दुनिया के गरीब़ लोगों का जोख़िम कम होगा, उद्यमशीलता को बढ़ावा मिलेगा और संसाधनों तक असमतावादी पहुंच की समस्या भी हल होगी। सामाजिक सुरक्षाओं के ज़रिए यह रास्ता प्रतिरोधकता को मजबूत करने और किसी को भी पीछे ना छोड़े जाने के मूल्य को सुनिश्चित करने की कोशिश करता है।"

केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए दस्तावेज़ों के मुताबिक़, "यहां खाद्यान्न तंत्र में समतावादी आजीविका को बढ़ाने के लिए समाधान खोजने का लक्ष्य है। खाद्यान्न तंत्र में समतावादी आजाविका को बढ़ावा देने के लिए हमें कई आयामों से गरीब़ी से निपटना होगा। उन वर्गों की आजीविका पर ध्यान केंद्रित करना होगा, जो मौजूदा खाद्यान्न तंत्र की प्रक्रियाओं और भेदभाव वाले व्यवहार-नियमों से सीमित हैं, जो उन्हें समतावादी आजीविका के लिए भी सीमित करते हैं। "

इसमें आगे कहा गया, "खाद्यान्न व्यवस्था में शक्ति संतुलन में बदलाव भी अहम है, इसके लिए औपचारिक (बाज़ार मोलभाव, समूह सदस्यता आदि) और अनौपचारिक क्षेत्र में बदलाव जरूरी हैं। आखिर में इस बदलाव में विवादास्पद सामाजिक शर्तों के साथ-साथ ढांचों में बदलाव भी शामिल है।"

लेकिन इन बातों से इतर, जनसरोकार का कहना है कि UNFSS द्वारा वैश्विक खाद्यान्न तंत्र के ढांचे में लाए जाने वाले बदलावों के ख़तरनाक नतीज़े होंगे। उन्होंने एक वक्तव्य में कहा कि जन आंदोलनों द्वारा वैश्विक स्तर पर इस सम्मेलन का विरोध किया जाना चाहिए।

वक्तव्य में कहा गया, "UNFSS का विरोध प्राथमिक तौर पर, कॉरपोरेट संचालित अन्यायपूर्ण खाद्यान्न तंत्र के खिलाफ़ है। यह तंत्र छोटे उत्पादकों, मतस्य कामग़ारों, वन में रहने वाले लोगों, मवेशी पालन करने वाले किसानों, खेतिहरों और गरीब़ उपभोक्ताओं के अस्तित्व को ख़तरा है। यह सम्मेलन, राष्ट्रों की नीति बनाने में स्वायत्ता की शक्ति को सीमित करने और भूख, जन स्वास्थ्य, कुपोषण और आजीविका के नुकसान पर नवउदारवादी प्रतिक्रियाएं देने संबंधी गंभीर चिंताएं पैदा करता है।"

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Indian Civil Society Organisations Hold Dialogue Opposing UN Food Security Summit

Jan Sarokar
UNFSS
Food Systems Summit
UN Food Systems Summit
Right to Food
People's Health Movement
Health and Nutrition
Eat-Lancet Commission

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