NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
भारतीय मीडिया : बेड़ियों में जकड़ा और जासूसी का शिकार
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर भारतीय मीडिया पर लागू किए जा रहे नागवार नये नियमों और ख़ासकर डिजिटल डोमेन में उत्पन्न होने वाली चुनौतियों और अवसरों की एक जांच-पड़ताल।
सुकुमार मुरलीधरन
05 May 2022
Media

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर भारतीय मीडिया पर लागू किए जा रहे नागवार नये नियमों और ख़ासकर डिजिटल डोमेन में उत्पन्न होने वाली चुनौतियों और अवसरों की एक जांच-पड़ताल।

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (MIB) ने अप्रैल की शुरुआत में 22 यू ट्यूब चैनलों को ब्लॉक करने का आदेश दिया था। इन चैनलों में 18 भारत और चार पाकिस्तान के यूट्यूब चैनल हैं। इसके अलावा, चार सोशल मीडिया अकाउंट और एक न्यूज़ वेबसाइट को भी ब्लॉक कर दिया गया। उसी महीने के बाद के दिनों में 16 और यू-ट्यूब चैनल ब्लॉक कर दिये गये। इनमें दस भारत और बाक़ी सभी पड़ोसी देश के थे। इन चैनलों के साथ ही एक फ़ेसबुक अकाउंट भी ब्लॉक कर दिया गया था।

इन आदेशों के अधिकार का आधार सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (आईटी अधिनियम) के तहत बनाये गये सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम हैं, जिन्हें फ़रवरी 2021 में लागू किया गया था। नियम 16 के तहत एमआईबी का सचिव एक "अधिकृत अधिकारी" की सलाह पर "आपातकालीन" स्थितियों में" किसी भी कंप्यूटर डिवाइस के ज़रिये किसी भी जानकारी या उसके हिस्से की सार्वजनिक एक्सेस" को ब्लॉक करने का आदेश दे सकता है।

अप्रैल में ब्लॉक किये जाने वाले उन दोनों ही आदेशों में किसी विशेष आपात स्थिति का हवाला नहीं दिया गया है, लेकिन एमआईबी राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, सांप्रदायिक सद्भाव और सबसे दिलचस्प विदेशी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों की बाध्यकारी परिस्थितियों का आह्वान करता है। ये सभी संविधान के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाने के लिहाज़ से स्वीकार्य आधार हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने साल 2015 के अपने एक ऐतिहासिक फ़ैसले में क़ानून की अत्यधिक व्यापकता, यानी असुरक्षित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने के नाम पर संरक्षित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को भी प्रतिबंधित कर दिये जाने के आधार पर आईटी अधिनियम की धारा 66 ए को इसलिए रद्द कर दिया था, क्योंकि इसने अस्पष्ट रूप से परिभाषित आधारों पर डिजिटल मीडिया के निजी यूज़र्स के ख़िलाफ़ आपराधिक कार्रवाई की इजाज़त दे दी थी। इसके साथ ही अदालत ने आईटी अधिनियम की धारा 69A को बरक़रार रखा था, जो कि दायरे में संकुचित है और केंद्र सरकार की ओर से डिजिटल मीडिया सामग्री को ब्लॉक करने को लेकर संविधान में निर्दिष्ट आधारों का पालन करती है।

फिर भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर "उचित प्रतिबंध" पर न्यायिक मिसाल बहुत ही ख़राब रही है। ख़ासकर भ्रमित करने वाली जो परिस्थितियां हैं,वे ऐसी परिस्थितियां हैं, जिनमें "बाहरी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध" को संयम के आधार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। विडंबना यही है कि हाल के दिनों में भारत की पश्चिम दिशा में स्थित बाहरी देश को लेकर मैत्रीपूर्ण टिप्पणी देशद्रोह के आरोपों का आधार रही है, इसकी मिसाल अक्टूबर में गिरफ़्तार किये गये वे तीन कश्मीरी छात्र हैं,जिन्हें ग़लत क्रिकेट टीम के पक्ष में वाहवाही करने के अपराध में छह महीने की जेल की सज़ा दी गयी थी।

अप्रैल में आये एमआईबी के ये फ़ैसले ग़ौर करने लायक़ हैं, क्योंकि वे फ़रवरी 2021 के नियमों के तहत की गयी पहली अहम कार्रवाई हैं। दूसरी बातों के अलावा, ये नियम डिजिटल सामग्री के सभी प्रकाशकों पर विनियमन की त्रि-स्तरीय प्रणाली का आदेश देते हैं। वहां निहित सभी आत्म-विरोधाभास के साथ क़ानून से अनिवार्य स्व-विनियमन के रूप में चित्रित यह प्रणाली संविधान में उद्धृत अपने उच्चतम स्तर के वास्तविक इरादे को सामने रख देती है। यहां जो निर्णायक अधिकार है,वह विशुद्ध रूप से नौकरशाही मूल वाले एक निकाय से संचालित होता है। ये नियम उन कुछ नैतिक संहिता, जो सालों से विकसित हुए हैं,उनकी वैधानिक स्थिति को भी सशक्त बनाते हैं, और नौकरशाही को किसी कथित उल्लंघन होने की स्थिति में प्रतिबंध लगाने का अधिकार देते हैं।

संवैधानिक चुनौती के बावजूद नियमों का इस्तेमाल जारी, आंशिक रोक

देश भर के हाई कोर्टों में इन नियमों के ख़िलाफ़ कई याचिकायें दायर की गयी हैं। उन डिजिटल समाचार आउटलेट, जिनके पास इन अविलंब और मनमाने प्रशासनिक प्रतिबंधों से डरने की वजह थी,उन्होंने इस पर रोक लगाने की मांग की थी। तमाम हाई कोर्टों ने शुरू में तो इन नियमों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, लेकिन ख़ास अनुरोध किये जाने पर कोर्ट ज़ोर-ज़बरदस्ती की इस कार्रवाई के ख़िलाफ़ निषेधाज्ञा देने के लिए तैयार हो गये।

अगस्त में बॉम्बे हाई कोर्ट (इस आउटलेट की ओर से दायर एक याचिका के जवाब में), और अगले ही महीने मद्रास हाई कोर्ट ने इन नये नियमों के उन दो खंडों- 9(1) और 9(3) पर रोक लगा दी थी,जो डिजिटल प्रारूप में सभी प्रकाशकों के लिए एक वैधानिक आचार संहिता को शामिल करता था, और पर्यवेक्षण की एक तीन स्तरीय प्रणाली बना दी। फ़ैसला देते हुए मद्रास हाई कोर्ट ने "पूरी सावधानी" बरतने की ज़रूरत की बात कही, क्योंकि यह परिकल्पित व्यवस्था "मीडिया की स्वतंत्रता को छीन सकती है", जिसका नतीजा यह हो सकता है कि "लोकतंत्र का यह चौथा स्तंभ..." अपने अस्तित्व में ही नहीं रह जाये। अदालत ने यह भी कहा था कि सुनवाई में मौजूद केंद्र सरकार के वकील ने स्वीकार किया था कि यह फ़ैसला पूरे देश में लागू होगा।

न्यायिक रोक के बावजूद सरकार इस विश्वास के साथ आगे बढ़ रही है कि वे पहले से ही नियमों के तहत पूरी तरह सशक्त हैं। जनवरी में एमआईबी ने इन नियमों के कथित तौर पर अनुपालन नहीं करने को लेकर कई मीडिया घरानों को नोटिस जारी करने का खुलासा किया था।

हालांकि, मीडिया घराने पूरी अनिच्छा के साथ इस नयी निगरानी प्रणाली के दूसरे स्तर के हिस्से के रूप में ज़रूरी स्व-नियामक निकायों का गठन कर रहे हैं। इस स्व-नियमन की अवधारणा में एक और पेंच है और वह यह है कि ये सभी निकाय एमआईबी से अनुमोदन के अधीन हैं। ग़ौरतलब है कि आधिकारिक मंज़ूरी दिये जाने की प्रक्रिया अपारदर्शी रही है, प्रभावित होने वाले पक्षों की तरफ़ से उठाये जाने वाले सवालों को लेकर ग़ैर-ज़िम्मेदार रही है, और लगभग पूरी तरह नौकरशाही विशेषाधिकार वाली रही है।

संभावित सार्वजनिक शिकायतों के समाधान के पहले स्तर के रूप में डिजिटल मीडिया घराने भी कुछ हिस्सों में आंतरिक व्यवस्था की आवश्यकता का अनुपालन कर रहे हैं। ये एक ऐसे शासन की ओर से संभावित उत्पीड़न को रोकने के लिहाज़ से एहतियाती क़दमों के अलावा कुछ और नहीं थे, जिसका रुख़ ख़ासकर स्वतंत्र मीडिया के प्रति अच्छा नहीं रहा है।

मीडियावन चैनल को प्रतिबंधित करने की कोशिश

हालांकि, ऐसा भी नहीं है कि सरकार को मनमाने अधिकार का इस्तेमाल करने के लिए किसी नये आईटी मध्यस्थ नियमों के समर्थन की ज़रूरत है। फ़रवरी 2020 में केरल स्थित समाचार चैनल-मीडियावन को दिल्ली दंगों के कवरेज,ख़ासकर जिस तरह से इसने "पूजा स्थलों पर हुए हमले को उजागर किया था" और "एक समुदाय विशेष का पक्ष लिया था",उस सिलसिले में उसे 48 घंटों के लिए बंद करने का आदेश दे दिया गया था।

इसी साल जनवरी में एमआईबी ने बिना किसी स्पष्ट सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए इस चैनल के लाइसेंस के नवीनीकरण किये जाने से इनकार कर दिया था। हालांकि,उस प्रतिबंध पर दो दिनों के लिए रोक लगा दी गयी थी, लेकिन बाद में सुरक्षा एजेंसियों की ओर से सीलबंद लिफ़ाफ़े में केरल हाई कोर्ट के सामने सुबूत पेश किये जाने के बाद इसे बरक़रार रखा गया था। हालांकि, बहुत ही कम समय में मिली सूचना के आधार पर न्यायिक चलन के अनुरूप न्याय दिये जाने की यह अपारदर्शी प्रणाली कुछ ऐसी चीज़ है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने हाल के दिनों में सक्रिय रूप से हतोत्साहित करने का आह्वान किया है।

बाद की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने अस्पष्टता को लेकर सरकार की कोशिश को खारिज कर दिया और प्रसारण को बहाल कर दिया, जबकि चैनल को अपने सामने पेश की गयी सामग्री को सुलभ कराने पर फ़ैसला सुरक्षित रखा।

पत्रकारों, राजनीतिक मतभेद रखने वालों के ख़िलाफ़ अत्याधुनिक स्पाइवेयर का लगाया जाना

न्यायिक छानबीन की दहलीज को पार करने के लिए अभी तक इन नियमों के ज़ोर-ज़बरदस्ती से इस्तेमाल के लिहाज़ से अप्रैल महीने में उठाया जाने वाले वह प्रचंड क़दम असल में चल रही एक ख़ास तरह की कोशिश का ही हिस्सा है। मीडिया संगठनों के एक वैश्विक संघ ने पिछले साल जुलाई में एक ऐसी ही निगरानी अभियान को लेकर एक ऐसी ख़बर  को सामने ला दिया, जिसके निशाने पर दुनिया भर में व्यापक रूप से फैले लोगों के तक़रीबन 50,000 मोबाइल फ़ोन शामिल थे। इसके लिए जिस उपकरण का इस्तेमाल किया गया था,वह पेगासस था।यह इजरायली मूल का एक स्पाइवेयर है। जैसा कि दिल्ली स्थित एक समाचार पोर्टल, द वायर की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साफ़्टवेयर की ज़द में लगभग 1,000 लोग भारत से हैं,जिनमें पत्रकारों, नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं और सार्वजनिक हस्तियों के नम्बर थे।

पेगासस और एक दूसरा सॉफ़्टवेयर-नेटवेयर रिमोट एक्सेस ट्रोजन निशाने पर रखे गये उन लोगों से जुड़े डिवाइस पर आपत्तिजनक सबूत को प्लांट करने में शामिल थे, जिनमें से कई आरोपी जनवरी 2018 में पश्चिमी भारतीय शहर पुणे में हुई एक हिंसक झड़प से जुड़े एक मामले में शामिल हैं।इस मामले को भीमा कोरेगांव मामले के रूप में जाना जाता है। बाद में पता चला कि इनमें से कई लोग कुछ महीने पहले से ही इस सॉफ़्टवेयर की नज़र में बने हुए थे।

अब सोशल मीडिया पर नज़र रखने की बारी?

2014 में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में लाने वाली अभियान रणनीति का एक अहम हिस्सा सोशल मीडिया पर प्रभाव जमाने वाला अभियान था। सूचना पर हावी होने की यह कोशिश तभी से इसकी शासन शैली का एक अटूट हिस्सा रहा है। नरेंद्र मोदी सरकार ने शुरुआती चार सालों में नागरिकों की सोशल मीडिया गतिविधि पर नज़र रखने और जहां तक संभव हो, सार्वजनिक दृष्टिकोण को प्रभावित करने को लेकर निर्देश देने वाली एक एजेंसी स्थापित करने के लिहाज़ से अलग-अलग रूप से उल्लेखित कम से कम सात प्रयास किये थे।

एमआईबी ने 2015 में "सोशल मीडिया कम्युनिकेशन हब" स्थापित करने और उसे बनाये रखने के लिए बिड आमंत्रित करते हुए निविदायें जारी की थीं। इसका घोषित लक्ष्य यह सुनिश्चित करना था कि सरकार के सबसे अहम कार्यक्रमों के बारे में दी रही जानकारियों का नियमित प्रवाह नागरिकों तक पहुंचता रहे। लेकिन,इसका असली इरादा "इंटरनेट और सोशल मीडिया साइटों पर सामग्री की पहुंच" को बढ़ाने और "अपलोड की गयी सामग्री को वायरल करने" के तरीक़े की तलाश  करना था,जिसका स्पष्ट लक्ष्य लक्ष्य दुष्पच्रचार था। इसी तरह, "निजी सोशल मीडिया यूज़र्स और एकाउंट्स", "सोशल मीडिया पर चल रही भावनाओं" और "सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफ़ॉर्म पर नज़र आते संपूर्ण रुझानों" की निगरानी के उद्देश्य से एक और निगरानी का इरादा सामने आया था।

हालांकि,वह क़वायद तो ख़त्म हो गयी, लेकिन बाद के सालों में बार-बार एक नयी आड़ में इसे नये-नये रूप में लाया जाता रहा। अप्रैल 2018 में जारी प्रस्तावों के लिए एक अनुरोध में सोशल मीडिया संचार हब बनाने के लिए आवेदन आमंत्रित किये  गये थे, जो अन्य बातों के अलावा विभिन्न विषयों पर चर्चा को जन्म देने वालों को लेकर एक पूर्ण नज़रिया बनाने में मदद करने के लिए "प्रत्येक व्यक्ति के साथ संवाद से जुड़े लॉग के आसान प्रबंधन का समर्थन करता।"  सिस्टम को "प्रभावित करने वालों,यानी कि उन इंफ़ल्युएंसर" के लिए जगह बनानी जानी थी, जो देश भर में उन उद्देश्यों को  लेकर बातचीत शुरू कर सकते हैं, जिनमें "राष्ट्रवादी" भावनाओं की गुंज़ाइश बन सकती है।

इस मामले पर एक विपक्षी सांसद की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि क्या उसके मन में "निगरानी रखने वाली सरकार" बनने का इरादा है। हालांकि, वकील ने दलील दी थी कि महज़ क़ानूनी उद्देश्यों की मांग की गयी है, लेकिन वह प्रस्ताव जल्द ही वापस ले लिया गया था। सरकार अक्टूबर 2020 में एक बार फिर से एक ऐसी सहूलियत में "रुचि की अभिव्यक्ति" की दावत के साथ संघर्ष के इस मैदान में ताल ठोंकते हुए आ गयी,जो "सोशल मीडिया को ट्रैक कर सकती है, सोशल मीडिया की भावनाओं की निगरानी कर सकती है", "समस्याग्रस्त" गतिविधि को "ग़ैर-समस्याग्रस्त" गतिविधियों से अलग कर सकती है, "सामग्री को वायरल कर सकती है, और अन्य गतिविधियों की एक श्रृंखला को पूरा" कर सकती है।

सूचना के स्पेस तक पूरे आधिपत्य की इस क़वायद में गुप्त डिवाइस को भी लगा दिया गया है। कुछ ने संवैधानिक अधिकारों के अनुरूप होने के लिहाज़ से अभी तक मूल्यांकन की प्रक्रिया में चल रहे नियमों का इस्तेमाल करते हुए वैधता की आड़ में काम को अंजाम दिया है। और नेटवर्क कनेक्टिविटी की कमान पर पूरी तरह क़ाबू पाने की महत्वाकांक्षा की बात की जा रही है। साफ़ है कि नये सूचना जगत का प्रतीत होने वाला यह बहुलवाद भारत सरकार की ओर से ख़ुद को ऐसे एकमात्र प्राधिकरण के रूप में स्थापित किये जाने के लगातार प्रयास की राह में कोई बाधा नहीं रह गयी है, जिसे किसी से भी ज़्यादा सुना जाना चाहिए।

साभार: द लीफ़लेट

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Media in India: Shackled and Spied on

World Press Freedom Day
Media in India
Union Ministry of Information and Broadcasting
Information technology

Related Stories

जटिल है भारत में प्रेस की स्वतंत्रता का प्रश्न

अब डिजिटल मीडिया पर नियंत्रण की कोशिश में सरकार!


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License