NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
वसुधैव कुटुम्बकम: भारत को फिर से एक कैसे करें? 
2022 में, याद रखें कि भारतीय राष्ट्रवाद ने हमें सांस्कृतिक समृद्धि और समन्वित धारणाओं की ताकत दी है।
राम पुनियानी
04 Jan 2022
Vasudhaiva Kutumbakam

अनेकता में एकता एक मुहावरा है, जिसे हम सभी ने स्कूल के दिनों से ही अपनाया था। विजयदशमी तक, यानी दस दिनों तक रामलीला उत्सव का आनंद लेना, इसके समानांतर ही ताज़िया जुलूस में भाग लेना या वंदे विरम (पवित्र भगवान महावीर) के नारे लगाते जैन जुलूस में शरीक होना, बाबासाहेब अम्बेडकर ने बौद्ध धर्म ग्रहण करने के दिन दलितों का उत्सव और फिर साल के आखिरी में क्रिसमस का आनंद लिया जाता था।विविधता के ये अनुभव इस बात में गहराई से सन्निहित थे कि भारतीयों ने विभिन्न धार्मिक आस्था एवं विश्वासों के त्योहारों को कैसे चिह्नित किया था-यह विशुद्ध रूप से अनुभवात्मक था, न कि कोरे सिद्धांत के दायरे में।

भारतीय समाज में, विविधता उतनी ही पीछे जाती है, जितनी कल्पना की जा सकती है। भारत में ईसाई धर्म दुनिया की बहुत बड़ी ईसाई आबादी वाले कई देशों की तुलना में भी काफी पुराना है। ठीक सातवीं शताब्दी में इस्लाम भारत की इस भूमि का हिस्सा बन गया था। शक, कुषाण, हूण और यूनानियों ने हमारी संस्कृति में नए रंग भरे। यहां सवाल उठता है कि भारतीय संस्कृति में विविधता की जड़ें इतनी गहरी कैसे हो गईं, जबकि यहां जातीय संघर्ष था? दरअसल, सामाजिक परिस्थितियाँ विभिन्न धार्मिक धाराओं के बीच सह-अस्तित्व में और सद्भाव में रच-बस गईं।

अशोक के शिलालेख विभिन्न धर्मों के अवलंबियों (जिसमें बौद्ध धर्म, ब्राह्मणवाद, जैन धर्म और आजीविका शामिल हैं) के बीच आपसी सम्मान की मांग करते हैं। बहुत बाद में, मुगल शासक अकबर ने दीन-ए-इलाही और सुलह-ए-कुल को बढ़ावा दिया। दारा शुकोह ने अपनी पुस्तक मजमा उल बहरीन में भारत को हिंदू धर्म और इस्लाम धर्म के दो सागरों से बना एक विशाल महासागर के रूप में वर्णित किया है।

कबीर, रामदेव बाबा पीर, तुकाराम, नामदेव और नरसी मेहता जैसे भक्ति संतों ने हिंदुओं और मुसलमानों के अनुयायियों को अपने विचारों के प्रति गहरे आकर्षित किया था। निजामुद्दीन औलिया, मुइन अल-दीन चिश्ती और हाजी मलंग जैसे सूफी संत भारतीय लोकाचार का हिस्सा बन गए। इन संतों ने अपने भिन्न धर्म और अलग जाति के बावजूद सभी लोगों को एक ही भाव से गले लगाया। वे स्थानीय संस्कृति के साथ पूरी तरह से घुलमिल गए।

औपनिवेशिक काल के दौरान, फूट डालो और राज करो की ब्रिटिश नीति के कारण धर्म के नाम पर विभाजनकारी प्रवृत्तियों ने अपना सिर उठाया। समाज के कुलीन वर्गों ने इन प्रवृत्तियों को हवा देना शुरू किया और उन्हें प्रोत्साहित किया। हालाँकि, वे एकीकृत और सर्व-समावेशी स्वतंत्रता आंदोलन से प्रभावित थे। यहीं पर गांधी द्वारा हिंदू धर्म की जादुई व्याख्या भारतीय राष्ट्रवाद के एक सूत्र में सभी धर्मों के लोगों को लामबंद करने में सफल रही। गांधी के आंदोलनों के करिश्मे ने सभी धर्मों के लोगों पर अपनी गहरी छाप छोड़ी। उनकी प्रार्थना सभाओं में आने वाले लोग गीता के श्लोक और कुरान और बाइबिल के छंदों का एक सांस में पाठ करते थे। 

इस अवधि के दौरान, हमने मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, शौकतुल्ला शाह अंसारी, खान अब्दुल गफ्फार खान, अल्लाह बख्श और कई अन्य लोगों को जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल और स्वतंत्रता आंदोलन के अन्य नेताओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर राष्ट्र हित में काम करते देखा है। विविधता ने भारतीय राष्ट्रवाद की समग्र धारणा में सांस्कृतिक समृद्धि और शक्ति को जोड़ा था।

सांस्कृतिक मूल्यों ने सूक्ष्म और गहन तरीकों से परस्पर संवाद को बहुत अधिक प्रभावित किया है, इसने हमारे जीवन के सभी पहलुओं को भोजन की आदतें, साहित्य, कला, संगीत, वास्तुकला और जो कुछ भी हमारे पास है, उन सबको प्रभावित किया है। विगत कुछ दशकों से, भारत में घटनाएं विपरीत दिशा में आगे बढ़ रही हैं, जो देश में शांति और सद्भाव के लिए हानिकारक हैं। इसके सकारात्मक पक्ष में, हम धर्म के भीतर और उससे परे एकीकृत प्रयासों के उत्साह को देखते हैं। हमारे पास स्वामी अग्निवेश और असगर अली इंजीनियर जैसे प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता थे, जिन्होंने अंतर्धार्मिक संवाद को बढ़ावा दिया था और विभिन्न धर्मों के सदस्यों के बीच गलतफहमी को दूर करने की कोशिश की थी। 

कई धर्मयोद्धा चुपचाप समाज में काम कर रहे हैं- इनमें मार्टिन मैकवान, जॉन दयाल और सेड्रिक प्रकाश लोगों के जेहन में घर कर गए हैं-जिन्होंने सामाजिक-साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है। अंतर्धार्मिक संवाद के इस तरह के आंदोलनों ने हिंदुओ-मुसलमानों और अन्य धर्मों के सदस्यों के बीच धार्मिक और सामाजिक गलतफहमी को कम करने में काफी मदद की है। उनकी पहल ने विविध समूहों के बीच मैत्री बनाए रखने में गहरा योगदान दिया है। इनमें से प्रत्येक ने अपने-अपने तरीके से पूरे समाज में सद्भाव की छाप छोड़ी है।

फैसल खान ने खान अब्दुल गफ्फार खान की स्थापित की हुई ऐतिहासिक संस्था खुदाई खिदमतगार को पुनर्जीवित किया है। यह जमीनी स्तर का एक संगठन है, जो हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सौहार्द और आपसी सम्मान की भावना को बढ़ावा देता है। उन्होंने एक खुला घर-अपना घर-एक प्रणाली शुरू की है, जिसमें सभी समुदायों के सदस्य एक साथ रह सकते हैं और सम्मानजनक तरीके से दूसरों के साथ अपनी प्रथाओं को साझा कर सकते हैं। इसके बारे में प्रसिद्ध फिल्म निर्माता आनंद पटवर्धन ने लिखा है, "...खुदाइयों ने पूरे देश में लोगों के दिलों को छुआ है और इससे उनके सदस्यों की तादाद 50,000 से भी अधिक हो गई है। आज इनमें कई हिंदू शामिल हैं, जिनमें कुछ ऐसे भी हैं, जो कभी आरएसएस में थे।”

भारत कई भयावह लिंचिंग का स्थल रहा है। इनसे पीड़ित होने वालों के परिवारों को कोई सामाजिक समर्थन नहीं है और वे बेहद असहाय हैं। उनके साथ सहानुभूति रखने के लिए, सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने कारवां-ए-मोहब्बत शुरू किया, जो नैतिक और सामाजिक समर्थन देने के लिए लिंचिंग के पीड़ितों के परिवारों तक पहुंचता है। यह परिवारों और समुदायों के लिए महत्त्वपूर्ण सहायता के रूप में सामने आया है।

कई शहरों में आज सांप्रदायिक सद्भाव समूह और धर्मार्थ काम करने वाले कई समूह हैं, जो सभी समुदायों की मदद करते हैं, भले ही हम उनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं सुनते हैं। ये समूह चुपचाप, बिना अपनी तरफ किसी का ध्यान खींचे, अपना काम कर रहे हैं जबकि विभाजन को बढ़ावा देने वाले समूहों की हिंसा हमेशा सुर्खियों में रहती है। इसी तरह, शाहीन बाग विरोध प्रदर्शन ने अंतर-सामुदायिक सौहार्द को मजबूत किया।

गहरी समस्या उन लोगों का वैश्विक उत्थान से है, जो "सभ्यताओं के टकराव" की थीसिस में विश्वास करते हैं और इस तरह विभाजनकारी प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हैं। भारत उसका कोई अपवाद नहीं है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रायोजित एक उच्च स्तरीय समिति, तब इसके महासचिव कोफी अन्नान हुआ करते थे, उसने 'सभ्यताओं के गठबंधन' की धारणा को दुनिया के सामने रखा था। यह कई समूहों को मिला कर तैयार किया गया एक मार्गदर्शक सिद्धांत हो सकता है, जो भारत की समन्वित परंपराओं को पुनर्जीवित करना चाहते हैं। इस परेशान करने वाले वर्तमान परिदृश्य में, आशा की इन किरणों के बारे में हमारी जानकारी कम भले ही है लेकिन वे देश के शांति एवं सद्भावपूर्ण भविष्य के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।

(लेखक एक सामाजिक कार्यकर्ता और टिप्पणीकार हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।)

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Vasudhaiva Kutumbakam: How to Reunite India

Communalism
Harmony
clash of civilisations
Kofi Annan
Khudai Khidmatgar
Hindus and Muslims
Syncretic culture
Karwan-e-Mohabbat
BR Ambedkar
communal harmony

Related Stories

विचारों की लड़ाई: पीतल से बना अंबेडकर सिक्का बनाम लोहे से बना स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी

मोदी@8: भाजपा की 'कल्याण' और 'सेवा' की बात

तिरछी नज़र: ये कहां आ गए हम! यूं ही सिर फिराते फिराते

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?

क्यों अराजकता की ओर बढ़ता नज़र आ रहा है कश्मीर?

क्या ज्ञानवापी के बाद ख़त्म हो जाएगा मंदिर-मस्जिद का विवाद?

सारे सुख़न हमारे : भूख, ग़रीबी, बेरोज़गारी की शायरी

पूजा स्थल कानून होने के बावजूद भी ज्ञानवापी विवाद कैसे?

'उपासना स्थल क़ानून 1991' के प्रावधान


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License