NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
भारत
राजनीति
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: सड़क से कोर्ट तक संघर्ष करती महिलाएं सत्ता को क्या संदेश दे रही हैं?
एक ओर शाहीन बाग़ से लेकर किसान आंदोलन तक नारे लगाती औरतों ने सत्ता की नींद उड़ा दी है, तो वहीं दूसरी ओर प्रिया रमानी की जीत ने सत्ता में बैठे ताक़तवर लोगों के खिलाफ महिलाओं को खुलकर बोलने का हौसला दिया है।
सोनिया यादव
07 Mar 2021
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

यूं तो आप हर साल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च के अवसर पर महिलाओं को स्पेशल फील करवाने वाली कई खबरें और सरकारी बयानों को पढ़ते होंगे, लेकिन आज हज़ारों महिलाएं जो सड़क से लेकर कोर्ट तक अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं उन्होंने इसकी अलग ही परिभाषा गढ़ दी है। एक ओर शाहीन बाग़ से लेकर किसान आंदोलन तक नारे लगाती औरतों ने सत्ता की नींद उड़ा दी है, तो वहीं दूसरी ओर प्रिया रमानी की जीत ने सत्ता में बैठे ताक़तवर लोगों के खिलाफ महिलाओं को खुलकर बोलने का हौसला दिया है।

अब महिलाएं बड़ी संख्या में बाहर आ रही हैं, खुलकर बात कर रही हैं और कोई उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं कर पा रहा है। पितृसत्तात्मक समाज में जहां औरतों का दायरा घर की चारदीवारी ही समझा जाता है। वहीं अब महिलाओं ने इस मुनवादी सोच को चुनौती देकर तमाम आंदोलनों में न सिर्फ अपनी हिस्सेदारी दिखाई है बल्कि उन आंदोलनों की अगुआई भी की है। आज महिलाएं न सिर्फ़ अपने समुदाय के बल्कि सभी के अधिकारों के लिए सड़क की लड़ाई लड़ रही हैं।

हम कमज़ोर नहीं, मज़बूत महिलाएं हैं!

चाहे तस्वीरों में पुलिस से भिड़ती कॉलेज की लड़कियाँ हो या हाड़ कंपाने वाली सर्दी में बैठी शाहीन बाग़ की दादियां, या फिर कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ गाँव-गाँव से राष्ट्रीय राजधानी का सफ़र तय करने वालीं महिलाएं। औरतों ने ये जाहिर कर दिया कि अब वो चुपचाप सब कुछ होते नहीं देखेंगी, वो बदलाव के लिए संघर्ष करेंगी। कभी शांत प्रदर्शनकारी बनकर, तो कभी सरकारों से लोहा लेकर। कभी पुलिस की लाठियों का मुक़ाबला कर तो कभी अपने अधिकारों के लिए लंबी न्यायिक लड़ाई लड़, अब वो ये साबित कर देना चाहती हैं कि हम कमज़ोर नहीं, मज़बूत महिलाएं हैं।

आइए इस महिला दिवस पर उन सभी महिलाओँ के योगदान का सम्मान करते हैं, जिनकी दृढ़ता और साहस समाज में आए नए परिवर्तन का संकेत है और ये परिवर्तन कितनी दूर जा सकता है, इसका उदाहरण सर्द रातों में देश के भीतर क्रांति की एक नई मशाल बनी शाहीन बाग़ की औरते हैं। इसका सबूत विषम परिस्थितियों में 100 दिन से अधिक देश की राजधानी की सीमाओं पर डटी हुई हज़ारों महिला किसान हैं, जो अपने हक़ की लिए लड़ाई लड़ रही हैं। इसकी ताज़ा मिसाल पत्रकार प्रिया रमानी की जीत है, जिन्होंने कभी सत्ता के शीर्ष पद पर रहे एमजे अकबर की आंखों में आंखें डाल अपने सम्मान के लिए आवाज़ उठाई।

“तेरे गुरूर को जलाएगी वो आग हूं, आकर देख मुझे मैं शाहीन बाग़ हूं”

शाहीन बाग़ का आंदोलन पहले दिन से ही सुर्खियों में था। ये एक आंदोलन से ज़्यादा नागरिक चेतना का प्रतीक था, इसकी वजह वहां धरने पर बैठी औरतें थी। वो औरतें जो सीएए-एनआरसी के विरोध में तमाम बंदिशों को तोड़ कर अपने अधिकार और पहचान के लिए सड़कों पर उतरीं थी। कड़ाके की ठंड और पुलिस की लाठियों की परवाह किए बिना उन्होंने अपने संघर्ष को कई महीनों तक लगातार जारी रखा।

इसे भी पढ़ें: सिर्फ़ दादी बिल्क़ीस ही नहीं, शाहीन बाग़ आंदोलन की सभी औरतें प्रभावशाली हैं!

महिलाएं 'आज़ादी' और 'हम संविधान बचाने निकले हैं, आओ हमारे साथ चलो' जैसे नारे लगाती थी और 'संविधान की प्रस्तावना' को हर दिन पढ़ती थीं। आलम यह हुआ कि दिल्ली से लेकर बंगाल तक, बिहार से लेकर बंबई और अन्य कई राज्यों में महिलाएं लामबंद हुईं और सत्ता की आंखों में आंख डालकर सवाल करने लगीं, उन्हें बाबा साहेब के संविधान की याद दिलाने लगीं।

संघर्ष को बदनाम करने की कोशिशों के बीच महिलाओं का बेबाक जवाब

शाहीन बाग़ ने देश की महिलाओं के जीवित होने का एहसास पूरे देश को कराया। इस आंदोलन को बेइंतिहा मोहब्बत के साथ कई गुना नफ़रत भी मिली। महिलाओं के इस संघर्ष को बदनाम करने की खूब कोशिशें हुई। तरह-तरह के फ़ेक फ़ोटो और झूठे दावों के साथ इन महिलाओं का चरित्र-हनन किया गया।

कई मुख्यमंत्रियों और बड़े नेताओं द्वारा महिलाओं को अपशब्द कहे गए। लेकिन धरने पर डटी औरतों का हौसला कम नहीं हुआ। वो और उत्साह से इस आंदोलन में शिरकत करने लगीं। टीवी चैनलों के डिबेट से लेकर न्यूज़ एंकरों के सवालों तक सबका बेबाकी से जवाब देने लगीं। आज़ाद भारत में ऐसा पहली बार हुआ जब इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिम औरतें अपने हक के लिए सड़कों पर उतरीं।

किसान आंदोलन का संदेश ‘महिलाओं की ज़रूरत सड़क पर है, संघर्ष में है’

कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ किसान आंदोलनों में भागीदारी करती गांव-गांव से आईं महिलाएं, ‘दिल्ली चलो’ आंदोलन की महज़ समर्थक ही नहीं बल्कि उसमें बराबर की भागीदार भी हैं। इस बात का सबूत है कि वो समय आने पर कृषि क्षेत्र में अपने अदृश्य योगदान से पर्दा उठाकर, देश को ये एहसास करा सकती हैं कि खेती-बाड़ी में उनकी भूमिका कितनी बड़ी और महत्वपूर्ण है।

इसे भी पढ़ें: महिला किसान दिवस: खेत से लेकर सड़क तक आवाज़ बुलंद करती महिलाएं

किसान आंदोलन में शामिल दिल्ली के सिंघु, टिकरी और गाज़ीपुर बॉर्डर पर बैठी औरतों ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे को भी जवाब दिया, जिन्होंने इस आंदोलन में महिलाओं की भूमिका को लेकर कई टिप्पणियां की थीं। इन टिप्पणियों को महिला किसानों रूढ़िवादी और समाज की पितृसत्तामक सोच की नुमाइश बताया। महिलाओं ने एक सुर में चीफ़ जस्टिस को ये संदेश दिया की ‘महिलाओं की ज़रूरत सड़क पर है, संघर्ष में है।

प्रिया रमानी की जीत से महिलाओं को मिला एक नया हौसला

इंडिया टुडे, द इंडियन एक्सप्रेस और द मिंट का हिस्सा रह चुकी वरिष्ठ पत्रकार प्रिया रमानी ने मीटू अभियान के दौरान तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर पर यौन दुर्व्यवहार का आरोप लगाया था। वो एमजे अकबर पर यौन शोषण का आरोप लगाने वाली पहली महिला थीं। हालांकि प्रिया के यह पोस्ट करने के कुछ घंटों के अंदर ही कई और महिलाओं ने उनकी बात से हामी भरते हुए अकबर पर उनके साथ अनुचित व्यवहार करने के आरोप लगाए। प्रिया के बाद #MeToo अभियान के तहत ही 20 महिला पत्रकारों ने अकबर पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे।

इन महिलाओं का आरोप था कि द एशियन एज और अन्य अख़बारों के संपादक रहते हुए अकबर ने उनका यौन उत्पीड़न किया था। अकबर ने न्यूज़रूम के अंदर और बाहर उनके साथ अश्लील हरकतें की थीं। चारों ओर से घिरे एमजे अकबर को इन आरोपों के बाद 17 अक्तूबर 2018 को केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा देना पड़ा था।

इसे भी पढ़ें: प्रिया रमानी की जीत महिलाओं के जीत है, शोषण-उत्पीड़न के ख़िलाफ़ सच्चाई की जीत है!

न जाने कितनी औरतें अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न की कहानियां अपने दिल में ही लिए सालों साल जीती हैं और शायद उस दर्द को अपने अंदर ही समेटे दुनिया छोड़ जाती हैं लेकिन मीटू अभियान और प्रीया रमानी केस का यही हासिल है कि अब भविष्य में शायद औरतें दिल में यौन उत्पीड़न का दर्द लिए नहीं मरेंगी, एक नई उम्मीद से अपनी आवाज़ बुलंद करेंगी फिर चाहें सामने कोई भी क्यों न हो, शोषण करने वाला कितना भी बड़ा व्यक्ति या ताकतवर क्यों न हो, उन्हें एक नया हौसला मिलेगा।

महिलाओं के संघर्ष ने एक लंबा सफ़र तय किया है!

गौरतलब है कि आज़ादी की लड़ाई से लेकर चिपको आंदोलन तक देश में महिलाओं के संघर्ष की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। यूं तो निर्भया मामले से लेकर किसान मोर्चे तक महिलाओं में ये सजगता और साहस पहले भी कई मौक़ों पर दिखा है।

साल 2012 में निर्भया मामले के बाद बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चियां इंडिया गेट पर जमा हुईं। उन्होंने पुलिस की लाठियां और वॉटर कैनन झेले, लेकिन अपने हौसले और दृढ़ता से महिलाओं ने सरकार को यौन हिंसा के ख़िलाफ़ सख़्त क़ानून बनाने के लिए बाध्य किया।

महाराष्ट्र में मार्च 2018 में महिला किसानों के छिले हुए नंगे पैरों की तस्वीरें आज भी इंटरनेट पर मिल जाती हैं। ये नासिक से मुंबई तक किसानों की एक लंबी रैली थी। इसमें महिला किसानों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उनके इसके बाद नवंबर 2018 में क़र्ज़ माफ़ी की माँग को लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों से किसान महिलाएं विरोध प्रदर्शन के लिए दिल्ली पहुँची थीं।

रूढ़ीवादी परंपरा को तोड़ती हुई औरतें, सबरीमाला मंदिर हो या हाजी अली दरगाह, हिंसक प्रदर्शनकारियों के सामने अपनी जान जोख़िम में डालकर भी मंदिर पहुँचीं। महिलाओं की इस ताक़त में उम्र की कोई सीमा नहीं है। युवा, उम्रदराज़ और बुज़ुर्ग, हर उम्र की महिला के हौसले बुलंद नज़र आते हैं।

यूं तो महिलाओं के संघर्ष ने एक लंबा सफ़र तय किया है लेकिन साल 2020 में जिस तरह नागरिक संशोधन कानून के खिलाफ महिलाएं बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरीं और जिस तरह साल 2021 की सर्द रातों में महिलाओं ने किसान आंदोलन में अपनी आवाज़ बुलंद की, उसने आने वाले दिनों में महिला आंदोलनों की एक नई इबारत लिख दी है।

International Women's Day
Women protest
women empowerment
CAA
NRC
farmers protest
women farmers
Delhi Violence
delhi police
priya ramani

Related Stories

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

CAA आंदोलनकारियों को फिर निशाना बनाती यूपी सरकार, प्रदर्शनकारी बोले- बिना दोषी साबित हुए अपराधियों सा सुलूक किया जा रहा

मुस्लिम विरोधी हिंसा के ख़िलाफ़ अमन का संदेश देने के लिए एकजुट हुए दिल्ली के नागरिक

दिल्ली दंगों के दो साल: इंसाफ़ के लिए भटकते पीड़ित, तारीख़ पर मिलती तारीख़

यूपी चुनाव: किसान-आंदोलन के गढ़ से चली परिवर्तन की पछुआ बयार

देश बड़े छात्र-युवा उभार और राष्ट्रीय आंदोलन की ओर बढ़ रहा है

किसानों ने 2021 में जो उम्मीद जगाई है, आशा है 2022 में वे इसे नयी ऊंचाई पर ले जाएंगे

दिल्ली: प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों पर पुलिस का बल प्रयोग, नाराज़ डॉक्टरों ने काम बंद का किया ऐलान

ऐतिहासिक किसान विरोध में महिला किसानों की भागीदारी और भारत में महिलाओं का सवाल

साल 2021 : खेत से लेकर सड़क और कोर्ट तक आवाज़ बुलंद करती महिलाएं


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License